February 2017

Fall of Human Race by Rev Sultan Muhammad Paul

क़ुरआन व हदीस के रू से इंसान के मौरूसी तौर पर गुनेहगार होने

का ज़बरदस्त और लाजवाब सबूत

हबूत-ए-नस्ले इंसानी

मुसन्निफ़

अल्लामा मौलवी सुल्तान मुहम्मद साहिब अफ़गानी फाज़िले

अरबी व मशहूर मुनाज़िर

अज़

एम.के.खान महान सिंघ बाग़-लाहोर ने शाया किया

1925 ईस्वी

Rev Sultan Muhammad Paul

The Late Maulvi Sultan Muhammad Khan Paul

Arabic Professor, Forman Christian College, Lahore
1884-1960

Hubut-i-Nasl-i-Insani

The Fall of Human Race

Contains a summary of a public discussion on Original Sin by Rev Sultan Muhammad Paul and Khawaja Kamal-ud-Din in 1924, and a reply to an article on the subject subsequently written by Maulvi Muhammad Ali. A refutation to the Ahmadiyya claim that Qur’an teaches that man is born with an uncorrupted nature.

दीबाचा

मसीही दीन और इस्लाम के दर्मियान इस क़दर मुशतर्का था यह दो तालीमात हैं कि उनकी नज़ीर मज़ाहिब आलम में पाई नहीं जाती यही वजह है कि है हज़ारहा मुसलमान मह्ज़ क़ुरआन की हिदायत से मुतास्सिर हो कर मसीही दीन को क़बूल करने पर मज्बूर हो चुके और हो रहे हैं । जब एक सादिक़-उल-एतक़ाद मुसलमान क़ुरआन को मसीह की तारीफ़ व तौसिफ से लबरेज़ पाता है तो वो मसीह और मसीहीय्यत का हरगिज़ मुख़ालिफ़ हो नहीं सकता ये एक हक़ीक़त है । कि क़ुरआन ने बहुतों को मसीही बना दिया है ।

पादरी हाजी मौलवी सुल्तान मुहम्मद साहिब अफ़्ग़ान जो कि काबुल के शहज़ादों में से हैं और ज़बानी अरबी के फ़ाज़िल अजल, मंतिक़, फ़ल्सफ़ा व साइंस के माहिर और इल्म हदीस व फ़क्हा व तफ़्सीर के ज़बरदस्त आलिम हैं उन्ही मुसलमानों में से एक हैं जो कि क़ुरआन के तालीम से असरपज़ीर हो कर मसीही बन जाते हैं । आप मुतअद्दिद कुतुब मुनाज़रा के मुसन्निफ़ हैं अहले इस्लाम व हुनूद के ज़बरदस्त उलमाए अस्र में से बहुतों के साथ मुबाहिसे कर चुके हैं ।

अप्रैल 1924 ई. में मसीही अंजुमन बशारत लाहौर की तरफ़ से दावत पाकर आपने लाहौर में नजात पर लेक्चर दिया और हस्ब मामूल अहमदी उलमा से इसी मज़्मून पर फ़ोरमन क्रिस्चन कॉलेज हाल में तबादला ख़यालात फ़रमाया अहमदी उलमा का सारा ज़ोर इस बात पर था कि जो ख़ता सहव या निस्यान (نسیان) से वाक़े हो जाती है इस की कोई सज़ा नहीं होती । मगर पादरी साहिब ने क़ुरआन व हदीस से मोअतरिज़ीन को साकित कर दिया ।

2 अप्रैल 1924 ई. को दीन हक़ पर हिंदू, मुहम्मदी और मसीही उलमा ने तक़ारीर कीं और लाहौरी अहमदी फ़िर्क़ा के मुबल्लिग़ अकबर दमायह नाज़ फ़ाज़िल कमाल उद्दीन साहिब ने अहले इस्लाम की तरफ़ से इस मौज़ू पर लेक्चर दिया और बड़ी तहद्दी के साथ फ़रमाया कि ये बात बिल्कुल ग़लत है कि जो ख़ता सहव या निस्यान (نسیان) से हो उसी की सज़ा होती है । पादरी साहिब ने इस चैलेन्ज की वजह से ख़्वाजा साहिब से तबादला ख़यालात का मुतालिबा किया । चुनांचे 7 अप्रैल को अहमदिया बिल्डिंगज़ लाहौर में क़रीबन चालीस मुस्लिम व मसीही सरबरावरदह अस्हाब के रूबरू आप दोनों की गुफ़्तगु हुई । जिसमें क़ुरआन ही से पादरी साहिब ने ख़्वाजा साहिब को वो अक़ीदा मनवा दिया जो कि मसीहीय्यत का असल अल-उसूल है यानी (1) आदम ने गुनाह किया (2) और इस की गुनाह की सज़ा उसे मिली (3) और आदम के गुनाह की सज़ा में तमाम नस्ल इन्सानी शामिल है । जिसे कि मसीही इल्म इलाहियात में इन्सान का मौरूसी तौर पर गुनाहगार होना कहा जाता है । ये गुफ़्तगु नूर-अफ़शाँ लाहौर 5:24-30-23 में शाएअ हुई ।

अमीर जमाअत अहमदिया लाहौर जनाब मौलवी मुहम्मद अली साहिब एम-ए को इस गुफ़्तगु से हद दर्जा का ख़दशा पैदा हो गया । क्योंकि ख़्वाजा कमाल उद्दीन साहिब की शौहरत व शख्शियत के मुसलमान जब इस अक़ीदे की तर्दीद करके ख़्वाजा साहिब की गुफ़्तगु के असर को ज़ाइल करने के लिए एक तवील मज़्मून लिखा जिस पर पादरी साहिब मौसूफ़ ने नूर-अफ़शाँ 5-19 व 26 सितंबर और 2 अक्तूबर 1924 ई. में इस की वो ज़बरदस्त और लाजवाब तर्दीद की कि मौलवी-साहब बिल्कुल ख़ामोश हो गए । अहमदी जमाअत में खलबली मच गई और मुतअद्दिद उलमा को जवाब देने के लिए कहा गया मगर ना कोई जवाब था और ना ही किसी से बन पड़ा ।

चूँकि ये वो मसअला है जो इस्लाम और मसीहीय्यत के दर्मियान हद फ़ासिल है । इसलिए अगर ख़्वाजा कमाल उद्दीन साहिब की तरह तमाम मुसलमान इस अक़ीदे को तसल्ली कर लें कि इन्सान मौरूसी तौर पर गुनाहगार है तो यक़ीन कर लेना चाहिए कि वो मसीही हो चुके मेरे दिल में मज़्हब की ग़ैरत व हमीय्यत का माद्दा कूट कर भरा गया है । लिहाज़ा मैंने मुनासिब समझा कि (1) ख़्वाजा साहिब और पादरी साहिब के मुकालमा (2) अमीर जमाअत अहमदिया लाहौर के एतराज़ात और (3) पादरी साहिब के जवाब को किताबी सूरत में शाएअ कर दूँ । ताकि हज़ारहा बंदगान-ए-ख़ुदा को जो क़ुरआन पर ईमान रखते हैं । ईलाही नूर व हिदायत के हुसूल और मसीही दीन की सदाक़तों की तहक़ीक़ करने का मौक़ा हाथ आए पादरी साहिब ने इस मसअला पर ज़बरदस्त बह्स की है कि तास्सुब से ख़ाली और क़ुरआन पर सच्चा ईमान रखने वाले मुसलमान आप से इत्तिफ़ाक़ राय किए बग़ैर नहीं रह सकते । मौजूदा मुसलमानों के पास पादरी साहिब के दाअवे और ख़्वाजा साहिब के इक़रार का कोई जवाब नहीं है ।

इस बह्स के दो ही नतीजे होंगे और तीसरा कोई हो नहीं सकता कि या तो मुसलमान इस रिसाला को पढ़ कर मसीही हो जाएंगे । या क़ुरआन पर उनका ईमान ना रहेगा । क्योंकि क़ुरआन व हदीस वही बातें मनवाते हैं जो कि मसीहीय्यत का अस्लुल-उसूल हैं । पस उम्मीद है कि मसीही दोस्त इस की इशाअत में हद दर्जा की कोशिश और मुस्लिम हज़रात तास्सुब हठ धर्मी से ख़ाली-उल-ज़हन हो कर इसका मुतालआ करेंगे । यह वो तस्नीफ़ है जो मुस्लमानान-ए-आलम को मसीही बना देने का हुक्म रखती है । मेहरबानी से मुतालआ करने वाले अहबाब अपनी अपनी रायों से ज़रूर इत्तिला बख़्शें ।

मिलने का पता
एम् के खान महासिंघ बाग़
लाहोर

मकाल्मा

माबैन

पादरी सुल्तान मुहम्मद खान साहिब अफ़गान

और

ख्वाजा कमाल-उद्दीन साहिब बी ए मुस्लिम मिशनरीज़

7- अप्रैल 1924 ई .

पादरी साहिब साइल - ख़्वाजा साहिब कल आपने फ़रमाया था कि जो ख़ता सहव वाक़े हो । इस की कोई सज़ा नहीं । आदम ने एक ख़ता की वो ख़ता सहवन वाक़ेअ हुई या क़सदन और उस की सज़ा मुरत्तिब हुई या ना । लेकिन जब उस ने एक फे़अल खिलाफ-ए-अम्र रब्बी किया तो गुनाह हो चुका । क्या आप मानते हैं कि आदम से गुनाह हुआ ?

ख़्वाजा साहिब मुजीब - जो फे़अल सहवन वाक़ेअ हो वो गुफरान तले आ जाता है जब कोई नुक़्स अपने नताइज पैदा करता है । तो उसके नुक़्स ज़ाहिर कर दिए जाते हैं । आदम जिस जन्नत में था । मैं उसे कोई मकान या जगह नहीं मानता । वो सिर्फ एक हालत थी । क़वा (قویٰ) का आला दर्जा का कमाल ही जन्नत था । क़ुरआन में जहां सज़ा का ज़िक्र है । वहां लफ़्ज़ अख़ज़ (اخذ) आया है । आदम ने भूल से एक काम किया । और ख़ुदा ने फ़ौरन उस की निस्बत उसे इत्तिला कर दी । और नुक़्स ज़ाहिर हो गया और आदम सँभल गया ।

पादरी साहिब - शराअ के ख़िलाफ़ जो फे़अल हो वो गुनाह है । अब वो सहवन वक़ूअ में आया या क़सदन । अब इन्सान उसके नताइज को अंदरूनी क़वा (قویٰ) से रद्द करे या वो सबब ख़ारिजी से रोका जाये बहर-सूरत फे़अल खिलाफ-ए-क़ानून वाक़ेअ हो चुका । आदम ने एक फे़अल खिलाफ-ए-क़ानून किया अगर बिलफ़र्ज़ ख़ुदा के याद दिलाने से आदम ने नताइज को रोक भी लिया तो वो भी गुनाह कर चुका ।

ख़्वाजा साहिब - जब एक फे़अल खिलाफ-ए-क़ानून वाक़ेअ हो तो या वो नसिया (نسیہ) का और या इरादे का नतीजा है । अगर नसिया (نسیہ) का नतीजा हो तो गुफरान के तले आ जाएगा । और नतीजे को रोक देना ही गुफरान है । अगर फे़अल खिलाफ-ए-क़ानून बालाइरादा हुआ । तो उसका लाज़िमी नतीजा सज़ा है । जन्नत और दोज़ख़ कोई मकान नहीं है । क़वा (قویٰ) के दुरुस्त चलने का नतीजा जन्नत है और इस के ख़िलाफ़ दोज़ख़ है । आदम ने नसिया (نسیہ) से ख़ता की । लिहाज़ा इसका नतीजा रोक दिया गया ।

पादरी साहिब - आपने क़वा (قویٰ) का ज़िक्र किया है । तो जब क़वा (قویٰ) दुरुस्त राह पर नहीं चलते तो वो एक नतीजा पैदा करते हैं । और यही सज़ा है । पस आपने सज़ा को मान लिया ।

ख़्वाजा साहिब - बात ये है कि एक आदमी ऐसी ख़ुराक खाता है । कि इस से जिस्म को नुक़्सान पहुंचे । मगर बसा-औक़ात जिस्म की अंदरूनी क़ुव्वतें ही उसके असर को रोक देती हैं । और नतीजा ज़ाहिर नहीं होता । इसी तरह ख़ुदा के इत्तिला देने से आदम सँभल गया । पस सज़ा ना हुई । ग़लती से वाक़ेअ शूदा ख़ता का दफ़ईया ख़ुद बख़ुद हो जाता है । ख़ुदा का अदल किसी क़ानून के मातहत नहीं जब वो देखता है । कि सहवन गुनाह हो गया । तो वो माफ़ कर देता है । सज़ा ज़िम्मादारी नाअकुल पर है । एक क़ानून से नावाक़िफ़ या बच्चे ने गुनाह किया । तो ख़ुदा उसे सज़ा नहीं देता । बच्चा क़ानून नहीं समझ सकता । एक शख़्स भूल गया या किसी ने क़ानून को ग़लत समझा । तो ख़ुदा मिसल इन्सानी हाकिम के क़ानून का मज्बूर नहीं है । किसी फे़अल की सज़ा तब नतीजा पैदा करती है जब कि कोई क़ुव्वत-ए-मुख़ालिफ़ मौजूद ना हो । पस जब ख़ुदा ने बख़्श दिया । तो आदम को सज़ा ना हुई ।

पादरी साहिब - आदम ने क़ानून के ख़िलाफ़ फे़अल किया । आप कहते हैं कि इसका क्या गया । मगर याद रहे कि किसी शैय का इज़ाला उसके वजूद के बाद हुआ करता है मर्ज़ का इज़ाला तब होता है । कि मर्ज़ पैदा हो चुका हो । जब ये कहें कि ख़ुदा ने आदम के गुनाह को बख़्श दिया । तो इसका ये मतलब है कि आदम ने गुनाह किया ।

ख़्वाजा साहिब - मगर बाज़-औक़ात एक फे़अल वाक़ेअ हो जाता है । मगर उसके नताइज ज़हूर में नहीं आते । या अंदरूनी तौर पर इस का इज़ाला हो जाता है । ज़रूर नहीं कि नताइज ज़हूर पज़ीर हो ।

पादरी साहिब - बहुत अच्छा उसे हम भी मानते हैं । मगर इससे एक बात साबित हो गई कि आदम से गुनाह हुआ । ये पहला मरहला तै हो गया ।

दूसरा मरहला

पादरी साहिब - आदम से गुनाह के सरज़द होने को तो आप ने तस्लीम कर लिया । अब अम्र ज़ेर-ए-बहस ये रहा कि आदम को सज़ा हुई या ना । पस मालूम हो कि क़ुरआन में लिखा है । فَأَزَلَّهُمَا الشَّيْطَانُ عَنْهَا ‎ (2:34) यानी शैतान ने आदम व हव्वा को तनज़्ज़ुल कर दिया । इस से मालूम होता है कि भूल ना थी बल्कि ख़ारिजी अस्बाब से ऐसा हुआ । शैतान ने वरग़लाया और ख़ुदा के ख़िलाफ़ बहकाया । क्योंकि मुताबिक़ आयत وَلَمْ نَجِدْ لَهُ عَزْمًا ‎ (20:114) आदम मुस्तक़िल अलइरादा ना था । पस वो बहकाने में आ गया । अब हम इस बहकावट में आ जाने को भूल नहीं कह सकते । शैतान आदम पर ग़ालिब आया और आदम ने मुस्तक़िल अलइरादा ना होने से गुनाह किया । और जन्नत से निकाल दिया गया । और क़ुरआन आदम के इस फे़अल की सज़ा में उसे बयान करता है । यही हमारा अक़ीदा है कि आदम ने गुनाह किया और सज़ा पाई ।

ख़्वाजा साहिब - क्या ये ज़रूर है कि जो फे़अल सरज़द हो वो नसिया (نسیہ) ना होगा?

पादरी साहिब - निस्यान (نسیان) के मअनी हैं । किसी शैय की सूरत का ज़हन से महव हो जाना । मगर आदम के मुआमला में ये हाल नहीं । मसलन आपने मुझे चाय का पियाला देना चाहा । और मैंने इन्कार किया । तर्ग़ीब व तहरीस या रोब दाब या और किसी तरह से आख़िर मुझे इन्कार को तर्क करना पड़ेगा तो उसे मज्बूरी कहेंगे । ना कि निस्यान (نسیان) ।

ख़्वाजा साहिब - मगर तर्ग़ीबात से भी नसिया (نسیہ) पैदा हो जाता है क्योंकि आदम को एक अम्र की इत्तिला दी गई । जो तर्ग़ीबात की मौजूदगी में बिल्कुल दिमाग़ से महव हो गई । पस शैतान ने आदम को नसिया (نسیہ) करा दिया ।

पादरी साहिब - ना नसिया (نسیہ) बल्कि गुमराही ।

ख़्वाजा साहिब - मगर गुमराही तो ये है कि मैं ग़लत राह पर चलूं मगर आदम के मुआमला में ये हो सकता है । कि हालात-ए-गिर्द-ओ-पेश से वो भूल गया ।

पादरी साहिब - नसिया (نسیہ) भूल जाना होता है । मगर गुमराही ख़ारिजी अस्बाब की मज्बूरी से हुआ करती है ।

ख़्वाजा साहिब - गुमराही तीन क़िस्म की होती है (1) ख़ारजी तास्सुरात तले भूल जाना (2) सहीह राह से हट जाना और (3) इरादे से ख़ता करना । मगर ज़िम्मेदारियाँ हर सेह की जुदा-जुदा हैं जैसी कि गुमराही की तीन मुख़्तलिफ़ सूरतें हैं । वैसी ही ज़िम्मावारी हर एक की मुख़्तलिफ़ होगी ।

पादरी साहिब - मगर शैतान व आदम के दर्मियान तो ख़ास मुकालमा इसी दरख़्त-ए-ममनूआ ही की बाबत था । इसी लिए क़ुरआन में आया है । وَعَصَى آدَمُ رَبَّهُ فَغَوَى ‎ (20: 119) यानी आदम ने रब की नाफ़रमानी की ग़वा (غویٰ) नसिया (نسیہ) के लिए नहीं आ सकता ।

)ख़्वाजा साहिब ने इस मौक़े पर मौलवी मुहम्मद अली तफ़्सीर क़ुरआन को मंगाया । और कई मिनट तक उस का मुतालआ करने के बाद फ़रमाया(

ख़्वाजा साहिब - मगर मुझे यहां शैतान की कोई बह्स आदम से नहीं मिलती ।

पादरी साहिब -

وَلَقَدْ عَهِدْنَا إِلَى آدَمَ مِن قَبْلُ فَنَسِيَ وَلَمْ نَجِدْ لَهُ عَزْمًا فَقُلْنَا يَا آدَمُ إِنَّ هَذَا عَدُوٌّ لَّكَ وَلِزَوْجِكَ فَلَا يُخْرِجَنَّكُمَا مِنَ الْجَنَّةِ فَتَشْقَى إِنَّ لَكَ أَلَّا تَجُوعَ فِيهَا وَلَا تَعْرَى وَأَنَّكَ لَا تَظْمَأُ فِيهَا وَلَا تَضْحَى فَوَسْوَسَ إِلَيْهِ الشَّيْطَانُ قَالَ يَا آدَمُ هَلْ أَدُلُّكَ عَلَى شَجَرَةِ الْخُلْدِ وَمُلْكٍ لَّا يَبْلَى

हमने आदम से इससे पहले एक अह्द किया था सो वो भूल गया और हमने इस में इस्तिक़लाल ना पाया....फिर हमने आदम से कहा इब्लीस तेरा और तेरी ज़ौजा का दुश्मन है । सो कहीं दोनों को जन्नत से ना निकलवा दे । फिर तो तक्लीफ़ में पड़े....फिर शैतान ने आदम के दिल में डाला । बोला ऐ आदम क्या मैं तुझे सदा जीने का दरख़्त और वह सल्तनत जो कहीं ना हो बताऊं? (20:114 ता 119) । इस के मुताबिक़ आदम को बताया गया था कि शैतान तुम्हारा दुश्मन है । फिर शैतान ने इन को वरग़लाया ।

ख़्वाजा साहिब - मगर यह किस तरह मालूम हुआ कि जब शैतान ने इस से सदा जीने के दरख़्त का ज़िक्र किया तो उसे ख़ुदा की बात याद थी?

पादरी साहिब - आदम के सामने जब ख़ास वही मसअला ज़ेर-ए-बहस आया जिससे ख़ुदा ने मना किया था । तो ज़रूर है कि उसे ख़ुदा का हुक्म याद आ गया । अगर बावजूद मुकालमा के भी भूल गया । तो ग़वा (غویٰ) कहना हरगिज़ मुनासिब ना था । यानी कि इस ने ख़ुदा की ना-फ़रमानी की ।

ख़्वाजा साहिब - ग़वा (غویٰ) के मअनी क्या हैं?

पादरी साहिब - ग़वा (غویٰ) बाग़ी होना ।

ख़्वाजा साहिब - चूँकि पहले लिखा है कि आदम भूल गया था । पस जब शैतान ने इस को वरग़लाया तो ज़रूर नहीं कि उस वक़्त आदम को ख़ुदा का हुक्म याद आ गया । ना शैतान ने ख़ुदा का हुक्म ही याद दिलाया था । पस वो भुला हुआ था जबकि शैतान ने उसे वरग़लाया, मुद्दत गुज़र गई थी और आदम को ख़ुदा का हुक्म भूल चुका था । एक बच्चा आन वाहिद में भूल जाता है । इमकान नसिया (نسیہ) का हो सकता है ।

पादरी साहिब - शैतान ख़ुदा के बिलमुक़ाबिल पेश करता है कि ऐ आदम क्या मैं तुझे सदा जीने का दरख़्त और वह सल्तनत जो कहीं ना हो बताऊं ? ख़ुदा ने जिस दरख़्त की निस्बत पहले नज़्दीक ना जाने का हुक्म दिया था । अब उसी का ज़िक्र शैतान करता है । तो क्यों उसे याद ना आया था? ख़ुदा ने कहा था । وَلَا تَقْرَبَا ہٰذِہِ الشَّجَرَۃَ शैतान भी शिजरतू-उल-ख़ुलद का ही ज़िक्र करता है शैतान ने अचानक आदम पर हमला नहीं किया । बल्कि इस से मुहब्बत करता हुआ कहता है कि मैं तुझे शिजरत-उल-ख़ुलद बताऊं ? यहां अल माहूद ज़हनी है । पस लाज़िमन शैतान के मुकालमा ने अम्र ईलाही की याद को ताज़ा कर दिया । ख़ुदा ने कहा था कि इस दरख़्त के क़रीब ना जाना । वर्ना ज़ालिमों में से हो जाओगे । और अब शैतान कहता है कि ये दरख़्त सदा की ज़िंदगी है । अब दोनों ने इस में से हरीस हो कर खाया । ये आदम की भूल नहीं है । इसी लिए नाफ़रमानी का लफ़्ज़ आया है । और इसलिए सज़ा भी मुरत्तिब हो गई । लिखा है कि فَأَكَلَا مِنْهَا فَبَدَتْ لَهُمَا سَوْآتُهُمَا وَطَفِقَا يَخْصِفَانِ عَلَيْهِمَا مِن وَرَقِ الْجَنَّةِ फिर इन दोनों ने इस में से खाया । और उनकी उर्यानी उन पर ज़ाहिर हो गई । और दोनों अपने ऊपर बाग़ के पत्ते टांगने लगे" अगर ख़ता सहवन वाक़ेअ हुई तो सज़ा क्यों दी गई?

ख़्वाजा साहिब - मगर यह कैसे साबित हुआ कि बाग़ में एक ही ऐसा दरख़्त था? लफ़्ज़ जन्नत के मअनी हैं कई बाग़ फिर दरख़्त भी मुतअद्दिद होंगे । हो सकता है कि शैतान ने किसी और दरख़्त का ज़िक्र क्या हो । जिससे ख़ुदा ने मना ना किया था ।

पादरी साहिब - अल माहूद ज़हनी है । और हज़ा शिजरा और (ہذا شجرہ) (1) शिजरत-उल-ख़ुलद (شجرہ الخلد) दोनों में अल (ال)‎ तारीफ़ी आया है । यानी वही दरख़्त जिस से ख़ुदा ने मना किया था । (2) मज़ीदबराँ शिजरा के जो आख़िर में ह ة)) है । वो वहदत की अलामत है । यानी एक ही दरख़्त था (3) फिर लफ़्ज़ ख़ुलद (خالد‎) भी इसी दावे की ताईद में है, दरख़्त की तख़सीस ज़ाहिर व साबित है । और (4) सबसे बढ़कर ये कि सज़ा का मुरत्तिब हो जाना भी साबित करता है । कि इस एक ही दरख़्त का ज़िक्र था आपने फ़रमाया था कि जो फाल-ए-नसिया (نسیہ) से हो । इस पर सज़ा नहीं होती ।

ख़्वाजा साहिब - क्या अल (أل‎) से कोई माहूद ज़हनी है?

पादरी साहिब - तो क्या ऐसे बहुत से दरख़्त थे या एक ही था?

ख़्वाजा साहिब - एक आदमी ने ज़हर ख़ा लिया जिसका नतीजा हलाकत था । मगर फ़ील-फ़ौर ईलाज किया गया । और नतीजा ज़ाहिर ना हुआ । इसी तरह आदम ने गुनाह किया । मगर चूँकि भूल से था ख़ुदा ने माफ़ कर दिया । मर्ज़ के ज़हूर और दफ़ईया मर्ज़ के दरमयानी अरसा को सज़ा नहीं कह सकते । क्योंकि सज़ा का इशारा मुकम्मल सज़ा नहीं होती । अज़ाब का टाला जाना बुज़ुर्ग सवाब है । और अज़ाब का ना होना गुफरान है । गुफरान में ग़लती का एहसास ज़रूर होता है । मगर आदम की सज़ा मुकम्मल सज़ा ना थी वो मह्ज़ मबादियात-ए-सज़ा ही थे ।

पादरी साहिब - فَاَخْرَجَہُمَا مِـمَّا كَانَا فِيْہِ यानी इन दोनों को वहां से जिसमें वो थे । निकाल दिया अब जन्नत कोई मकान हो या क़वा (قویٰ) फ़ित्री का कमाल बहर-ए-हाल इस हालत से आदम को निकाल दिया गया । और इस हालत से निकल जाना ही सज़ा है । सज़ा तीन क़िस्म की थी । अव्वल वो वहां से ख़ारिज किए गए । दोम उन की उर्यानी ज़ाहिर हो गई । सोम उनका दुनिया में एक दूसरे से अदावत करना ।

ख़्वाजा साहिब - वो क़वा (قویٰ) जो सहीह हालत में थे । वो अपने हाल पर ना रहे । मगर ये बहुत ही क़लील अरसे के लिए हुआ । मसलन में बैठां हूँ और उम्दगी से देख रहा हूँ । एक दम आंधी आती है । और मेरी आँखों में पड़ कर थोड़ी देर के लिए उन को बंद कर देती है मगर जों ही कि आंधी दूर हो गई मेरी आँखें फिर खुल गईं । बईना निहायत से निहायत क़लील अरसा के लिए आदम की सहीह हालत ना रही । क्योंकि आदम बहुत मजमूई नाक़ाबिल ख़ता ना था ।

पादरी साहिब - बस आपने मान लिया कि आदम इस हालत पर ना रहा जिसमें पैदा किया गया था । पस सज़ा भी हो चुकी ।

अब तीसरा मरहला

ये है कि आदम व हव्वा के बयान में तस्नियाह का सीग़ा चला आता है । मसलन तू और तेरी औरत जन्नत में रह और तुम दोनों इस दरख़्त के पास ना जाना कि तुम दोनो ज़ालिम ना हो जाना । फिर शैतान ने इन दोनों को वरग़लाया । इन दोनों को वहां से निकाल दिया । बार-बार दो का ज़िक्र चला आता है मगर जब सज़ा मिलती है । तो ख़ुदा कहता है قُلْنَا اهْبِطُواْ مِنْهَا جَمِيعاً ‎ (2:36) तुम सब यहां से नीचे उतरो, क़सूर करते हैं । दो शख़्स तो इस के क्या मअनी कि सज़ा मिलती है । सबको? आदम व हव्वा की सज़ा मजमूआ पर मुंतक़िल होती है । सबसे मुराद कौन हैं?

ख़्वाजा साहिब - आदम और सब + आदम में हमारी मिसल गुनाह की तमाम इस्तिदादें मौजूद थीं ।

पादरी साहिब - जब आदम की और हमारी फ़ित्रत एक है तो सीग़ा तस्नियाह (تثنية)‎ को छोड़कर जमा क्यों इस्तिमाल किया?

ख़्वाजा साहिब - ये वाक़ेअ नहीं । क़ुरआनी क़िसस मह्ज़ हिदायात के तौर पर हैं ना कि वो वुक़ूआत हक़्क़ा हैं । उनसे सिर्फ ये मक़्सूद है कि अगर ऐसा करोगे । तो ये सज़ा मिलेगी । जमा का सीग़ा इसलिए आया कि आदम में गुनाह की इस्तिदादें थीं और हम में वो वाक़ियात के तौर पर ज़हूर में आती हैं ।

पादरी साहिब - मगर आदम व हव्वा के बयान में तस्नियाहह (تثنية)‎ का सीग़ा आते आते एक दम जमा का सीग़ा क्यों आया?

ख़्वाजा साहिब - इस से मुराद आदम की ज़ुर्रियत यानी नस्ल आइन्दा है ।

पादरी साहिब - आपका ये कहना कि क़िसस क़ुरआन में नहीं हैं मगर मैं कहता हूँ कि अगर क़ुरआन से क़िसस को निकाल दें तो रह ही क्या जाएगा? चूँकि ये क़िसस कुतुब ग़ैर क़ुरआन में आ चुके हैं पस उनको निकाल कर जो हिस्सा क़ुरआन का बाक़ी रह जाये में इसको हमारा क़ुरआन कहूंगा और बार बार मेरे दिल में ऐसा करने का इरादा आया है ।

इस पर गुफ़्तगु ख़त्म हुई और इधर उधर की बातें हो कर रुख़स्त हुए । ख़्वाजा साहिब ने इसमें मुंदरजा ज़ैल उमूर तस्लीम किए हैं :-

  1. आदम से एक फे़अल खिलाफ-ए-क़ानून सरज़द हो गया ।
  2. गुफरान में ग़लती का एहसास व इस्तख़सार होता है ।
  3. आदम की ना-फ़रमानी की सज़ा उसे मिल गई कि वो असली हालत पर ना रहा ।
  4. आदम व हव्वा को जो ना-फ़रमानी की सज़ा मिली । इस में उनकी ज़ुर्रियत भी शामिल है ।

पस ख़्वाजा साहिब ने आदम अव्वल के गुनाहों में गिरने और उसकी वजह से औलाद-ए-आदम पर सज़ा का हुक्म होने को तस्लीम करके मसीही सदाक़त की बय्यन व अज़हर-मिनश-शम्स फ़त्ह का इज़्हार किया । ख़ुदा करे कि उनकी आँखें खुल जाएं और मौरूसी गुनाह के लिए जो कफ़्फ़ारा ख़ुदा ने अज़ल से मुक़र्रर किया है । उस पर ईमान ले आएं । अब इससे बढ़कर और कौनसा निशान-ए-ईलाही चाहिए । अब बताएं कि निशाँ को देख कर इन्कार कब तक पेश जाएगा (नूर अफ़्शां 5:24 30-23)

नस्ल इंसानी का हबूत

(1) क्या इंसान गुनेहगार पैदा होता है या बेगुनाह इस्लाम

और दीगर मज़ाहिब

( अज़क़लम हज़रत अमीर मौलाना मौलवी मुहम्मद अली साहिब एम - ए )

فِطْرَةَ اللَّهِ الَّتِي فَطَرَ النَّاسَ عَلَيْهَا لَا تَبْدِيلَ لِخَلْقِ اللَّهِ ذَلِكَ الدِّينُ الْقَيِّمُ وَلَكِنَّ أَكْثَرَ النَّاسِ لَا يَعْلَمُونَ

तर्जुमा : अल्लाह की बनाई हुई फ़ित्रत पर क़ायम रहो जिस पर इस ने लोगों को असल हालत में पैदा किया है । अल्लाह की पैदा की हुई हालत को कोई बदल नहीं सकता ये मज़बूत दीन है लेकिन अक्सर लोग नहीं जानते ।

इस्लाम के अज़ीमुश्शान पैग़ामों में से एक पैग़ाम इन्सान की पैदाइशी मासूमियत को क़ायम करना था । मगर जब वो पैग़ाम सुनाया जो आयत मुंदरजा उन्वान में सफ़ाई से मौजूद है । कि ख़ुदा ने तमाम इन्सान को एक सहीह हालत पर पैदा किया है । और इस पर मज़बूती से क़ायम रहना चाहिए तो उसके आख़िर पर ये लफ़्ज़ भी बढ़ाए । कि अक्सर लोग इस उसूल को नहीं जानते जिस क़दर अज़ीमुश्शान हक़ीक़त का इज़्हार पहले हिस्सा आयत में किया है । जिसकी तफ़्सीर में हज़रत नबी करीम ने फ़रमाया कि फ़ित्रत इस्लाम है । फिर फ़रमाया कि हर एक इन्सान का बच्चा इसी फ़ित्रत की हालत पर यानी इस्लाम पर पैदा होता है । उसके माँ बाप उसे यहूदी या ईसाई या मजूसी बनाते हैं इसी क़दर बड़ी हक़ीक़त का इज़्हार आख़िरी अल्फ़ाज़ में फ़रमाया कि दुनिया के अक्सर लोग इस बात से बे-ख़बर हैं यानी वो इन्सान की पैदाइशी मासूमियत को नहीं जानते ।

उसूल मज़ाहिब आलम पर आज हम ग़ौर करते हैं तो अल्फ़ाज़-ए-क़ुरआनी की अज़मत के सामने सर झुक जाता है । अरब के उम्मी को कौन बता सकता था कि दुनिया के बड़े बड़े मज़ाहिब इस बारे में ग़लती पर हैं । हाँ ये उस ख़ुदा के लफ़्ज़ थे । जो ज़ाहिर व ग़ायब को जानता है । इस्लाम को छोड़कर तनासुख़ और कफ़्फ़ारा को मानने वाले मज़ाहिब आलम में अक्सरीयत का हुक्म रखते हैं । और यह दोनों मानते हैं कि इन्सान गुनाहगार पैदा होता है । बुध मज़्हब और हिंदू मज़्हब के नज़्दीक पैदा होना ही गुनहगारी की वजह से है । ईसाई मज़्हब ने आदम को गुनाहगार ठहरा कर इस गुनाह को बतौर विरसा सारी इन्सानी नस्ल में दाख़िल कर दिया । और यूं तीनों मज़्हब जो दुनिया की दो तिहाई आबादी के मज़्हब में इन्सान को पैदाइश से गुनाहगार ठहराते हैं । इसके ख़िलाफ़ इस्लाम का पैग़ाम ये है कि हर इन्सान का बच्चा सहीह इस्लामी हालत पर जो बेगुनाही की हालत है पैदा होता है । وَلٰكِنَّ اَكْثَرَ النَّاسِ لَا يَعْلَمُوْنَ ‎ ईसाईयत ने इस उसूल को कि इन्सान का हर बच्चा गुनाहगार वारिस-ए-जहन्नम पैदा होता है अपने उसूल में दाख़िल कर लिया । हज़रत ईसा को इब्न-अल्लाह ठहराया । इसकी सलीब की मौत और मलऊन होने को असास दीन ठहराया । ताकि वो इस फ़र्ज़ी पैदाइशी गुनाह का कफ़्फ़ारा हो जाए । हाँ और दूसरे गुनाहों का भी जवाब इस का नतीजा हैं । और अपने अक़ाइद की किताबों को ऐसे अल्फ़ाज़ से मुज़य्यन किया है कि हम पैदाइश से ग़ज़ब के फ़र्ज़ंद शैतान के ग़ुलाम और हर क़िस्म के दुनियावी व उख़रवी अज़ाब के मुस्तहिक़ हैं । ऐसे अल्फ़ाज़ पर एक इन्सान काँप उठता है । कि वो ख़ुदा जो रहम और मुहब्बत है । वो इन्सान को पैदाइशी ही में शैतान का ग़ुलाम और अज़ाब का मुस्तहिक़ और ग़ज़ब का फ़र्ज़ंद ठहराता है । कहाँ क़ुरआन की पाक तालीम कि सब इन्सानों को रहम के लिए पैदा किया । और कहाँ ईसाईयत का ये ख़तरनाक घिनौना अक़ीदा कि सब इन्सानों को ग़ज़ब के लिए पैदा किया । कहाँ इन्सान का वो मर्तबा जो क़ुरआन ने बताया कि फ़रिश्ते भी इसके फ़रमांबर्दार हैं । और कहाँ ये ख़तरनाक ज़िल्लील हालत कि वो शैतान का ग़ुलाम है ।

क्या इस्लाम के मुक़ाबले में ईसाईयत कभी ग़ालिब आ सकती है? इन्सान की फ़ितरत-ए-मौजूदा के होते हुए कभी नहीं । हाँ इन्सान की फ़ित्रत मस्ख़ हो जाएगी तो शायद उसका दिल और दिमाग़ कभी इस ख़्याल को भी क़बूल करले कि जो इन्सान का बच्चा पैदा होता है । वो ख़ुदा के ग़ज़ब के नीचे पैदा होता है । और शैतान का ग़ुलाम बन कर पैदा होता है । और जो बच्चा बग़ैर बपतिस्मा पाने के मरता है वो सीधा जहन्नम में जाता है । मगर क़ुरआन हमें तसल्ली देता है कि ये फ़ित्रत कभी मस्ख़ नहीं हो सकती । لَا تَبْدِيلَ لِخَلْقِ اللَّهِ ‎ इसलिए ज़ाहिर है कि इस मुक़ाबला में जो इस वक़्त मज़्हब के लिए दुनिया में हो रहा है । आख़िरी कामयाबी उस उसूल के लिए हो सकती है । जिसे फ़ित्रत क़बूल कर सकती है । जिसे अक़्ल-ए-इंसानी धक्का नहीं देती कि इन्सान अज़रूए पैदाइश मासूम है ।

जब ईसाई साहिबान से सवाल किया जाता है कि इन्सान को विरसा में गुनाह मिलने की तालीम उसकी फ़ित्रत के गुनाहगार होने की तालीम किस किताब में है? किस नबी ने दी है? तो हमें कोई हवाला ना तौरात का या पुराने अह्दनामा का दिया जाता है । ना इंजील का । हाँ पौलुस के ख़ुतूत का एक हवाला दिया जाता है । हालाँकि बात तो साफ़ है । कि अगर आदम का गुनाह नस्ल इन्सानी में सरायत कर गया था । और सब इन्सान गुनाहगार पैदा हुए थे । तो जहां बाइबल में आदम का ज़िक्र है । यानी किताब पैदाइश के शुरू में । वहीं ये ज़िक्र होना चाहिए था कि आदम गुनाहगार हुआ और उसके साथ ही हर इन्सान का बच्चा जो पैदा होता है । वो भी गुनाहगार होगा । अगर वहां चूक हो गई थी तो हज़रत मूसा बनी-इस्राईल के अज़ीमुश्शान शारेअ इस उसूल को ज़िंदा करते और बता देते कि हर एक इन्सान का बच्चा गुनाहगार पैदा होता है । और कफ़्फ़ारा पर ईमान लाने से पहले मर जाये तो सीधा जहन्नम में जाता है । मगर वहां भी इस तालीम का नामोनिशान तक नहीं बिल-आख़िर हमारी नज़रें हज़रत ईसा अलैहिस्सलाम की तरफ़ उठती हैं कि अगर उनके ज़माने तक ये उसूल बाइबल क़ायम ना कर सकती थी तो अब जो "इब्नुल्लाह” ख़ुद उसी मौरूसी गुनाह का ईलाज करने के लिए आए थे तो उन्होंने ज़रूर इस बात को साफ़ क्या होगा लेकिन चारों इंजीलों में हज़रत मसीह की ज़बान से एक हर्फ़ तक नहीं निकलता कि मौरूसी गुनाह भी दुनिया में कोई बला है । और आदम के गुनाह से सारी नस्ल इन्सानी गुनाहगार हो चुकी ।

अक़्ली रंग में देखा जाये तो ये बात ऐसी बेहूदा नज़र आती है । कि एक लम्हे के लिए किसी सहीह अक़्ल-ए-इंसानी में नहीं आ सकती । क्या आदम बेगुनाह पैदा हुआ था या गुनाहगार? अगर बेगुनाह पैदा हुआ था तो जो क़ानून इस पर हावी है । वही उसकी नस्ल पर हावी होना चाहिए । यानी हर एक इब्न-ए-आदम भी आदम की तरह बेगुनाह पैदा हो । बाद में शैतान के बहकाने से वो गुनाह करे या ना करे ये अम्र दीगर है । और अगर आदम को ख़ुदा ने गुनाहगार पैदा किया था । तो फिर ये शैतान के बहकाने का क़िस्सा फ़ुज़ूल है । जब ख़ुदा ने शुरू ही से इन्सान को गुनाहगार पैदा किया था । तो फिर आज़माईश कैसी? फिर इस से तवक़्क़ो रखना ही ग़लत था । कि वो शैतान के बहकाने में ना आए । वो अपनी फ़ित्रत के तक़ाज़े के मुताबिक़ गुनाह करेगा । और अगर आज भी नस्ल इन्सानी सब गुनाहगार पैदा होती है । तो इससे बेगुनाह रहने का मुतालिबा ग़लत है । देखने का मुतालिबा इससे किया जा सकता है जो माँ के पेट से आँखें ले कर आता है जो अंधा पैदा होता है इस से देखने का मुतालिबा कोई अहमक़ ही करेगा । पस जो पैदाइश से गुनाहगार है..............ये ख़ाली जगह मुताबिक़ असल है इस से बेगुनाह रहने का मुतालिबा खिलाफ-ए-क़ानून-ए-क़ुदरत है ।

ईसाई साहिबान को जब लोगों के बनाए हुए उसूल की कोई शहादत अपनी मुक़द्दस किताब में नहीं मिलती तो क़ुरआन शरीफ़ की तरफ़ दौड़ते हैं । और चूँकि मज़हबी उमूर में ग़ौरो-फ़िक्र की आदत नहीं । इसलिए एक बात को ले दौड़ते हैं । कि देखो क़ुरआन शरीफ़ इस बात को मानता है । हालाँकि सवाल तो ये था कि तुम अपने अम्बिया की तालीम में दिखाओ कि किसी नबी ने ये तालीम दी हो कि इन्सान मौरूसी गुनाहगार है और आदम का गुनाह सारी नस्ल इन्सानी में सरायत कर गया । मगर असल मुतालिबा से आजिज़ आकर तिनकों का सहारा तलाश करते हैं कहीं क़ुरआन शरीफ़ में हबूत नस्ल इन्सानी का ज़िक्र देख लिया । बस फ़ौरन ले भागे कि देखो क़ुरआन शरीफ़ ने बाइबल मुक़द्दस की भी इस्लाह की है । और आदम का गुनाह माना । चह जायकि इस गुनाह के नस्ल इन्सानी में सरायत कर जाने को मानता ।

(2) हालत हबूत और बेगुनाह पैदा होना

يٰبَنِيْٓ اٰدَمَ لَا يَفْتِنَنَّكُمُ الشَّيْطٰنُ كَـمَآ اَخْرَجَ اَبَوَيْكُمْ مِّنَ الْجَنَّۃِ

ऐ आदम के फ़र्ज़ंद तुम्हें शैतान दुख में ना डाले जिस तरह तुम्हारे माँ बाप को जन्नत से निकलवा दिया ।

बरुए क़ुरआन-ए-करीम हज़रत आदम बेगुनाह पैदा हुए । जिस तरह हर इन्सान का बच्चा बेगुनाह पैदा होता है । शैतान ने उन्हें वरग़लाया और उनसे अल्लाह तआला के हुक्म की ना-फ़रमानी सरज़द हुई गो उन्होंने गुनाह नहीं किया । क्योंकि गुनाह के लिए इरादा ज़रूरी है । और क़ुरआन-ए-करीम हज़रत आदम के मुताल्लिक़ साफ़ अल्फ़ाज़ में शहादत देता है । फ-नसिया (فَنَسِيَ)‎ वो भूल गए وَلَمْ نَجِدْ لَهُ عَزْمًا ‎ (ताहा 115) हमने इस में इरादा नहीं पाया । फिर एक जगह उनकी ना-फ़रमानी को ज़िल्लत से ताबीर किया है । और ज़िल्लत वो है जो बग़ैर क़सद और इरादे के सरज़द हो जाए فَأَزَلَّهُمَا الشَّيْطَانُ ‎ (सुरह बक़रा आयत 36)

हाँ निस्यान (نسیان‎ ) से भी ना-फ़रमानी हो जाए तो बाअज़ हालात में इस की सज़ा भुगतनी पड़ती है । हज़रत आदम के लिए वो सज़ा क्या थी । فَأَخْرَجَهُمَا مِمَّا كَانَا فِيهِ ‎ जिस जन्नत में आदम व हव्वा थे । इससे उनको निकलवा दिया (अल-बक़रा 25-36) बल्कि पहले से अल्लाह तआला ने आदम को तंबीह कर दिया था । إِنَّ هَذَا عَدُوٌّ لَّكَ وَلِزَوْجِكَ فَلَا يُخْرِجَنَّكُمَا مِنَ الْجَنَّةِ ‎ (ताहा 20:117) ये तेरा और तेरे साथी का दुश्मन है । सो तुम दोनों को जन्नत से ना निकलवा दे फिर सारे इन्सानों को ख़िताब करके बताया । ‎ لاَ يَفْتِنَنَّكُمُ الشَّيْطَانُ كَمَا أَخْرَجَ أَبَوَيْكُم مِّنَ الْجَنَّةِ ‎ (अल-आराफ़ 7:27) तुम्हें शैतान दुख में ना डाल दे । जिस तरह तुम्हारे माँ बाप को जन्नत से निकलवा दिया । पस हज़रत आदम की लग़्ज़िश की सज़ा सिर्फ एक ही थी यानी जन्नत से निकाला जाना । अलबत्ता उसको सवालात का ज़ाहिर होना भी कह दिया है । यानी उन के ऐब उन पर ज़ाहिर हो गए (अल-आरफ 22) और एक जगह ग़वायत (غوایت)‎ यानी नाकामी से भी ताबीर किया है وَعَصَى آدَمُ رَبَّهُ فَغَوَى ‎ (ताहा 20:121)

अब दोही सूरतें हो सकती थीं । एक ये कि आदम गुनाहगार पैदा होता तो उसकी नस्ल भी गुनाहगार पैदा होती मगर यह नहीं हुआ । आदम और उसके फ़र्ज़ंद सब बेगुनाह पैदा होते हैं । दूसरी सूरत ये हो सकती थी कि आदम से गुनाह सरज़द होता और उसके किसी नतीजे में नस्ल इन्सानी को भी शरीक होना पड़ता । गो उसका ये नतीजा क़तअन ग़लत है कि इस सूरत में नस्ल इन्सानी को भी गुनाहगार समझ लिया जाये । लेकिन क़ुरआन शरीफ़ ने अव़्वल तो आदम से गुनाह का सरज़द होना तस्लीम नहीं किया । उसे लग़्ज़िश या ज़िल्लत कहा है । निस्यान (نسیان) का नतीजा बताया है । फिर जो कुछ इस लग़्ज़िश का नतीजा था इसमें नस्ल इन्सानी को क़तअन शरीक नहीं किया । और यह वो हक़ीक़त क़ुरआनी है जिससे ईसाई साहिबान ने बेख़बर होने की वजह से ये ख़्याल कर लिया है कि क़ुरआन आदम की ज़िल्लत के नताइज में नस्ल इन्सानी को शरीक ठहराता है ।

आदम के इस्यान (عصيان‎) का नतीजा जैसा कि मैं अभी क़ुरआन शरीफ़ से बता चुका हूँ सिर्फ एक ही है यानी जन्नत से निकल जाना । इस में नस्ल की शिरकत का ज़िक्र क़ुरआन शरीफ़ में कहीं नहीं । अलबत्ता सारी नस्ल इन्सानी के लिए क़ुरआन शरीफ़ ने हालत हबूत (هبوط‎) को ज़रूर बयान किया है मगर इन दोनों में बहुत फ़र्क है और क़ुरान शरीफ ने खुद हबूत (هبوط)‎ इख़राज-अज़्जनत को अलग अलग उमूर के तौर पर बयान किया है चुनांचे पहले सुरह अल-बक़रा में فَأَخْرَجَهُمَا مِمَّا كَانَا فِيهِ ‎ के बाद बढ़ाया है । وَقُلْنَا اھْبِطُوْا بَعْضُكُمْ لِبَعْضٍ عَدُوٌّ ‎ अगर ये दोनों एक ही होते तो इख़राज-अज़्जनत को बयान करने के बाद हबूत (هبوط)‎ का ज़िक्र तहसील हासिल था । मगर इससे आगे चल कर और भी साफ़ कर दिया है । فَتَلَـقّٰٓي اٰدَمُ مِنْ رَّبِّہٖ كَلِمٰتٍ فَتَابَ عَلَيْہِۭ ‎ आदम ने अपने रब से कलिमात सीखे और अल्लाह ने इस पर रुजू बरहमत किया । और इसके बाद फिर फ़रमाया قُلْنَا اھْبِطُوْا مِنْہَا جَمِيْعًا ‎ यानी हबूत का हुक्म फिर भी सब पर वारिद किया है । आदम पर रुजू बरहमत के बाद नस्ल इन्सानी के हबूत का ज़िक्र साफ़ बताता है । कि हबूत क़तअन सज़ा के रंग में नहीं ना ये आदम के इस्यान का नतीजा है । बल्कि ये कोई और कैफ़ीयत है । ऐसा ही सुरह आराफ़ में हज़रत आदम की तौबा के बाद हबूत का ज़िक्र है । और सुरह ताहा में इसको निहायत ही साफ़ किया है آدَمُ رَبَّهُ فَغَوَىثُمَّ اجْتَبَاهُ رَبُّهُ فَتَابَ عَلَيْهِ وَهَدَى ‎ फ़रमा कर उसके बाद हबूत (هبوط)‎ का ज़िक्र किया है । यानी पहले इस्यान (عصيان‎) है फिर उसकी सज़ा फिर सज़ा के बाद आदम की बर्गुज़ीदगी और उस रुजू बरहमत फ़रमाना और उसे सीधे रास्ते पर चलाना और सब के बाद फिर नस्ल इन्सानी के हबूत (هبوط)‎ का हुक्म है । قَالَ اہْبِطَا مِنْہَا جَمِيْعًۢا ‎ पस ये यक़ीनी और क़तई अम्र है । कि हालत-ए-हबूत आदम के इस्यान (عصيان‎) की सज़ा नहीं । इस्यान की हालत एक आरिज़ी हालत थी । इस पर सज़ा वारिद हुई और इस के बाद माफ़ी भी दे दी गई । रुजू बरहमत भी हो गया । तब नस्ल इन्सानी के हबूत (هبوط)‎ का हुक्म सुनाया जाता है ।

हज़रत आदम की सज़ा तो सिर्फ इख़राज अज-जन्नत है । और ना सिर्फ क़ुरआन-ए-करीम नस्ल-ए-इन्सानी की शिरकत का इसमें ज़िक्र नहीं करता । बल्कि उसकी नस सरीह से साबित है कि नस्ल इन्सानी इस जन्नत से जिसमें उसे पैदाइश के वक़्त रखा जाता है नहीं निकली । जैसा कि आयत मुंदरजा उन्वान से साबित है । ऐ आदम के फ़र्ज़ंद तुम्हें शैतान दुख में ना डाले । जिस तरह तुम्हारे माँ बाप को जन्नत से निकलवा दिया । यानी तुम्हारे माँ बाप जन्नत से निकल कर दुख में पड़े । ऐसा ना हो कि तुम भी शैतान के बहकाने से जन्नत से निकल कर दुख में पड़ो । अब अगर नस्ल इन्सानी जन्नत से निकल चुकी हुई थी । तो ये इर्शाद बेमाअनी ठहरता है । ये आयत फ़ैसला कुन है । कि नस्ल इन्सानी जन्नत से नहीं निकली । गो नस्ल इन्सानी पर हुक्म हबूत (هبوط)‎ वारिद है ।

इन खुले नताइज के बाद इस अम्र के समझने में कुछ दुशवारी बाक़ी नहीं रहती कि हालत-ए-हबूत (هبوط)‎ को गुनहगारी से कोई ताल्लुक़ नहीं क़ुरआन-ए-करीम की नस सरीह पहले हिस्से मज़्मून में नक़्ल हो चुकी है । कि हर इन्सान का बच्चा बेगुनाह पैदा होता है । बल्कि आदम के इस्यान (عصيان‎) के नतीजे से भी उसे कोई ताल्लुक़ नहीं । ये दोनों बातें बय्यन तौर पर साबित हो चुकी हैं । फिर ये हालत हबूत (هبوط)‎ क्या है । इसके लिए आदम के सारे क़िस्से पर ग़ौर करना चाहिए । आदम बेगुनाह पैदा होता है । इसलिए फ़ित्रतन वो बेगुनाह है । लेकिन इस के बाद शैतान से इसको मुक़ाबला पेश आता है । ये शैतान से मुआमला इन्सान की तरक़्क़ी के लिए ज़रूरी है । अगर ज़रूरी ना होता तो आदम के क़िस्सा में इस ज़िक्र को ना लाया जाता । और वैसे भी ये अम्र ज़ाहिर है । इसलिए कि शैतान सिफली ख़्वाहिशात का मज़हर है । और इन्सान की इस ज़मीन पर ज़िंदगी के लिए अदना ख़्वाहिशात का जो उसके जिस्म से ताल्लुक़ रखती हैं । इस के अंदर होना ज़रूरी है । हाँ तरक़्क़ी के ज़ीना पर उसका क़दम इस हद तक पड़ता है जिस हद तक वो इन सिफ्ली ख़्वाहिशात पर ग़ालिब आ जाता है । बालअल्फ़ाज़-ए-दीगर शैतान के साथ उसका मुक़ाबला इस ज़मीनी ज़िंदगी में ज़रूरी है । अगर वह इस मुक़ाबले में गिर जाता है या फिसल जाता है तो ये उसकी नाकामी है । अगर वह मुक़ाबले में ग़ालिब आ जाता है तो ये इसका कदम तरक़्क़ी की तरफ़ है । अब दो सूरतों थीं एक ये कि इस मुक़ाबला में शैतान कभी भी ग़ालिब ना आता । और दूसरी ये कि कभी वो ग़ालिब भी आ जाता । तीसरी सूरत कि वो हमेशा ग़ालिब आता । क़तअन नामुमकिन है । आदम के क़िस्से में ये बताया गया है कि इस मुक़ाबला में शैतान कभी ग़ालिब भी आ जाता है । गोया दूसरी सूरत क़ायम हुई । फ़ित्रतन इन्सान बेगुनाह तो पैदा हुआ । मगर फ़ित्रतन इसमें ये कमज़ोरी ज़रूर है कि वो शैतान के मुक़ाबले में कभी मग़्लूब भी हो जाए । और यह उसकी तरक़्क़ी का सारा राज़ है अगर फ़ित्रतन वो ऐसा बनाया जाता कि ख़ुदा के क़ानून को कभी तोड़ ही ना सकता तो उसकी हालत वही होती जो सूरज चांद सितारों वग़ैरा की है कि वो अपने मुक़र्रर कर्दा क़ानून से एक बाल के बराबर इधर उधर नहीं हो सकते मगर फिर इन्सान को इन चीज़ों पर कोई फ़ौक़ियत भी ना होती और वह भी इन चीज़ों की मिसल होता इन्सान की तरक़्क़ी के लिए ये ज़रूरी हुआ कि उसे एक मुक़ाबले की हालत में रखा जाये । और चूँकि मुक़ाबले में ख़तरा लामुहाला मौजूद है । इसलिए उसे हालत हबूत  (هبوط)‎ क़रार दिया है । और यही वजह है कि नस्ल इन्सानी के हबूत का ज़िक्र-ए-आदम के फिसल जाने के बाद आता है । गोया उस ख़तरे से उसे वाक़ई तौर पर मुतनब्बा कर दिया है मगर ख़तरा होने के ये मअनी नहीं कि वाक़ई इन्सान फिसल भी गया । हर इन्सान जो पैदा होगा इस ख़तरे में होगा कि शैतान के मुक़ाबला में फिसल जाये मगर इसके ये मअनी नहीं कि हर इन्सान जो पैदा होगा वो फिसल भी चुका है या ज़रूर फिसल जाएगा । नस्ल इन्सानी के लिए हिदायत के लाने वाले और इस हिदायत की पैरवी करने वाले इस ख़तरे से निकल जाते हैं । मगर मुक़ाबले के बाद فَمَنْ تَبِــعَ ھُدَاىَ فَلَا خَوْفٌ عَلَيْہِمْ وَلَا ھُمْ يَحْزَنُوْنَ ‎ ये आदम के क़िस्से के आख़िर पर है । यानी जो शख़्स मेरी हिदायत की पैरवी करेगा । उन पर कोई ख़ौफ़ नहीं । और ना वो ग़मगीन होंगे । ख़ौफ़ तो ये नहीं कि अब शैतान उन को फुसला सके । और इज़्न इसलिए नहीं कि उन्होंने अपने वक़्त को ज़ाए नहीं किया । बल्कि शैतान पर फ़त्ह पा लेने के बाद उसे अच्छे कामों पर लगाया ।

पस शैतान से मुक़ाबले की हालत हालत-ए-हबूत (هبوط)‎ है और इस हालत से सारी नस्ल इन्सानी गुज़रती है । इसी पर इसकी सारी तरक़्क़ियों का दार-ओ-मदार है । बअल्फ़ाज़े दीगर यूं कहना चाहिए कि अल्लाह तआला ने नस्ल इन्सानी को बता दिया कि तुम सबको शैतान का मुक़ाबला करना होगा । और मुक़ाबला करके उसे अपना फ़रमांबर्दार बनाना होगा । इस मुक़ाबला के बाद जिस जन्नत में दाख़िल होना है वही असली जन्नत है जो इन्सान की ज़िंदगी की ग़रज़ व ग़ायत है । इसकी पहली जन्नत हालत-ए-बेगुनाही पर पैदा होना है । मगर इस बेगुनाही पर क़ायम रहने के लिए मुक़ाबला ज़रूरी है तब इस बेगुनाही की जन्नत में इन्सान तरक़्क़ी कर सकता है । अगर इन्सान पैदाइश से गुनाहगार होता । तो बेगुनाही पर इसका क़ायम होना नामुमकिन था । क्योंकि जो फ़ित्रतन गुनाहगार है । वो अपनी फ़ित्रत के ख़िलाफ़ किस तरह चले । और अगर इन्सान पैदाइश में तो बेगुनाह होता । लेकिन इसके लिए कोई मुक़ाबला और कोई ख़तरात ना होते तो जिस तरह दुनिया की और चीज़ें फ़ित्रतन क़ानून की फ़रमांबर्दार हैं वो भी फ़रमांबर्दार तो रहता । यानी इस फ़ित्री बेगुनाही पर क़ायम रहता लेकिन उसे इन इश्याय पर कोई फ़ौक़ियत हासिल ना होती ना उसके लिए तरक़्क़ी का मैदान होता । इसलिए इन्सान के लिए हालत-ए-हबूत ज़रूरी हुई कि वो बाद मुक़ाबला फ़ित्री बेगुनाही की हालत पर क़ायम हो कर तरक़्क़ी कर सके ।

ये वो साफ़ और अमली उसूल है । जिसे क़ुरआन शरीफ़ ने बयान किया है । अगर ईसाई साहिबान ज़रा ग़ौर से काम लें तो वो इससे फ़ायदा उठा सकते हैं । लेकिन मज़्हब के दायरे में अक़्ल को बेदख़ल कर देने वाली क़ौम इस से फ़ायदा नहीं उठा सकती ।

इस जगह ये भी याद रखना चाहिए कि ये एक आम ग़लतफ़हमी है जो बाअज़ लोगों के दिलों में है । कि आदम पहले कहीं आस्मान पर थे और वहां से गिरकर ज़मीन पर आए और साथ ही नस्ल इन्सानी भी ज़मीन पर आ गई और यूं गोया आदम के इस्यान (عصيان)‎ के नतीजे में इन की औलाद भी शरीक हो गई । क़ुरआन शरीफ़ में जहां आदम के ख़ल्क़ का ज़िक्र है । वहां साफ़ लफ़्ज़ हैं । اِنِّىْ جَاعِلٌ فِى الْاَرْضِ خَلِيْفَۃً ‎ मैं ज़मीन पर ख़लीफ़ा बनाने वाला हूँ लामुहाला वो जन्नत भी इसी ज़मीन पर है । और गो यह मज़्मून अलैहदह तफ़्सील चाहता है । लेकिन इस क़दर यहां बता देना ज़रूरी है कि हालत बेगुनाही पर पैदा होना ही वो जन्नत है । और यह जन्नत ऐसी है कि इससे निकलने का ख़तरा भी लगा हुआ है लेकिन इस जन्नत से तरक़्क़ी करके इन्सान दूसरी जन्नत को हासिल करता है तो इस से फिर कभी नहीं निकलता ।

(पैग़ाम सुलह मत्बूआ 7/30/24 8/3/24)

हबूत नस्ले इंसानी

पर

तक़द्दुस मा-आब मौलवी मुहम्मद अली साहिब एम ए अमीर जमाअत अहमदिय्या के ख़यालात

और

हज़रत मौलाना मौलवी पादरी सुल्तान मुहम्मद खान साहिब अफ़गान की तसहीहहात

وَعَصَى آدَمُ رَبَّهُ فَغَوَى

आदम ने अपने रब का गुनाह किया । पस वो गुमराह हो गए

सुरह ताहा

इस में कुछ शक नहीं कि मौलवी-साहब मशारा-आलिया ने इस मुकालमा के जवाब में ये मज़्मून तहरीर फ़रमाया । जो कमतरीन और हज़रत ख़्वाजा कमाल उद्दीन साहिब बी ए मुस्लिम मिशनरी के दर्मियान उनके दौलत ख़ाना में हुआ था । और जिस को अख़वी उम्म मूसा ख़ान साहब ने अख़्बार नूर अफ़्शां की वसातत से शाएअ कर दिया था ।

बिछड़े भाईयों के मिलाप की सूरत

हबूत नस्ल इन्सानी का मज़्मून “पैग़ाम सुलह” लाहौर में देखकर जिस क़दर मसर्रत मुझको हासिल हुई है इसका अंदाज़ा मैं ही कर सकता हूँ क्या ये कुछ कम बाइस-ए-तशक्कुर व इत्मीनान है कि मेरे और ख़्वाजा साहिब के दर्मियान जो मुकालमा नस्ल इन्सानी के हबूत पर हुआ था । बे-असर साबित ना हुआ बल्कि बुर्कानी मवाद की तरह अंदर ही अंदर असर करता रहा और बिल-आख़िर पैग़ाम सुलह के औराक़ में फूट निकला । अब ख़ुदा के फ़ज़्ल व करम से उम्मीद वासिक़ है कि आइन्दा के लिए इस मसअला का तस्फ़ीया कम अज़ कम हमारे और तक़द्दुस-ए-मआब की जमाअत के दर्मियान हो जाएगा और हम दोनों बिछड़े हुए भाई फिर मिलेंगे ।

तक़द्दुस मआब का दावा

बहर-ए-हाल आप अपने मज़्मून को इन अल्फ़ाज़ के साथ इब्तिदा करते है :-

" इस्लाम के अज़ीमुश्शान पैग़ामों में से एक पैग़ाम इन्सान की पैदाइशी मासूमियत को क़ायम करना था ।” और दलील के तौर पर क़ुरआन-ए-मजीद की इस आयत को पेश करते हैं :-

فِطْرَةَ اللَّهِ الَّتِي فَطَرَ النَّاسَ عَلَيْهَا لَا تَبْدِيلَ لِخَلْقِ اللَّهِ ذَلِكَ الدِّينُ الْقَيِّمُ وَلَكِنَّ أَكْثَرَ النَّاسِ لَا يَعْلَمُونَ

इस आयत का तर्जुमा यूं करते हैं । "अल्लाह की बनाई हुई फ़ित्रत पर क़ायम रहो । जिस पर उसने लोगों को असली हालत में पैदा किया है अल्लाह की पैदा की हुई हालत को कोई बदल नहीं सकता । ये मज़बूत दीन है । लेकिन अक्सर लोग नहीं जानते"

उमूर तन्क़ीह तलब

आयत माफ़ौक़ के तर्जुमा में तीन बातें गौरतलब हैं यानी :-

  1. क्या इस आयत में कोई ऐसा लफ़्ज़ या जुम्ला है जो इन्सान की पैदाइशी मासूमियत को क़ायम करता है?
  2. फ़ित्रत के क्या मअनी हैं?
  3. क्या ख़ुदा ने लोगों को (अज़रूए इस्लाम असल) सहीह हालत में पैदा किया है?

तन्क़ीह

दावा बे-दलील

(1) अम्र अव्वल के मुताल्लिक़ सिर्फ ये कहना काफ़ी है कि इस आयत में ना तो कोई ऐसा लफ़्ज़ है । और ना कोई ऐसा जुम्ला जो इन्सान की पैदाइशी मासूमियत को क़ायम या साबित करता हो । बल्कि इस आयत के सियाक़ व सबाक से भी ये दावा साबित नहीं हो सकता । चुनांचे ख़ुद आप ही के तर्जुमा में भी इस क़िस्म की कोई इबारत नहीं है ।

फ़ित्रत के मअनी

फ़ित्रत की तशरीह के मुताल्लिक़ आप लिखते हैं कि हज़रत नबी करीम ने फ़रमाया कि फ़ित्रत इस्लाम है । और फिर फ़रमाया कि हर एक इन्सान का बच्चा इसी फ़ित्रत की हालत पर यानी इस्लाम पर पैदा होता है । उसके माँ बाप उसे यहूदी, ईसाई या मजूसी बनाते हैं ।

हवाला में तसर्रुफ़

तक़द्दुस मआब ने जिस हदीस का अधुरा तर्जुमा किया है वो बुख़ारी की हदीस है जिसका तर्जुमा और हवाला आपने अपनी अंग्रेज़ी तफ़्सीर-उल-क़ुरआन की सुरह अल-रोम में भी दिया है अगर मैं असल हदीस को यहां नक़्ल करूँ । तो आप ये देखकर ताज्जुब करेंगे कि आँहज़रत सलअम ने हरगिज़ हरगिज़ ये नहीं कहा कि फ़ित्रत इस्लाम है बल्कि ये इमाम बुख़ारी की ज़ाती तफ़्सीर है जो आँहज़रत की हदीस से सरासर बे-तअल्लुक़ है । बहरहाल वो हदीस ये है :-

सहीह बुखारी - जिल्द अव्वल - जनाज़ों का बयान - हदीस 1297

حَدَّثَنَا عَبْدَانُ أَخْبَرَنَا عَبْدُ اللَّهِ أَخْبَرَنَا يُونُسُ عَنْ الزُّهْرِيِّ أَخْبَرَنِي أَبُو سَلَمَةَ بْنُ عَبْدِ الرَّحْمَنِ أَنَّ أَبَا هُرَيْرَةَ رَضِيَ اللَّهُ عَنْهُ قَالَ قَالَ رَسُولُ اللَّهِ صَلَّی اللَّهُ عَلَيْهِ وَسَلَّمَ مَا مِنْ مَوْلُودٍ إِلَّا يُولَدُ عَلَی الْفِطْرَةِ فَأَبَوَاهُ يُهَوِّدَانِهِ وَيُنَصِّرَانِهِ أَوْ يُمَجِّسَانِهِ کَمَا تُنْتَجُ الْبَهِيمَةُ بَهِيمَةً جَمْعَائَ هَلْ تُحِسُّونَ فِيهَا مِنْ جَدْعَائَ ثُمَّ يَقُولُ أَبُو هُرَيْرَةَ رَضِيَ اللَّهُ عَنْهُ فِطْرَةَ اللَّهِ الَّتِي فَطَرَ النَّاسَ عَلَيْهَا لَا تَبْدِيلَ لِخَلْقِ اللَّهِ ذَلِکَ الدِّينُ الْقَيِّمُ

तर्जुमा - अबू हुरैरा से रिवायत है कि नबी सलअम ने फ़रमाया कि हर बच्चा फ़ित्रत पर पैदा होता है और उसके माँ बाप उसको यहूदी या ईसाई या मजूसी करते हैं । जिस तरह हैवानों के सालिम बच्चा पैदा होता है । क्या तुमने उन में कन कटे देखा है । फिर यह आयत पढ़ी فِطْرَةَ اللَّهِ الَّتِي ‎ (अलीख)

तक़द्दुस-माआब हदीस के ख़िलाफ़ नंबर 1

इसी हदीस को बुख़ारी ने किताब अल-क़द्र में किसी क़दर तग़य्युर के साथ नक़्ल किया है । दोनों जगहों में लफ़्ज़ इस्लाम का नफ़्स हदीस में कुछ ज़िक्र नहीं है ।

ख़ुद तक़द्दुस-माआब ने अपनी तफ़्सीर-उल-क़ुरआन में जो इस का अंग्रेज़ी तर्जुमा किया है । वहां फ़ित्रत का तर्जुमा बजाय इस्लाम के सच्चा मज़्हब किया । आपका अंग्रेज़ी तर्जुमा ये है Every Child that is born conforms to the true religion literally human nature"सच्चा मज़्हब" और इस्लाम के मफ़्हूम में ज़मीन व आस्मान का फ़र्क़ है । हर एक शख़्स अपने मज़्हब को सच्चा समझता है । और इस्लाम को इसके बरख़िलाफ़ जिस तरह कि इस्लाम अपने आप को सच्चा समझता है । और बवाक़ी को उसके बर-ख़िलाफ़ । अल-मुख़्तसर नफ़्स हदीस में इस्लाम का कोई ज़िक्र नहीं है । ये तक़द्दुस-माआब की तरफ़ से आँहज़रत पर एक बुहतान-ए-अज़ीम है ।

तक़द्दुस-माआब हदीस के ख़िलाफ़ नंबर 2

अगर नफ़्स हदीस में फ़ित्रत के मअनी इस्लाम होते तो किसी को इस पर दम मारने की जगह ना होती । और हर एक मुसलमान उस को बार्रस-व-अलएन क़बूल कर लेता । लेकिन हम देखते हैं कि इसके मअनी और तफ़्सीर करने में बड़े बड़े मायानाज़ आलिमों के अलैहदह मुतालिब हैं । चुनांचे उनमें से चंद के ख़यालात हम जे़ल में नक़्ल करते हैं :-

हदीस में फ़ित्रत के मअनी

जिबिल्लत व तबीअत

(1) मजम-उल-बहार में फ़ित्रत की ये तफ़्सीर की है कि :-

الفطرتہ الفطرتہ الابتداء والا خترا ع والفطرتہ الحالتہ یرید اب یولد علی نورع من الجبلہ والطبع المتھی لقبول الدین فلوترک علیھا الاستھر علی لزومھاد وانمایعدل عنھا لافتہ

यानी फ़ित्रत के मअनी इब्तिदा इख्तरा व हालत के हैं । यहां पर अली-उल-फ़ितरत (علی الفطرت)‎ से मुराद ये है कि बच्चा एक क़िस्म की जिबिल्लत व तबईत पर पैदा होता है । जो किसी दीन के क़बूल करने की सलाहीयत रखती है । अगर कोई आफ़त दरपेश ना आए तो हमेशा इस पर क़ायम रहता है ।

जिबिल्लत

(2) अल्लामा सय्यद शरीयत जर जानी अपनी ताअरीफ़ात में लिखते हैं कि :-

الفطرتہ الجبلتہ المھیہ لقبول الدین

यानी फ़ित्रत इस जिबिल्लत को कहते हैं जो किसी दीन के क़बूल करने के लिए तैयार हो ।

(3) इब्ने मुबारक जो इल्म हदीस में आला पाया के शख़्स हैं इस हदीस के ये मअनी बतलाते हैं कि :-

ان کل مولود یولد فطرتہ ای خلقتہ التی جبل علیھا فی علمہ اللہ من السعادتہ والشقاوتہ فکل منھمہ سائر فی العاقبتہ الی ما فطرعلیھا وعامل فی الدنیا بالعمل المشا کل لھا فمن عمارات الشقاء ان یولدبین یہود ین اورمجوسین فیحملانہ لشقائتہ علیٰ اعتقاد وینھا

यानी हर एक बच्चा ख़ुदा के इल्म के मुताबिक़ अपनी फ़ित्रती सआदत या शक़ावत पर पैदा होता है । पस हर एक उनमें से आक़िबत में उसी फ़ित्रत के साथ पेश होगा जिस पर वो पैदा किया गया है । और दुनिया में इसी की तरह अमल किया है । शक़ावत की अलामात में से एक यहूदीयों या मजूसियों में पैदा होना है । क्योंकि वो अपने दीनी एतिक़ाद के सबब से इसको शक़ी बनाऐंगे ।

अगर फ़ित्रत के मअनी इस्लाम होते

मुशरिक का बेटा जहन्नम में

मेरी दानिस्त में फ़ित्रत की तफ़्सीर पर काफ़ी से ज़्यादा लिखा गया और तक़द्दुस-माआब के बरग़लत होने पर अब किसी ज़ी बसीरत को शक बाक़ी नहीं रह सकता ताहम मज़ीद तहक़ीक़ात की ग़रज़ से इस अम्र पर एक और पहलू से रोशनी डालना चाहते हैं यानी ये कि हम कुछ देर तक इस बात को मान लेते हैं कि फ़ित्रत से मुराद इस्लाम है और हर एक बच्चा ख़्वाह उसके वालदैन बुतपरस्त हों या कुछ और इस्लाम पर पैदा होता है । अब हम तक़द्दुस-माआब मौलवी-साहब से सवाल करते हैं कि अगर ऐसा बच्चा पैदा हो कर मर जाये तो इस पर किया हुक्म होगा? आया वो मुसलमान और फिर मासूम (क्योंकि अब तक कोई गुनाह नहीं किया है) होने की वजह से सीधा जन्नत को सिद्हारेगा या जहन्नम का ईंधन बनेगा? चूँकि आप तस्लीम कर चुके हैं । कि वो मुसलमान और मासूम है । लिहाज़ा आप जवाब देंगे कि वो ज़रूर जन्नत में जाएगा । लेकिन मैं जनाब को बतलाना चाहता हूँ कि ऐसा बच्चा जिसके वालदैन मुशरिक हों जहन्नम में जाएगा जिससे साबित होता है कि आपका ये फ़रमाना कि हर एक बच्चा इस्लाम पर पैदा होता है सरासर ग़लत और अग़्लत है । जे़ल की हदीस से मुलाहिज़ा हो:-

इस की दलील

मिश्कात शरीफ – जिल्द अव्वल – तक़दीर पर ईमान लाने का बयान - हदीस 107

وَعَنْ عَآئِشَۃَ قَالَتْ قُلْتُ یَا رَسُوْلَ اﷲِ صلی اللہ علیہ وسلم ذَرَارِیُ الْمُؤْمِنِیْنَ؟ قَالَ مِنْ اٰبَائِھِمْ فَقُلْتُ یَا رَسُوْلَ اﷲِ بَلَا عَمَلِ قَالَ اﷲُ اَعْلَمُ بِمَا کَانُوْا عَامِلِیْنَ قُلْتُ فَذَ رَارِیُ الْمُشْرِکِیْنَ؟ قَالَ مِنْ اٰبَآئِھِمْ قُلْتُ بِلَا عَمَلِ قَالَ اَﷲُ اَعْلَمُ بِمَا کَانُوْا عَا مِلِیْنَ۔ (رواہ ابوداؤد) (مشکوات کتاب الایمان فی القدر)

(मिश्कात किताब-अल-ईमान फ़ी अलक़द्र)

दोज़ख़ी या जन्नती बिला- अमाल

यानी हज़रत आईशा कहतीं हैं कि मैंने आँहज़रत सलअम से मोमिनीन के बच्चों के अंजाम की बाबत दर्याफ़्त किया तो आपने फ़रमाया कि वो अपने वालदैन के ताबे हैं । (यानी जन्नत में जाएंगे) इस पर मैंने कहा कि क्या बग़ैर किसी अमल के? आपने फ़रमाया कि अल्लाह ख़ूब जानता है । कि वो क्या अमल करने वाले थे फिर मैंने मुशरिकीन के बच्चों के मुताल्लिक़ पूछा तो फ़रमाया कि वो अपने वालदैन के ताबे होंगे (यानी जहन्नम में जाएंगे( मैंने कहा कि क्या बिला-अमल के? आपने फ़रमाया कि अल्लाह ख़ूब जानता है कि वो क्या अमल करने वाले थे ।

जवाब में सुकूत

बुख़ारी में भी इस क़िस्म की दो हदीसें इब्ने अब्बास और अबू हुरैरा से मनक़ूल हैं । वहां आँहज़रत सलअम ने तवक़्क़ुफ़ इख़्तियार फ़रमाया है । जिससे साबित होता है कि अगर मुशरिकीन के बच्चे इस्लाम पर पैदा होते तो आँहज़रत बजाय सुकूत इख़्तियार करने के फ़ील-फ़ौर फ़र्मा देते कि वो जन्नत में जाएंगे ।

यक नशद दोशद

पैदाइशी सआदत व शक़ावत

(3) अम्र सोइम तन्क़ीह तलब ये था कि क्या ख़ुदा ने लोगों को (अज़रूए इस्लाम( असल (सहीह) हालत में पैदा किया है? तक़द्दुस-माआब मौलवी साहब فَطَرَ النَّاسَ عَلَيْهَا ‎ का तर्जुमा यूं करते हैं जिस पर इसने लोगों को असल हालत में पैदा किया है ।” लेकिन कुछ आगे बढ़कर जुम्ला मज़्कूर यूं तब्दील करते हैं ख़ुदा ने तमाम इन्सानों को एक सहीह हालत पर पैदा किया है ।"

हमें जुमलों के रद्दो बदल से कुछ सरोकार नहीं । यहां सिर्फ ये बतलाना मक़्सूद है कि अज़रूए इस्लाम ख़ुदा ने इन्सानों को एक सहीह हालत पर नहीं बल्कि दो हालतों पर जिनको सआदत व शक़ावत कहा गया है पैदा किया है । और यह कि सहीह हालत पर नहीं बल्कि सक़ीम व मज़लूम हालत पर पैदा किया है । हम अपने इस दावे को दो तरीक़ों से साबित करेंगे । अव्वल अहादीस से दुवम क़ुरआन-ए-मजीद से । अहादीस जे़ल मुलाहिज़ा हों ।

हमारी तस्दीक़ हदीस से

(1)

सहीह बुख़ारी - जिल्द दोम - मख्लूक़ात की इब्तिदा का बयान - हदीस 468

حَدَّثَنَا الْحَسَنُ بْنُ الرَّبِيعِ حَدَّثَنَا أَبُو الْأَحْوَصِ عَنْ الْأَعْمَشِ عَنْ زَيْدِ بْنِ وَهْبٍ قَالَ عَبْدُ اللَّهِ حَدَّثَنَا رَسُولُ اللَّهِ صَلَّی اللَّهُ عَلَيْهِ وَسَلَّمَ وَهُوَ الصَّادِقُ الْمَصْدُوقُ قَالَ إِنَّ أَحَدَکُمْ يُجْمَعُ خَلْقُهُ فِي بَطْنِ أُمِّهِ أَرْبَعِينَ يَوْمًا ثُمَّ يَکُونُ عَلَقَةً مِثْلَ ذَلِکَ ثُمَّ يَکُونُ مُضْغَةً مِثْلَ ذَلِکَ ثُمَّ يَبْعَثُ اللَّهُ مَلَکًا فَيُؤْمَرُ بِأَرْبَعِ کَلِمَاتٍ وَيُقَالُ لَهُ اکْتُبْ عَمَلَهُ وَرِزْقَهُ وَأَجَلَهُ وَشَقِيٌّ أَوْ سَعِيدٌ ثُمَّ يُنْفَخُ فِيهِ الرُّوحُ فَإِنَّ الرَّجُلَ مِنْکُمْ لَيَعْمَلُ حَتَّی مَا يَکُونُ بَيْنَهُ وَبَيْنَ الْجَنَّةِ إِلَّا ذِرَاعٌ فَيَسْبِقُ عَلَيْهِ کِتَابُهُ فَيَعْمَلُ بِعَمَلِ أَهْلِ النَّارِ وَيَعْمَلُ حَتَّی مَا يَکُونُ بَيْنَهُ وَبَيْنَ النَّارِ إِلَّا ذِرَاعٌ فَيَسْبِقُ عَلَيْهِ الْکِتَابُ فَيَعْمَلُ بِعَمَلِ أَهْلِ الْجَنَّةِ

(मिश्कात बाब ईमान बिलक़द्र)

माँ के पेट में बच्चा की बनावट

यानी इब्ने मसऊद कहते हैं कि आँहज़रत सलअम ने हमसे फ़रमाया और आप सादिक़ मस्दूक़ थे कि तुम में से हर एक की पैदाइश माँ के पेट में यूं होती है कि चालीस दिन बतौर नुत्फ़े के रहता है । और फिर चालीस दिन ख़ून का लोथड़ा बनता है और फिर चालीस दिन गोश्त का टुकड़ा बनता है । फिर अल्लाह तआला एक फ़रिश्ते को भेजता है और वो चार बातों को लिखता है । यानी उसके अमल को और उसकी अजल को और उसके रिज़्क़ को और उसकी सआदत या शक़ावत को ।

मंज़िल-ए-मक़्सूद एक हाथ दूर

पस क़सम है कि वह्दहू लाशरीक की तुम में से कोई जन्नतियों के अमल से करता है । यहां तक कि इस में और जन्नत में हाथ भर का फ़ासिला रहता है । लेकिन इस का आमाल-नामा इस पर सबक़त करता है । और वह दोज़ख़ियों के से अमल करता है । और दोज़ख़ में दाख़िल हो जाता है यहां तक कि इसमें और दोज़ख़ में एक हाथ का फ़ासिला रहता है लेकिन इसका आमाल नामा इस पर सबक़त करता है । और वह जन्नत में दाख़िल हो जाता है ।

(2)

सहीह बुख़ारी - जिल्द सोम - तक़दीर का बयान - हदीस 1535

حَدَّثَنَا سُلَيْمَانُ بْنُ حَرْبٍ حَدَّثَنَا حَمَّادٌ عَنْ عُبَيْدِ اللَّهِ بْنِ أَبِي بَكْرِ بْنِ أَنَسٍ عَنْ أَنَسِ بْنِ مَالِكٍ رَضِيَ اللَّهُ عَنْهُ عَنْ النَّبِيِّ صَلَّى اللَّهُ عَلَيْهِ وَسَلَّمَ قَالَ وَكَّلَ اللَّهُ بِالرَّحِمِ مَلَكًا فَيَقُولُ أَيْ رَبِّ نُطْفَةٌ أَيْ رَبِّ عَلَقَةٌ أَيْ رَبِّ مُضْغَةٌ فَإِذَا أَرَادَ اللَّهُ أَنْ يَقْضِيَ خَلْقَهَا قَالَ أَيْ رَبِّ أَذَكَرٌ أَمْ أُنْثَى أَشَقِيٌّ أَمْ سَعِيدٌ فَمَا الرِّزْقُ فَمَا الْأَجَلُ فَيُكْتَبُ كَذَلِكَ فِي بَطْنِ أُمِّهِ

( बुख़ारी किताब अलक़द्र )

रहम पर एक फ़रिश्ते का तक़र्रुर और उसकी रिपोर्ट

यानी अनस बिन मालिक आँहज़रत सलअम से रिवायत करते हैं कि आपने फ़रमाया अल्लाह तआला औरत के रहम पर एक फ़रिश्ता मुक़र्रर करता है जो कहता है ऐ अल्लाह इस वक़्त ये नुत्फ़ा है ऐ अल्लाह अब ये ख़ून का लोथड़ा है ऐ रब अब गोश्त का टुकड़ा है । जब अल्लाह तआला उस की ख़ल्क़त मुकम्मल कर देता है तब वो फ़रिश्ता कहता है कि ऐ परवरदिगार आया ये नर है या मादा? शक़ी है या सईद? इसका रिज़्क़ किस क़द्र है और मौत कब? आँहज़रत फ़रमाते हैं कि ये सब बातें उस वक़्त लिखी जाती हैं जब वो माँ के पेट में ही होता है ।

(3)

मिश्कात शरीफ – जिल्द अव्वल – ईमान का बयान – हदीस 97

وَعَنْ عَبْدِ اﷲِ بْنِ عَمْرِوقَالَ سَمِعْتُ رَسُوْلَ اﷲِ صَلَّی اﷲُ عَلَیْہِ وَسَلَّمَ یَقُوْلُ اِنَّ اﷲَ خَلَقَ خَلْقَہ، فِی ظُلْمَۃِ فَاَلْقٰی عَلَیْھِمْ مِنْ نُّوْرِہٖ فَمَنْ اَصَابَہ، مِنْ ذٰلِکَ النُّوْرِ اِھْتَدَی وَمَنْ اَخْطَأَہ، ضَلَّ فَلِذٰلِکَ اَقُوْلُ جَفَّ الْقَلَمُ عَلٰی عِلْمِ اﷲِ۔(رواہ مسند احمد بن حنبل والجامع ترمذی) (مشکوات کتاب القدر)

( मिश्कात किताब अलक़द्र )

इन्सान व जिन्न अंधेरे में

यानी अब्दुल्लाह बिन उमर कहते हैं कि मैंने रसूल अल्लाह सलअम को ये फ़रमाते हुए सुना कि ख़ुदा ने इन्सानों और जिन्नों (मिर्क़ात) को ज़ुल्मत में (اے کائین فی ظلمہ النفس المجبولتہ بالشھوات الروید ۔ برحاشیہ ترجمہ)‎ पैदा किया । इस के बाद अल्लाह ने अपना नूर उन पर बरसाया । जिस पर ये नूर पड़ा हिदायत याफ़ता हो गया और जिस पर ना पड़ा वो गुमराह हो गया । इसलिए मैं कहता हूँ कि ख़ुदा के इल्म पर क़लम ख़ुश्क हो गया ।

तमाम इन्सान ज़ुल्मत सरिशत

अब वो कौन शख़्स है कि अहादीस माफ़ौक़ के पढ़ने के बाद ये दावा करे कि ख़ुदा ने तमाम इन्सानों को एक सहीह हालत पर पैदा किया है? हदीस नंबर सोम से तो यहां तक मालूम होता है । कि ख़ुदा ने तमाम इन्सानों हत्ता कि जिन्नों को भी ज़ुल्मत सरिशत पैदा किया है । क्या ये ही फ़ित्रत अल्लाह है? क्या इस्लाम के अज़ीमुश्शान पैग़ामों में से ये भी एक पैग़ाम है?

वाअदा वज्द

हमने तो सिर्फ इशारतन इन दो तीन हदीसों पर इक्तिफ़ा किया है अगर ये सिलसिला जारी रहा । तो बकसरत ऐसी अहादीस पेश करेंगे जिनको पढ़ कर नाज़रीन वज्द करेंगे ।

हमारी तस्दीक़ क़ुरआन शरीफ़ से

अब हम क़ुरआन-ए-मजीद की तरफ़ रुजू होते हैं । कि वो इस मुआमला में क्या फ़ैसला सादिर करता है ।

क़ुरआन-ए-मजीद में इन्सान के फ़ित्री सक़्म व क़ुब्ह के मुताल्लिक़ बहुत सी ऐसी आयात मौजूद हैं जिनको पढ़ कर कोई मुंसिफ़ मिज़ाज शख़्स तक़द्दुस-माआब के से दावे नहीं कर सकता है । मिनजुम्ला हम सिर्फ एक आयत पर सरदस्त इक्तिफ़ा करते हैं वो आयत ये है :-

يُرِيدُ اللّهُ أَن يُخَفِّفَ عَنكُمْ وَخُلِقَ الإِنسَانُ ضَعِيفًا

अल्लाह चाहता है कि तुम पर से बोझ हल्का कर दे क्योंकि इन्सान ज़ईफ़ पैदा किया गया है ।

हम तक़द्दुस-माआब की ख़िदमत में बाअदब अर्ज़ करते हैं कि आप हमको ये बतलाएं कि क्या ज़ईफ़ भी एक सहीह हालत है? और जो फ़ित्रतन ज़ईफ़ हो गया आप उसको कामिल कह सकते हैं? आपने अपनी अंग्रेज़ी तफ़्सीर-उल-क़ुरआन में इसकी यूं तावील की है कि इन्सान की ज़ईफ़ी के मअनी बजुज़ इसके और कुछ नहीं हैं कि वो अपने लिए ऐसा रास्ता नहीं बना सकता था जो ग़लती से ख़ाली हो । अगर इन्सान में इतनी भी इस्तिदाद नहीं कि वो अपने लिए एक रास्ता बनाए जो ग़लती से ख़ाली हो । तो इससे बढ़कर इन्सान की बदबख़्ती और क्या हो सकती है? और इस के नाक़िस होने में और क्या शक बाक़ी रह सकता है? हम भी तो यही समझते हैं कि इन्सान ने अपने आपको (ना कि ख़ुदा ने उसे) इस क़दर ख़राब कर दिया है कि अब वो ऐसा काम नहीं कर सकता जो ग़लती से ख़ाली हो I

(2)

तक़द्दुस-माआब का दावा खिलाफ-ए-क़ुरआन व हदीस

यहां तक हम ने इस अम्र के दिखाने की कोशिश की कि मौलवी-साहब मौसूफ़ का ये कहना कि :-

"इस्लाम के अज़ीमुश्शान पैग़ामों में से एक पैग़ाम इन्सान की पैदाइशी मासूमियत को क़ायम करना था । मगर जब वो पैग़ाम सुनाया जो आयत मुंदरजा उन्वान में सफ़ाई से मौजूद है । कि ख़ुदा ने तमाम इन्सानों को एक सहीह हालत पर पैदा किया है । और इसी पर मज़बूती से क़ायम रहना चाहिए । तो उसी के आख़िर पर ये लफ़्ज़ भी बढ़ाए कि अक्सर लोग इस उसूल को नहीं जानते । जिस क़दर अज़ीमुश्शान हक़ीक़त का इज़्हार पहले हिस्से आयत में किया है । जिसकी तफ़्सीर में हज़रत नबी करीम सल्लल्लाहो अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया कि हर एक इन्सान का बच्चा इसी फ़ित्रत की हालत पर यानी इस्लाम पर पैदा होता है । उसके माँ बाप उसे यहूदी या ईसाई या मजूसी बनाते हैं । इसी क़दर बड़ी हक़ीक़त का इज़्हार आख़िरी अल्फ़ाज़ में फ़रमाया है । कि दुनिया के अक्सर लोग इस से बे-ख़बर हैं । यानी वो इन्सान की पैदाइशी मासूमियत को नहीं मानते"

सिर्फ दावा ही दावा है । जिसकी ताईद ना क़ुरआन-ए-मजीद से होती है । और ना अहादीस इसकी तस्दीक़ करती है ।

तक़द्दुस-माआब की लग़्ज़िश पर लग़्ज़िश

अब मौलवी-साहब को हम ये बतलाना चाहते हैं कि जनाब का ये फ़रमाना कि "अक्सर लोग इस बात से बे-ख़बर हैं यानी वो इन्सान की पैदाइशी मासूमियत को नहीं मानते जो ख़ास तौर पर मसीहीय्यत पर चोट है के और दआवे की तरह सरासर बातिल है । अगर दुनिया में कोई ऐसी किताब मौजूद है जो इन्सान की पैदाइशी (फ़ित्रती मासूमियत को क़ायम करती है तो वो बे-शक अल-किताब (बाइबल) ही है ।

तक़द्दुस-माआब का दायरा तहक़ीक़ात

तक़द्दुस-माआब की इल्मी लियाक़त में कोई शक नहीं । लेकिन आपकी इल्मी लियाक़त और तहक़ीक़ात के दायरे की वुसअत में निस्बती माअकूस है । आपके मुताल्लिक़ हमारा ये ख़्याल था कि क़ुरआन-ए-मजीद के मुतर्जिम या मुफ़स्सिर होने के लिहाज़ से आपने बाइबल मुक़द्दस का मुतालआ एक से ज़्यादा बार क्या होगा । क्योंकि क़ुरआन-ए-मजीद की तफ़्सीर सिवाए अल-किताब के मुहाल है । लेकिन आपके मज़्मून ज़ेर-ए-बहस को देख कर हमारी हैरत की कोई इंतिहा नहीं रही कि आप नफ़्से बाइबल से बिल्कुल नाआशना हैं । और लग़्ज़िश पर लग़्ज़िश खाने का शायद यही सबब है । बहर-ए-कैफ़ अल-किताब की तालीम इन्सान की फ़ित्रती मासूमियत के बारे में हस्ब-ज़ैल है ।

बाइबल और फ़ित्रती मासूमियत

दलील अव्वल - "तब ख़ुदा ने कहा कि हम इन्सान को अपनी सूरत पर और अपनी मानिंद बना दें कि वो समुंद्र की मछलीयों पर और आस्मान के परिंदों और मवेशीयों पर और तमाम ज़मीन पर और सब कीड़ों मकोड़ों पर जो ज़मीन पर रेंगते हैं सरदारी करे और ख़ुदा ने इन्सान को अपनी सूरत पर पैदा किया । ख़ुदा की सूरत पर उसको पैदा किया ।” (पैदाइश 1:26-27)

दलील दुवम - लो मैंने सिर्फ इतना पाया कि ख़ुदा ने इन्सान को रास्त (सहीह हालत) पर बनाया । लेकिन उन्होंने बहुत सी बंदिशें तज्वीज़ करके बांधीं" (वाइज़ 7 29)

मुझको यक़ीन कर लेना चाहिए कि आप ख़ुदा की सूरत पर पैदा किया का मफ़्हूम नहीं समझेंगे कि जिस तरह इन्सान के हाथ पांव होते हैं ख़ुदा के भी हाथ पांव हैं बल्कि आयत माफ़ौक़ का मफ़्हूम ये है कि इन्सान में ज़िल्ली तौर पर वो तमाम सिफ़ात मौजूद थीं जो ख़ुदा में हक़ीक़ी तौर पर मौजूद हैं । लेकिन इन्सान ने अपने फ़ाइल मुख़्तार होने से नाजायज़ फ़ायदा उठाया । और अपनी सूरत को मस्ख़ किया । चुनांचे वाइज़ आयत माफ़ौक़ के आख़िरी हिस्से में फ़रमाते हैं लेकिन उन्होंने बहुत सी बंदिशें तज्वीज़ करके बांधीं"

पस बाइबल मुक़द्दस की तालीम निहायत वाज़ेह है । कि इन्सान अपनी असली आफ़रीनश के लिहाज़ से बिल्कुल मासूम पैदा किया गया । लेकिन ख़ुद हमने इसकी क़दर ना की और इस्मत को इस्यान से बदल दिया । وَعَصَى آدَمُ رَبَّهُ فَغَوَى ‎ तर्जुमा और आदम ने अपने परवरदिगार का गुनाह किया, और गुमराह हो गए ।

तक़द्दुस-माआब के तीन एतराज़ात

आगे चल कर तक़द्दुस-माआब मसीही मज़्हब पर तीन और एतराज़ करते हैं कि :-

  1.  
  2. ईसाई मज़्हब ने आदम को गुनाहगार ठहराकर इस गुनाह को बतौर विरसा सारी नस्ल में दाख़िल कर दिया ।"
  3. ईसाईयत ने इस उसूल को कि इन्सान का हर बच्चा गुनाहगार वारिस-ए-जहन्नम पैदा होता है अपने उसूल में दाख़िल कर दिया ।"
  4. जो बच्चा बग़ैर बपतिस्मा पाने के मरता है, वो सीधा जहन्नम में जाता है ।"

क़ुरआन , बाइबल मुक़द्दस की तस्दीक़ में

अम्र अव्वल के मुताल्लिक़ बिलफ़अल इतना कहना काफ़ी है कि सिर्फ “ईसाई मज़्हब ने आदम को गुनाहगार ” नहीं ठहराया । बल्कि इस्लाम ने भी और सिर्फ “ ईसाई मज़्हब ने इस गुनाह को बतौर विरसा सारी नस्ल इन्सानी में दाख़िल ” नहीं किया बल्कि इस्लाम ने भी । हदीस जे़ल मुलाहिज़ा हो :-

मिश्कात शरीफ - जिल्द अव्वल - ईमान का बयान - हदीस 114

وَعَنْ اَبِیْ ھُرَیْرَۃَ قَالَ قَالَ رَسُوْلَ اﷲِ صلی اللہ علیہ وسلم لَمَّا خَلَقَ اﷲُ اٰدَمَ مَسَحَ ظَھْرَہ، فَسَقَطَ مِنْ ظَھْرِہٖ کُلُّ نَسَمَۃِ ھُوَ خَالِقُھَا مِنْ ذُرِّیَّتِہٖ اِلٰی یَوْمِ الْقِیَامَۃِ وَجَعَلَ بَیْنَ عَیْنِیْ کُلِّ اِنْسَانِ مِنْھُمْ وَبِیْصًا مِّنْ نُّوْرِ ثُمَّ عَرَ ضَھُمْ عَلٰۤی اٰدَمَ فَقَالَ اَیْ رَبِّ مَنْ ھٰۤؤُلَآ ءِ فَقَالَ ذُرِّیَّتُکَ فَرَأَی رَجُلًا مِّنْھُمْ فَاَعْجَبَہ، وَبِصْیُ مَابَیْنَ عَیْنَیْہِ قَالَ اَیْ رَبِّ مَنْ ھٰذَا قَالَ دَاؤدُ فَقَالَ اَیْ رَبِّ کَمْ جَعَلْتَ عُمْرَہ، قَالَ سِتِّیْنَ سَنَۃً قَالَ رَبِّ زِدْہُ مِنْ عُمُرِیْ اَرْبَعِیْنَ سَنَۃً قَالَ رَسُوْلُ اﷲِ صلی اللہ علیہ وسلم فَلَمَّا اِنْقَضٰی عُمْرُ اٰدَمَ اِلَّا اَرْبَعِیْنَ جَآءَ ،ہ مَلَکُ الْمَوْتِ فَقَالَ اٰدَمُ اَوَلَمْ یَبْقَ مِنْ عُمُرِیْ اَرْبَعُوْنَ سَنَۃً قَالَ اَوَلَمْ تُعْطِھَا ابْنَکَ دَاؤدَ فَجَحَدَ اٰدَمُ فَجَحَدَتْ ذُرِّیَّتُہ، وَنَسِیَ اٰدَمُ فَاَکَلَ مِنَ الشَّجَرَۃِ فَنَسِیَتْ ذُرِّیَّتُہ، وَ خَطَأَ اٰدَمُ وَخَطَأَتْ ذُرِّیَّتُہ،۔ (رواہ الجامع ترمذی)

(मिश्कात बाब ईमान बिल-क़द्र)

आदम की ख़ता से तमाम ज़ुर्रियत ख़ाती हो गई

तर्जुमा - अबू हुरैरा कहते हैं कि आँहज़रत सलअम ने फ़रमाया । जब ख़ुदा ने आदम को ख़ल्क़ किया । इस की पुश्त को छू लिया । पस आदम की पुश्त से उसकी औलाद की जानें जिनको वो क़ियामत तक पैदा करने वाला है टपकने लगीं और हर एक इन्सान की दो आँखों के बीच में अपने नूर की रोशनी रखी । इसके बाद उनको आदम के सामने पेश किया । आदम ने कहा । ऐ रब ये लोग कौन हैं । ख़ुदा ने कहा ये तेरी औलाद हैं । पस आदम ने इन में से एक ऐसे शख़्स को देखा जिसकी दो आँखों के बीच की रोशनी आदम को पसंद आई । आदम ने कहा ऐ रब ये शख़्स कौन है? ख़ुदा ने कहा दाऊद है आदम ने कहा ऐ रब इसकी उम्र किया है? ख़ुदा ने कहा साठ साल । आदम ने कहा । ख़ुदावंदा मेरी उम्र चालीस बरस इसकी उम्र में ज़्यादा फ़रमाईए । आँहज़रत सलअम ने फ़रमाया कि जब आदम की उम्र ख़त्म होने को आई तो बजुज़ इस चालीस के (जो दाऊद को दिए) थे मलक-उल-मौत आदम के पास हाज़िर हुआ । पस आदम ने कहा कि क्या मेरी उम्र में से चालीस बरस बाक़ी नहीं हैं ? मलक-उल-मौत ने कहा कि क्या तूने अपने बेटे दाऊद को नहीं बख़्शे थे? पस आदम के इन्कार से इस की ज़ुर्रियत इंकारी हुई और आदम के निस्यान (نسیان) से जो शजर ममनूआ में से खाया । उसकी औलाद भी नासी (ناسي) हुई । आदम ने ख़ता की उसके लड़के भी ख़ाती हुए ।” इस हदीस को तिर्मिज़ी ने रिवायत किया है ।

तक़द्दुस-माआब के घर का हाल

हदीस बाला को हम ने बतौर इल्ज़ामी जवाब के पेश किया है ताकि आँजनाब को ख़ुद अपने ही घर का हाल मालूम हो जाए । इसका हक़ीक़ी जवाब ये है । कि फ़ल्सफ़ा गुज़शता व हाज़िर इस पर शहादत दे रहे हैं । कि इन्सान में एक क़ुव्वत मौजूद है जिसको नफ़्से अम्मारा या क़ुव्वत बहमी कहते हैं ।

मौरूसी गुनाह की तारीफ़

आदम अलैहिस्सलाम के हबूत से लेकर इस वक़्त ऐसे जितने वाक़ियात नस्ल-ए-इन्सानी पर गुज़र चुके हैं जिनका असर बराहे रास्त उनकी रुहानी नशव-ओ-नुमा पर पड़ता था । इस से मस्तकीमन ये नतीजा बरामद होता है कि नफ़्से अम्मारा इन्सान की मुल्की क़ुव्वत पर ग़लबत हासिल कर रहा है । जिसकी वजह से इन्सान की क़ुव्वत-ए-इरादी बहुत ही अदना क़िस्म के जज़बात से मुतास्सिर हो कर मुज़महिल हो जाती है इसी असर और तास्सुर को हमारी इलाहियात की इस्तिलाह में मौरूसी गुनाह कहा गया है क्योंकि सिलसिला इन्सानी में सबसे अव्वल हमारे जद्द-ए-अमजद यानी हज़रत आदम इससे मुतास्सिर हुए ।

तक़द्दुस-माआब का दूसरा एतराज़ और उसकी तर्दीद

आपका दूसरा एतराज़ ये था कि ईसाईयत ने इस उसूल को कि इन्सान का हर बच्चा गुनाहगार वारिस-ए-जहन्नम पैदा होता है अपने उसूल में दाख़िल कर लिया । सतूरबाला में हम मौरूसी गुनाह की बाबत लिख चुके हैं कि वो एक ऐसी हक़ीक़त है जिससे कोई अक़्लमंद इन्कार नहीं कर सकता अलबत्ता आपका ये फ़रमाना कि हर बच्चा वारिस-ए-जहन्नम पैदा होता है आपकी अदम वाक़फ़ीयत पर मबनी है । हम पहले अर्ज़ कर चुके हैं कि इस मुआमला में आपकी तहक़ीक़ात का दायरा बेहद महदूद है । काश कि इस मज़्मून के लिखने से क़ब्ल आप एक सरसरी निगाह से बाइबल मुक़द्दस का मुलाहिज़ा कर लेते तो आपसे ऐसी क़बीह ग़लती सरज़द ना होती । मौरूसी गुनाह की वजह से बच्चा तो दरकिनार रहा जवान और बुड्ढे भी जहन्नम के वारिस नहीं हो सकते । सुनिए बाइबल मुक़द्दस की तालीम ये है :-

"बेटा बाप की बदकारी का बोझ नहीं उठायगा और ना बाप बेटे की बदकारी का बोझ उठाएगा । सादिक़ की सदाक़त उसी पर होगी और शरीर की शराअत इसी पर पड़ेगी" (हज़िकीएल 18:20)

" इन दिनों फिर ना कहा जाएगा कि बाप दादओं ने कच्चे अंगूर खाए और लड़कों के दाँत खट्टे हो गए । क्योंकि हर एक अपनी बदकारी के सबब मरेगा । हर एक जो कच्चे अंगूर खाता है । इसके दाँत खट्टे होंगे " (यरमयाह 31:29 व 30)

बाइबल मुक़द्दस में इस क़िस्म की बीसियों आयतें हैं जिसका जी चाहे मुलाहिज़ा करे पस मौरूसी गुनहगारी या नेक किरदारी बरुए बाइबल मुक़द्दस बएतबार सज़ा व जज़ा के मह्ज़ कुल अदम है । बल्कि हर एक शख़्स ख़ुद अपने आमाल व किरदार का ज़िम्मेवार है और ख़ुदावंद का कफ़्फ़ारा सिर्फ़ मौरूसी गुनाह के असर के ज़ाइल करने के लिए नहीं बल्कि इकतिसाबी गुनाहों के रफ़ा करने के लिए है ।

बपतिस्मा नजात को लाज़िम नहीं

जनाब का ये तीसरा एतराज़ भी कि “और जो बच्चा बग़ैर बपतिस्मा पाने के मरता है । वो सीधा जहन्नम में जाता है” सरासर बनाए बातिल बरबातिल है । बपतिस्मा को नजात में कोई दख़ल नहीं है । ये सिर्फ एक ज़ाहिरी अलामत है जो मसीही होने के वक़्त अदा की जाती है अगर कोई शख़्स मसीह पर ईमान लाए और बपतिस्मा ना ले तो उसके ईमान में कोई हर्ज वाक़े नहीं होता । बल्कि बपतिस्मा लिए बग़ैर वो जन्नत में जाता है । मुक्ती फ़ौज के नाम से आप वाक़िफ़ होंगे उनके यहां बपतिस्मा नहीं दिया जाता है । इस पर भी वो मसीही और ईमानदार मसीही हैं । लेकिन चूँकि आपने नादानिस्ता ये एतराज़ किया है हम मुनासिब समझते हैं कि आपकी लाइल्मी को ख़ुद इंजील मुक़द्दस के रू से रफ़ा करें । बग़ौर सुनिए :-

तक़द्दुस-माआब की लाइल्मी का जवाब

उस वक़्त लोग बच्चों को उसके पास लाए ताकि वो उन पर हाथ रखे । और दुआ मांगे । मगर शागिर्दों ने उन्हें झिड़का । लेकिन यसूअ ने कहा बच्चों को मेरे पास आने दो और उन्हें मना ना करो क्योंकि आस्मान की बादशाहत ऐसों ही की है " (मत्ती 19:13-14) अब आपने देख लिया होगा । कि मसीही मज़्हब में बच्चों की किस क़दर क़दर-ओ-मंज़िलत है, कि आस्मान की बादशाहत में दाख़िल होने के लिए उन को बतौर नमूना पेश किया जाता है । ये इस्लाम की तालीम है । कि बच्चे अपने वालदैन के ताबे होंगे ।

(3)

فَأَزَلَّهُمَا الشَّيْطَانُ

पस आदम और हव्वा को शैतान ने डगमगाया

तक़द्दुस-माआब और आदम का गुनाह

तक़द्दुस-माआब मौलवी-साहब अपने मज़्मून पर ज़ेर-ए-बहस के दूसरे हिस्से में यूं तहरीर फ़रमाते हैं कि "बरुए क़ुरआन-ए-करीम हज़रत आदम बेगुनाह पैदा हुए । जिस तरह हर इन्सान का बच्चा बेगुनाह पैदा होता है । शैतान ने उन्हें वरग़लाया और उन से अल्लाह तआला के हुक्म की ना-फ़रमानी सरज़द हुई । गो उन्होंने गुनाह नहीं किया क्योंकि गुनाह के लिए इरादा ज़रूरी है और क़ुरआन करीम हज़रत आदम के मुताल्लिक़ साफ़ अल्फ़ाज़ में शहादत देता है । फनसीया (فَنَسِيَ)‎ वो भूल गए । وَلَمْ نَجِدْ لَهُ عَزْمًا ‎ (ताहा 115) तर्जुमा - “हमने उसमें इरादा नहीं पाया ।” फिर एक जगह उनकी इस ना-फ़रमानी को ज़िल्लत से ताबीर किया है । और ज़िल्लत वो है, जो बग़ैर कसद व इरादे के सरज़द हो जाए । فَأَزَلَّهُمَا الشَّيْطَانُ ‎ (अल-बक़रा आयत 36)

ताकि नाज़रीन मज़्मून ज़ेर-ए-बहस को अच्छी तरह अपने ज़हन में तर्तीब दे सकें और उसके समझने में मज़ीद सहूलत हो हम फ़िक़रा बाला का तजुर्बा करके हर एक जुज़ के मुताल्लिक़ अपनी राय का इज़्हार करेंगे जो हस्बजे़ल हैं :-

तक़द्दुस-माआब के दावे का तजज़िया

  1. बरुए क़ुरआन हज़रत आदम बेगुनाह पैदा हुए । जिस तरह हर इन्सान का बच्चा बेगुनाह पैदा होता है ।
  2. शैतान ने उन्हें वरग़लाया । और उनसे अल्लाह तआला के हुक्म की ना-फ़रमानी सरज़द हुई गो उन्होंने गुनाह नहीं किया । क्योंकि गुनाह के लिए इरादा ज़रूरी है ।"
  3. क़ुरआन-ए-करीम शहादत देता है कि वो भूल गए فَنَسِيَ وَلَمْ نَجِدْ لَهُ عَزْمًا ‎ हमने इस में इरादा नहीं पाया ।"
  4. उनकी ना-फ़रमानी को ज़िल्लत से ताबीर किया । और ज़िल्लत वो है जो बग़ैर क़सद इदारा के सरज़द हो जाए । فَأَزَلَّهُمَا الشَّيْطَانُ

जुज़्व अव्वल के मुताल्लिक़ हम अपने इस मज़्मून के हिस्सा दुवम में बिल-वजाहत लिख आए हैं कि आदम का बेगुनाह पैदा होना ख़ास अल-किताब की तालीम है । और इस पर बाइबल के हवालेजात भी लिख आए हैं । मज़ीद इत्मीनान के लिए यहां एक निहायत ज़बरदस्त और मशहूर व माअरूफ़ आलिम इल्म इलाहियात का क़ौल भी निकल किए देते हैं । ताकि हमारे फ़ाज़िल मौलवी-साहब को ये गुमान ना हो जाए कि आदम का बेगुनाह पैदा होना कमतरीन का शख़्सी अक़ीदा है? प्रोफ़ैसर जेम्स आर.डी.डी. अपनी मशहूर किताब दी क्रिस्चन व्यू ऑफ़ गॉड ऐंड दी वर्ल्ड के हिस्सा अव्वल में इन लोगों के ख़यालात फ़ासदा की तर्दीद करते हुए जो आदम के बेगुनाह पैदा होने का तस्लीम नहीं करते हैं लिखते हैं :-

"अब हम दूसरी क़िस्म के क़यासात का ज़िक्र करते हैं जिनके रू से ये माना जाता है कि गुनाह इन्सान की जिबिल्लत में मौजूद है । इन ख़यालात की ख़ुसूसीयत ये है कि इनके मुताबिक़ गुनाह फ़ित्रत इन्सान का ख़ास्सा हेली माना जाता है । हालाँकि बाइबल मुक़द्दस की तालीम इसकी बाबत ये है कि दुनिया में बदी आपसे आप पैदा हुई है और इन्सान की फ़ित्रत इब्तदाए आफ़रीनश में इससे पाक और बे-लोस थी । (उर्दू ऐडीशन सफ़ा 171)

अहादीस के मुताबिक़ हर बच्चा गुनाह आलूदा पैदा होता है

तक़द्दुस-माआब की ख़ातिर दो और हदीसें

बाक़ी रहा ये अम्र कि हर इन्सान का बच्चा बेगुनाह पैदा होता है इस पर भी हम इसी दूसरे हिस्से में बह्स कर चुके हैं और यह साबित कर आए हैं । कि हर इन्सान का बच्चा बेगुनाह नहीं बल्कि अहादीस की रू से गुनाह आलूदा पैदा होता है । चूँकि हमें तक़द्दुस-माआब की ख़ातिर रखना मंज़ूर है । लिहाज़ा दो एक हदीसें और नक़्ल कर देते हैं :-

सहीह मुस्लिम - जिल्द सोम - तक़दीर का बयान - हदीस 2267

حَدَّثَنَا أَبُو بَکْرِ بْنُ أَبِي شَيْبَةَ حَدَّثَنَا وَکِيعٌ عَنْ طَلْحَةَ بْنِ يَحْيَی عَنْ عَمَّتِهِ عَائِشَةَ بِنْتِ طَلْحَةَ عَنْ عَائِشَةَ أُمِّ الْمُؤْمِنِينَ قَالَتْ دُعِيَ رَسُولُ اللَّهِ صَلَّی اللَّهُ عَلَيْهِ وَسَلَّمَ إِلَی جَنَازَةِ صَبِيٍّ مِنْ الْأَنْصَارِ فَقُلْتُ يَا رَسُولَ اللَّهِ طُوبَی لِهَذَا عُصْفُورٌ مِنْ عَصَافِيرِ الْجَنَّةِ لَمْ يَعْمَلْ السُّوئَ وَلَمْ يُدْرِکْهُ قَالَ أَوَ غَيْرَ ذَلِکَ يَا عَائِشَةُ إِنَّ اللَّهَ خَلَقَ لِلْجَنَّةِ أَهْلًا خَلَقَهُمْ لَهَا وَهُمْ فِي أَصْلَابِ آبَائِهِمْ وَخَلَقَ لِلنَّارِ أَهْلًا خَلَقَهُمْ لَهَا وَهُمْ فِي أَصْلَابِ آبَائِهِمْ

(रवाह मुस्लिम) मिश्कात किताब ईमान-फ़ील-क़द्र)

माँ के पेट से दोज़ख़ी बच्चे

यानी बीबी आईशा फ़रमाती हैं कि एक रोज़ आँहज़रत सलअम एक अंसार के छोटे बच्चे के जनाज़ा पर बुलाए गए । तो मैंने कहा कि या रसूल अल्लाह ये जन्नत की चिड़िया क्या ही ख़ुशनसीब है । ना तो बुरा काम किया, और ना उसके पास गया । इस पर आँहज़रत सलअम ने फ़रमाया कि ऐ आईशा हक़ीक़त ये नहीं । क्योंकि अल्लाह तआला ने जन्नत वालों को उन के आबा-ओ-अजदाद की पीठ में जन्नत के लिए पैदा किया है ।”

इस हदीस का मतलब बिल्कुल साफ़ है । कि हम किसी इन्सान के बच्चे के बारे में ये नहीं कह सकते कि वो जन्नती है या दोज़ख़ी । या बअल्फ़ाज़े दीगर के वो बेगुनाह है या गुनाह आलूदा । क्योंकि अगर बच्चे बेगुनाह पैदा होते तो उन के जन्नती कहने में क्या क़बाहत थी? और आँहज़रत सलअम ने बीबी आईशा को क्यों मना किया । कि इस को जन्नती मत कह । हालाँकि वो बच्चा एक मुसलमान का और फिर एक अंसार का बच्चा था ।

इस अम्र के साबित करने के लिए कि हर इन्सान का बच्चा बेगुनाह और एक सहीह हालत पर पैदा नहीं होता । हम एक और हदीस हद्या नाज़रीन करते हैं । लेकिन चूँकि ये हदीस बहुत ही लंबी चौड़ी है । इसलिए हम इसके इसी हिस्से पर इक्तिफ़ा करते हैं जिसका ताल्लुक़ हमारे मबहस से है । वो हदीस ये है :-

जामेअ तिर्मिज़ी - जिल्द दोम - फ़ित्नों का बयान - हदीस 71

عَنْ أَبِي سَعِيدٍ الْخُدْرِيِّ قَالَ صَلَّی بِنَا رَسُولُ اللَّهِ صَلَّی اللَّهُ عَلَيْهِ وَسَلَّمَ بَنِي آدَمَ خُلِقُوا عَلَی طَبَقَاتٍ شَتَّی فَمِنْهُمْ مَنْ يُولَدُ مُؤْمِنًا وَيَحْيَا مُؤْمِنًا وَيَمُوتُ مُؤْمِنًا وَمِنْهُمْ مَنْ يُولَدُ کَافِرًا وَيَحْيَا کَافِرًا وَيَمُوتُ کَافِرًا وَمِنْهُمْ مَنْ يُولَدُ مُؤْمِنًا وَيَحْيَا مُؤْمِنًا وَيَمُوتُ کَافِرًا وَمِنْهُمْ مَنْ يُولَدُ کَافِرًا وَيَحْيَا کَافِرًا وَيَمُوتُ مُؤْمِنًا

(मिश्कात किताब अलआदब फ़ी अम्र-वल-माअरुफ़)

मोमिन से काफ़िर और काफ़िर से मोमिन

यानी अबू सईद खुदरी कहते हैं कि फिर रसूल अल्लाह ने फ़रमाया कि ख़ुदा ने औलाद-ए-आदम को मुख़्तलिफ़ दर्जों पर पैदा किया । बाअज़ उनमें से मोमिन पैदा होते हैं और मोमिन रहते हैं और मोमिन मरते हैं । और बाअज़ उनमें से काफ़िर पैदा होते हैं और काफ़िर रहते हैं और काफ़िर मरते हैं । और बाअज़ उनमें मोमिन पैदा होते हैं और मोमिन रहते हैं और काफ़िर मरते हैं । और बाअज़ उनमें से काफ़िर पैदा होते हैं और काफ़िर रहते हैं और मोमिन मरते हैं"

तक़द्दुस-माआब की ज़मीर से अपील

अब तक़द्दुस-माआब ज़रूर ही अपने दिल पर हाथ रखकर कह दें कि क्या सच-मुच यही इस्लाम की तालीम है कि हर इन्सान का बच्चा बेगुनाह पैदा होता है ? इस हदीस की सिर्फ एक ही तावील हो सकती है वो ये कि आप कह दें कि काफ़िर गुनाहगार नहीं होता है और इस पर अमीर ख़ुसरो का ये शेअर भी बतौर दलील पेश करते हैं ।

काफ़िर इश्कम मुस्लमानी मिरा दरकार नेस्त

हर रगे मन तारगशता हाजत ज़ीनार नेस्त

तब तो जनाब की वाह वाह होगी वर्ना कुछ भी नहीं । बच्चों को तो जाने दीजिए यहां तो हर एक जवान और हर एक बुड्ढे के ईमान और इस्लाम पर हर्फ़ आता है जब बाअज़ मोमिन पैदा होते हैं और मोमिन रहते हैं और काफ़िर मरते हैं तो किस तरह हम किसी मुक़द्दस रेश सफ़ैद के हक़ में ये कह सकते हैं कि वो जन्नती या बअल्फ़ाज़े दीगर ईमानदार हो कर मरा? हम किसी का दिल दुखाना नहीं चाहते वर्ना बड़े बड़े मुजद्दिदों और मुक़द्दसों के हक़ में इस जुम्ले के साथ सवाल कर सकते थे । लेकिन ये हमारा वेतरा नहीं है । हम तो सिर्फ ये दिखाना चाहते हैं कि क़ारईन किराम ये मालूम कर लें कि तक़द्दुस-माआब क्या फ़र्मा रहे हैं और उन का तंबूरा किया अलाप रहा है ।

तक़द्दुस-माआब की दो हर्फ़ी

(2) जुज़ दोम में आप फ़रमाते हैं कि शैतान ने उन्हें वरग़लाया और उनसे अल्लाह तआला के हुक्म की ना-फ़रमानी सरज़द हुई । गो उन्होंने गुनाह नहीं किया क्योंकि गुनाह करने के लिए इरादा ज़रूरी है क़ारईन इकराम ख़ुद देख़ सकते हैं कि तक़द्दुस-माआब कहाँ तक बेबस हो गए हैं कभी आप फ़रमाते हैं कि शैतान ने उन्हें वरग़लाया । और उनसे अल्लाह तआला के हुक्म की ना-फ़रमानी सरज़द हुई । ” और कभी फ़रमाते हैं कि गो उन्होंने गुनाह नहीं किया । क्योंकि गुनाह के लिए इरादा ज़रूरी है हम तक़द्दुस-माआब से दर्याफ़्त करना चाहते हैं कि अगर शैतान के वरग़लाने से और अल्लाह के हुक्म की ना-फ़रमानी करने से कोई शख़्स मुर्तक़िब गुनाह नहीं हो सकता । तो वो और कौन सी बात है जिसके करने से इन्सान गुनाहगार बन सकता है? क्या शैतान के वरग़लाने में आना गुनाह नहीं है? क्या अल्लाह तआला के हुक्म की ना-फ़रमानी करना गुनाह नहीं है?

तक़द्दुस-माआब के ख़िलाफ़ क़ुरआनी शहादत

मैं कहता हूँ कि शैतान की बातों में आना ही गुनाह है? وَلاَ تَتَّبِعُواْ خُطُوَاتِ الشَّيْطَانِ ‎ (2:163) । तुम शैतान के नक़्श-ए-क़दम पर मत चलो हम देखते हैं कि आदम शैतान के नक़्श-ए-क़दम पर चला? या बक़ौल आपके शैतान ने उन्हें वरग़लाया और सिर्फ वरग़लाया ही नहीं । बल्कि उन पर सज़ा भी मुरत्तिब हुई यानी जन्नत से निकाले गए और उनके ऐब भी उन पर ज़ाहिर हो गए । लेकिन आप आदम की बरीयत पर ये दलील पेश करते हैं कि क्योंकि गुनाह के लिए इरादा ज़रूरी है जिस आयत का जनाब ने ये तर्जुमा पेश किया है । इस पर हम आगे चल कर बह्स करेंगे । यहां सिर्फ ये अर्ज़ करना मंज़ूर है कि अगर जनाब का मक़्सद “ इरादा ” से ये है कि जिस वक़्त ख़ुदा ने आदम को मना किया था । उसी वक़्त आदम ने ये तै नहीं किया था कि मैं शजर-ए-मम्नूआ से ज़रूर खाऊंगा । तो हमारा भी यही ईमान है । कि जिस वक़्त ख़ुदा ने आदम को मना किया कि तू उसी दरख़्त में से मत खाना तो आदम के ख़्याल में भी ये नहीं था । कि मैं ज़रूर खाऊंगा चाहे ख़ुदा हज़ार बार मना करे । लेकिन आदम का जब शैतान से मुक़ाबला हुआ तो वो इस मुक़ाबला में शैतान की बातों में आकर मग़्लूब हो गया । चुनांचे ख़ुद जनाब ने भी इस अम्र को तस्लीम कर लिया है । कि फ़ित्रतन इसमें ये कमज़ोरी ज़रूर है कि वो शैतान के मुक़ाबला में कभी मग़्लूब भी हो जाए अब अगर जनाब के नज़्दीक शैतान से मग़्लूब हो जाना या शैतान की बातों में आकर ख़ुदा की ना-फ़रमानी करना गुनाह नहीं है । तो मैं समझता हूँ कि फिर दुनिया में ना तो गुनाह का वजूद बाक़ी रह सकता है और ना गुनाहगार क्योंकि दरें सूरत हर गुनाहगार यही उज़्र पेश कर सकता है कि मैंने तो नहीं किया शैतान ने मुझसे करवाया । या मुझमें तो करने का इरादा नहीं था लेकिन शैतान ने वरग़लाया । तब किसी शायर का ये मिसरा ठीक मुताबिक़ वाक़ेअ ठहरेगा ।

कारबद तो ख़ुद करे लानत करे शैतान पर

तक़द्दुस-माआब का ग़लत तर्जुमा

(3) आप फ़रमाते हैं कि क़ुरआन-ए-करीम शहादत देता है कि वो भूल गए فَنَسِيَ وَلَمْ نَجِدْ لَهُ عَزْمًا ‎ हमने इस में इरादा नहीं पाया । तक़द्दुस-माआब ने फनसीया (فَنَسِيَ)‎ का तर्जुमा वो भूल गए किया है जो महल के लिहाज़ से और क़ुरआन मजीद के मुताल्लिक़ा बयानात के एतबार से बिल्कुल ग़लत है । क़ब्ल इसके कि हम नाज़रीन के लिए फनसीया (فَنَسِيَ)‎ का सहीहह तर्जुमा पेश करें मुनासिब मालूम होता है कि हम क़ुरआन-ए-मजीद में से उन आयात को यहां नक़्ल करें जिनका ताल्लुक़ इस मुबाहिसा या मुकालमे से है । जो आदम और शैतान के माबैन वाक़ेअ हुआ था । कुल क़ुरआन-ए-मजीद में आदम और शैतान का क़िस्सा तख़मीनन आठ बार मज़्कूर हुआ है । मिनजुम्ला दो जगहें ऐसी हैं जिनमें किसी क़दर तफ़्सील के साथ आदम और शैतान का मुकालमा या मुबाहिसा मुंदरज है । वो जगह ये हैं :-

दलील अव्वल

وَيَا آدَمُ اسْكُنْ أَنتَ وَزَوْجُكَ الْجَنَّةَ فَكُلاَ مِنْ حَيْثُ شِئْتُمَا وَلاَ تَقْرَبَا هَـذِهِ الشَّجَرَةَ فَتَكُونَا مِنَ الظَّالِمِين فَوَسْوَسَ لَهُمَا الشَّيْطَانُ لِيُبْدِيَ لَهُمَا مَا وُورِيَ عَنْهُمَا مِن سَوْءَاتِهِمَا وَقَالَ مَا نَهَاكُمَا رَبُّكُمَا عَنْ هَـذِهِ الشَّجَرَةِ إِلاَّ أَن تَكُونَا مَلَكَيْنِ أَوْ تَكُونَا مِنَ الْخَالِدِينَ َقَاسَمَهُمَا إِنِّي لَكُمَا لَمِنَ النَّاصِحِينَ َدَلاَّهُمَا بِغُرُورٍ

(सुरह अल-आराफ़ आयत 19 - 22)

शैतान ने आदम को फ़रेब दिया

तर्जुमा - ऐ आदम तुम और तुम्हारी बीबी जन्नत में रहो और जहां से तुम चाहो खाओ और इस दरख़्त के क़रीब ना जाना । पस गुनेह्गारों में से हो जाओगे पस इन दोनों को शैतान ने वस्वसा दिया ताकि जो कुछ उन से छिपा दिया गया था यानी उनकी शर्मगाहें वो उन पर ज़ाहिर कर दे और कहने लगा कि तुम्हें तुम्हारे परवरदिगार ने इस दरख़्त से सिर्फ इसलिए मना किया है कि तुम फ़रिश्ते ना हो जाओ या हमेशा रहने वालों में से ना हो जाओ और इन दोनों से क़सम खाई कि बेशक यक़ीनन मैं तुम्हारे ख़ैर-ख़्वाहों में से हूँ पस शैतान ने फ़रेब से इन दोनों को अपनी तरफ़ खींच लिया ।

दलील दोम

فَوَسْوَسَ إِلَيْهِ الشَّيْطَانُ قَالَ يَا آدَمُ هَلْ أَدُلُّكَ عَلَى شَجَرَةِ الْخُلْدِ وَمُلْكٍ لَّا يَبْلَى َأَكَلَا مِنْهَا فَبَدَتْ لَهُمَا سَوْآتُهُمَا وَطَفِقَا يَخْصِفَانِ عَلَيْهِمَا مِن وَرَقِ الْجَنَّةِ وَعَصَى آدَمُ رَبَّهُ فَغَوَى

(सुरह ताहा 20:121)

शैतान ने आदम को लालच दिया

तर्जुमा - पस शैतान ने उन्हें वस्वसा दिया कहा कि आदम क्या मैं तुम्हें बता दूं हमेशा रहने का दरख़्त और वह सल्तनत जो कभी पुरानी ना हो? पस इन दोनों ने (आदम और हव्वा ने इस दरख़्त से ख़ा लिया और उनकी शर्मगाहें उन पर ज़ाहिर हो गईं और वह उन पर दरख़्त के पत्ते चिपकाने लगे और आदम ने अपने रब का गुनाह किया और गुमराह हो गए ।

क़ुरआन-ए-मजीद की इन आयात से जिनको हम ने ऊपर नक़्ल किया है जे़ल के उमूर साबित होते हैं । जिनसे साफ़ मालूम होता है कि हज़रत आदम ख़ुदा के हुक्म शजर-ए-मम्नूआ के पास मत जाना को “भूल” नहीं गए थे बल्कि शैतान के फ़रेब में आकर और चंद चीज़ों के लालच की वजह से उन्होंने अल्लाह के हुक्म को दीदा व दानिस्ता टाल दिया । वो उमूर यह हैं :-

शैतान के लालच और फ़रेब की तफ़्सील क़ुरआन की ज़बानी

  1. शैतान ने आदम को ख़ुदा का हुक्म याद दिलाया और " शैतान ने कहा कि तुम्हें तुम्हारे परवरदिगार ने इस दरख़्त से सिर्फ इसलिए मना किया है कि तुम फ़रिश्ते ना हो जाओ या हमेशा रहने वालों में से ना हो जाओ ।"
  2. और शैतान ने उनसे क़सम खाई कि बेशक यक़ीनन मैं तुम्हारा ख़ैर-ख़्वाह हूँ ।
  3. शैतान ने फ़रेब से इन दोनों को अपनी तरफ़ खींच लिया ।”

इन आयात को देख कर कौन मुंसिफ़ मिज़ाज शख़्स कह सकता है? आदम भूल गया जबकि आयत नंबर अव्वल में साफ़ साफ़ बतलाया गया है कि शैतान ने हज़रत आदम को ख़ुदा का वो हुक्म जो आदम को किया था याद दिलाया । " तुम्हारे परवरदिगार ने इस दरख़्त से सिर्फ इसलिए मना किया है आयत नंबर दोम से ये भी मालूम होता है कि इब्तदन हज़रत आदम ने शैतान की बातें क़बूल करने से इन्कार क्या होगा । और शैतान पर लानत भेजी होगी । तब ही तो शैतान ने क़सम खाई कि मैं तुम्हारा ख़ैर ख़्वाह हूँ । अगर हज़रत आदम " भूल गए" तो शैतान को क़सम खाने और इसरार करने की क्या ज़रूरत थी? और शैतान को उन के सामने सब्ज़-बाग़ पेश करने की क्या हाजत कि

  1. तुम फ़रिश्ते बन जाओगे या हमेशा ज़िंदा रहोगे"
  2. और एक ऐसी सल्तनत में रहोगे जो कभी पुरानी ना होगी दरहक़ीक़त इन ही दो बातों के लालच यानी हमेशा ज़िंदा रहने और लाज़वाल सल्तनत ने आदम को ख़ुदा की ना-फ़रमानी करने पर उकसाया जो फ़ी-उल-वाक़िया मह्ज़ फ़रेब के सिवा और कुछ ना था ।

तक़द्दुस-माआब के ग़लत तर्जुमा की तसहीह

पस फनसीया (فَنَسِيَ)‎ का तर्जुमा वो भूल गए करना क़ुरआन-ए-मजीद की मन्शा के बरख़िलाफ़ ही नहीं बल्कि आयात-ए-माफ़ौक़ का ज़द है । अब आप पूछेंगे कि पस् फनसीया (فَنَسِيَ)‎ का सहीह और दुरुस्त तर्जुमा क्या होना चाहिए ये कि उसने तर्क किया ।” ख़ुद क़ुरआन-ए-मजीद ने भी इस लफ़्ज़ को इस मअनी में इस्तिमाल किया । نَسُواْ اللّهَ فَنَسِيَهُمْ ‎ (सुरह अल-तौबा 68) )मुनाफ़क़ीन ने अल्लाह को तर्क किया । पस अल्लाह ने भी उन्हें तर्क किया) ख़ुद तक़द्दुस-माआब ने इसका अंग्रेज़ी में यही तर्जुमा किया है They have forsaken Allah so he has forsaken them इसी तरह “अज़म” (عزم)‎ के माअने सिर्फ़ इरादे के ही नहीं । बल्कि इस्तिक़लाल और अस्बात के भी हैं चुनांचे ज़मख़हशरी औलुल-अज़म (عزم)‎ के मअनी साहिबान कोशिश व सबात व सब्र के बतलाते हैं (फकिह-अल-अर्ब) पस इस पूरी आयत وَلَقَدْ عَهِدْنَا إِلَى آدَمَ مِن قَبْلُ فَنَسِيَ وَلَمْ نَجِدْ لَهُ عَزْمًا ‎ का तर्जुमा सहीह तौर पर यूँ है । बेशक हमने आदम को पहले हुक्म दिया था लेकिन उसने उस को तर्क ( छोड़ दिया ) किया और हम ने आदम में इस्तिक़लाल अस्बात नहीं पाया ।

(4)

आदम के गुनाह की सज़ा

وَقُلْنَا اهْبِطُواْ بَعْضُكُمْ لِبَعْضٍ عَدُوٌّ ‎ और हम ने हुक्म दिया । तुम सब यहां से उतरो । तुम एक दूसरे के दुश्मन हो ।

अगर हज़रत आदम ख़ुदा के हुक्म को तर्क ना करते और बक़ौल जनाब वो "भूल गए" होते तो ख़ुदा हरगिज़ "इस्यान (عصيان‎) और ग़वायत (غویٰ) को उनकी तरफ़ मंसूब ना करता وَعَصٰٓى اٰدَمُ رَبَّہٗ فَغَوٰى ‎ अगर क़ुरआन मजीद के और किसी मुक़ाम से हमारे इस्तिदलाल की ताईद भी ना होती तो सिर्फ यही एक आयत काफ़ी से ज़्यादा सबूत होती कि दरहक़ीक़त हज़रत आदम ने अपने रब के फ़रमान को तर्क कर दिया । नीज़ क़ुरआन-ए-मजीद के और कई मुक़ामात से ये साबित है कि इन्सान जल्दबाज़ और उजलत पसंद पैदा किया गया है خُلِقَ الْإِنسَانُ مِنْ عَجَلٍ ‎ (21:38) إِنَّ الْإِنسَانَ خُلِقَ هَلُوعًا ‎(70:19) इसी जल्द-बाज़ी की वजह से जो अयारतन व दीगर अदम इस्तिक़लाल है अव्वल अलनास अव्वल अलनासी (तारिक) बन गए । और शैतान के दाम-ए-तज़वीर में फंस गए ।

(4) जुज़ चहारुम में आप फ़रमाते हैं कि "उनकी ना-फ़रमानी को ज़िल्लत से ताबीर किया और ज़िल्लत वो है जो बग़ैर कसद व इरादे के सरज़द हो जाए فَأَزَلَّهُمَا الشَّيْطَانُ

तक़द्दुस-माआब ने क्या समझा

तक़द्दुस-माआब की इबारत माफ़ौक़ को पढ़ कर हमारे दिल में दो बातें पैदा हुईं अव्वल ये कि इस इबारत के लिखने के वक़्त आपने ये फ़र्ज़ कर लिया होगा कि बेचारे ईसाईयों में ऐसे अरबी दान कहाँ होंगे जो हर अरबी लफ़्ज़ के बाल की खाल उतार सकें और सर्फ़ व नहू के बहर-ए-ज़ख़्ख़ार में गवासी कर सकें इसलिए जो कुछ हम लिख देंगे सहीह समझा जाएगा या यह कि ख़ुद जनाब को मुग़ालता हो गया होगा और ज़िल्लत ओ-"अज़ल में फ़र्क़ ना कर सके ।

तक़द्दुस-माआब की लुग़तदानी का हाल

हम तक़द्दुस-माआब को बतला देंगे । कि जिस तरह ज़िल्लत ना लल व दलील (زلت نہ لل ودلیل)‎ का इस्म है जो ज़रब य ज़्रब वसिमा यसमा (جوضرب یضرب وسمع یسمع)‎ के बाब से है जिस के मअनी हैं । लग़ज़ीद नून पाए और दरगल व ज़बान वर्सख़न बकोल मुन्तही अलअरब (لغزید ن پائےاور درگل وزبان ورسخن" وبقول منہتی الارب")‎ वो गुनाह व ख़ता बे-इरादा ग़ालिबन इसी से आपने "ज़िल्लत के ये मअनी नक़्ल किए हैं । लेकिन अगर आप मुंतही अलअरब (منتہی الارب)‎ की चंद सतरें आगे तक पढ़ते तो आपको मालूम हो जाता कि "ज़िल्लत और चीज़ है और "अज़ल (ازل) ‎ और चीज़ लकिन आप इतनी तक्लीफ़ क्यों गवारा करते । बीसियों माअनों में से जहां एक मअनी को हसब मुदआ पा लिया उसको ले उड़े और आगे पीछे की कुछ ख़बर ना ली कि आख़िर इसका अंजाम क्या होगा । सुनिए साहिब आयत ज़ेर-ए-बहस में लफ़्ज़ अज़ल (ازل)‎ है जो सलासी मज़ीद फिया ऐनी बा इकराम(ثلاثی مزید فیہ عینی با اکرام)‎ से है । और इसका मुसद्दिर (مصدر)‎ है इज़लाल बाब इकराम की एक ख़ासीयत (ازلال باب اکرام)‎ ये है । कि फ़ा (فہ)‎ फे़अले लाज़िम (فعل لازم)‎ को मुतअद्दी बनाता है । मसलन अज़ल फ़ुलां फ़ी मंतिक़ (ازل فلاں فی منطق)‎ "यानी फ़ुलां शख़्स बातचीत करने में फिसल गया और अज़ला फ़ी मंतिक़ (فلاں فی منطق) ‎ यानी फ़ुलां शख़्स ने उसको फुसलाया । फे़अल अव्वल लाज़िम है और दुवम मुतअद्दी (متعدی) ‎ इसी नुक़्ते को मद्द-ए-नज़र रखकर साहिब मुंतही अल-अरब (منتہی الارب)‎ ने "अज़ल (ازل)‎ के मअनी में साफ़ लिखा है برگناہ انگیختن کسی را ‎ बल्कि अज़लाल (ازلأل)‎ से ताबीर किया । यानी शैतान ने आदम और हव्वा को गुनाह पर बरअंगेख़्ता किया فَأَزَلَّهُمَا الشَّيْطَانُ

सीग़ा तसनियह ( صیغہ تثنیہ )‎ के बाद जमा (جمع)‎ क्यों ? ख़्वाजा साहिब की कसर तक़द्दुस-माआब पूरी करते हैं

कुछ दिन हुए कि हमने हज़रत ख़्वाजा कमाल उद्दीन साहिब बी ए मुस्लिम मिशनरी की ख़िदमत में ये अर्ज़ किया था । कि क़ुरआन-ए-मजीद हमेशा हज़रत आदम व हव्वा के मुताल्लिक़ ज़मीर तसनियह इस्तिमाल करता रहा है । लेकिन उनके गिर जाने के बाद यकायक ज़मीर जमा (جمع)‎ इस्तिमाल करके फ़रमाता है اھبطوا‎ जिससे मालूम होता है कि आदम व हव्वा के गिर जाने में उनकी नस्ल को भी शामिल किया गया है । इस एतराज़ की अहमीय्यत को तक़द्दुस-माआब ने महसूस किया । और अब अपनी एड़ी चोटी तक का ज़ोर लगा रहे हैं । कि किसी तरह से एतराज़ को उठाएं । लेकिन उठाना तो दरकिनार रहा सरका तक नहीं सकते ।

क़ुरआन माने मगर तक़द्दुस-माआब ना मानें

आप फ़रमाते हैं :-

लेकिन क़ुरआन शरीफ़ ने अव्वल आदम से गुनाह का सरज़द होना तस्लीम नहीं किया । उसे लग़्ज़िश या ज़िल्लत कहा है । निस्यान (نسیان) का नतीजा बताया है फिर जो कुछ इस लग़्ज़िश का नतीजा था इस में नस्ल इन्सानी को क़तअन शरीक नहीं किया । और यह वो हक़ीक़त क़ुरआनी है जिससे ईसाई साहिबान ने बे-ख़बर होने की वजह से ये ख़्याल कर लिया है कि क़ुरआन आदम की ज़िल्लत की नताइज में नस्ल इन्सान को शरीक ठहराता है”

हम इन सब बातों का मुकम्मल और मुफ़स्सिल जवाब गुज़शता नंबरों में और नीज़ इसी नंबर में दे चुके हैं कि क़ुरआन-ए-मजीद ने आदम से गुनाह का सरज़द होना । तस्लीम किया है और उसे लग़्ज़िश या ज़िल्लत नहीं बल्कि इज़लाल (أزلال)‎ और "इस्यान (عصيان‎) कहा है । और अहादीस से साबित है । कि इसमें अफ़राद नस्ल इन्सानी सब के सब शरीक हैं । इस पर भी अगर "ईसाई बेचारे" बे-ख़बर समझे जाएं तो फिर मैं नहीं समझ सकता कि बाख़बर कौन हैं?

हबूत और इख़राज अज-जन्नत

फिर आगे चल कर आप तजुर्बा फ़रमाते हैं कि "आदम के इस्यान का नतीजा जैसा कि मैं अभी क़ुरआन शरीफ़ से बता चुका हूँ सिर्फ एक ही है (नहीं जनाब बहुत हैं) (1 जन्नत से निकाला जाना (2) उनके ऐब का उन पर ज़ाहिर हो जाना (3) उनकी ज़िंदगी की ऐश का तल्ख़ हो जाना (4) एक का दूसरे का दुश्मन हो जाना यानी जन्नत से निकल जाना । इसमें नस्ल इन्सानी की शिरकत का ज़िक्र क़ुरआन शरीफ़ में कहीं नहीं अलबत्ता सारी नस्ल इन्सानी के लिए क़ुरआन शरीफ़ ने हालत-ए-हबूत को ज़रूर बयान किया है । मगर इन दोनों में बहुत फ़र्क़ है । और क़ुरआन शरीफ़ ने ख़ुद हबूत और इख़राज अज-जन्नत को अलग अलग उमूर के तौर पर बयान किया है । अगर ये दोनों एक ही होते तो इख़राज अज़ जन्नत को बयान करने के बाद हबूत का ज़िक्र तहसील हासिल था और यह कि आदम पर रुजू बरहमत के बाद नस्ल इन्सानी के हबूत का ज़िक्र साफ़ बताता है । कि हबूत क़तअन सज़ा के रंग में नहीं ना ये आदम के इस्यान का नतीजा है बल्कि ये कोई और कैफ़ीयत है ।"

तक़द्दुस-माआब की जन्नत

फिर आगे चल कर आप इस "कैफ़ीयत की तशरीह बदें अल्फ़ाज़ करते हैं पस शैतान से मुक़ाबले की हालत हालत ए हबूत है और इस हालत से सारी नस्ल इन्सानी गुज़रती है । इस पर इसकी सारी तरक़्क़ियों का दार-ओ-मदार है या बअल्फ़ाज़े दीगर यूं कहना चाहिए कि अल्लाह तआला ने नस्ल इन्सानी को बता दिया कि तुम सबको शैतान का मुक़ाबला करना होगा । और मुक़ाबला करके उसे अपना फ़रमांबर्दार बनाना होगा इस मुक़ाबले के बाद जिस जन्नत में दाख़िल होना है वही असली जन्नत है"

सुतूर बाला में जे़ल के उमूर फ़र्ज़ कर लिए गए हैं :-

  1. )अ ۱ (आदम के इस्यान का नतीजा सिर्फ एक ही है । यानी जन्नत से निकलना ।
  2. )ब) ب इसमें नस्ल इन्सानी की शिरकत का ज़िक्र क़ुरआन शरीफ़ में कहीं नहीं ।
  3. )ह्) ح सारी नस्ल इन्सानी के लिए क़ुरआन शरीफ़ ने हालत-ए-हबूत का ज़रूर बयान किया है ।
  4. )द) د हबूत और इख़राज अज-जन्नत दो अलग अलग उमूर हैं ।
  5. )ह) ہ आदम पर रुजू बरहमत के बाद नस्ल इन्सानी के हबूत का ज़िक्र है ।
  6. )व) و हबूत क़तअन सज़ा के रंग में नहीं ना ये आदम के इस्यान का नतीजा है ।
  7. )ज़) ز शैतान से मुक़ाबला की हालत हालत-ए-हबूत है ।
  8. )ह्) ح मुक़ाबला करके शैतान को फ़रमांबर्दार बनाना होगा ।

तक़द्दुस-माआब की शक़ों की तसहीहहात

शक़ अव्वल का जवाब हम मौलवी-साहब की इबारत बाला में ख़ुतूत वहदानी के अंदर कहीं दे चुके हैं कि आदम के इस्यान का नतीजा सिर्फ एक नहीं बल्कि ज़्यादा हैं शक़ ब (ب)‎ के मुताल्लिक़ हम गुज़शता नंबरों में मुदल्लिल तौर पर बह्स करके ये साबित कर चुके हैं कि आदम के इस्यान में उनकी नस्ल भी शरीक है आगे चल कर जहां हम लफ़्ज़ हबूत (اھبطوا)‎ पर बह्स करेंगे । वहां इसको और अच्छी तरह वाज़ेह कर देंगे ।

तमाम नस्ल इन्सानी पर हालत-ए-हबूत

मुक़ाम सद शुक्र है कि तक़द्दुस-माआब से शक़ ज (ج)‎ में सारी नस्ल इन्सानी पर हालत-ए-हबूत का तारी होना तस्लीम कर लिया है । गो कि आप शक़ द (د)‎ में हबूत (ہبوط)‎ और इख़राज अज-जन्नत को दो जुदागाना चीज़ें समझते हैं जो दरहक़ीक़त एक सरीही ग़लती है जे़ल की आयत मुलाहिज़ा हो :-

قَالَ فَاهْبِطْ مِنْهَا فَمَا يَكُونُ لَكَ أَن تَتَكَبَّرَ فِيهَا فَاخْرُجْ إِنَّكَ مِنَ الصَّاغِرِينَ

(7:12)

ख़ुदा ने फ़रमाया ऐ शैतान इस में से उतरजा ( निकल जा ) क्योंकि तुझको ये लायक़ नहीं है कि इस में रह कर ग़रूर करे । पस निकल जा बे-शक तू ज़लील होने वालों में से है ।"

अब हम तक़द्दुस-माआब से पूछते हैं कि आख़िर आप आयत बाला में फ़ाहबत (فاھبط)‎ का क्या तर्जुमा करेंगे? क्योंकि आप तो मान चुके हैं कि शैतान से मुक़ाबले की हालत हालत-ए-हबूत है । तो गोया बक़ौल आपके अल्लाह शैतान से फ़रमाता है । ऐ शैतान तुझको शैतान से मुक़ाबला करना होगा, और उसे अपना फ़रमांबर्दार बनाना होगा, और इस मुक़ाबले के बाद तू जिस जन्नत में दाख़िल होगा वही असली जन्नत होगा । शाबाश मौलवी-साहब आपने तो क़ुरआन मजीद से वो सुलूक किया कि शायद ही कोई कर सके !!! शैतान से शैतान का मुक़ाबला और फिर उसका जन्नत में दाख़िल हो जाना । (इस मुक़ाबला के बाद) क्या ही लुत्फ़ की बात है । मुम्किन है कि आप इस पहलू को छोड़कर इस पहलू को इख़्तियार करें । कि यहां शैतान का शैतान से मुक़ाबला मुराद नहीं । बल्कि ये मुराद है कि ऐ शैतान सब इन्सानों का मुक़ाबला कर और उनको अपना फ़रमांबर्दार बना । और इस मुक़ाबला के बाद तो जिस जन्नत में दाख़िल होगा वही असली जन्नत है । सुब्हान-अल्लाह किया ही तर्जुमा और क्या ही तावील और क्या अशंबात है ।

हुआ है मुद्दई का फ़ैसला अच्छा मेरे हक़ में

ज़ुलेख़ा ने किया ख़ुद पाक दामन माह-ए-कनआँ का

चैलेन्ज

मैं तक़द्दुस-माआब को चैलेन्ज देता हूँ कि वो "हबूत” (ھبوط)‎ के मअनी शैतान से मुक़ाबला के साबित करें । ख़्वाह क़ुरआन-ए-मजीद से ख़्वाह मुस्तनद अहादीस से ख़्वाह काबिल-ए-एतबार लुग़त से लेकिन वो हरगिज़ नहीं कर सकेंगे ।

लीजिए जनाब मैं आप को बताता हूँ कि "हबूत” (ھبوط)‎ के क्या मअनी हैं ।

ھبطہ بالفتح زمین ہموار دپست ھبوط کعبودرہا زمین نشیب ھبطہ ھبطہ بالفتح فرودآورد ایقال للھمہ غبطاً والاھبطا اونیز ھبوط لاغر گرایندن بیماری کسے راوزدن درآمدن ورشہری وکم شدن بہائے مہتاع وکم کرون آزاد نیز ھبط کم شدن وبہ بدی دارفتادن ھبط ھبوطا فرودآمدزبالا (منہتی الارب)

ھبط ھبوط فردآمدن یقال ھبط ھبوطاً ای انزل وھبط ھبطا ھبطا ای انزلہ لازم متعدد یقال اللھم غنبطا لا ھبطاً(صراح )

नीज़ देखिए क़ामूस ।

पस इह्बितु اھبطوا‎ के मअनी बजुज़ इसके और कुछ नहीं हैं कि तुम सब के सब जन्नत से निकलो या उतरो या बाहर हो जाओ ।” अलबत्ता हबूत (ہبوط)‎ में ना सिर्फ निकल जाना या उतर जाना या बाहर हो जाना मल्हूज़ होता है । बल्कि हालत का तनज़्ज़ुल भी चुनांचे मुन्तही अलअरब (منہتی الارب)‎ और सराह (صراح)‎ में जो एक दुआ का ये जुम्ला कि اللھم غبطا لا ھبطا‎ नक़्ल किया गया है इस के मअनी ये हैं कि ईलाही हम तुझसे फ़राग़ हाली (तरक़्क़ी) चाहते हैं । ना कि अपनी हालत से तनज़्ज़ुल (मुंतही अलअरब) पस क़ुरआन-ए-मजीद की इस आयत का सहीह तर्जुमा ये है कि “तुम सब के सब अपनी गिरी हुई हालत के साथ इसमें से उतर जाओ ।” पस साबित है कि "हबूत” (ہبوط)‎ और इख़राज अज-जन्नत दो अलग अलग उमूर नहीं बल्कि एक ही है । और लफ़्ज़ हबूत (ہبوط)‎ के वारिद करने से ये मक़्सद है कि इन्सान इस बात को जाने कि ख़ुदा ने इन को बेवजह जन्नत से नहीं निकाला । बल्कि उनकी गिरी हुई हालत के सबब से जो आदम से उनको विरसा में मिली थी उनको जन्नत से निकाला ।

इसी तरह शक़ ह (ھ)‎ भी सरासर ग़लत है । बल्कि आदम पर रुजू बरहमत होने के क़ब्ल ख़ुदा ने नस्ल इन्सानी के "हबूत” (ہبوط)‎ का ज़िक्र किया है । आयत जे़ल मुलाहिज़ा हो :-

فَأَزَلَّهُمَا الشَّيْطَانُ عَنْهَا فَأَخْرَجَهُمَا مِمَّا كَانَا فِيهِ وَقُلْنَا اهْبِطُواْ بَعْضُكُمْ لِبَعْضٍ عَدُوٌّ وَلَكُمْ فِي الأَرْضِ مُسْتَقَرٌّ وَمَتَاعٌ إِلَى حِينٍ

(2:36) जब आदम को अल्लाह ने "इह्बितु” (اهْبِطُوا)‎ का हुक्म दे दिया । तब आदम ने तौबा की और तौबा के बाद फिर उनको वही पहला हुक्म सुनाता है । قُلْنَا اهْبِطُواْ مِنْهَا جَمِيعاً ‎ (2:37) गोया कि तौबा के क़ब्ल और बाद दो हालत में ख़ुदा उन को एक ही हुक्म देता है । कि यहां से उतर जाओ । पस ये कहना कि आदम पर रुजू बरहमत के बाद नस्ल इन्सानी के हबूत (ہبوط)‎ का ज़िक्र है ।” किस क़दर मुग़ालतादही है ।

फिर आप शक़ व (و)‎ में फ़रमाते हैं हबूत (ہبوط)‎ क़तअन सज़ा के रंग में नहीं ना ये आदम के इस्यान (عصيان‎) का नतीजा है मैं अर्ज़ करता हूँ कि हबूत (ہبوط)‎ क़तअन सज़ा के रंग में और आदम के इस्यान (عصيان‎) का नतीजा था ۔ हदीस जे़ल मुलाहिज़ा हो । जिसमें हबूत (ہبوط)‎ ही का सीग़ा वाक़ेअ हुआ है जो इस बात की दलील है कि फ़िलवाक़े हबूत सज़ा और इस्यान (عصيان‎) के नतीजे के तौर पर है ।

हदीस हमारी ताईद में

सहीह मुस्लिम - जिल्द सोम - तक़दीर का बयान - हदीस 2243

حَدَّثَنَا إِسْحَقُ بْنُ مُوسَی بْنِ عَبْدِ اللَّهِ بْنِ مُوسَی بْنِ عَبْدِ اللَّهِ بْنِ يَزِيدَ الْأَنْصَارِيِّ حَدَّثَنَا أَنَسُ بْنُ عِيَاضٍ حَدَّثَنِي الْحَارِثُ بْنُ أَبِي ذُبَابٍ عَنْ يَزِيدَ وَهُوَ ابْنُ هُرْمُزَ وَعَبْدِ الرَّحْمَنِ الْأَعْرَجِ قَالَا سَمِعْنَا أَبَا هُرَيْرَةَ قَالَ قَالَ رَسُولُ اللَّهِ صَلَّی اللَّهُ عَلَيْهِ وَسَلَّمَ احْتَجَّ آدَمُ وَمُوسَی عَلَيْهِمَا السَّلَام عِنْدَ رَبِّهِمَا فَحَجَّ آدَمُ مُوسَی قَالَ مُوسَی أَنْتَ آدَمُ الَّذِي خَلَقَکَ اللَّهُ بِيَدِهِ وَنَفَخَ فِيکَ مِنْ رُوحِهِ وَأَسْجَدَ لَکَ مَلَائِکَتَهُ وَأَسْکَنَکَ فِي جَنَّتِهِ ثُمَّ أَهْبَطْتَ النَّاسَ بِخَطِيئَتِکَ إِلَی الْأَرْضِ فَقَالَ آدَمُ أَنْتَ مُوسَی الَّذِي اصْطَفَاکَ اللَّهُ بِرِسَالَتِهِ وَبِکَلَامِهِ وَأَعْطَاکَ الْأَلْوَاحَ فِيهَا تِبْيَانُ کُلِّ شَيْئٍ وَقَرَّبَکَ نَجِيًّا فَبِکَمْ وَجَدْتَ اللَّهَ کَتَبَ التَّوْرَاةَ قَبْلَ أَنْ أُخْلَقَ قَالَ مُوسَی بِأَرْبَعِينَ عَامًا قَالَ آدَمُ فَهَلْ وَجَدْتَ فِيهَا وَعَصَی آدَمُ رَبَّهُ فَغَوَی قَالَ نَعَمْ قَالَ أَفَتَلُومُنِي عَلَی أَنْ عَمِلْتُ عَمَلًا کَتَبَهُ اللَّهُ عَلَيَّ أَنْ أَعْمَلَهُ قَبْلَ أَنْ يَخْلُقَنِي بِأَرْبَعِينَ سَنَةً قَالَ رَسُولُ اللَّهِ صَلَّی اللَّهُ عَلَيْهِ وَسَلَّمَ فَحَجَّ آدَمُ مُوسَی

आदम व मूसा में तकरार

यानी अबू हुरैरा फ़रमाते हैं कि आँहज़रत सलअम ने फ़रमाया कि ख़ुदा के पास आदम और मूसा में हुज्जत होने लगी । लेकिन आदम मूसा से पर हुज्जत ले गए । मूसा ने कहा कि तुम वही आदम हो जिन को ख़ुदा ने अपनी क़ुदरत से पैदा किया और जिनमें अपनी रूह फूंक दी और जिनके आगे उसके फ़रिश्तों ने सज्दा किया । और जिनको ख़ुदा ने अपनी जन्नत में रखा । फिर भी तुमने अपने गुनाह के सबब से लोगों को जन्नत से ज़मीन पर उतार दिया आदम ने कहा तुम वही मूसा हो जिनको अल्लाह ने अपना रसूल मुक़र्रर किया । और उन के साथ कलाम किया । और जिनको अल्लाह ने लौहें दें । जिनमें हर एक चीज़ का बयान था । और जिन को अल्लाह ने तौरेत देकर मुनाजी मुक़र्रर किया । पस तुम बतला सकते हो कि मेरे ख़ल्क़ करने से क़ब्ल ख़ुदा ख़ुदा ने कितने साल पहले तौरात लिख दी थी? मूसा ने कहा चालीस साल । आदम ने कहा क्या तुमने तौरात में पाया था कि आदम ने अपने रब का गुनाह किया और गुमराह हो गए । मूसा ने कहा । हाँ फिर आदम ने कहा तुम मुझको ऐसी बात पर मलामत करते हो । जो अल्लाह ने मेरे वास्ते मेरे पैदा होने से भी चालीस साल पहले लिख दी थी । आँहज़रत ने फ़रमाया कि आदम मूसा पर हुज्जत में ग़ालिब आ गए ।

आदम की ज़िम्मेवारी

यही हदीस किसी क़दर इख़्तिलाफ़ के साथ बुख़ारी में भी मौजूद है । वहां हज़रत मूसा आदम से कहते हैं । اخرحجت الناس من الجنتہ بذنبک و اشقیتھمہ‎ यानी तुमने अपने गुनाह के सबब से लोगों को जन्नत से निकाला और उन को तक्लीफ़ में डाल दिया ।” इस हदीस की रू से आपका ये फ़रमाना भी ग़लत ठहरा कि नस्ल इन्सानी जन्नत से नहीं निकली क्योंकि हदीस बुख़ारी में साफ़ लिखा हुआ है । कि اخرجت الناس من الجنتہ‎ तुमने लोगों को जन्नत से निकाला ।"

आपके शक़ ज़ (ز)‎ का जवाब हम निहायत वज़ाहत के साथ सतूरबाला में दे चुके हैं उसके इआदे की यहां ज़रूरत नहीं है । अलबत्ता शक़ ह् (ح)‎ के मुताल्लिक़ कुछ इस्लाह की ज़रूरत है आप फ़रमाते हैं कि :-

"मुक़ाबला करके शैतान को फ़रमांबर्दार बनाना होगा इससे ज़्यादा और क्या ख़ुशी और मसर्रत हो सकती है कि हम सुन लें कि तक़द्दुस-माआब ने शैतान को अपना फ़रमांबर्दार बना लिया । लेकिन ये एक ऐसी आरज़ू है जो सरसब्ज़ होती नज़र नहीं आती । हम हैरान हैं कि तक़द्दुस-माआब के क़ौल को सच्च मान लें । या क़ुरआन मजीद के क़ौल को । क़ुरआन-ए-मजीद में साफ़ साफ़ लिखा हुआ है कि क़ियामत के दिन तक शैतान मर्दूद और लईन (لعین) रहेगा ।” وَّاِنَّ عَلَيْكَ لَعْنَتِيْٓ اِلٰى يَوْمِ الدِّيْنِ ‎ लेकिन तक़द्दुस-माआब हैं कि बजाय नाउम्मीद अज़हमत शैतान बोद को यूँ पढ़ते हैं कि “नाउम्मीद अज़ ज़हमत शैतान बूद” अब हम देखते हैं कि तक़द्दुस-ए-मआब की ये तरफ़दारी ठिकाने लगती है या नहीं-फ़क़त

(सुल्तान)

मकाल्मा

माबैन

पादरी सुल्तान मुहम्मद खान साहिब अफ़गान

और

ख्वाजा कमाल-उद्दीन साहिब बी ए मुस्लिम मिशनरीज़

7- अप्रैल 1924 ई .

पादरी साहिब साइल - ख़्वाजा साहिब कल आपने फ़रमाया था कि जो ख़ता सहव वाक़े हो । इस की कोई सज़ा नहीं । आदम ने एक ख़ता की वो ख़ता सहवन वाक़ेअ हुई या क़सदन और उस की सज़ा मुरत्तिब हुई या ना । लेकिन जब उस ने एक फे़अल खिलाफ-ए-अम्र रब्बी किया तो गुनाह हो चुका । क्या आप मानते हैं कि आदम से गुनाह हुआ ?

ख़्वाजा साहिब मुजीब - जो फे़अल सहवन वाक़ेअ हो वो गुफरान तले आ जाता है जब कोई नुक़्स अपने नताइज पैदा करता है । तो उसके नुक़्स ज़ाहिर कर दिए जाते हैं । आदम जिस जन्नत में था । मैं उसे कोई मकान या जगह नहीं मानता । वो सिर्फ एक हालत थी । क़वा (قویٰ) का आला दर्जा का कमाल ही जन्नत था । क़ुरआन में जहां सज़ा का ज़िक्र है । वहां लफ़्ज़ अख़ज़ (اخذ) आया है । आदम ने भूल से एक काम किया । और ख़ुदा ने फ़ौरन उस की निस्बत उसे इत्तिला कर दी । और नुक़्स ज़ाहिर हो गया और आदम सँभल गया ।

पादरी साहिब - शराअ के ख़िलाफ़ जो फे़अल हो वो गुनाह है । अब वो सहवन वक़ूअ में आया या क़सदन । अब इन्सान उसके नताइज को अंदरूनी क़वा (قویٰ) से रद्द करे या वो सबब ख़ारिजी से रोका जाये बहर-सूरत फे़अल खिलाफ-ए-क़ानून वाक़ेअ हो चुका । आदम ने एक फे़अल खिलाफ-ए-क़ानून किया अगर बिलफ़र्ज़ ख़ुदा के याद दिलाने से आदम ने नताइज को रोक भी लिया तो वो भी गुनाह कर चुका ।

ख़्वाजा साहिब - जब एक फे़अल खिलाफ-ए-क़ानून वाक़ेअ हो तो या वो नसिया (نسیہ) का और या इरादे का नतीजा है । अगर नसिया (نسیہ) का नतीजा हो तो गुफरान के तले आ जाएगा । और नतीजे को रोक देना ही गुफरान है । अगर फे़अल खिलाफ-ए-क़ानून बालाइरादा हुआ । तो उसका लाज़िमी नतीजा सज़ा है । जन्नत और दोज़ख़ कोई मकान नहीं है । क़वा (قویٰ) के दुरुस्त चलने का नतीजा जन्नत है और इस के ख़िलाफ़ दोज़ख़ है । आदम ने नसिया (نسیہ) से ख़ता की । लिहाज़ा इसका नतीजा रोक दिया गया ।

पादरी साहिब - आपने क़वा (قویٰ) का ज़िक्र किया है । तो जब क़वा (قویٰ) दुरुस्त राह पर नहीं चलते तो वो एक नतीजा पैदा करते हैं । और यही सज़ा है । पस आपने सज़ा को मान लिया ।

ख़्वाजा साहिब - बात ये है कि एक आदमी ऐसी ख़ुराक खाता है । कि इस से जिस्म को नुक़्सान पहुंचे । मगर बसा-औक़ात जिस्म की अंदरूनी क़ुव्वतें ही उसके असर को रोक देती हैं । और नतीजा ज़ाहिर नहीं होता । इसी तरह ख़ुदा के इत्तिला देने से आदम सँभल गया । पस सज़ा ना हुई । ग़लती से वाक़ेअ शूदा ख़ता का दफ़ईया ख़ुद बख़ुद हो जाता है । ख़ुदा का अदल किसी क़ानून के मातहत नहीं जब वो देखता है । कि सहवन गुनाह हो गया । तो वो माफ़ कर देता है । सज़ा ज़िम्मादारी नाअकुल पर है । एक क़ानून से नावाक़िफ़ या बच्चे ने गुनाह किया । तो ख़ुदा उसे सज़ा नहीं देता । बच्चा क़ानून नहीं समझ सकता । एक शख़्स भूल गया या किसी ने क़ानून को ग़लत समझा । तो ख़ुदा मिसल इन्सानी हाकिम के क़ानून का मज्बूर नहीं है । किसी फे़अल की सज़ा तब नतीजा पैदा करती है जब कि कोई क़ुव्वत-ए-मुख़ालिफ़ मौजूद ना हो । पस जब ख़ुदा ने बख़्श दिया । तो आदम को सज़ा ना हुई ।

पादरी साहिब - आदम ने क़ानून के ख़िलाफ़ फे़अल किया । आप कहते हैं कि इसका क्या गया । मगर याद रहे कि किसी शैय का इज़ाला उसके वजूद के बाद हुआ करता है मर्ज़ का इज़ाला तब होता है । कि मर्ज़ पैदा हो चुका हो । जब ये कहें कि ख़ुदा ने आदम के गुनाह को बख़्श दिया । तो इसका ये मतलब है कि आदम ने गुनाह किया ।

ख़्वाजा साहिब - मगर बाज़-औक़ात एक फे़अल वाक़ेअ हो जाता है । मगर उसके नताइज ज़हूर में नहीं आते । या अंदरूनी तौर पर इस का इज़ाला हो जाता है । ज़रूर नहीं कि नताइज ज़हूर पज़ीर हो ।

पादरी साहिब - बहुत अच्छा उसे हम भी मानते हैं । मगर इससे एक बात साबित हो गई कि आदम से गुनाह हुआ । ये पहला मरहला तै हो गया ।

दूसरा मरहला

पादरी साहिब - आदम से गुनाह के सरज़द होने को तो आप ने तस्लीम कर लिया । अब अम्र ज़ेर-ए-बहस ये रहा कि आदम को सज़ा हुई या ना । पस मालूम हो कि क़ुरआन में लिखा है । فَأَزَلَّهُمَا الشَّيْطَانُ عَنْهَا (2:34) यानी शैतान ने आदम व हव्वा को तनज़्ज़ुल कर दिया । इस से मालूम होता है कि भूल ना थी बल्कि ख़ारिजी अस्बाब से ऐसा हुआ । शैतान ने वरग़लाया और ख़ुदा के ख़िलाफ़ बहकाया । क्योंकि मुताबिक़ आयत وَلَمْ نَجِدْ لَهُ عَزْمًا (20:114) आदम मुस्तक़िल अलइरादा ना था । पस वो बहकाने में आ गया । अब हम इस बहकावट में आ जाने को भूल नहीं कह सकते । शैतान आदम पर ग़ालिब आया और आदम ने मुस्तक़िल अलइरादा ना होने से गुनाह किया । और जन्नत से निकाल दिया गया । और क़ुरआन आदम के इस फे़अल की सज़ा में उसे बयान करता है । यही हमारा अक़ीदा है कि आदम ने गुनाह किया और सज़ा पाई ।

ख़्वाजा साहिब - क्या ये ज़रूर है कि जो फे़अल सरज़द हो वो नसिया (نسیہ) ना होगा?

पादरी साहिब - निस्यान (نسیان) के मअनी हैं । किसी शैय की सूरत का ज़हन से महव हो जाना । मगर आदम के मुआमला में ये हाल नहीं । मसलन आपने मुझे चाय का पियाला देना चाहा । और मैंने इन्कार किया । तर्ग़ीब व तहरीस या रोब दाब या और किसी तरह से आख़िर मुझे इन्कार को तर्क करना पड़ेगा तो उसे मज्बूरी कहेंगे । ना कि निस्यान (نسیان) ।

ख़्वाजा साहिब - मगर तर्ग़ीबात से भी नसिया (نسیہ) पैदा हो जाता है क्योंकि आदम को एक अम्र की इत्तिला दी गई । जो तर्ग़ीबात की मौजूदगी में बिल्कुल दिमाग़ से महव हो गई । पस शैतान ने आदम को नसिया (نسیہ) करा दिया ।

पादरी साहिब - ना नसिया (نسیہ) बल्कि गुमराही ।

ख़्वाजा साहिब - मगर गुमराही तो ये है कि मैं ग़लत राह पर चलूं मगर आदम के मुआमला में ये हो सकता है । कि हालात-ए-गिर्द-ओ-पेश से वो भूल गया ।

पादरी साहिब - नसिया (نسیہ) भूल जाना होता है । मगर गुमराही ख़ारिजी अस्बाब की मज्बूरी से हुआ करती है ।

ख़्वाजा साहिब - गुमराही तीन क़िस्म की होती है (1) ख़ारजी तास्सुरात तले भूल जाना (2) सहीह राह से हट जाना और (3) इरादे से ख़ता करना । मगर ज़िम्मेदारियाँ हर सेह की जुदा-जुदा हैं जैसी कि गुमराही की तीन मुख़्तलिफ़ सूरतें हैं । वैसी ही ज़िम्मावारी हर एक की मुख़्तलिफ़ होगी ।

पादरी साहिब - मगर शैतान व आदम के दर्मियान तो ख़ास मुकालमा इसी दरख़्त-ए-ममनूआ ही की बाबत था । इसी लिए क़ुरआन में आया है । وَعَصَى آدَمُ رَبَّهُ فَغَوَى (20: 119) यानी आदम ने रब की नाफ़रमानी की ग़वा (غویٰ) नसिया (نسیہ) के लिए नहीं आ सकता ।

)ख़्वाजा साहिब ने इस मौक़े पर मौलवी मुहम्मद अली तफ़्सीर क़ुरआन को मंगाया । और कई मिनट तक उस का मुतालआ करने के बाद फ़रमाया(

ख़्वाजा साहिब - मगर मुझे यहां शैतान की कोई बह्स आदम से नहीं मिलती ।

पादरी साहिब -

وَلَقَدْ عَهِدْنَا إِلَى آدَمَ مِن قَبْلُ فَنَسِيَ وَلَمْ نَجِدْ لَهُ عَزْمًا فَقُلْنَا يَا آدَمُ إِنَّ هَذَا عَدُوٌّ لَّكَ وَلِزَوْجِكَ فَلَا يُخْرِجَنَّكُمَا مِنَ الْجَنَّةِ فَتَشْقَى إِنَّ لَكَ أَلَّا تَجُوعَ فِيهَا وَلَا تَعْرَى وَأَنَّكَ لَا تَظْمَأُ فِيهَا وَلَا تَضْحَى فَوَسْوَسَ إِلَيْهِ الشَّيْطَانُ قَالَ يَا آدَمُ هَلْ أَدُلُّكَ عَلَى شَجَرَةِ الْخُلْدِ وَمُلْكٍ لَّا يَبْلَى

हमने आदम से इससे पहले एक अह्द किया था सो वो भूल गया और हमने इस में इस्तिक़लाल ना पाया....फिर हमने आदम से कहा इब्लीस तेरा और तेरी ज़ौजा का दुश्मन है । सो कहीं दोनों को जन्नत से ना निकलवा दे । फिर तो तक्लीफ़ में पड़े....फिर शैतान ने आदम के दिल में डाला । बोला ऐ आदम क्या मैं तुझे सदा जीने का दरख़्त और वह सल्तनत जो कहीं ना हो बताऊं? (20:114 ता 119) । इस के मुताबिक़ आदम को बताया गया था कि शैतान तुम्हारा दुश्मन है । फिर शैतान ने इन को वरग़लाया ।

ख़्वाजा साहिब - मगर यह किस तरह मालूम हुआ कि जब शैतान ने इस से सदा जीने के दरख़्त का ज़िक्र किया तो उसे ख़ुदा की बात याद थी?

पादरी साहिब - आदम के सामने जब ख़ास वही मसअला ज़ेर-ए-बहस आया जिससे ख़ुदा ने मना किया था । तो ज़रूर है कि उसे ख़ुदा का हुक्म याद आ गया । अगर बावजूद मुकालमा के भी भूल गया । तो ग़वा (غویٰ) कहना हरगिज़ मुनासिब ना था । यानी कि इस ने ख़ुदा की ना-फ़रमानी की ।

ख़्वाजा साहिब - ग़वा (غویٰ) के मअनी क्या हैं?

पादरी साहिब - ग़वा (غویٰ) बाग़ी होना ।

ख़्वाजा साहिब - चूँकि पहले लिखा है कि आदम भूल गया था । पस जब शैतान ने इस को वरग़लाया तो ज़रूर नहीं कि उस वक़्त आदम को ख़ुदा का हुक्म याद आ गया । ना शैतान ने ख़ुदा का हुक्म ही याद दिलाया था । पस वो भुला हुआ था जबकि शैतान ने उसे वरग़लाया, मुद्दत गुज़र गई थी और आदम को ख़ुदा का हुक्म भूल चुका था । एक बच्चा आन वाहिद में भूल जाता है । इमकान नसिया (نسیہ) का हो सकता है ।

पादरी साहिब - शैतान ख़ुदा के बिलमुक़ाबिल पेश करता है कि ऐ आदम क्या मैं तुझे सदा जीने का दरख़्त और वह सल्तनत जो कहीं ना हो बताऊं ? ख़ुदा ने जिस दरख़्त की निस्बत पहले नज़्दीक ना जाने का हुक्म दिया था । अब उसी का ज़िक्र शैतान करता है । तो क्यों उसे याद ना आया था? ख़ुदा ने कहा था । وَلَا تَقْرَبَا ہٰذِہِ الشَّجَرَۃَ  शैतान भी शिजरतू-उल-ख़ुलद का ही ज़िक्र करता है शैतान ने अचानक आदम पर हमला नहीं किया । बल्कि इस से मुहब्बत करता हुआ कहता है कि मैं तुझे शिजरत-उल-ख़ुलद बताऊं ? यहां अल माहूद ज़हनी है । पस लाज़िमन शैतान के मुकालमा ने अम्र ईलाही की याद को ताज़ा कर दिया । ख़ुदा ने कहा था कि इस दरख़्त के क़रीब ना जाना । वर्ना ज़ालिमों में से हो जाओगे । और अब शैतान कहता है कि ये दरख़्त सदा की ज़िंदगी है । अब दोनों ने इस में से हरीस हो कर खाया । ये आदम की भूल नहीं है । इसी लिए नाफ़रमानी का लफ़्ज़ आया है । और इसलिए सज़ा भी मुरत्तिब हो गई । लिखा है कि فَأَكَلَا مِنْهَا فَبَدَتْ لَهُمَا سَوْآتُهُمَا وَطَفِقَا يَخْصِفَانِ عَلَيْهِمَا مِن وَرَقِ الْجَنَّةِ  फिर इन दोनों ने इस में से खाया । और उनकी उर्यानी उन पर ज़ाहिर हो गई । और दोनों अपने ऊपर बाग़ के पत्ते टांगने लगे" अगर ख़ता सहवन वाक़ेअ हुई तो सज़ा क्यों दी गई?

ख़्वाजा साहिब - मगर यह कैसे साबित हुआ कि बाग़ में एक ही ऐसा दरख़्त था? लफ़्ज़ जन्नत के मअनी हैं कई बाग़ फिर दरख़्त भी मुतअद्दिद होंगे । हो सकता है कि शैतान ने किसी और दरख़्त का ज़िक्र क्या हो । जिससे ख़ुदा ने मना ना किया था ।

पादरी साहिब - अल माहूद ज़हनी है । और हज़ा शिजरा और (ہذا شجرہ) (1) शिजरत-उल-ख़ुलद (شجرہ الخلد) दोनों में अल (ال) तारीफ़ी आया है । यानी वही दरख़्त जिस से ख़ुदा ने मना किया था । (2) मज़ीदबराँ शिजरा के जो आख़िर में ह ة)) है । वो वहदत की अलामत है । यानी एक ही दरख़्त था (3) फिर लफ़्ज़ ख़ुलद (خالد) भी इसी दावे की ताईद में है, दरख़्त की तख़सीस ज़ाहिर व साबित है । और (4) सबसे बढ़कर ये कि सज़ा का मुरत्तिब हो जाना भी साबित करता है । कि इस एक ही दरख़्त का ज़िक्र था आपने फ़रमाया था कि जो फाल-ए-नसिया (نسیہ) से हो । इस पर सज़ा नहीं होती ।

ख़्वाजा साहिब - क्या अल (أل) से कोई माहूद ज़हनी है?

पादरी साहिब - तो क्या ऐसे बहुत से दरख़्त थे या एक ही था?

ख़्वाजा साहिब - एक आदमी ने ज़हर ख़ा लिया जिसका नतीजा हलाकत था । मगर फ़ील-फ़ौर ईलाज किया गया । और नतीजा ज़ाहिर ना हुआ । इसी तरह आदम ने गुनाह किया । मगर चूँकि भूल से था ख़ुदा ने माफ़ कर दिया । मर्ज़ के ज़हूर और दफ़ईया मर्ज़ के दरमयानी अरसा को सज़ा नहीं कह सकते । क्योंकि सज़ा का इशारा मुकम्मल सज़ा नहीं होती । अज़ाब का टाला जाना बुज़ुर्ग सवाब है । और अज़ाब का ना होना गुफरान है । गुफरान में ग़लती का एहसास ज़रूर होता है । मगर आदम की सज़ा मुकम्मल सज़ा ना थी वो मह्ज़ मबादियात-ए-सज़ा ही थे ।

पादरी साहिब - فَاَخْرَجَہُمَا مِـمَّا كَانَا فِيْہِ  यानी इन दोनों को वहां से जिसमें वो थे । निकाल दिया अब जन्नत कोई मकान हो या क़वा (قویٰ) फ़ित्री का कमाल बहर-ए-हाल इस हालत से आदम को निकाल दिया गया । और इस हालत से निकल जाना ही सज़ा है । सज़ा तीन क़िस्म की थी । अव्वल वो वहां से ख़ारिज किए गए । दोम उन की उर्यानी ज़ाहिर हो गई । सोम उनका दुनिया में एक दूसरे से अदावत करना ।

ख़्वाजा साहिब - वो क़वा (قویٰ) जो सहीह हालत में थे । वो अपने हाल पर ना रहे । मगर ये बहुत ही क़लील अरसे के लिए हुआ । मसलन में बैठां हूँ और उम्दगी से देख रहा हूँ । एक दम आंधी आती है । और मेरी आँखों में पड़ कर थोड़ी देर के लिए उन को बंद कर देती है मगर जों ही कि आंधी दूर हो गई मेरी आँखें फिर खुल गईं । बईना निहायत से निहायत क़लील अरसा के लिए आदम की सहीह हालत ना रही । क्योंकि आदम बहुत मजमूई नाक़ाबिल ख़ता ना था ।

पादरी साहिब - बस आपने मान लिया कि आदम इस हालत पर ना रहा जिसमें पैदा किया गया था । पस सज़ा भी हो चुकी ।

अब तीसरा मरहला

ये है कि आदम व हव्वा के बयान में तस्नियाह का सीग़ा चला आता है । मसलन तू और तेरी औरत जन्नत में रह और तुम दोनों इस दरख़्त के पास ना जाना कि तुम दोनो ज़ालिम ना हो जाना । फिर शैतान ने इन दोनों को वरग़लाया । इन दोनों को वहां से निकाल दिया । बार-बार दो का ज़िक्र चला आता है मगर जब सज़ा मिलती है । तो ख़ुदा कहता है قُلْنَا اهْبِطُواْ مِنْهَا جَمِيعاً (2:36) तुम सब यहां से नीचे उतरो, क़सूर करते हैं । दो शख़्स तो इस के क्या मअनी कि सज़ा मिलती है । सबको? आदम व हव्वा की सज़ा मजमूआ पर मुंतक़िल होती है । सबसे मुराद कौन हैं?

ख़्वाजा साहिब - आदम और सब + आदम में हमारी मिसल गुनाह की तमाम इस्तिदादें मौजूद थीं ।

पादरी साहिब - जब आदम की और हमारी फ़ित्रत एक है तो सीग़ा तस्नियाह (تثنية) को छोड़कर जमा क्यों इस्तिमाल किया?

ख़्वाजा साहिब - ये वाक़ेअ नहीं । क़ुरआनी क़िसस मह्ज़ हिदायात के तौर पर हैं ना कि वो वुक़ूआत हक़्क़ा हैं । उनसे सिर्फ ये मक़्सूद है कि अगर ऐसा करोगे । तो ये सज़ा मिलेगी । जमा का सीग़ा इसलिए आया कि आदम में गुनाह की इस्तिदादें थीं और हम में वो वाक़ियात के तौर पर ज़हूर में आती हैं ।

पादरी साहिब - मगर आदम व हव्वा के बयान में तस्नियाहह (تثنية) का सीग़ा आते आते एक दम जमा का सीग़ा क्यों आया?

ख़्वाजा साहिब - इस से मुराद आदम की ज़ुर्रियत यानी नस्ल आइन्दा है ।

पादरी साहिब - आपका ये कहना कि क़िसस क़ुरआन में नहीं हैं मगर मैं कहता हूँ कि अगर क़ुरआन से क़िसस को निकाल दें तो रह ही क्या जाएगा? चूँकि ये क़िसस कुतुब ग़ैर क़ुरआन में आ चुके हैं पस उनको निकाल कर जो हिस्सा क़ुरआन का बाक़ी रह जाये में इसको हमारा क़ुरआन कहूंगा और बार बार मेरे दिल में ऐसा करने का इरादा आया है ।

इस पर गुफ़्तगु ख़त्म हुई और इधर उधर की बातें हो कर रुख़स्त हुए । ख़्वाजा साहिब ने इसमें मुंदरजा ज़ैल उमूर तस्लीम किए हैं :-

  1. आदम से एक फे़अल खिलाफ-ए-क़ानून सरज़द हो गया ।
  2. गुफरान में ग़लती का एहसास व इस्तख़सार होता है ।
  3. आदम की ना-फ़रमानी की सज़ा उसे मिल गई कि वो असली हालत पर ना रहा ।
  4. आदम व हव्वा को जो ना-फ़रमानी की सज़ा मिली । इस में उनकी ज़ुर्रियत भी शामिल है ।

पस ख़्वाजा साहिब ने आदम अव्वल के गुनाहों में गिरने और उसकी वजह से औलाद-ए-आदम पर सज़ा का हुक्म होने को तस्लीम करके मसीही सदाक़त की बय्यन व अज़हर-मिनश-शम्स फ़त्ह का इज़्हार किया । ख़ुदा करे कि उनकी आँखें खुल जाएं और मौरूसी गुनाह के लिए जो कफ़्फ़ारा ख़ुदा ने अज़ल से मुक़र्रर किया है । उस पर ईमान ले आएं । अब इससे बढ़कर और कौनसा निशान-ए-ईलाही चाहिए । अब बताएं कि निशाँ को देख कर इन्कार कब तक पेश जाएगा (नूर अफ़्शां 5:24 30-23)

नस्ल इंसानी का हबूत

(1) क्या इंसान गुनेहगार पैदा होता है या बेगुनाह इस्लाम

और दीगर मज़ाहिब

( अज़क़लम हज़रत अमीर मौलाना मौलवी मुहम्मद अली साहिब एम - ए )

فِطْرَةَ اللَّهِ الَّتِي فَطَرَ النَّاسَ عَلَيْهَا لَا تَبْدِيلَ لِخَلْقِ اللَّهِ ذَلِكَ الدِّينُ الْقَيِّمُ وَلَكِنَّ أَكْثَرَ النَّاسِ لَا يَعْلَمُونَ

तर्जुमा : अल्लाह की बनाई हुई फ़ित्रत पर क़ायम रहो जिस पर इस ने लोगों को असल हालत में पैदा किया है । अल्लाह की पैदा की हुई हालत को कोई बदल नहीं सकता ये मज़बूत दीन है लेकिन अक्सर लोग नहीं जानते ।

इस्लाम के अज़ीमुश्शान पैग़ामों में से एक पैग़ाम इन्सान की पैदाइशी मासूमियत को क़ायम करना था । मगर जब वो पैग़ाम सुनाया जो आयत मुंदरजा उन्वान में सफ़ाई से मौजूद है । कि ख़ुदा ने तमाम इन्सान को एक सहीह हालत पर पैदा किया है । और इस पर मज़बूती से क़ायम रहना चाहिए तो उसके आख़िर पर ये लफ़्ज़ भी बढ़ाए । कि अक्सर लोग इस उसूल को नहीं जानते जिस क़दर अज़ीमुश्शान हक़ीक़त का इज़्हार पहले हिस्सा आयत में किया है । जिसकी तफ़्सीर में हज़रत नबी करीम ने फ़रमाया कि फ़ित्रत इस्लाम है । फिर फ़रमाया कि हर एक इन्सान का बच्चा इसी फ़ित्रत की हालत पर यानी इस्लाम पर पैदा होता है । उसके माँ बाप उसे यहूदी या ईसाई या मजूसी बनाते हैं इसी क़दर बड़ी हक़ीक़त का इज़्हार आख़िरी अल्फ़ाज़ में फ़रमाया कि दुनिया के अक्सर लोग इस बात से बे-ख़बर हैं यानी वो इन्सान की पैदाइशी मासूमियत को नहीं जानते ।

उसूल मज़ाहिब आलम पर आज हम ग़ौर करते हैं तो अल्फ़ाज़-ए-क़ुरआनी की अज़मत के सामने सर झुक जाता है । अरब के उम्मी को कौन बता सकता था कि दुनिया के बड़े बड़े मज़ाहिब इस बारे में ग़लती पर हैं । हाँ ये उस ख़ुदा के लफ़्ज़ थे । जो ज़ाहिर व ग़ायब को जानता है । इस्लाम को छोड़कर तनासुख़ और कफ़्फ़ारा को मानने वाले मज़ाहिब आलम में अक्सरीयत का हुक्म रखते हैं । और यह दोनों मानते हैं कि इन्सान गुनाहगार पैदा होता है । बुध मज़्हब और हिंदू मज़्हब के नज़्दीक पैदा होना ही गुनहगारी की वजह से है । ईसाई मज़्हब ने आदम को गुनाहगार ठहरा कर इस गुनाह को बतौर विरसा सारी इन्सानी नस्ल में दाख़िल कर दिया । और यूं तीनों मज़्हब जो दुनिया की दो तिहाई आबादी के मज़्हब में इन्सान को पैदाइश से गुनाहगार ठहराते हैं । इसके ख़िलाफ़ इस्लाम का पैग़ाम ये है कि हर इन्सान का बच्चा सहीह इस्लामी हालत पर जो बेगुनाही की हालत है पैदा होता है । وَلٰكِنَّ اَكْثَرَ النَّاسِ لَا يَعْلَمُوْنَ ईसाईयत ने इस उसूल को कि इन्सान का हर बच्चा गुनाहगार वारिस-ए-जहन्नम पैदा होता है अपने उसूल में दाख़िल कर लिया । हज़रत ईसा को इब्न-अल्लाह ठहराया । इसकी सलीब की मौत और मलऊन होने को असास दीन ठहराया । ताकि वो इस फ़र्ज़ी पैदाइशी गुनाह का कफ़्फ़ारा हो जाए । हाँ और दूसरे गुनाहों का भी जवाब इस का नतीजा हैं । और अपने अक़ाइद की किताबों को ऐसे अल्फ़ाज़ से मुज़य्यन किया है कि हम पैदाइश से ग़ज़ब के फ़र्ज़ंद शैतान के ग़ुलाम और हर क़िस्म के दुनियावी व उख़रवी अज़ाब के मुस्तहिक़ हैं । ऐसे अल्फ़ाज़ पर एक इन्सान काँप उठता है । कि वो ख़ुदा जो रहम और मुहब्बत है । वो इन्सान को पैदाइशी ही में शैतान का ग़ुलाम और अज़ाब का मुस्तहिक़ और ग़ज़ब का फ़र्ज़ंद ठहराता है । कहाँ क़ुरआन की पाक तालीम कि सब इन्सानों को रहम के लिए पैदा किया । और कहाँ ईसाईयत का ये ख़तरनाक घिनौना अक़ीदा कि सब इन्सानों को ग़ज़ब के लिए पैदा किया । कहाँ इन्सान का वो मर्तबा जो क़ुरआन ने बताया कि फ़रिश्ते भी इसके फ़रमांबर्दार हैं । और कहाँ ये ख़तरनाक ज़िल्लील हालत कि वो शैतान का ग़ुलाम है ।

क्या इस्लाम के मुक़ाबले में ईसाईयत कभी ग़ालिब आ सकती है? इन्सान की फ़ितरत-ए-मौजूदा के होते हुए कभी नहीं । हाँ इन्सान की फ़ित्रत मस्ख़ हो जाएगी तो शायद उसका दिल और दिमाग़ कभी इस ख़्याल को भी क़बूल करले कि जो इन्सान का बच्चा पैदा होता है । वो ख़ुदा के ग़ज़ब के नीचे पैदा होता है । और शैतान का ग़ुलाम बन कर पैदा होता है । और जो बच्चा बग़ैर बपतिस्मा पाने के मरता है वो सीधा जहन्नम में जाता है । मगर क़ुरआन हमें तसल्ली देता है कि ये फ़ित्रत कभी मस्ख़ नहीं हो सकती । لَا تَبْدِيلَ لِخَلْقِ اللَّهِ इसलिए ज़ाहिर है कि इस मुक़ाबला में जो इस वक़्त मज़्हब के लिए दुनिया में हो रहा है । आख़िरी कामयाबी उस उसूल के लिए हो सकती है । जिसे फ़ित्रत क़बूल कर सकती है । जिसे अक़्ल-ए-इंसानी धक्का नहीं देती कि इन्सान अज़रूए पैदाइश मासूम है ।

जब ईसाई साहिबान से सवाल किया जाता है कि इन्सान को विरसा में गुनाह मिलने की तालीम उसकी फ़ित्रत के गुनाहगार होने की तालीम किस किताब में है? किस नबी ने दी है? तो हमें कोई हवाला ना तौरात का या पुराने अह्दनामा का दिया जाता है । ना इंजील का । हाँ पौलुस के ख़ुतूत का एक हवाला दिया जाता है । हालाँकि बात तो साफ़ है । कि अगर आदम का गुनाह नस्ल इन्सानी में सरायत कर गया था । और सब इन्सान गुनाहगार पैदा हुए थे । तो जहां बाइबल में आदम का ज़िक्र है । यानी किताब पैदाइश के शुरू में । वहीं ये ज़िक्र होना चाहिए था कि आदम गुनाहगार हुआ और उसके साथ ही हर इन्सान का बच्चा जो पैदा होता है । वो भी गुनाहगार होगा । अगर वहां चूक हो गई थी तो हज़रत मूसा बनी-इस्राईल के अज़ीमुश्शान शारेअ इस उसूल को ज़िंदा करते और बता देते कि हर एक इन्सान का बच्चा गुनाहगार पैदा होता है । और कफ़्फ़ारा पर ईमान लाने से पहले मर जाये तो सीधा जहन्नम में जाता है । मगर वहां भी इस तालीम का नामोनिशान तक नहीं बिल-आख़िर हमारी नज़रें हज़रत ईसा अलैहिस्सलाम की तरफ़ उठती हैं कि अगर उनके ज़माने तक ये उसूल बाइबल क़ायम ना कर सकती थी तो अब जो "इब्नुल्लाह” ख़ुद उसी मौरूसी गुनाह का ईलाज करने के लिए आए थे तो उन्होंने ज़रूर इस बात को साफ़ क्या होगा लेकिन चारों इंजीलों में हज़रत मसीह की ज़बान से एक हर्फ़ तक नहीं निकलता कि मौरूसी गुनाह भी दुनिया में कोई बला है । और आदम के गुनाह से सारी नस्ल इन्सानी गुनाहगार हो चुकी ।

अक़्ली रंग में देखा जाये तो ये बात ऐसी बेहूदा नज़र आती है । कि एक लम्हे के लिए किसी सहीह अक़्ल-ए-इंसानी में नहीं आ सकती । क्या आदम बेगुनाह पैदा हुआ था या गुनाहगार? अगर बेगुनाह पैदा हुआ था तो जो क़ानून इस पर हावी है । वही उसकी नस्ल पर हावी होना चाहिए । यानी हर एक इब्न-ए-आदम भी आदम की तरह बेगुनाह पैदा हो । बाद में शैतान के बहकाने से वो गुनाह करे या ना करे ये अम्र दीगर है । और अगर आदम को ख़ुदा ने गुनाहगार पैदा किया था । तो फिर ये शैतान के बहकाने का क़िस्सा फ़ुज़ूल है । जब ख़ुदा ने शुरू ही से इन्सान को गुनाहगार पैदा किया था । तो फिर आज़माईश कैसी? फिर इस से तवक़्क़ो रखना ही ग़लत था । कि वो शैतान के बहकाने में ना आए । वो अपनी फ़ित्रत के तक़ाज़े के मुताबिक़ गुनाह करेगा । और अगर आज भी नस्ल इन्सानी सब गुनाहगार पैदा होती है । तो इससे बेगुनाह रहने का मुतालिबा ग़लत है । देखने का मुतालिबा इससे किया जा सकता है जो माँ के पेट से आँखें ले कर आता है जो अंधा पैदा होता है इस से देखने का मुतालिबा कोई अहमक़ ही करेगा । पस जो पैदाइश से गुनाहगार है..............ये ख़ाली जगह मुताबिक़ असल है इस से बेगुनाह रहने का मुतालिबा खिलाफ-ए-क़ानून-ए-क़ुदरत है ।

ईसाई साहिबान को जब लोगों के बनाए हुए उसूल की कोई शहादत अपनी मुक़द्दस किताब में नहीं मिलती तो क़ुरआन शरीफ़ की तरफ़ दौड़ते हैं । और चूँकि मज़हबी उमूर में ग़ौरो-फ़िक्र की आदत नहीं । इसलिए एक बात को ले दौड़ते हैं । कि देखो क़ुरआन शरीफ़ इस बात को मानता है । हालाँकि सवाल तो ये था कि तुम अपने अम्बिया की तालीम में दिखाओ कि किसी नबी ने ये तालीम दी हो कि इन्सान मौरूसी गुनाहगार है और आदम का गुनाह सारी नस्ल इन्सानी में सरायत कर गया । मगर असल मुतालिबा से आजिज़ आकर तिनकों का सहारा तलाश करते हैं कहीं क़ुरआन शरीफ़ में हबूत नस्ल इन्सानी का ज़िक्र देख लिया । बस फ़ौरन ले भागे कि देखो क़ुरआन शरीफ़ ने बाइबल मुक़द्दस की भी इस्लाह की है । और आदम का गुनाह माना । चह जायकि इस गुनाह के नस्ल इन्सानी में सरायत कर जाने को मानता ।

(2) हालत हबूत और बेगुनाह पैदा होना

يٰبَنِيْٓ اٰدَمَ لَا يَفْتِنَنَّكُمُ الشَّيْطٰنُ كَـمَآ اَخْرَجَ اَبَوَيْكُمْ مِّنَ الْجَنَّۃِ

ऐ आदम के फ़र्ज़ंद तुम्हें शैतान दुख में ना डाले जिस तरह तुम्हारे माँ बाप को जन्नत से निकलवा दिया ।

बरुए क़ुरआन-ए-करीम हज़रत आदम बेगुनाह पैदा हुए । जिस तरह हर इन्सान का बच्चा बेगुनाह पैदा होता है । शैतान ने उन्हें वरग़लाया और उनसे अल्लाह तआला के हुक्म की ना-फ़रमानी सरज़द हुई गो उन्होंने गुनाह नहीं किया । क्योंकि गुनाह के लिए इरादा ज़रूरी है । और क़ुरआन-ए-करीम हज़रत आदम के मुताल्लिक़ साफ़ अल्फ़ाज़ में शहादत देता है । फ-नसिया (فَنَسِيَ) वो भूल गए وَلَمْ نَجِدْ لَهُ عَزْمًا (ताहा 115) हमने इस में इरादा नहीं पाया । फिर एक जगह उनकी ना-फ़रमानी को ज़िल्लत से ताबीर किया है । और ज़िल्लत वो है जो बग़ैर क़सद और इरादे के सरज़द हो जाए فَأَزَلَّهُمَا الشَّيْطَانُ  (सुरह बक़रा आयत 36)

हाँ निस्यान (نسیان ) से भी ना-फ़रमानी हो जाए तो बाअज़ हालात में इस की सज़ा भुगतनी पड़ती है । हज़रत आदम के लिए वो सज़ा क्या थी । فَأَخْرَجَهُمَا مِمَّا كَانَا فِيهِ जिस जन्नत में आदम व हव्वा थे । इससे उनको निकलवा दिया (अल-बक़रा 25-36) बल्कि पहले से अल्लाह तआला ने आदम को तंबीह कर दिया था । إِنَّ هَذَا عَدُوٌّ لَّكَ وَلِزَوْجِكَ فَلَا يُخْرِجَنَّكُمَا مِنَ الْجَنَّةِ (ताहा 20:117) ये तेरा और तेरे साथी का दुश्मन है । सो तुम दोनों को जन्नत से ना निकलवा दे फिर सारे इन्सानों को ख़िताब करके बताया । لاَ يَفْتِنَنَّكُمُ الشَّيْطَانُ كَمَا أَخْرَجَ أَبَوَيْكُم مِّنَ الْجَنَّةِ (अल-आराफ़ 7:27) तुम्हें शैतान दुख में ना डाल दे । जिस तरह तुम्हारे माँ बाप को जन्नत से निकलवा दिया । पस हज़रत आदम की लग़्ज़िश की सज़ा सिर्फ एक ही थी यानी जन्नत से निकाला जाना । अलबत्ता उसको सवालात का ज़ाहिर होना भी कह दिया है । यानी उन के ऐब उन पर ज़ाहिर हो गए (अल-आरफ 22) और एक जगह ग़वायत (غوایت) यानी नाकामी से भी ताबीर किया है وَعَصَى آدَمُ رَبَّهُ فَغَوَى (ताहा 20:121)

अब दोही सूरतें हो सकती थीं । एक ये कि आदम गुनाहगार पैदा होता तो उसकी नस्ल भी गुनाहगार पैदा होती मगर यह नहीं हुआ । आदम और उसके फ़र्ज़ंद सब बेगुनाह पैदा होते हैं । दूसरी सूरत ये हो सकती थी कि आदम से गुनाह सरज़द होता और उसके किसी नतीजे में नस्ल इन्सानी को भी शरीक होना पड़ता । गो उसका ये नतीजा क़तअन ग़लत है कि इस सूरत में नस्ल इन्सानी को भी गुनाहगार समझ लिया जाये । लेकिन क़ुरआन शरीफ़ ने अव़्वल तो आदम से गुनाह का सरज़द होना तस्लीम नहीं किया । उसे लग़्ज़िश या ज़िल्लत कहा है । निस्यान (نسیان) का नतीजा बताया है । फिर जो कुछ इस लग़्ज़िश का नतीजा था इसमें नस्ल इन्सानी को क़तअन शरीक नहीं किया । और यह वो हक़ीक़त क़ुरआनी है जिससे ईसाई साहिबान ने बेख़बर होने की वजह से ये ख़्याल कर लिया है कि क़ुरआन आदम की ज़िल्लत के नताइज में नस्ल इन्सानी को शरीक ठहराता है ।

आदम के इस्यान (عصيان) का नतीजा जैसा कि मैं अभी क़ुरआन शरीफ़ से बता चुका हूँ सिर्फ एक ही है यानी जन्नत से निकल जाना । इस में नस्ल की शिरकत का ज़िक्र क़ुरआन शरीफ़ में कहीं नहीं । अलबत्ता सारी नस्ल इन्सानी के लिए क़ुरआन शरीफ़ ने हालत हबूत (هبوط) को ज़रूर बयान किया है मगर इन दोनों में बहुत फ़र्क है और क़ुरान शरीफ ने खुद हबूत (هبوط) इख़राज-अज़्जनत को अलग अलग उमूर के तौर पर बयान किया है चुनांचे पहले सुरह अल-बक़रा में فَأَخْرَجَهُمَا مِمَّا كَانَا فِيهِ के बाद बढ़ाया है । وَقُلْنَا اھْبِطُوْا بَعْضُكُمْ لِبَعْضٍ عَدُوٌّ अगर ये दोनों एक ही होते तो इख़राज-अज़्जनत को बयान करने के बाद हबूत (هبوط) का ज़िक्र तहसील हासिल था । मगर इससे आगे चल कर और भी साफ़ कर दिया है । فَتَلَـقّٰٓي اٰدَمُ مِنْ رَّبِّہٖ كَلِمٰتٍ فَتَابَ عَلَيْہِۭ आदम ने अपने रब से कलिमात सीखे और अल्लाह ने इस पर रुजू बरहमत किया । और इसके बाद फिर फ़रमाया قُلْنَا اھْبِطُوْا مِنْہَا جَمِيْعًا यानी हबूत का हुक्म फिर भी सब पर वारिद किया है । आदम पर रुजू बरहमत के बाद नस्ल इन्सानी के हबूत का ज़िक्र साफ़ बताता है । कि हबूत क़तअन सज़ा के रंग में नहीं ना ये आदम के इस्यान का नतीजा है । बल्कि ये कोई और कैफ़ीयत है । ऐसा ही सुरह आराफ़ में हज़रत आदम की तौबा के बाद हबूत का ज़िक्र है । और सुरह ताहा में इसको निहायत ही साफ़ किया है آدَمُ رَبَّهُ فَغَوَىثُمَّ اجْتَبَاهُ رَبُّهُ فَتَابَ عَلَيْهِ وَهَدَى फ़रमा कर उसके बाद हबूत (هبوط) का ज़िक्र किया है । यानी पहले इस्यान (عصيان) है फिर उसकी सज़ा फिर सज़ा के बाद आदम की बर्गुज़ीदगी और उस रुजू बरहमत फ़रमाना और उसे सीधे रास्ते पर चलाना और सब के बाद फिर नस्ल इन्सानी के हबूत (هبوط) का हुक्म है । قَالَ اہْبِطَا مِنْہَا جَمِيْعًۢا  पस ये यक़ीनी और क़तई अम्र है । कि हालत-ए-हबूत आदम के इस्यान (عصيان) की सज़ा नहीं । इस्यान की हालत एक आरिज़ी हालत थी । इस पर सज़ा वारिद हुई और इस के बाद माफ़ी भी दे दी गई । रुजू बरहमत भी हो गया । तब नस्ल इन्सानी के हबूत (هبوط) का हुक्म सुनाया जाता है ।

हज़रत आदम की सज़ा तो सिर्फ इख़राज अज-जन्नत है । और ना सिर्फ क़ुरआन-ए-करीम नस्ल-ए-इन्सानी की शिरकत का इसमें ज़िक्र नहीं करता । बल्कि उसकी नस सरीह से साबित है कि नस्ल इन्सानी इस जन्नत से जिसमें उसे पैदाइश के वक़्त रखा जाता है नहीं निकली । जैसा कि आयत मुंदरजा उन्वान से साबित है । ऐ आदम के फ़र्ज़ंद तुम्हें शैतान दुख में ना डाले । जिस तरह तुम्हारे माँ बाप को जन्नत से निकलवा दिया । यानी तुम्हारे माँ बाप जन्नत से निकल कर दुख में पड़े । ऐसा ना हो कि तुम भी शैतान के बहकाने से जन्नत से निकल कर दुख में पड़ो । अब अगर नस्ल इन्सानी जन्नत से निकल चुकी हुई थी । तो ये इर्शाद बेमाअनी ठहरता है । ये आयत फ़ैसला कुन है । कि नस्ल इन्सानी जन्नत से नहीं निकली । गो नस्ल इन्सानी पर हुक्म हबूत (هبوط) वारिद है ।

इन खुले नताइज के बाद इस अम्र के समझने में कुछ दुशवारी बाक़ी नहीं रहती कि हालत-ए-हबूत (هبوط) को गुनहगारी से कोई ताल्लुक़ नहीं क़ुरआन-ए-करीम की नस सरीह पहले हिस्से मज़्मून में नक़्ल हो चुकी है । कि हर इन्सान का बच्चा बेगुनाह पैदा होता है । बल्कि आदम के इस्यान (عصيان) के नतीजे से भी उसे कोई ताल्लुक़ नहीं । ये दोनों बातें बय्यन तौर पर साबित हो चुकी हैं । फिर ये हालत हबूत (هبوط) क्या है । इसके लिए आदम के सारे क़िस्से पर ग़ौर करना चाहिए । आदम बेगुनाह पैदा होता है । इसलिए फ़ित्रतन वो बेगुनाह है । लेकिन इस के बाद शैतान से इसको मुक़ाबला पेश आता है । ये शैतान से मुआमला इन्सान की तरक़्क़ी के लिए ज़रूरी है । अगर ज़रूरी ना होता तो आदम के क़िस्सा में इस ज़िक्र को ना लाया जाता । और वैसे भी ये अम्र ज़ाहिर है । इसलिए कि शैतान सिफली ख़्वाहिशात का मज़हर है । और इन्सान की इस ज़मीन पर ज़िंदगी के लिए अदना ख़्वाहिशात का जो उसके जिस्म से ताल्लुक़ रखती हैं । इस के अंदर होना ज़रूरी है । हाँ तरक़्क़ी के ज़ीना पर उसका क़दम इस हद तक पड़ता है जिस हद तक वो इन सिफ्ली ख़्वाहिशात पर ग़ालिब आ जाता है । बालअल्फ़ाज़-ए-दीगर शैतान के साथ उसका मुक़ाबला इस ज़मीनी ज़िंदगी में ज़रूरी है । अगर वह इस मुक़ाबले में गिर जाता है या फिसल जाता है तो ये उसकी नाकामी है । अगर वह मुक़ाबले में ग़ालिब आ जाता है तो ये इसका कदम तरक़्क़ी की तरफ़ है । अब दो सूरतों थीं एक ये कि इस मुक़ाबला में शैतान कभी भी ग़ालिब ना आता । और दूसरी ये कि कभी वो ग़ालिब भी आ जाता । तीसरी सूरत कि वो हमेशा ग़ालिब आता । क़तअन नामुमकिन है । आदम के क़िस्से में ये बताया गया है कि इस मुक़ाबला में शैतान कभी ग़ालिब भी आ जाता है । गोया दूसरी सूरत क़ायम हुई । फ़ित्रतन इन्सान बेगुनाह तो पैदा हुआ । मगर फ़ित्रतन इसमें ये कमज़ोरी ज़रूर है कि वो शैतान के मुक़ाबले में कभी मग़्लूब भी हो जाए । और यह उसकी तरक़्क़ी का सारा राज़ है अगर फ़ित्रतन वो ऐसा बनाया जाता कि ख़ुदा के क़ानून को कभी तोड़ ही ना सकता तो उसकी हालत वही होती जो सूरज चांद सितारों वग़ैरा की है कि वो अपने मुक़र्रर कर्दा क़ानून से एक बाल के बराबर इधर उधर नहीं हो सकते मगर फिर इन्सान को इन चीज़ों पर कोई फ़ौक़ियत भी ना होती और वह भी इन चीज़ों की मिसल होता इन्सान की तरक़्क़ी के लिए ये ज़रूरी हुआ कि उसे एक मुक़ाबले की हालत में रखा जाये । और चूँकि मुक़ाबले में ख़तरा लामुहाला मौजूद है । इसलिए उसे हालत हबूत  (هبوط) क़रार दिया है । और यही वजह है कि नस्ल इन्सानी के हबूत का ज़िक्र-ए-आदम के फिसल जाने के बाद आता है । गोया उस ख़तरे से उसे वाक़ई तौर पर मुतनब्बा कर दिया है मगर ख़तरा होने के ये मअनी नहीं कि वाक़ई इन्सान फिसल भी गया । हर इन्सान जो पैदा होगा इस ख़तरे में होगा कि शैतान के मुक़ाबला में फिसल जाये मगर इसके ये मअनी नहीं कि हर इन्सान जो पैदा होगा वो फिसल भी चुका है या ज़रूर फिसल जाएगा । नस्ल इन्सानी के लिए हिदायत के लाने वाले और इस हिदायत की पैरवी करने वाले इस ख़तरे से निकल जाते हैं । मगर मुक़ाबले के बाद فَمَنْ تَبِــعَ ھُدَاىَ فَلَا خَوْفٌ عَلَيْہِمْ وَلَا ھُمْ يَحْزَنُوْنَ ये आदम के क़िस्से के आख़िर पर है । यानी जो शख़्स मेरी हिदायत की पैरवी करेगा । उन पर कोई ख़ौफ़ नहीं । और ना वो ग़मगीन होंगे । ख़ौफ़ तो ये नहीं कि अब शैतान उन को फुसला सके । और इज़्न इसलिए नहीं कि उन्होंने अपने वक़्त को ज़ाए नहीं किया । बल्कि शैतान पर फ़त्ह पा लेने के बाद उसे अच्छे कामों पर लगाया ।

पस शैतान से मुक़ाबले की हालत हालत-ए-हबूत (هبوط) है और इस हालत से सारी नस्ल इन्सानी गुज़रती है । इसी पर इसकी सारी तरक़्क़ियों का दार-ओ-मदार है । बअल्फ़ाज़े दीगर यूं कहना चाहिए कि अल्लाह तआला ने नस्ल इन्सानी को बता दिया कि तुम सबको शैतान का मुक़ाबला करना होगा । और मुक़ाबला करके उसे अपना फ़रमांबर्दार बनाना होगा । इस मुक़ाबला के बाद जिस जन्नत में दाख़िल होना है वही असली जन्नत है जो इन्सान की ज़िंदगी की ग़रज़ व ग़ायत है । इसकी पहली जन्नत हालत-ए-बेगुनाही पर पैदा होना है । मगर इस बेगुनाही पर क़ायम रहने के लिए मुक़ाबला ज़रूरी है तब इस बेगुनाही की जन्नत में इन्सान तरक़्क़ी कर सकता है । अगर इन्सान पैदाइश से गुनाहगार होता । तो बेगुनाही पर इसका क़ायम होना नामुमकिन था । क्योंकि जो फ़ित्रतन गुनाहगार है । वो अपनी फ़ित्रत के ख़िलाफ़ किस तरह चले । और अगर इन्सान पैदाइश में तो बेगुनाह होता । लेकिन इसके लिए कोई मुक़ाबला और कोई ख़तरात ना होते तो जिस तरह दुनिया की और चीज़ें फ़ित्रतन क़ानून की फ़रमांबर्दार हैं वो भी फ़रमांबर्दार तो रहता । यानी इस फ़ित्री बेगुनाही पर क़ायम रहता लेकिन उसे इन इश्याय पर कोई फ़ौक़ियत हासिल ना होती ना उसके लिए तरक़्क़ी का मैदान होता । इसलिए इन्सान के लिए हालत-ए-हबूत ज़रूरी हुई कि वो बाद मुक़ाबला फ़ित्री बेगुनाही की हालत पर क़ायम हो कर तरक़्क़ी कर सके ।

ये वो साफ़ और अमली उसूल है । जिसे क़ुरआन शरीफ़ ने बयान किया है । अगर ईसाई साहिबान ज़रा ग़ौर से काम लें तो वो इससे फ़ायदा उठा सकते हैं । लेकिन मज़्हब के दायरे में अक़्ल को बेदख़ल कर देने वाली क़ौम इस से फ़ायदा नहीं उठा सकती ।

इस जगह ये भी याद रखना चाहिए कि ये एक आम ग़लतफ़हमी है जो बाअज़ लोगों के दिलों में है । कि आदम पहले कहीं आस्मान पर थे और वहां से गिरकर ज़मीन पर आए और साथ ही नस्ल इन्सानी भी ज़मीन पर आ गई और यूं गोया आदम के इस्यान (عصيان) के नतीजे में इन की औलाद भी शरीक हो गई । क़ुरआन शरीफ़ में जहां आदम के ख़ल्क़ का ज़िक्र है । वहां साफ़ लफ़्ज़ हैं । اِنِّىْ جَاعِلٌ فِى الْاَرْضِ خَلِيْفَۃً मैं ज़मीन पर ख़लीफ़ा बनाने वाला हूँ लामुहाला वो जन्नत भी इसी ज़मीन पर है । और गो यह मज़्मून अलैहदह तफ़्सील चाहता है । लेकिन इस क़दर यहां बता देना ज़रूरी है कि हालत बेगुनाही पर पैदा होना ही वो जन्नत है । और यह जन्नत ऐसी है कि इससे निकलने का ख़तरा भी लगा हुआ है लेकिन इस जन्नत से तरक़्क़ी करके इन्सान दूसरी जन्नत को हासिल करता है तो इस से फिर कभी नहीं निकलता ।

(पैग़ाम सुलह मत्बूआ 7/30/24 8/3/24)

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تعلیم محمد میں گناہ کرنے کی ترغیب


Encouragement to Sin

is in the

Teachings of Mohammed

Published in Nur-i-Afshan July 16, 1897


محمدیان جو بدی کی طرف بڑی رغبت سے دوڑتے ہیں اُسکا خاص سبب یہ ہے کہ محمد نے یہ سکھایا ہے کہ اگر تم لوگ گناہ نہ کرو تو میں حلفاً کہتا ہوں ہوں کہ اللہ تم سے واسطہ چھوڑ دیگا اور ایک ایسی قوم پیدا کر یگا جو گناہ کرے اور مغفرت چاہے اور خدا اُنہیں بخشے۔

مشکوۃ شریف ۔ جلد دوم ۔ استغفار وتوبہ کا بیان ۔ حدیث ۸۶۱

توبہ اور رحمت الٰہی کی وسعت

راوی:

وعن أبي هريرة قال : قال رسول الله صلى الله عليه و سلم : " والذي نفسي بيده لو لم تذنبوا لذهب الله بكم ولجاء بقوم يذنبون فيستغفرون الله فيغفر لهم " . رواه مسلم

حضرت ابوہریرہ رضی اللہ تعالیٰ عنہ کہتے ہیں کہ رسول کریم صلی اللہ علیہ وآلہ وسلم نے فرمایا قسم ہے اس ذات کی جس کے قبضہ وقدرت میں میری جان ہے اگر تم لوگ گناہ نہ کرو تو اللہ تعالیٰ تمہیں اٹھا لے اور تمہاری جگہ ایسے لوگ پیدا کر دے جو گناہ کریں اور اللہ سے بخشش ومغفرت چاہیں اور پھر اللہ تعالیٰ انہیں بخشے۔ (مسلم)

اور پھر یہ بھی بتا دیا ہے کہ ان تجتبننوا کبآئر ما تنھون عنه زعفر منکم حیاتکم اگر تم لوگ صرف منع کی ہوئی باتوں میں بڑی ہی باتوں سے بچو تو خدا کہتا ہے کہ ہم تمہارے تمام گناہوں کا کفارہ کر دیں گے۔ ( ج ۵۔ النساء ر۔ ع ۵) ۔ ایسی حالت میں گناہ کرنے کی بڑی دلیری محمدیوں کو ہوتی ہے۔ اور اللہ قد‍ّوس سے جو گناہوں سے نفرت کرتا ہے ملنے کی کوئی امید اُن کے لئے نہیں کی جا سکتی ہے۔ اور شیطان رحیم سے جو گنہگاروں سے واسطہ رکھتاہے ملے رہنے سے اُنکے لئے ہلاکت ابدیہ میں گرفتار ہونیکا پورا سامان مہیا نظر آتا ہے۔ ایسا شخص جو بدی کیطرف لوگونکو بلاتا ہے کیونکر من اللہ سمجھا جا سکتا ہے بلکہ نیک ہر گز نہیں کہا جا سکتا۔ دیکھو خداوند مسیح نے کس قدر گناہ سے دور رہنے کی تعلیم دی ہے کہ جسنے دل مین گناہ کا خیال کیا بس وہ اُسکا مجرم ہو گیا اِس مکتب میں سبق لینے والے معاصی صغیرہ و کبیرہ سب سے کالے کو سوں بھاگتے ہین اور مکتب محمد میں پڑھنے والے گناہ کے کیڑے بن جاتے ہیں۔ سچ ہے کہ چہ نسبت خاک رابا عالِم پاک۔ کہاں تعلیم قدوسی اور کہاں سبق ناپاک ۔ بہتر ہے کہ محمدیاں جلد خواب غفلت سے چونکیں اور غضب الہی سے جو گنہگارونپر بھڑکتا ایا ہے جلد ہو شیار ہو جاویں۔ شیطان کی اتباع کو ترک کر کے اللہ قدوس کے سایہ رحمت میں آکر رافتِ تامہ حاصل کریں۔ اپنی عمر عزیز کو کار ہائے خلالت میں نہ گنواویں۔ جان رکھیں کہ خداوند تعالیٰ ہمیشہ گناہ سے بھاگنے والوں ہی سے واسطہ رکھتا ہے نہ کہ گناہ کرنیوالوں سے اور جیسا محمد نے وسوسہ گناہ کرنیکی دلیر یکا دلوں میں ڈالا ہے وہ بالکل باطل ہے۔ دنیا اور آسمان میں کوئی دروازہ نجات کے گھر میں داخل ہونیکا نہیں ہے مگر خداوند مسیح۔ جو اس دروازے سے اندر آیا وہ نجات پاکر قدوسیونکی چال چلا ورنہ ہمیشہ کے لئے مردو دفی النار ہوا۔ کیسی ہیبت ناک تعلیم محمد نے دی کہ گناہ کرنے ہی سے واسطہ خدا کے ساتھ ہے اور خداوند مسیح کی مقدّس تعلیم دیکھنے کے لئے انجیل کی یہ آئیتں دیکھو اور غور کرو، جسطرح تمہارا بلانیوالا پاک ہے تم بھی اپنی سب چال میں پاک بنو کیونکہ لکھا ہے کہ ہے کہ تم پاک بنو کہ میں پاک ہوں۔ ( ۱ پطرس ۱: ۱۵، ۱۶) غور کرو کہ مسیح خداوند پاک بننے کو کہتا ہے اور محمد ناپاک بننے کی ہدایت کرتا۔ اور دیکھو رومیوں ۱۲: ۲ میں ہے کہ اِس جہان کے ہم مشکل مت بنو بلکہ اپنے دل کے نئے ہونے سے اپنی شکل بدل ڈالو تاکہ تم خدا کے اُس ارادہ کو جو خوب و پسندیدہ و کامل ہے بخوبی جانو، اور پڑھو متی ۵: ۸ ۔ مبارک وہ ہیں جو پاک دل ہیں کیونکہ وہ لوگ خدا کو دیکھیں گے۔ اور دیکھو ۱ تسلونیقیوں ۴: ۷ خدا نے ہمکو ناپاکی کے لئے نہیں بلکہ پاکیزگی کے لئے بلایا ہے۔ اور عبرانیوں ۱۲: ۱۴ ۔ پاکیزگی کی پیروی کرو جسکے بغیر خداوند کو کوئی نہ دیکھے گا۔ اِن سب آیتوں سے صریحاً ظاہر ہے کہ گناہ نہ کرنے اور پاک بننے میں خدا کی خوشنودی ہے اور تعلیم سے یہ چابت ہے کہ گناہ کرنے اور ناپاک بننے میں خدا کی خوشنودی ہے۔ افسوس شائد شیطان کو جسکی خوشنودی ناپاکی و گناہ میں ہے خدا بنا رکھا ہے + بس کیا خوب ہے وہ انسان جو ایسے کی پیروی کرتا ہے کہ ہمیں سکھلاتا ہے کہ ہم بیدینی اور دنیا کی برُی خواہشوں سے انکار کر کے اِس جہان میں ہوشیاری و راستی و دینداری سے زندگی گزرانیں یعنے اُسکی جسنے اپ کو ہمارے بدلے دیا تاکہ وہ ہمیں سب طرحکی بدکار یونسے چُھڑاوے اور ایک خاص اُمت کو جو نیکوکاری میں سر گرم ہوویں اپنے لئے پاک کرے ۔

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جھوٹی کتابیں اور قرآن

متعلق خداوند یسوع مسیح

False Books and the Qur’an

جس طرح ہم ثابت کر چکے کہ محمد نے یہودی حدیثوں کو بہت کچھ نقل کیا اسی طرح ہم ناظیرین نور افشاں کے فائدہ کے واسطے قلم اُٹھاتے ہیں تاکہ بتلایں کہ محمد نے انجیل مقدس کو چھوڑ کر جھوٹی کتابوں کو کہاں تک نقل کیا۔ صاف ظاہر ہے کہ جب کس نے ان باتوں کا زکر کیا جو انجیل کے زمانہ میں واقعہ ہوئیں تو اکثر انجیل سے بیانات کو اخز کیا لیکن ساتھ ہی یہ بھی معلوم ہوتا ہے کہ بہت سی باتیں ملالیں کیونکہ قرآن اور انجیل میں بہت فرق نظر آتا ہے۔ اس فرق کا ایک سبب یہ بھی کہ وہ خود اَن پڑہ تھا۔ اور انجیل کی باتوں کو زبان سنُا تھا۔ یقین ہے کہ اس کے پاس انجیل نہ تھی اگر ہوتی تو وہ اتنا فرق نہ کرتا۔ اُس نے بار بار لکھا کہ انجیل کو ماننا چاہئے اور محمد لوگ تک انجیل کا ماننا فرض سمجھتے ہیں مگر ساتھ ہی ایسی ایسی باتیں کہیں جو انجیل کے محض برخلاف ہیں مثلاً اُس نے کفارہ کی تعلیم کو رد کیا حالانکہ اِنجیل کی خاص تعلیم یہی ہے۔ یہاں تک اگر اس تعلیم کو علیحدہ کر دیا جاوے تو انجیل کی جان جری رہتی ہے، ممکن ہے اگر آدمی کے ہاتھ پاؤں کاٹے جاویں تو زندہ رہ سکے لیکن اگر اُس کی جان نکال لی جاوے تو زندگی ناممکن ہے۔ اگر صرف چھوٹی باتوں یعنی بیرونی عضو ونمیں اختلاف ہوتا تو بفرض محال محمدیوں کے خیال کے موافق انجیل کی تحریف ہو سکتی لیکن جس حالت میں کہ قرآن انجیل کی جان کو رد کرتا ہے تو اُن کا دعویٰ کسی حالت میں بھی قابًل اعتبار نہیں ہو سکتا کیونکہ اُن کے پاس زرا بھی ثبوت نہیں ہے اور مسیحیوں میں اتنا زور کہاں تھا کہ اس مرُدہ نعش میں جسے محمدی اصلی انجیل ناحق تصور کرتے ہین کفارہ کی تعلیم بنا کر جان ڈالیں پس صاف ثابت ہے کہ محمد انجیل سے قطعی ناواقف تھا ورنہ وہ ایسی تعلیم نہ دیتا جو حقیقت میں اس کے لئے پھانسی کا حکم رکھتی تھی یعنی تعمیل اِنجیل اور تردید کفارہ کی تعلیم بالکل متضاد تعلیم تھی۔ خیر اب ہم وہ باتیں پیش کیا چاہتے ہیں جن کی اصلی اور کتابوں میں پائی جاتی ہے۔ ( ۱) سورہ مریم ۲۳ میں لکھا ہے کہ مریم کو انجیر کے درخت کے پاس درد زہ ہونے لگا۔ بیضاوی کہتا ہے وہ اس درخت کا سہارا لیتی تھی۔ یونانی قوم میں ایک دیوتا مسمّی اپالوؔ تھا۔ اس کی ماں کا نام لتوؔنا تھا۔ ہو مر شاعر کی کتاب میں لکھا ہوا ہے کہ اپاؔلو کے پیدا ہونے کے وقت جب درد زہ ہوا تو التوؔنا انجیر کے درخت کے پاس گئی اور سہارا لیا۔

( ۲ ) سورہ مریم ۲۸۔ ۳۴ میں پایا جاتا ہے کہ جب مریم کے رشتہ دار اس پر لعنت کرنے لگے کہ تو نے نادرست و بیجاکام کیا تو یسوع نے جھولے سے بولکر کہا کہ نہیں میں خدا کا بندہ ہوں وغیرہ وغیرہ۔ یہکہانی ایک چھوٹی انجیل مسمیّ یسوع کی طفولیت میں پائی جاتی ہے جس میں یہ لکھا ہوا ہے کہ یسوع جھولے میں پڑا ہوا بول اُٹھا اور مان سے کہنے لگا کہ فی الحقیقت میں یسوع خدا کا بیٹا ہوں یعنی وہ کلام جو تونے جنا جیسا کہ جبرائیل فرشتہ نے تجھکو بتلایا۔ میرے باپ نے دُنیا کے بچانے کے لئے مجھکو بھیجا۔ صاف ظاہر ہے کہ اگرچہ محمد نے یسوع کی باتیں کو بدل دیا۔ پھر جی جھولے میں بالنے کی کہانی اُسی سے نقل کے علاوہ اس کے ہومر شاعر کی کتاب میں اپاؔلو کی بابت لکھا ہے کہ ابھی ماں کے پیٹ میں تھا اور باتیں کیں۔ کون کہ سکتا ہے کہ کچھ اس کا بھی اثر نہ ہوا ہو۔

( ۳ )سورہ عمران ۴۸ میں لکھا ہے کہ مسیح نے مٹی سے چڑیا بنا کر اُن کو زندہ کیا اور وہ اُڑنے لگیں۔ یہ کہانی لفظ بلفظ کتاب مذکور یعنی مسیح کی طفولیت اور نیز ایک اور جھوٹی انجیل میں جسے تھوما کی انجیل کہتے ہیں پائی جاتی ہے۔ ہمکو پہلی کتاب دیکھنے کا اتفاق نہیں ہوا مگر دوسری کتاب ہماری نظر سے گزری ہے۔

(۴) سورة النسا ۱۵۶ میں لکھا ہے کہ یہودیوں نے یسوع کو صلیب نہیں دی لیکن ایک اور شخص کو۔ یہ بدعتی فرقہ مسیحیوں مسمی دو کتیا ؔ کا ایک عقیدہ تھا اور چند کتابوں میں درج ہے مثلاً کتاب مسمے رسولوں کا سفر میں۔س٫۱۸۹۰میں ایک اور جھوٹی کتاب کا نسخہ پایا گیا مسمی پطرس کی انجیل جس میں یہی بات پائی جاتی ہے۔

پس ظاہر ہے کہ انہیں کتابوں سے نقل ہوا ہے۔ ہم ایک اختلاف پر توجہ دلاتے ہیں کہ بیان مذکورہ بالاا سے نتیجہ نکلتا ہے کہ خدا نے زندہ مسیح کو اُٹھایا لیکن قرآن کی دوسری آیتوں سے معلوم ہوتا ہے کہ مسیح فوت ہوا مثلاً سورہ المریم ۳۴ میں لکھا ہے کہ عیسیٰ نے جھولے سے کہا کہ میں مرجاوں گا اور جس روز زندہ کیا جا‍‍‍ؤنگا سلامتی مچھر ہو گی دیکھو سورة النسا ۵۴۔

( ۵) سورة المائدہ ۱۱۶ سے معلوم ہوتا ہے کہ محمد کی سمجھ میں مسیحی لوگ مریم کی تثلیث کا ایک اقنوم سمجھتے تھے۔ اسی سے معلوم ہوتا ہے کہ انجیل سے کہا ں تک ناواقف تھاجس کا دعویٰ یہ ہے کہ باپ بیٹا اور روح القدس تثلیث کے تین اقنوم ہیں۔ ہم سے یہ بات پوشیدہ نہیں ہے کہ اُس نے یہ خیال کہانسے لیا۔ عرب میں مسیحیوں کا ایک فرقہ مسمی کلا روی انز تھا جو مریم کو ایک اقنوم سمجھتے تھے۔ اس میں کوئی شک نہیں کہ محمد نے انہیں سے یہ بات لیلی۔ آخر مین ہم ناظرین کو توجہ دلاتے ہیں کہ ہر چند قرآن سے خداوند یسوع مسیح کی الوہیت کے رد کرنے کی حتی الامکان کوشش کی گئی پھر نور تاریکی پر ظفر یاب ہوا۔ اور قرآن ہی سے خداوند کی اُلوہیت ثابت ہو جاتی ہے۔ ہم اُس کا مفصل حال بیان نہین کرتے لیکن اشارتاً یہ بتلاتے ہیں کہ روح اللہ اور قول الحق نیز اور ناموں سے جن سے خداوند یسوع مسیح نامزد کیا گیا ہے بخوبی ثابت بقیہ مضمون ہذا صفحہ ۱۴ میں دیکھو۔

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قول فصیل محمد ومسیح

Jesus & Muhammad

Published in Nur-i-Afshan June 04, 1897


محمد صاحب سے جب اہل مکہ نے کہا کہ اگر آپ ایک معجزہ بھی دکھلادیں تو ہم آپ پر ایمان لے کر آئیں گے ۔ تو محمد صاحب نے پہلے یہ جواب دیاکہ يَوْمَ يَأْتِي بَعْضُ آيَاتِ رَبِّكَ لَا يَنفَعُ نَفْسًا إِيمَانُهَا یعنی اگر کوئی معجزہ کسی دن آئے تو ایمان مفید نہ ہوگا(سورہ انعام آیت 158)۔ پھر جب لوگوں نے اصرار کرنا شروع کردیا تو بیچارے نے اپنے تمام حیلہ وحوالہ سے عاجزآکر صاف سچ بتادیا کہ قُلْ لَوْ أَنَّ عِنْدِي مَا تَسْتَعْجِلُونَ بِهِ یعنی معجزہ تو تم مانگتے ہو وہ میرے پاس نہیں (سورہ انعام آیت 58)۔پس معلوم ہوا کہ دعویٰ بلادلیل تھا اس لئے محمد کو رسول اللہ بھی نہیں مانا جاسکتا۔

اب دیکھو کہ جب ہمارے آقا ومولا سیدنا مسیح سے یہودیوں نے کہا کہ " آپ کب تک ہمارے دلوں کو شک میں رکھیں گے اگر آپ مسیح ہیں تو صاف بتادے"۔ تب مسیح نے انہیں جواب دیا کہ " پس یہُودِیوں نے اُس کے گِرد جمع ہو کر اُس سے کہا تُو کب تک ہمارے دِل کو ڈانوانڈول رکھّے گا؟ اگر تُو مسِیح ہے تو ہم سے صاف کہہ دے۔یِسُو ع نے اُنہیں جواب دِیا کہ مَیں نے تو تُم سے کہہ دِیا مگر تُم یقِین نہیں کرتے ۔ جو کام مَیں اپنے باپ کے نام سے کرتا ہُوں وُہی میرے گواہ ہیں۔ لیکن تُم اِس لِئے یقِین نہیں کرتے کہ میری بھیڑوں میں سے نہیں ہو۔میری بھیڑیں میری آواز سُنتی ہیں اور مَیں اُنہیں جانتا ہُوں اور وہ میرے پِیچھے پِیچھے چلتی ہیں۔ اور میں اُنہیں ہمیشہ کی زِندگی بخشتا ہُوں اور وہ ابد تک کبھی ہلاک نہ ہوں گی اور کوئی اُنہیں میرے ہاتھ سے چِھین نہ لے گا۔ میرا باپ جِس نے مُجھے وہ دی ہیں سب سے بڑا ہے اور کوئی اُنہیں باپ کے ہاتھ سے نہیں چِھین سکتا۔ مَیں اور باپ ایک ہیں۔یہُودِیوں نے اُسے سنگسار کرنے کے لِئے پِھر پتّھر اُٹھائے۔ 32یِسُو ع نے اُنہیں جواب دِیا کہ مَیں نے تُم کو باپ کی طرف سے بُہتیرے اچھّے کام دِکھائے ہیں ۔ اُن میں سے کِس کام کے سبب سے مُجھے سنگسار کرتے ہو؟۔یہُودِیوں نے اُسے جواب دِیا کہ اچھّے کام کے سبب سے نہیں بلکہ کُفر کے سبب سے تُجھے سنگسار کرتے ہیں اور اِس لِئے کہ تُو آدمی ہو کر اپنے آپ کو خُدا بناتا ہے۔یِسُو ع نے اُنہیں جواب دِیا کیا تُمہاری شرِیعت میں یہ نہیں لِکھا ہے کہ مَیں نے کہا تُم خُدا ہو؟۔ جب کہ اُس نے اُنہیں خُدا کہا جِن کے پاس خُدا کا کلام آیا (اور کِتابِ مُقدّ س کا باطِل ہونا مُمکِن نہیں)۔ آیا تُم اُس شخص سے جِسے باپ نے مُقدّس کر کے دُنیا میں بھیجا کہتے ہو کہ تُو کُفر بکتا ہے اِس لِئے کہ مَیں نے کہا مَیں خُدا کا بیٹا ہُوں؟۔ اگر مَیں اپنے باپ کے کام نہیں کرتا تو میرا یقِین نہ کرو۔ لیکن اگر مَیں کرتا ہُوں تو گو میرا یقِین نہ کرو مگر اُن کاموں کا تو یقِین کرو تاکہ تُم جانو اور سمجھو کہ باپ مُجھ میں ہے اور مَیں باپ میں۔

اس سے ثابت ہے کہ جناب مسیح سچے مدعی ہیں کہ یہودیوں کے سامنے اپنے معجزے اپنی صداقت میں  پیش کرتے ہیں اور وہ لوگ مان کرکہتے ہیں کہ " ہم تجھے اچھے کام کے لئے نہیں بلکہ  اس لئے پتھراؤ کرتے ہیں کہ تو کفر کہتاہے کہ انسان ہوکر اپنے کو خدا کا بیٹا بناتاہے"( انجیل مقدس راوی حضرت یوحنا ۱۰ باب ۳۳ آیت)۔

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مسلمان غور کرکے جواب دیں

Muslims Consider Your Answer Carefully

Published in Nur-i-Afshan October 15, 1897

وَأَنزَلْنَا إِلَيْكَ الْكِتَابَ بِالْحَقِّ مُصَدِّقًا لِّمَا بَيْنَ يَدَيْهِ مِنَ الْكِتَابِ وَمُهَيْمِنًا عَلَيْهِ یعنی اُتاری ہم نے طرف تیری کتاب(قرآن) ساتھ حق کے تصدیق کرنے کو اُس کتاب کے جواُس سے پہلے تھی اوراُس کی حفاظت کرنے کو۔(سورہ مائدہ آیت ۴۸)۔

اس وقت ہماری بحث لفظ وَمُهَيْمِنًا پر ہے۔ وَمُهَيْمِنًا کے معنی حفاظت کرنے کے ہیں اس کے ثبوت میں تمام عربی لغات موجود ہیں۔ غیاث الغات میں اس لفظ کی اس طرح تحقیق کی ہے کہ مہمین بصم میم وفتح ہاد سکون تحتانی وکسرمیم ثانی آنکہ ایمن کند دیگر انرالاز خوف دیک تحقیقات این است کہ اسم فاعل ست از مہیمنہ کہ بمعنی حفاظت اسد دریں صورت ہا اصلی است ویا برائے الحاق وایں مختار صاحب شمس العلوم وجلالین ست ویکی ازاسمائے الہی ست۔ پس فقرہ مذکورہ سے صاف ثابت ہے کہ قرآن انجیل کی حفاظت کرتا ہے کیونکہ ۴۵ اور ۴۶ آیت میں انجیل کی نسبت اس طرح ذکر ہے۔

وَقَفَّيْنَا عَلَىٰ آثَارِهِم بِعِيسَى ابْنِ مَرْيَمَ مُصَدِّقًا لِّمَا بَيْنَ يَدَيْهِ مِنَ التَّوْرَاةِ وَآتَيْنَاهُ الْإِنجِيلَ فِيهِ هُدًى وَنُورٌ وَمُصَدِّقًا لِّمَا بَيْنَ يَدَيْهِ مِنَ التَّوْرَاةِ وَهُدًى وَمَوْعِظَةً لِّلْمُتَّقِينَ وَلْيَحْكُمْ أَهْلُ الْإِنجِيلِ بِمَا أَنزَلَ اللَّهُ فِيهِ وَمَن لَّمْ يَحْكُم بِمَا أَنزَلَ اللَّهُ فَأُولَٰئِكَ هُمُ الْفَاسِقُونَ ترجمہ: اور ان پیغمبروں کے بعد انہی کے قدموں پر ہم نے عیسیٰ بن مریم کو بھیجا جو اپنے سے پہلے کی کتاب تورات کی تصدیق کرتے تھے اور ان کو انجیل عنایت کی جس میں ہدایت اور نور ہے اور تورات کی جو اس سے پہلی کتاب (ہے) تصدیق کرتی ہے اور پرہیزگاروں کو راہ بتاتی اور نصیحت کرتی ہے اور اہل انجیل کو چاہیئے کہ جو احکام خدا نے اس میں نازل فرمائے ہیں اس کے مطابق حکم دیا کریں اور جو خدا کے نازل کئے ہوئے احکام کے مطابق حکم نہ دے گا تو ایسے لوگ نافرماں ہیں۔

صاف ظاہر ہے کہ مہیمنا علیہ کی مراد یہ ہے کہ قرآن انجیل کی محافظت کرتاہے۔ اب ہمارا سوال صرف یہ ہے مسلمان علماء مہربانی کرکے اس انجیل کو پیش کریں جس کی محافظت کا قرآن خود دعویدار ہے۔ اگر وہ اُس انجیل کو پیش کریں جوہمارے پاس موجود ہے تو تحریف کی نسبت اپنے منہ کو کھولنے کی کبھی جرات نہ کریں گے اگر اُن کے پاس کوئی اور انجیل موجود نہیں ہے تو وہ اس بات پر قائل ہوجائیں  کہ قرآن کا دعویٰ جھوٹا ہے۔ ہم کو اُمید ہے کہ قارئین جن کو وقتاً فوقتاً مسلمانوں سے مباحثہ وغیرہ کا  اتفاق پڑتاہے اس مضمون پر زور دینگے اوراس مذکورۃ الصدر آیات کو پیش کرکر اہل اسلام سے جواب لیں گے نیز مسلم علماء سے بھی ہماری درخواست کہ اس کا جواب دیں کیونکہ یہ وہ مسئلہ ہے جس سے وہ تمام اعتراضات رفع ہوجاتے ہیں جو مسلم علماء تحریف انجیل کی نسب پیش کرتے ہیں۔

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حق و َباطَل کی شناخت

اے ونسٹن

کھوج کھوج کر ڈھونڈو گے تب جھوٹ سچ کو جانو گے

فصل اَوّل درز کر آفرِینش


Recognition of Right and Wrong

Comparison of the Bible and the Qur’an

Published in Nur-i-Afshan May 15, 1896

By

A. Winston


توریت

توریت میں زکر آفرینش آد م اس طرح سےلکھا ہے

ابتدا میں خدا نے زمین و آسمان کو پیدا کیا اور جملہ موجودات کو پیدا کر کے آفرینش کے چھٹے دن آدم کو زمین کی خاک سے اﷲ نے اپنی سورت پر بنایا اور اُس کے نتھنوں میں زندگی کا دم پھونکا اور ساتویں دن کو سبت مقرر کیا اور عدن کے پورب طرف باغ لھا کر آدم کو اُس میں رکھا اور آدم کی پسلی سے حواّ کو پیدا کیا اور درخت ممنوعہ کے کھانے سے منع کیا۔ پھر شیطان نے بشکل سانپ حّوا کو بہکایا چطاطچہ درخت ممنوعہ حوّا نے خود کھایا اور آدم کو کھلایا جبکہ آدم کو درخت ممنوعہ کے کھانے سے نیئک و بد کی شناخت ہوگئ تو سمجھا کہ میں ننگا ہوں پھر درختوں کی پتیوں سے اپنا اور اپنی بیوی حوّا کا جسم چھپایا پھر اﷲ نے دونوں کے واسطے طمڑے کے کرتے بنائے اور پہنائے اور درخت ممنوعہ کے کھانے کے قصور میں دونوں بہشت سے نکالے گئے اور شیطان ملعون ہوا۔

قرآن

سورہ الاعراف آیت۱۱۔ وَلَقَدْ خَلَقْنَاكُمْ ثُمَّ صَوَّرْنَاكُمْ ثُمَّ قُلْنَا لِلْمَلَائِكَةِ اسْجُدُوا لِآدَمَ فَسَجَدُوا إِلَّا إِبْلِيسَ لَمْ يَكُن مِّنَ السَّاجِدِينَ اور ہم ہی نے تم کو (ابتدا میں مٹی سے) پیدا کیا پھر تمہاری صورت شکل بنائی پھر فرشتوں کو حکم دیا آدم کے آگے سجدہ کرو تو (سب نے) سجدہ کیا لیکن ابلیس کہ وہ سجدہ کرنے والوں میں (شامل) نہ ہوا اور سورہ ہجرآیت ۲۶ وَلَقَدْ خَلَقْنَا الْإِنسَانَ مِن صَلْصَالٍ مِّنْ حَمَإٍ مَّسْنُونٍ وَالْجَانَّ خَلَقْنَاهُ مِن قَبْلُ مِن نَّارِ السَّمُومِ اور ہم نے انسان کو کھنکھناتے سڑے ہوئے گارے سے پیدا کیا ہے اور جنوں کو اس سے بھی پہلے بےدھوئیں کی آگ سے پیدا کیا تھا اور سورہ عمران ۵۸ آیت۔ إِنَّ مَثَلَ عِيسَىٰ عِندَ اللَّهِ كَمَثَلِ آدَمَ خَلَقَهُ مِن تُرَابٍ ثُمَّ قَالَ لَهُ كُن فَيَكُونُ عیسیٰ کا حال خدا کے نزدیک آدم کا سا ہے کہ اس نے (پہلے) مٹی سے ان کا قالب بنایا پھر فرمایا کہ (انسان) ہو جا تو وہ (انسان) ہو گئے۔ اور سورہ علق کی آیت۱ میں ہے خَلَقَ الْإِنسَانَ مِنْ عَلَقٍ جس نے انسان کو خون کی پھٹکی سے بنایا سورہ مومنون رکوع ۱۔ ۲۱، ۱۴ آیت۔ وَلَقَدْ خَلَقْنَا الْإِنسَانَ مِن سُلَالَةٍ مِّن طِينٍ ثُمَّ جَعَلْنَاهُ نُطْفَةً فِي قَرَارٍ مَّكِينٍ ثُمَّ خَلَقْنَا النُّطْفَةَ عَلَقَةً فَخَلَقْنَا الْعَلَقَةَ مُضْغَةً فَخَلَقْنَا الْمُضْغَةَ عِظَامًا فَكَسَوْنَا الْعِظَامَ لَحْمًا ثُمَّ أَنشَأْنَاهُ خَلْقًا آخَرَ فَتَبَارَكَ اللَّهُ أَحْسَنُ الْخَالِقِينَ اور ہم نے انسان کو مٹی کے خلاصے سے پیدا کیا ہے پھر اس کو ایک مضبوط (اور محفوظ) جگہ میں نطفہ بنا کر رکھا پھر نطفے کا لوتھڑا بنایا۔ پھر لوتھڑے کی بوٹی بنائی پھر بوٹی کی ہڈیاں بنائیں پھر ہڈیوں پر گوشت (پوست) چڑھایا۔اور سورہ سجدہ رکوع۱۔ الَّذِي أَحْسَنَ كُلَّ شَيْءٍ خَلَقَهُ وَبَدَأَ خَلْقَ الْإِنسَانِ مِن طِينٍ جس نے ہر چیز کو بہت اچھی طرح بنایا (یعنی) اس کو پیدا کیا۔ اور انسان کی پیدائش کو مٹی سے شروع کیا سورہ ملائک رکوع ۲۔ ۱۲ ۔ آیت اور اﷲ نے تمکو بنایا مٹی سے پھر بوند پائی سے۔ سورہ مومن رکوع ۷۔ ۶۹ وہی ہے جس نے تمکو بنایا خاک سے سورہ ہجرت رکوع ۱۔ اے آدمیوں ہم نے تمکو بنایا ایک نر اور مادہ سے اور رکھی تمہاری ذاتیں اور گوتیں تا آپس کی پہچان ہو۔ سورہ رحمن رکوع ۱۔ ۱۳ آیت بتایا آدمی کھنکھنا تی مٹی سےجیسے ٹھیکری اور بنایا جان کو آگ کی دہک سے سورہ قیامت رکوع۔ ۲۔ ۳۷، ۳۹ پھیلایا ایک بوند مٹی کا جو ٹپکا پھر کیا اُس میں جوڑا نر اور مادہ۔ سورہ دھرَ رکوع ۱۔ آیت ۲ ہم نے بنایا آدم ایک بوند کی لجّیُ سے سورہ عباس رکوع ۱۷۱، ۱۹ ۔ آیت کس چیز سے بنایا اُس کو بنایا اُسکو اندازہ رکھا اُس کو سورہ سجدہ رکوع ۱۔ ۶ آیت اﷲ نے اپنی جان میں سے آدم میں پھونکی۔ سورہحج رکوع ۲ زمین کو پھیلایا ہم نے اور ڈالی اُس پر لوح یعنے زمین مثل بوریہ کے لپٹی تھی اس وجہ سے اسُ پر پہاڑ کی میخ ٹھونکی۔ سورہ سجدہ رکوع ۳۔ میں اﷲ نے زمین و آسمان اور جو کچھ اُسکے بیچ میں ہے چھ دن میں بنایا اور سورہ فضیلت رکوع۔۲۔ ٹھہرادئے ساتھ آسمان اور بنائے دودن میں اور اﷲ عرش پر بیٹھا ہے اورچوکی پر بیٹھا ہے وغیرہ سورہ بقر رکوع ۴۔ ۳۰ آیت اور جب کہا تیرے رب نے فرشتوں سے مجھکو بنانا ہے زمین میں ایک نائب بولے کیا تو رکھے گا اُس میں جو شخص فساد کرے وہاں اور خون کرے۔

حدیث

میں لکھا ہے کہ فرشتوں نے کل آدم کو گوندھا اور خشک کیا کہ مثل کھیر مل کے ہوگئی تھی اور ہو ا چلنے سے بچتی تھی اُس سے آدم کو بنایا اور پھر لکھا ہے کہ تمام روئے زمین کی شور و شیرین مٹی سے آدم بنایا گیا اور چالیس برس آدم کے گارےمین ہوا و حرص خمیر کی گئی اور حیات القلوب جلد اوّل میں لکھا ہے کہ امام زاو عبداﷲبن سلام نے محمد سےپو چھا کہ آدم تمام خاکوں سے بنایا گیا یا ایک خاک سے جواب ملا کہ اگر آدم ایک ہے ہی خاک سے بنایا جاتا تو تمام آدمی ایک صورت کے ہوتے اور شناخت نہ ہوتی عبداﷲ نے کہا کہ اس کی کوئی مثال ہے فرمایا کہ مثال آدم کی خاک ہے کیونکہ خاک میں سفید و سرخ و نیمرنگ وخود رنگ ہیں اور کسی جگہ کی خاک سخت اور کہیں کی نرم ہوتی ہے اسی وجہ سے آدمی سب رنگ کے اور سخت و نرم مزاج ہوتے ہیں۔ اور حوّا آدم کی ہڈی سےبنائی گئی اور امام جعفر سے منقول ہے کہ یہ بات غلط ہے کہ حوا آدم کی ہڈّی سے بنائی گئی بلکہ آدم بنانے کے بعد جو مٹی بچی تھی اُس سے حّوا بنائی گئی اور حدیث سے واضح ہے کہ گل آدم جب بہشت میں پڑی تھی اُس وقت شیطان مٹی کو لات مار کر کہتا تھا کہ اگر اﷲ مجھسے اس کو سجدہ کروائیگا تو ہر گز ہر گز نہیں کرونگا۔ اور امیر المومنین یعنے علی سے منقول ہے کہ جس وقت اﷲ نے نور محمد ۱ سے ایک گوہر بنایا پھر اُس کے دو ٹکڑے کئے ایک ٹکڑا آب شرین ہو گیا اور دوسرا عرش بن گیا اور عرش کو پالی پر قایم کیا اور پانی کے دہوئیں سے آسمان بنایا اور پانی کی جھاگوں سے رنین بنائی اور پھر ایک فرشتہپیدا کیا اُس نے زمین کو اُٹھا لیا اور پھر اﷲ نے ایک بڑا پتھر بنایا اُس پر فرشتہ کھڑا ہوا اور پھر گاؤ زمین کو بنایا اور سنگ گران کواُس کی پشت پر قایم کیا اور پھر ایک بڑی مچھلی بنائی اُس کی پشت پر گاؤ زمین کو کھڑا کیا۔

مضامین متزکرہ صدر سے یہامر ناظرین کو کامل طور سے واضح ہو گا کہ قرآن توریت کا مخالف ہے مگر بھائی محمد ی یقیناً اس کا یہی ضواب دیں گے کہ وجہ اختلاف یہ ہے کہ توریت تحریف کر دی گئی ہے۔ مگر پھر قرآن توریت کو تصدیق کرتا ہے دیکھو سورہ یونسؔ رکوع ۱۰۔ ۹۵ ۔ فَإِن كُنتَ فِي شَكٍّ مِّمَّا أَنزَلْنَا إِلَيْكَ فَاسْأَلِ الَّذِينَ يَقْرَءُونَ الْكِتَابَ مِن قَبْلِكَ لَقَدْ جَاءَكَ الْحَقُّ مِن رَّبِّكَ فَلَا تَكُونَنَّ مِنَ الْمُمْتَرِينَ

آیت میں وہی قرآن کہتا ہے کہ جو توریت کو نہیں مانتا وہ اﷲ کی باتیں جُٹھلاتا ہے اور توریت محمد کے وقت میں معتبر اور سند ٹھہرائی گئی اور پھر سورہ ہودؔ رکوع ۲۔ میں لکھا ہے کہ توریت کے منکر دوزخی ہو ح گے اور پھر سورہ عمران رکوع ۱۔ میں لکھا ہے کہ توریت و انجیل کلام اﷲ ہیں اور پھر سورہ توبہ رکوع ۱۴ میں لکھا ہے کہ توریت سّچی ہے اور پھر سورہ عمران رکوع ۹۔ ۸۳ آیت کا یہ مضمون ہے کہ کہہ اے محمد کہ ہم ایمان لائے اﷲ پر اور جو اُترا ابراہیم پر و اسماعیل و اسحاق و یعقوب اور اُس کی اولاد پر اور جو ملا موسیٰ و عیسیٰ کو اور سب نبیوں کو اپنے رب سے اور ہم جدا نہیں کرتے اُن میں سے ایک کو فقط ۔ اب ناظرین و محمدصاحب غور فرمائیں کہ ایک موقعہ پر قرآن توریت و انجیل کو تصدیق کرتا ہے۔ اگر حساب دعوی محّبان دین محمدی توریت و انجیل محرّف ہو گئیں یا منسوخ ہو گئیں تھیں تو پھر قرآن اُن کو کیوں تصدیق کرتا ہے اور پھر سنّت وغیرہ کیوں جایز ہے۔ پس واضح ہو کے زمانہ محمد تک توریت و انجیل صحیح اور درست تہیں۔ تو اب محمدی بھائی بتلائیں کہ کتب مقدسہ محرف ہوئیں آیا قبل از عہد محمدی یا آنکہ خاص زمانہ محمد صاحب میں اگر قبل از زمانہ محمد یا آنکہ اُن کے دعوے نبوت کے وقت محّرف ہو گئیں تھیں۔ تو پھرقرآن کیوں تصدیق کرتا ہے اور اگر بعد محمد تحریف کی گئیں تو کب اور کس نے ایسا کیا اور کیا کیا مضامین تبدیل ہوئے ؟ اور زمانہ محمد میں ہزار ہا نسخہ توریت و انجیل کے ملک بملک موجود تھے تو کب ممکن ہے کہ تمام کتب سماوی ایک مقام پر جمع ہوں اور تحریف کر دی جائیں کیا کتب سماوی کعبہ کے بت خانہ میں تھیں جو تحریف کر دی گئیں اور جو کوئی بھی نسخہ صحیح نہیں رہا۔ اس بات کو سوائے محباّن دین محمدی کے کوئی نادان سے نادان شبہ بھی نہیں کر سکتا کہ کتب مقدسہ تحریف کر دی گئیں۔ علاوہ ازیں سورہ یوسف رکوع ۱۱۔ میں قرآن دعویدار ہے کہ قرآن پہلی کتابوں کے موافق ہے جو کچھ بنائی ہوئی بات نہیں ہے فقط قرآن و توریت کی مطابقت کا حال تو ناظرین پر واضح ہو گیا اور حیکہ قرآن توریت کے خلاف ہے تو بموجب اس آیت کے کیوں قرآن بنایا ہوا نہیں ہے۔ اب نفس قرآن میں عرض کیا جاتا ہے دیکھو قرآنی جو اوپر لکھی گئیں ہیں ایک دوسرے کے مخالف ہیں یعنے کہیں یہ زکر ہے کہ آدم کی جان لون کی آگ سے بنائی۔ اور کہیں لکھا ہے کہ آدم میں اﷲ نے اپنی ایک پھونکی اور پھر لکھا ہے کہ زمین کو پھیلایا اور اُس پہاڑ کی میخ ٹھونکی دوسری جگہ یہ زکر ہے۔ کہ اﷲ نے آسمان و زمین اور جو کچھ اُس کے بیچ میں ہے چھ دن میں بنایا اور پھر لکھا ہے کہ سات آسمان دو دن میں بنائے اور پھر سورہ نساؔء رکوع ۱۱ میں لکھا ہے کہ کیا غور نہیں کرتے قرآن کو اگر یہ ہوتا سوائے اﷲ کے کسی اور کا تو پاتے اُس میں تفاوت کا حال واضح طور سے لکھا گیا ہے ۔ پس ظاہری ہے کہ کلام اﷲنہیں بلکہ محمد کا بنایا ہوا ہے اور ثبوت قرآن کی بطلان کا یہ ہے جو روایات اور حدیث اوپر لکھی گئیں ہیں وہ بھی قرآن کے خلاف ہیں۔ دیکھو جس آدم کو اﷲ اشرف المخلوقات پیدا کیا اور جس کے واسطے قرآن میں زکر ہے کہ اﷲ نے آدم کو فرشتوں سےسجدہ کروایااُس کی تمہاری اماموں اور راویوں نے کیسی مٹی خراب کی ہے کہ شیطان اُس کے منہ میں گھس کے مقصد کے راستے سے نکلا کرتا تھا اور اﷲ نے اُس کو تمام شورِ زمین کی خاک سے بنایا اور آفرینش سے قبل ہی اچھی اور برُی اُس کی سرشت میں قایمکر دی ور مخفی نہ رہے کہ توریت و انجیل کو قرآن کی شہادت اور تصدیق کی کچھ ضرورت نہیں ہے کیونہ اگر قرآن کلام اﷲ ہوتا تو ضرور تھا کہ اُس کی تصدیق لازمی ہوتی جیسا کہ جملہ انبیائے بنی اسرائیل نے توریت کو تصدیق کیا اور جملہ صحف انبیا توریت کے موافق ہیں چنانچہ برائے نمونہ مختصراً عرض کیا جاتا ہے دیکھو کتاب پیدایش کے ۱۵ باب کے ۱۲، ۱۳ آیت میں اﷲ نے ابراھیم کو خبر دی تھی کہ تیری اولاد ایک ملک میں جواُن کانہیں ہے پردیسی ہو گی اور وہاں کے لوگوں کی غلام بنے گی اور ساڑھے ۴ سو برس وہ لوگ اُس کو تکلیف دیں گے۔ لیکن میں اُس قوم کی جو کے وہ غلام بنیں گے عدالت کروں گا اور بعد اُس کے بڑی دولت لے کے وہاں سے نکلیگی چنانچہ یہ اولاد ابراھیم کی یعقوب اور یوسف تھیجو مصر میں غلام بنی اور یہ خبر موسیٰ کی تھی کہ اُس نے بنی سرائیل کو مصر کی غلامی سے آزاد کیا اور پھر حضرت داؤد نے مسیح کے ظہور کی خبر دی ہے اور مسیح نےاکثر مقام پر توریت کو تصدیق کیا ہے چنانچہ انجیل یوحنا کے ۵ باب کی ۳۱ آیت می مسیح یہود سے فرماتا ہے کہ دیکھو توریت کو کیونکہ تم سمجھتے ہو کہ اُس مں تمہارے واسطے ہمیشہ کی زندگی ہے۔ وہ ہی میری گو گولی دیتی ہے اور پھراُسی باب ۴۶آیت میں مسیح یہودیوں سے فرماتا ہے کہ اگر تم موسیٰ پر ایمان لاتے تو مجھپر بھی ایمان لاتے کیونکہ اسنے میری گواہی دی ہے فقط پس اِس صورت میں محمدیوں کا دعویٰ کے تحریف ایسا ہے جیسے کہ لولاک لما خلقت الافلاک۔ کے معنی یعنے اس عبارت میں کہیں بھی محمد کا زکر نہیں پایا جاتا ہے مگر محمدی صاحب تو کھینچ کھانچ کے اِس کے معنے یہ کہتےہیں کہ اگر نہ پیدا کیاکرنا زمین و آسمان کو اے محباّن دین محمدیدیکھو تم کو ابھی تک قرآن کی بھی صحت نہیں ہوئی چنانچہ سورہ ناسوزلزلہ کی پیشانی ایسی لکھی کہ مکہ یا مدینہ میں نازل ہوئی پس یہ صحت نہیںہے کہ مکہ میں نازل ہوئی یا خاص مدینہ میں تو پھر تم یہ کیونکر کہ سکتے ہو کہ سب قرآن صحیح اور کلام اﷲ ہے اور پھر جس طرح پر قرآن فراہم ہوا ہے تم کو خوب معلوم ہے میں نظر طوالت قلم انداز کرتا ہوں اور بعد اجتماع قرآن جو قرأت میں اختلافات پیدا ہوئے اور اس وقت بھی موجود ہیں اُس کو تحریف کیوں نہیں سمجھتے ہو اور پھر حدیث و روایات کے اختلاف جو قرآن کے خلاف بیان ہوئے ہیں اُن کی صحت کرو دیکھو آدم کے بہشت سے نکلنے کا حال حدیث و روایات میں بطور کہانی کے لکھا ہے کہ اول شیطان نے مور سے کہا کہ تو بہشت میں جا کے آدم کے سامنے ناچ اور اُس کو محو تماشا کرتاکہ میں آہستہ آہستہ بہشت کی دیوار پر پہنچوں اور پھر سانپ سے کہا کہ اپنے منہ میں بٹھا کے مجھکو بہشت کی دیوار پر پہنچا چنانچہ اسی طرح سے شیطان بہشت کی دیوار پر پہنچا اور وہاں سے آدم و حوّا کو بہکایا اور درخت ممنوعہ کے کھانے کی ترغیب دی حّوا کو اﷲ نے جدہ میں اور شیطان کو جنگل مسان قریب بصرہ اور سانپ اصفہان میں اور آدم ہندوستان میں اور مور کسی اور جگہ نکالے اے بھائیوں یہ داستان اور قصہ تمہارے راویاں مختلف بیان کے سوائے محبان دین محمدی اہل کتاب کیونکر صحیح خیال کر سکتے ہیں۔

فصل دوم(۲) ۔ درزکر طُوفاَن نوح

توریت

توریت میں طوفان نوح کا یہ زکر ہے کہ نوح کے تین بیٹے حامؔ۔ سامؔ۔ یافتؔ اور اُن کی بیویاں اور نوح اور نوح کی بیوی اور ہر قسم کے جانوروں کا ایک ایک جوڑا کشتی میں سوارہوئے اور بفضلہ طوفان سے محفوظ رہے اور بعد طوفان حام سے کنعان پیدا ہوا اور کنعان نوح کا پوتا تھا۔

قرآن

زکر طوفان نوح جو قرآن میں ہے۔ سورہ مومنونؔ رکوع ۲۔ پھر ہمنے حکم بھیجا نوح کو کہ ایک کشتی ہمارے آنکھوں کے سامنے بنا اور جب اُبلے تنور تو ڈال لے اس میں ہر قسم یعنے ہر چیز کا جوڑا دوہرا اور اپنے گھرکے لوگ اور سورہ ہود۔ رکوع ۴۔ اور جب جوش مارا تنور نے کہا ہم نے نوح سے لادلے اُس میں ہر قسم کا جوڑا دو ہرا اور اپنے گھر کے لوگ اور پھر پکارا نوح نے اپنےبیٹے کو وہ ہو رہا تھا ڈوبنے والوں میں پھر وہ نہ مانا اور ڈوب گیا سورہ انبیا رکوع ۶۔ نوح کی سب قوم طوفان میں ڈوب گئی۔

حدیث

حیات القلوب جلد اوّل میں بسند حسن حضرت صادق سے منقول ہے کہ نوح نے ۲۲ بر س میں کشتی بنائی اور دو فرشتے کشتی بنانے میں نوح کی مدد کرتے تھے اور کشتی میں نوح کے ساتھ ۸۰ آدمی اور بھی سوار ہوئے تھے اور خدا نے نوح کو وہی بھیجی تھی کہ اپنی عورت اور بیٹے ہو کشتی میں سوار نہ کرنا اور امام زادہ عبدالعظیم لکھتا ہے کہ نوح کی عورت کشتی میں سوار تھی اور محمد باقر لکھتا ہے یہ بات غلط ہے کہ نوح کا بیٹا طوفان میں ڈوب گیا اور قصص الانبیا میں لکھا ہے کہ جو بیٹا نوح کا طوفان میں ڈوبا اُس کا نام کنعان تھا اور گدھے کی دم پکڑ کے شیطان بھی کشتی میں سوار ہو گیا تھا نوح نے شیطان کو کشتی میں سوار ہونے سے منع کیا تھا مگر شیطان نہیںمانا اور کشتی میں جا بیٹھا تھا اور ۸ یا ۱۰ یا ۲۰ آدمی اور بھی نوح کے ساتھ کشتی میں سوار ہوئے تھے اور آدم کی نعش کا صندوق قبر سے نکال کے نوح نے کشتی میں رکھ لیا تھا اور دو گوہر نورانی آسمانی سے کشتی میں آئے تھے وہ چاند و سورج کا کام دئے تھے۔

اور جبکہ کشتی میں غلاظت بہت ہو گئی اور بدبو آنے لگی تو نوح کو وحی آئی کہ ہاتھی کی دم پکڑچنانچہ نوح نے ہاتھی کی دم پکڑی تو اُس میں سے ایک سور ۲ اور سورنی نکلے اور تمام غلاظت کشتی کی کھا گئے اور کشتی میں یہ حکم تھا کہ کوئی جانور اپنے مادہ سے جغت نہو مگر چوہا نہ مانا اور اپنی مادہ سے جغت ہو گیا تو بہت سے چوہے پیدا ہو گئے اور کشتی میں سوراخ کرنے لگے تو خدا نے نوح سے کہا کہ شیر کے سر پر ہاتھ رکھ چنانچہ نوح نے شیر کے ماتھے پر ہاتھ رکھا تو فوراً بلّیاں یعنے گرُبہ پیدا ہوگئیں اور سب چوہوں کو کھا گئیں۔

اور پھر قصص الانبیا میں لکھا ہے کہ عوج آدم ۳ کا نواسہ تھا عوج نے نوح سے کہا کہ مجھکو بھی کشتی میں سوار کر لے مگر نوح نے انکار کیا اور تمام دنیا طوفان میں غرق ہو گئی اور مر گئی مگر عوج نہ مرا اور معالیلم میں لکھا ہے کہ طوفان کا پانی پہاڑوں سے چالیس گز بلند ہو گیا تھا مگر عوج ایسا لمبا تھا کہ طوفان کا پانی اُس کے زانوں تک نہیں پہنچا تھا اُس قد ۳۳۳۳ گز سے زیادہ تھا ور بادل اُس کی کمر تک آتے تھے اور سورج میں مچھلی کباب کر کے کھاتا اور تہ زمین سے مچھلی ہاتھ سے پکڑ لیتا تھا صرف یہ ہی طوفان سے بچا تھا اور موسیٰ نے اُس کو مارا تھا اور اُس کی والدہ ایسی موٹی تھی کہ ایک جریب زمین میں بیٹھا کرتی تھی اور اُس کے ہاتھ کی انگلی تین تین گز کی تھی اور دو دو ناخن مثل و نراتی کے تھے اور جس وقت اُس کو موسیٰ نے مارا تو اُس کی ۳۶۰۰ برس کی تھی۔

اب نہایت ادب سے محباّن دین محمدی کی خدمت میں عرض کی جاتی ہے دیکھو توریت سے واضح ہے کہ نوح اور اُس کی بیوی اور حامؔ سامؔ یافتؔ تین بیٹے اور اُ ن کی بیویاں کشتی میں سوار ہوئیں اور بفضلہ محفوظ رہیں اور قرآن لکھتا ہے کہ نوح کا ایک بیٹا طوفان میں غارت ہو گیا اِس ہی وجہ سے تم کہتے ہو کہ توریت تحریف کر دی گئی مگر تم کو قسم ہے سورج اور چاند اور چڑھتے (یہاں سے فائل ایڈ کرنی ہے)

فصل سوم ۔ در ذکر ابراھیم

توریت

توریت میں ابراہیم کاذکر اِسطرح سے لکھا ہے کہ ابراہیم تارح کا بیٹا تھا اور سارہ ابراہیم کی بیوی جبکہ ایک عرصہ تک سارہ کے اولاد نہیں ہوئی اُسنے اپنی لونڈی ہاجرہ ابراہیم کو دی اُس سے اسمعیٰل پیدا ہوا اور پھر بالہام ربانی سارہ سے اصحاق پیدا ہوا اور وعدہ کا فرزند ہوا اور قربانگاہ پر چھڑھایا گیا اور اسمعیٰل کی نسبت سارہ ابراہیم سے کہا کہ لوندی ہاجرہ اور اُسکے بیٹے کو نکالدے کیونکہ یہ لونڈی کا بیٹا میرے بیٹے اصحاق کےساتھ وارث نہ ہوگا ۔ سارہ کی یہ بات ابراہیم کو ناگوار گزری تو خداوند نے ابراہیم سے کہا کہ سارہ ٹھیک کہتی ہے کیونکہ تیری نسل اصحاق سے ہوگی۔ چنانچہ ابراہیم نے ہاجرہ اوراسمعیٰل کو نکالدیا اور ہاجرہ نے بیرسبع کے جنگل میں جا کر گریہ زاری کی تو فرشتہ نے ہاجرہ سے کہاکہ دلگیر نہ ہو اِس لڑکے کو بڑی قوم بناؤنگا اور اُس کے ہاتھ سب آدمیوں کے خلاف ہونگے اور یہ و حسنی ہوگا۔ چنانچہ اسماعیل بیابان میں رہا اور تیرا نداز بنا اور ہاجرہ نےایک مصری عورت اسماعیل کے واسطے لی اور اُس سے بارہ سردار پیدا ہوئے جنکے نام توریت میں لکھے ہیں۔

قرآن

سورہ انعام رکوع ۹۔ ۷۵ آیت اور جب کہا ابراہیم نے اپنے باپ آزر سے تو پکڑتا ہے بتوں کو خدا۔ سورہ بقر رکوع ۱۵ آیت ۱۲۵۔ جب ٹھہرایا ہم نے یہ گھر کعبہ اجتماع کی جگہ لوگوں کی اور پناہ اورکھڑا رکھو جہان کھڑا ہوا ابراہیم نماز کی جگہ وغیرہ اور پھر سورہ بقر آیت ۱۲۷۔ اور جب اُٹھانے لگا ابراہیم بنیاد اُس گھر کی اور اسماعیل وغیرہ اور پھر سورہ بقر آیت ۱۳۰۔ اور کون نہ پسند کرے دین ابراہیم کا مگر جو بے وقوف ہے اپنے جی سے فقط اور پھر سورہ بقر رکوع ۱۷ آیت ۱۴۲۔ اب کہیں گے بےوقوف لوگ کا ہے کو پھر گئے مسلمان اپنے قبلہ سے جسپر تھے اور پھر سورہ بقر آیت ۱۴۴۔ اور وہ قبلہ جو ہمنے ٹھہرایا جس پر تو تھا نہیں فقط اور پھر سورہ بقر آیت ۱۴۵۔ اور ہم دیکھتے ہیں پھر پھر جاتا تیرا مُنہ آسمان میں سو البتہ پھر ینگے جس قبلہ کیطرف توراضی ہے اور پھر سورہ بقر آیت ۱۴۶ اور اگر تو لاوے کتاب والوں پاس ساری نشانیاں نہ چلینگے تیرے قبلہ پر اور نا تو مانے اُنکا قبلہ اور نا اُن میں کوئی مانتا ہے دوسرے کا قبلہ اور پھر سورہ بقر آیت ۱۴۷ اور جنکو ہم نے دی ہے کتاب پہنچانتے ہیں یہ بات جیسا پہچانتے ہیں اپنے بتوں کو فقط اور پھر سورہ صفات رکوع ۳ میں ابراہیم نے خواب دیکھا کہ اسماعیل کو قربانی کرتا ہوں چنانچہ اسماعیل کو قربانی کیا اور سورہ انبیا رکوع ۵ میں ابراہیم نے اپنے باپ کے بتوں کو توڑ ڈالا اور اس قصور میں ابراہیم کو آگ میں ڈالا اور وہ آگ برف ہو گئی وغیرہ فقط اور سورہ توبہ رکوع ۵ میں آزر بت پرست کو یہودی اﷲ کا بیٹا کہتے ہیں۔

حدیث

تفسیر مدارک اور معراج و کنز سے واضح ہے کہ بیت المعمور ایک مسجد زمرد دیا قوت کی بی ہوئی آسمان چہارم پر ہے اور وہکعبہ کے مقابل ہے اگر کوئی چیز اس پر سے گرے تو کعبہ کی چھت پر آتی اور طوفان نوح کے وقت سے پیشتر یہ مسجد زمین کعبہ پر تھی طوفان کے وقت آسمان چہارم پر چلی گئی اور بیت المقدس ملک شام میں ایک مسجد ہے اُسکی بُنیاد داؤد نے ڈالی اور سلیمان نے اُسکوتیار کیا اوت یہ اکثر انبیا کا قبلہ تھا اور حیات القلوب میں امام محمد باقر سے منقول ہے کہ بیت المعمور اﷲ نے آسمان چہارم پر فرشتوں کی توبہ کے واسطے بنائی اور کعبہ اﷲ نے اہل زمین کی توبہ کیواسطے بنایا اور ثعلمی سے روایت ہے کہ سلیمان ایک مرتبہ کعبہ کیطرف گئے تو دیکھا کہ اُس میں بہت سے بُت رکھے ہیں تو کعبہ سلیمان کے سامنے بہت رویا۔ سلیمان نے دریافت کیا کہ کیوں روتا ہے؟ کعبہ نےکہا کہ اِسیقدر انبیا گزرے مگر مجھ میں کسی نے نماز نہیں پڑھی۔ اور کتاب بحار الانوار سے واضح ہے کہ ابراہیم کے باپ نام تارخ تھا اور غلط بیان کیا گیا ہے اور حیات القلوب میں حضرت صادق سے منقول ہے کہ اصحاق کو قربانی کیا تھا اور دوُسری حدیث سے بگئ واضح ہے کہ اصحاق قربان ہوا تھا۔ فقط

اب ابراہیم کی پیدایش کا زکر سنو ۔ حسین امام جعفر سے منقول ہے کہ آزر نے نمرود بادشاہ سے کہا کہ ایک لڑکا پیدا ہوگا وہ تیرا دُشمن ہو گا۔ اسوجہ سے نمرود نے حکم دیا کہ کوئی مرد اپنی عورت سے ہمبستر نہ ہو مگر آزر اُسی روز اپنی بیوی سے ہمبستر ہوا اور اُسکے ابراہیم پیٹ میں آگیا ۔ پھر آزر کی عورت نے ابراہیم کو ایک غار میں جا کے جنا اور کپڑے میں لپیٹ کے غار میں بٹھلایا اور ۱۳ برس ابراہیم غار میں رہا اور جب غار سے نکلا تو چاند و سورج و زہرہ کو خدا سمجھا فقط اور حدیث سے واضح ہے کہ ابراہیم آزر کے گھر میں پیدا ہوا تھا جبکہ آزرنے چاہا کہ نمرود کے پاس لیجاوے تو اُسکی مانے غار میں پھینکدیا اور ۱۳ برس تک بقدرت جیتا رہا فقط دوُسری حدیث یہ ہے کہ آزر اور اُسکی جو رو نمرود بادشاہ کے ڈر سے بھاگے گئے تھے راستہ میں ابراہیم پیدا ہو گیا اور اُسیوقت جوان ہو گیا اور اپنے کپڑے اور لکڑی لیکر چلدیا یا فقط غرضکہ صد تماشہ بازی گروں کے سے لکھے ہیں۔ میں نے بہت سی کتابیں محمُدی مزہب کی دیکھی ہیں ہر شخص نے اپنے اپنے طور پر یہ بیان مختلف لکھا ہے اور قرآن کے خلاف۔

اب یہ کہنا کہ قرآن توریت کے خلاف بیان کرتا ہے کچھ ضرورت نہیں کیونکہ اور بیانات میں توکہیں کہیں قرآن نے توریت سے موافقت کی ہے مگر چونکہ محمد صاحب ابراہیم کے بیٹے بنے ہیں لہذا ابراہیم کا زکر تو مطلقاً توریت کے خلاف بیان کیا ہے۔ پس ہمکو قرُآن ہی میں گفتگو کرنا چاہئے دیکھو قرآن سے واضح ہے کہ ابراہیم آزر بُت پرست کا بیٹا تھا اور کتاب بحار الانوار سے واضح ہے کہ ابراہیم کے باپ کا نام تارخ تھا اگرچہ توریت میں ابراہیم کے باپ کا نام تارح ہے۔ روای صاحب نے صرف ایک نقطہ کا فرق کیا فقط قرآن سے ظاہر ہے کہ ابراہیم نے نماز کعبہ میں پڑھی تھی اسکے خلاف شعلی کہتا ہے کہ کبھی کوئی نبی کعبہ میں نہیں گیا اور کعبہ میں بت تھے فقط یہ بالکل سچ ہے پھر قرآن کہتا ہے کہ کعبہ ابراہیم اور اسمعیٰل نے تعمیر کیا اُسکے خلاف تفسیر مدارک و معراج وکئیر سے واضح ہے کہ قبل از طوفان نوح کعبہ یعنے مسجد کعبہ زمین کعبہ پر تھی مگر طوفان کے وقت آسمان چہارم پر چلی گئی اُسکو بیت المعمور کہتے ہیں۔ قرآن سے معلوم ہوتا ہے کہ محمد نے دین ِ ابراہیم کا پسند کیا تھا اِس کا صلہ دیا گیا ہے کہ ابراہیم کو آزر بُت پرست کا بیٹا قرار دیا اِس کی وجہ یہ ہے کہ محمد کے تمام آباو اجداد بت پرست تھے اِ س لئے واجب ہوا کہ ابراہیم کے باپ کو بھی بُت پرست قرار دیں تاکہ محمد کا سقم ہٹ جائے دوسری یہ ہے جملہ انبیا نسل ابراہیم سے ہوئے ہیں تو کسی کو یہ اعتراض نہ رہے کہ محمد ہی باپ و دادا بُت پرست تھے بلکہ جملہ انبیا کے مورث اعلے یعنے ابراہیم کا باپ بھی بُت پرست تھا فقط قرآن سے ثابت ہے کہ اﷲ نے اوّل قبلہ کو سجود گاہ قرار دیا تھا چنانچہ محمدی و نیز محمد قبلہ کیطرف سجدہ کرتے تھے جسکی وجی بخاری یہ بیان کرتا ہے کہ قبلہ کو سجدہ محمد نے صرف تفریح قلوب یہود کیواسطے کیا تھا یہ غلط ہے۔ کیونکہ یہ مضمون قرآن کے خلاف ہے جسکا زیل میں زکر ہوتا ہے اور جبکہ محمد کو تفریح قلوب یہود منظور تھی انتہا۔ یہ کہ یہود کی خاطر سے خلاف کلام اﷲ قبلہ کو سجدہ کیا تو پھر نبوت کیسے مانی جاتی ہے۔ سورہ بقر آیت ۱۴۴ سے واضح ہے کہ محمد صاحب کے خدا نے قبلہ کو سجود گاہ قرار دیا تھا۔ اور سورہ بقر آیت ۱۴۵ سے صاف ظاہر ہے کہ محمد قبلہ سے راضی نہیں تھا نہیں تھا اور خلاف قرآن کعبہ کو جو اُن کے آباو اجداد کا موروثی تبخانہ تھا اُس کی طرف رجوع تھے اور اول قبلہ کو سجود گاہ قرار دینے کی خاص وجہ یہ تھی کہ بُت پر ستان عرب و نیز محمد کے چچا محمد کو کعبہ میں نہیں آنے دیتے تھے۔ اور جبکہ محمدی نماز کے وقت ازان کہتے تھے تو کعبہ کے پااجاری ازان کے خلاف سنگھ بجاتے تھے چنانچہ مندروںمیں سنگھ بجانے کی رسم جب سے ہی جاری ہوئی ہے۔ اور جبکہ عرب کو محمد نے بزور شمشیر فتح کر لیا تو فوراً کعبہ کو سجدہ گاہ قرار دیدیا۔ چنانچہ سورہ بقر ۱۴۶ ۔ آیت سے بخوبی ثابت ہوتا ہے کہ کعبہ صرف محمدی کا قبلہ تھا۔ دیکھو قرآن کہتا ہے کہ اہل کتاب تیرے قبلہ کو ہر گز نہیں مانینگے کیونکہ ابراہیم کا بنایا ہواِ نہیں ہے بلکہ تیرے آباو اجداد کا بتخانہ ہے اور اہل کتاب اِس امر کوخوب جانتے ہیں اور قرآن سے واضح ہے کہ ابراہیم نے اسمعیٰل کو قربانی کیا اور حیات القلوب میں حضرت صادق و روضتہ الاحباب و تفسیر بیضاوی اور نیز حدیث سے ظاہری کہ اصحاق کو قربانی کیا تھا۔ اور یہ امر بھی تمہارے مفسرونکا مسلمہ ہی کہ قبلہ سلیمان کا تعمیر کیا ہواہے اور اُس میں یہودی اور اکثر نصاریٰ بھی جاتے ہیں اور کعبہ میں بجز محمدیوں کے کوئی نہیں جاتا تو کیا اس میں بھی کوئی تحریف ہوئی ہے۔ اے محمدی بھائیو قرض کر لیا جائے کہ یہود نے توریت تحریف ہی کر دی اور یہ ہی وجہ ہے کہ توریت و قرآن میں اختلاف ہے تو پھر تمہاری حدیث و روایات کیوں قرآن کے خلاف ہیں کیا یہاں بھی یہود و نصاریٰ نے تحریف کی ہے۔ اے پیارو توریت و انجیل تو تحریف نہیں ہوئی اور نہ ہو سکتی ہیں بلکہ تمہارا قرآن ہی غلط ہے اور جبکہ اصل ہی میں غلطی ہے تو پھر روایات و حدیث کیونکر درست ہو سکتی ہیں۔ اے نصاریٰ بھائیو دیکھو محّبان دین محمدی کا ادب کہ کعبہ کی چھت کو ادباً نہیں دیکھتے کیونکہ اُسکو ابراہیم نے اینٹ و پتھر سے بنایا ہے اور آسمان و ستارہ جو خاص خدا نے اپنی قدرت کاملہ سے پیدا کئے ہیں اُسکے دیکھنے اُسکے نیچے افعال بد کرنے میں زرا بھی تکلف نہیں کرتے اِسکی وجہ یہ ہے کہ آسمان صانع قدرت نے بنایا ہے اور اُس میں کوئی بھی نقص نہیں ہے اور کعبہ کی چھت میں تمام بتونکی تصاویر ہیں اور اُن کو محمد کے آباو اجداد پوجتے تھے لہذللبحاظ بزرگی آباو اجداد محمد صاحب کے اُن کو دیکھنا گناہ ہے اور دیکھو قرآن کہتا ہے کہ یہودی آزر بت پر ست کو اﷲ کا بیٹا کہتے ہیں۔ حالانکہ توریت میں کہیں آزر کا نام بھی نہیں ہے۔ پس صریح ظاہر ہے کہ قرآن جھوٹھا ہے اور کلام اﷲ نہیں بلکہ کلام محمد ہئ اور یہ تو بہت ہی صاف بات ہے کہ محمد سے تقریباً چار ہزار برس پیشتر ابراہیم کا زمانہ تھا تو اُسوقت تمہارے مورخ کہاں تھے جو تمکو صحیح حالات معلوم ہوتے۔ ظاہر ہے کہ محمد صاحب کو یہود ونصاریٰ برہ تمسخر توریت و انجیل کے بعض مقام صحیح اور اکثر بنظر صحت نبوّت محمد غلط بتلا دیا کرتے تھے اور محمد بیچارے اُمی تھےاُسی بنیاد پر آیات قرآنی نازل کر لیتے تھے چنانچہ اُسکا زکر قرآن میں بھی ہے اور نیز حیات القلوب سے بھی واضح ہے کہ اکثر تمہارے امام اور محدث یہود و نصاریٰ سے دریافت کیا کرتے تھے جیسا وہ بیان کرتے اور کچھ اپنی طرفسے لا کے کتابوں میں لکھدیتے تھے فقط اور پھر قرآن سورہ یونس رکوع ۹ میں یہ لکھا ہے کہ ہم نے حکم بھیجا موسیٰ کوکہ اپنا گھر قبلہ کیطرف بناٍ ؤ اور نماز پڑھو فقط۔ اے محباّن دین محمدی دیکھو یہ آیت سورہ بقر آیت۱۲۵ کے خلاف ہے اُس میں یہ لکھا ہے کہ جب ٹھہرایا ہمنے یہ گھر کعبہ اجتماع کی جگہ لوگونکی اور پناہ اور کھڑا رکھو جہاں کھڑا ہوا ابراہیم نماز کی جگہ فقط اِس آیت سے واضح ہے کہ ابراہیم کے زمانہ میں کعبہ عبادت گاہ قرار پایا اور ابراہیم نے اُس میں نمازی پڑھی تھی اور سورہ یونس سے ظاہر ہے کہ موُسیٰ کے وقت میں کعبہ نہیںتھا اِسلئے موسیٰ کو کہا گیا کہ قبلہ کیطرف گھر بنا کے نماز پڑھ اور یہ امر تمہارے محدثوں کا مسلمہ ہے کہ قبلہ سلیمان کا بنایا ہوا ہے اور سلیمان صدہا سال بعد موسیٰ کے پیغمبر ہوئے تو اُسوقت قبلہ کہاں تھا اور جبکہ کعبہ قبل از زمانہ موسیٰ بموجب قرآن موجود تھا تو پھر موسیٰ کو قبلہ کیطرف گھر بنانے کاکیوں حکم دیا گیا کیامحمد صاحب کے اﷲ کو یہ یاد نہیں تھا کہ ابراہیم کو کعبہ میں نماز وغیرہ ادا کرنے کا حکم ہمنے دیا ہے اور قبلہ جسکا موسیٰ کے وقت میں وجود بھی نہیں تھا اُسکی طرف گھر بنا کے نماز پرھنے کا حکم دیدیا۔ اے پیارے بھائیو یہ تو تمہارے قرآن کی آیات کا مضمون ہے کیاا سکو بھی یہود و نصاریٰ کی تحریک فرماؤ گے۔

علاوہ ازیں دیکھو سورہ بقر ۳۳ میں یہ لکھا ہے کہ جب باہر ہوا تالوت یعنے ساؤل فوجیں لیکر کہا اﷲ تجھکو آزماتا ہے ایک نہر سے پھر جسنے پانی پیا اُسکا وہ میرا نہیں اور جسے نہ چکھا وہ میرا ہے مگر جو کوئی باہر لے ایک چلو اپنے ہاتھ سے پھر پی گئے اُسکا پانی وغیرہ فقط۔ اے برادران دین محمدی دیکھو توریت یہاں محمد صاحب نے پھر غلطی کی ہے یہ زکر جدعون کا ہے مگر اُس میں بھی اختلاف ہے۔ اﷲنے جدعون کے مددگاروں کی آزمائیش نہر پر کہ تھی اور محمد نے اِزکر کو تالوت کے زکر میں شامل کردیا حالانکہ تاتوت کو کبھی بھی یہ اتفاق نہیں ہوا تھا اور جدعون ساؤل سے بہت پیشتر گزرا ہے اور جدعون کے بعد آکر رُوت اور روت کے بعد سموئیل اور سموئیل کےآخر زمانہ میں تاتوت یعنی ساؤل تھا۔

فصل چہارم در زکر یوُسف

توریت

یوسف کے بھائی اُس سے ناخوش تھے ایک مرتبہ اُس کے بھائی وادی سکیم میں گلہ چراتے تھے یعقوب نے یوسف سے کہا کہ اپنے بھائیوں کی خبر لا چنانچہ یوسف گیا تو بھائیوں کو وہاں نہ پایااور یوسف کو ایک شخص ملا اُسنے دریافت کیا کہ کیا دیکھنا ہے یوسف نے کہا کہ اپنے بھائیوں کو تلاش کرتا ہوں اُس نے جواب دیا کہ وادی دو تین میں ہیں جبکہ یوسف اپنے بھائیوں کے پاس آیا تو بھائیوں نے یوسف کو دیکھ کے کہا یہ صاحب خواب آتا ہے اُس کو مار ڈالو یا کوئے میں ڈالدو اُس کے باپ سے کہدینگے کہ اُسکو درندہ لے گیا ہے۔ چنانچہ یوسف کی بوقلمون قبا اُتاری اور یوُسف کو کوئیں میں ڈالدیا اور اُس چاہ میں پانی نہیں تھا تھوڑی دیر بعد دیکھا کہ اسمعٰیلیوں کا قافلہ گرم مصالحہ اور روغن ملبان لیکر مصر کو جاتا ہے یھودا یوسف کے بھائی نے کہا کہ یوسف کو بیچ ڈالو چنانچہ بھائیوں نے یوسف کو چاہ سے نکال کے بعیوص ۲۰؎ اسماعیلیوں کے ہاتھ بیث ڈالا اور یوسف کی قبا یعقوب کو گھر جا کے دی اور کہا یوُسف کو بھیڑیا لے گیا ۔ یعقوب نے بہت گریہ و زاری کی اور اسٰمعیلیوں نے مصر میں جا کے یوسف کو فوطیفار نامی جو فرعون کا ایک امیر تھا اُس کے ہاتھ بیچ ڈالا اُس نے یوسف کو اپنے گھر کا مختار کر دیا چونکہ یوسف نہایت خوبصورت اور نور پیکر تھا لہذا فوطیفار کی عورت یوسف کو چاہنے لگی ایک روز یوسف گھر میں گیا اور اُسوقت وہاں کوئی موجود نہ تھا فوطیفار کی عورت نے یوسف کا پیراہن پکڑ کے خواہش ظاہر کی تو یوُسفنے اِنکار کیا اور پیراہن چھوڑا کر گھر سے باہر بھاگ گیا۔ جبکہ عورت ناکامیاب ہوئی تو چلاّ کے گھر کے آدمیوں سے کہا کہ یوسف نے مجھُ سے گستاخی کی اور جبکہ میں نے غُل کیا تو اپنا پیراہن چھوڑا کے بھاگ گیا اور جب اُس کا شوہر گھر میں آیا تو عورت نے اُس سے یوسف کی شکایت کی۔ پھر اُسکو غُصّہ آیا اور یوسف کو پکڑ کے شاہی قید خانہ میں بھیجدیا۔ اور پھر یوسف نے فرعون کے خواب کی تعبیر کی اور اُسکا مختار ہو گیا فقط۔

قرآن

دیکھو سورہ یوسف ۱، ۲ رکوع یوسف کےبھائیوں نے اپنے باپ سےکہا کہ یوسف کو ہمارے ساتھ بھیجدے اُسنے کہامجھ کو ڈر ہے کہ اس کو کوئی درندہ نہ لیجاوےبھائیوں نےکہا کہ اُسکےہم زمہ دار ہیں پھر یوسف کو لیچلے تو باہم مشورہ کیاکہ یوسف کو کوئیں میں ڈالیں۔ چنانچہ کنوئیں میں ڈالدیا اور شام کو گھر پر آکے کہا کہ یوسف کو بھیڑیا لے گیا اور یوسف کے کرتے میں خون لگا کےیعقوب کو دیا اور ایک قافلہ آیا اُسکے پنسارے نے کوئیںمیں ڈول ڈالا تو یوسف نے ڈول پکڑ لیا پنسارے نے ڈول کھینچ لیا اور جب یوسف کو دیکھا تو بہت خوش ہوا اور کئی پالیوں میں فروخت کر دیا اور اِسی سورہ ۳ رکوع مین اور جس شخص نے یوسف کو خریدا تھا مصر میں اپنی عورت سے کہا کہ اسکو آبرو سے رکھ شایدٔ اُسکو ہم بیٹا بنائیں۔ پھر عورت نے یوسف کو پھُسلایا اور دروازہ بند کرکے بولی کہ شتاب شتاب کر یوسف نےکہا خدا کی پناہ عزیز میرا مالک ہےمیں ایسا نہیں کرونگا توعورت نے دروازہ بند کیا اور پھر دونوں دروازہ کی طرف دوڑے عورت نی چیر ڈالا اُسکا کرُتہ پیچھے سے اور دروازہ پر دونوں عورت کے خاوند سے مل گئے عورت نے کہا اور کچھ سزا نہیں ایسے شخص کی جو چاہے تیرے گھر میں برُائی مگر قید میں پڑے یوسف نےکہا اس عورت نے خواہش کیتھی ایک شخص نے عورت کے گھروالوں میں سے کہا کہ اگر یوسف کا کرُتہ آگے سے پھٹا ہے تو عورت سچی ہے اور اگر اُسکا کرُتہ پیچھے سے پھٹا ہے تو یوسف سچا ہے اور عورت جھوٹی ہے۔ جب عزیز نے دیکھا کہ یوسف کاکرُتہ پیچھے سے پھٹا ہے تو عورت سے کہا تو جھوٹی ہے اور یوسف سے کہا کہ تو جانے دے اور عورت سے کہاکہ تویوسف سے اپناگناہ بخشوا پھر شہر کی عورتوں نے کہا کہ عزیز کی عورت اپنے غلام پر مرتی ہے تو پھر عزیز ی کی عورت نے سب شہر کو عورتوں کو مجلس میں بُلوایا اور سب سے کے ہاتھوںمیں ایک ایک چُھری دی اور یوسف سے کہا کہ نکل آ۔ جبکہ یوسف نکلا تو سب عورتوں نے اپنے ہاتھ کاٹ ڈالے۔ پھر عزیز کی عورت نے کہا کہ یہ وہ ہی ہے جس کا تم نے الزام لگایا کہ غلام نے اُس کی خواہش پوُری نہیں کی اور میں پھر کہتی ہوں کہ اگر وہ میرا کہنا نہ کریگا تو قید میں پڑیگا۔ پھر یوں یوسف نے قید قبول کی اور عورت کا کہنا نہیں کیا۔ اور پھر اُن ہاتھ کئی تعریف عورتوں نے بادشاہ کے سامنے یوسف کی پارسائی کی تعریف کی اور عزیز کی عورت نے اپنا قصور تسلیم کیا۔

حدیث

اول شیخ سعدی کہتا ہے۔

زمصرش بوئے پیراہن شمیدی

چراور چاہ کنعاش نی دیدی

اور قصص الانبیا میں لکھا ہے کہ جنگل میں اوّل بھائیوں نے یوسف کو خوب مارا اور پھر ایک چاہ میں جو بیت المقدس کے قریب ہے باندھکر ڈالدیا وہ کنوُا ۷۰ گز گہرا تھا۔ تھوڑی دوُد تک رسی لٹکائی پھر اُسے کا ٹکر نیچے گرا دیا تو فوراً جبرائیل فرشتہ نے نصف کنوئیں میں آکے تھام لیا اور آہستہ آہستہ لیجا کر پتّھر پر بٹھا دیا اور بہشت سے کھانا پانی لا کر دیا کرتا تھا۔پھریوسف کا کرُتہ لیکر بھائی گھر پہنُچے اور یعقوب سے کہا یوسف کو بھیڑیا لے گیا یعقوب نے کہا تم جھوٹے ہو اگر بھیڑیا یوسف کو لیجاتا تو اُسکا کرُتہ چاک ہوتاا تم نے یوسف کے ساتھ فریب کیا ہے اچھا اُس بھیڑئیے کو حاضر کو جس نے یوسف کو کھایا ہے یوسف کے بھائی جنگل سے ایک بھیڑ یا پکڑ لائے۔ بھیڑیئے نےکہا میں نے یوسف کو نہیں کھایا۔ پیغمبر وں کا بدن جانوروں کو کھانا حرام ہے اور یوسف ایک رات دِن یا تین رات دِن یا ساتھ رات دِن کنوئیں میں رہا۔ اور جبکہ قافلہ والے یوسف کو مصر میں نے جاتے تھے توراستہ میں یوسف شتر پر سے کود کر اپنی ماں کی قبر پر رونے کو جاتا تھا تو قافلہ والوں نے اُس کو پکڑکر خوب طمانچہ مارے اور مصر میں جا کر عزیز مصر کے ہاتھ یوسف کو فروخت کیا اور اُس کی قیمت یہ قرار پائی تھی۔ مشرؔفی دس لاکھ۔ شتر نجیؔ ہزار۔ موتؔیوں کے ہار ایکسو۔ روؔپہلے پاندان ہزار۔ شمامہؔ غبرزار۔ خطاؔئی غلام ہزار۔ کافورؔ ہزار من۔ ہتھیؔاروں کے دستہ ہزار۔روُمی ؔ اطس کی پاشاک ہزار اور بحرالمواج میں لکھا ہے کہ یہ قیمت اور دولت دے کے یوسف مالک پر خفا ہوا اور کہا کہ نبی زادہ ہوں مجھے فروخت نہ کر بلکہ مفت عزیز کو بخشدے مالک نے کہا اچھا میں کچھ نہیں لیتا مگر میرے اولاد نہیں ہے تو دعا کر کہ اولاد ہو۔ چنانچہ یوسف نے دُعا کی تو اُس کی عورت حاملہ ہوئی اور ہر حمل میں دو دو بیٹے پیدا ہوئے یا اُسکی لونڈیاں تھیں اُن کے دو دو بیٹے پیدا ہوئے اور پھر زلیخا نے ایک بُت خانہ بنایا اور بُڑھیا سے جوان موئی اور یوسف کے ساتھ شادی کی۔ اور زلیخا یوسف کے عشق میں تمام مصر کی گلیوں میں مثل دیوانوں کے پھرتی تھی وغیرہ اور حیات القلوب میں بردایت امام حضرت صادق لکھا ے کہ جسوقت عزیز کی عورت نے یوسف سے حرام کرانا چاہا تو یوسف کو اُسکا باپ یعقوب اُس مکان میں نظر آیا اور یوسف سےیہ کہا کہ خبردار زنا مت کرنا۔ الغرض ہزار ہا قصہ ایسے لکھے ہیں جس کا جی چاہے حیات القلوب اور قصص الانبیا میں دیکھ لے میں بنظر طوالت اسی پر ختم کرتا ہوں۔

اے محبان دین محمدی توریت اور قرآن میں جو اختلاف ہے اُس کو جواب تو یقیناً تم یہ ہی دو گے کہ یہود منے توریت کو بدل دیا ہے مگر زرا اپنے جی میں انصاف کرو کہ اگر یہود توریت کو بدلتے تو صرف محمد کے حقمیں جو ہوتا اُسی کو بدلتے یوسف جو صدہا سال پیشتر محمد سے ہوا ہے اور اُس کے بعد موسیٰ و جدعونؔ رما روتؔ کا زکر اور پھر سموایل تالوب یعنے ساؤل و داؤدو سلیؔمان و یوحناؔ و مسیحؔ وغیرہ گزرے اور اُس کے بعد محمد صاحب نے دعویٰ نبوت کیا۔تو اُس وقت یہ قرآن اور یہ مضمون مندرجہ قرآن کہاں تھا جو توریت میں تحریف ہوتی۔ اور یہ بھی واضح رہے کہ اسی توریت کو محمد نے اپنے زمانہ میں صدہا مقام پر اپنی قرآن میں تصدیق کیا ہے جیس کہ اوپر زکر ہو چکاُ ہے تو پھر کب توریت منحرف ہوئی اور اس تحریف کی بحث میں ڈاکڑ وزیر خان اور نیز تمہارے علما نے یہ بحث کیہے کہ تحریف الفاظ کا بدل ڈالنا وہ باعتبار لفظ ہے یا با عتبار معنے۔ دوسرے یہ کہ وہ عمداً ہویا سہواً یا معنی الفاظ کو خلاف بیان کرنا وغیرہ۔ اِس مقام پر تو یہ معاملہ نہیں؟ قرآن کا تمام مضمون توریت کے خلاف ہے تو یہاں تحریف کیسی ہے۔ لہذا بحث تحریف تمہاری ہٹ دھرمی ہے کیونکہ تحریف کا کوئی ثبوت تمہاری طرفسے نہیںپیش ہوا اب ہم منفس قرآن کا زکر کرتے ہیں۔ دیکھو ایک مقام پر قرآن سے واضح ہے کہ جب عورت اور یوسف دونوں اُس کے شوہر سے دروازہ پر مل گئے توعورت نے یوسف کی شکایت کی اور دوسری جگہ اسی قرآن سے واضح ہے کہ عزیز کی عورت نے مصر کی عورتوں کومجلس میں بلایا اور جلسہ عام میں یہ کہا کہ اگر یوسف میری خواہش پوری نہ کریگا تو قید میں پڑیگا تو اُسوقت عورت کے شوہر کو زرا بھی شرم نہ آئی اور اپنی بدچلن عورت کی خواہش پر یوسف کو قید کیا اور جسوقت یوسف قید سے بادشاہ کے پاس پُہنچا تو عزیز کی عورت نے اپنا ناپاک خیال جو یوسف کی طرف تھا ظاہر کیا اس سے کیا غرض تھی اور یہ امر تو مسلمہ ہے کہ تمام عورتیں مصر اور زلیخا کا شوہر زلیخا کی ناپاک کواہش میں شامل تھے۔ دوُسرے قرآن میں یہ لکھا ہے کہ عزیز نےاپنی عورت سے کہا کہ یوسف سے اپناگناہ بخشوا تو کیا مصریوں میں جو عورت خواہش حرام ظاہرکرے اور اُسکا انشا ہو جائے تو یہ رسم باطریقہ ہے کہ خاوند عورت سے کہے تو معافی چاہ۔

محمد صاحب نے تو قرآن میں عزیز مصر اور اُس کی جوروی کو زلیل کیا تھا اور یوسف کو صاف رکھا تھا۔ مگر راوی صاحب نے یوسف کی بھی خبر لی کہ زلیخا سے بُت کانہ بنوا کراﷲ سے ایسی مدد دلیوائی کہ زلیخا کو ضعیف سے جوان بنا کے یوُسف سے شادی کرائی۔ تو اے ناظرین اصول دین محمدی پر غور کرنا چاہئے اور پھر قرآن اور قصص کا مقابلہ کرنیسے ظاہر ہے کہ قرآنسے روایات وغیرہ وغیرہ غلط ثابت ہوتے ہیں اور حدیث و روایات سے قرآن کا بطلان ہوتا ہے۔ اور پھر لطف یہ ہے محمدی صاحب دونوں کو سچا جانتے ہیں۔ اب محمدی صاحب فرمائیں کہ توریت اور قرآن میں جو اختلاف ہے اُس کی تو یہ وجہ ہے کہ توریت منحرف ہوگئی لیکن قرآن و حدیث وغیرہ کیوں قرآن کے خلاف ہیں کیا یہاں بھی یہود اور نساریٰ نے دست اندازی کی ہے اور یہ تو بتلا و کہ جسوقت یوسف عزیز کے مکان میں گیا اور عورت نے اُس پر الزام لگایا تو سوائے عورت اور یوسف کے اور کوئی اُس مکان میں نہیں تھا ۔ چنانچہ یہ امر تمہارے قرآن سے بھی چابت ہے تو پھر حضرت صادق کو یہ کیسے معلوم ہوا کہ یوسف کا باپ یعقوب اُس گھر میں یوسف کو نظر آیا۔ اور عورت نے بُت پر کپڑا ڈالدیا تھا۔

اےبرادران دین محمدی قرآن میں جو یوسف اور زلیخا کے تعشق کا قصہ محمد صاحب نے لکھا ہے اس کی وجہ یہ ہے کہ محمد صاحب خود بھی حسن پرست اور عاشق مزاج تھے چنانچہ اپنے غلام کی عورت جو خوبصورت دیکھی اُس کو اپنی زوجیت میں لے آئے تھے۔ اور علیٰ ہذا القیاس روایت ۴ سے ثابت ہے کہ محمد اپنی جوان (بزرگ) بیٹی فاطمہ کو جو نہایت حسین اورجبین تھی انسان کی صورت میں حور سے نامزد کر کے اپنی گود میں بٹھا کے چومتے اور سونگتے تھےحیات القلوب میں معتبر حضرت صادق وابن عباس سے روایت کرتا ہے کہ ایک روز عایشہ نزدیک حضرت کے آئی کیا دیکھتی ہے کہ محمد نے فاطمہ کو گود میں بیٹھا رکھا تھا اور چومتا تھا۔ عایشہ نے کہا کہ اس بزرگ (جوان) لڑکی کو (انیقدر) اس قدر کیوں چومتا ہے اور کس سبب سے (افراط) کثرت عشق ظاہر کرتا ہے۔ محمد نے جواب میں معراج کا طول طویل بیان بتلا کر یہ کہا کہ جب میں معراج کو گیا تو فرشتوں نے مجھے ایک چھوارا دیا اور اس چھوارے سے لفظ بنا اور جب زمین پر آیا خدیجہ سے نزدیکی کی اُس کو فاطمہ کا حمل ٹھہرا۔ پس فاطمہ حور ہے انسان کی صورت میں جب بہشت کا مشتاق ہوتا ہوں تو فاطمہ کو چومتا ہوں"۔ یہ جواب محمد کا صرف عایشہ اور محبان دین محمدی کے ایمان لانے کے قابل ہے کیونکہ اگرچہ محمد نے نہایت چالاکی اور ہوشیاری سے جواب کو بنایا پھر بھی اہل دانش و صاحب خرو کے نزدیک محمد کا جواب ہی عایشہ کے ڈانٹنے کی غرض کو ثابت کرتا ہے۔ علاوہ بریں اگر عایشہ محمد کو نا جایز حرکات میں مصروف نہ دیکھتی تو نہ تو اُسکو ڈانٹتی اور نہ حجت ہوتی اور نہ محمد صاحب کو ایسے جواب کے گھڑے کی ضرورت پڑتی۔ دوم۔ اینقدرؔ۔ افارؔط و دخترؔ بزرگ کے لحاظ سے صاف ظاہر ہے کہ اُن حرکات میں اعتدال سے بڑھکر تعشق کی کثرت پائی جائی ہے۔ سوم۔ جب فاطمہ حور قرار دی گئی تو وہاب کس کی حور سمجھی جاوے اور حور کا انسان کی صورت میں اس جہان میں کیا کام ہو سکتا ہے؟

فصل پنجم در زکر موُسیٰ

توریت

جب مصر میں بنی اِسرائیل بکثرت ہو گئے تو فرعون نے کہا ایسا نہ ہو کسی وقت بنی اِسرائیل ہمپر غالب ہو جائیں۔ لہذااُن کے ساتھ عاقلانہ تدبیر کرنا چاہے۔ چنانچہ جنائی دائیوں کو حکم دیا کہ جب عبرانی عورتوں کے لڑکاپیدا ہو تو ہلاک کر دو اور لڑکی ہو تو زندہ چھوڑ و لیکن دائیوں نے خوف خدا ایسا نہیں کیا۔ پھر فرعون نے دائیوں سے دریافت کیا۔ دائیوں نے کہا کہ عبرانی عورتیں مضبوط ہیں دائی پہنچنے سے پیشتر خود جن لیتی ہیں۔ بعدہ فرعون نے اپنے ملازمین کو حکم دیا کہ عبرانیوں کو جو لڑکا پیدا ہو اُسکو دریامیں ڈالدو اور لڑکی زندہ چھوڑ دو۔ یہ لڑکا بہت خوبصورت تھا ۔ اُسکی ماں نے تین مہیںہ تک اُسکو چھپایا جبکہ زیادہ چھپانہ سکی تو سرکنڈہ کے ٹوکرے میں رکھ کے دریا کنارے جھاؤ میں رکھ دیا۔ اور فرعون کی بیٹی دریا پر غُسل کو آئی تو اُس ٹوکرے کو منگوالیا اُس میں لڑکا پایا۔ تو اُسکو رحم آ یا اور کہا کہ کسی عبرانی کا لڑکا ہے۔ تب اُس کی بہن نے فرعون کی بیٹی سے کہا کہ اگر تو اجازت دے تو اسکے دوُدھ پلانے کو ایک عبرانی عورت لے آؤں۔ اُسنے کہا لا۔ پھر وہ اُس لڑکے کی ماں کو لے آئی۔ فرعون کی بیٹی نے لڑکا اُس کو دیا اور کہا اسکی پرورش کر تجھکو درماہا ملیگا۔ چنانچہ اُس نے اُسکو پرورش کیا۔ جبکہ لڑکا بڑا ہوا تو اُسکو فرعون کی بیٹی کے پاس لائی۔ اُسنے اُسکا نام موسیٰ رکھا اور وہ اُسکا لڑکا ٹھہرا ۔ پھر موسیٰ ایک مصری کو جو ایک بنی اِسرائیل پر جبر کر رہا تھا مار کے مصر سے بھاگ گیا اور مدیان کی سات بیٹیاں تھیں اُن میں سے صفورا کے ساتھ شادی کی اور اُس سے لڑکا پیدا ہوا اُس کا نام جیرسون رکھا۔ اور موسیٰ اپنے سسر کے گلہ کو چراتا تھا۔ جبکہ حورب پہاڑ کے نزدیک آ یا تو خداوند کا فرشتہ ایک بوٹے میں آگ کے شعلہ کی مانند ظاہر ہوا۔ اور اللہ نے موسیٰ سے باتیں کیں اور معجزے بخشے ۔ پھر وہ معہ ہارون مصر کو گیا اور بنی اسرائیل کو مصر سےآزاد کرایا فقط۔

قرآن

سورہ قصص ۱۔ رکوع۶ اور ہم نے حکم بھیجا موسیٰ کی ماں کو کہ اُس کو دودھ پلا پھر جب تجھ کو ڈالدے اُس کو پانی میں اور نہ کر خطرہ۔ اُسی سورہ ۷آیت پھر اُٹ لیا اُس کو فرعون کے گھر والوں نے کہ ہو اُسکا دُشمن بیشک فرعون اور ہامان اور اُسے کے لشکر تھے خطا پر اور بولی فرعون کی عورت کی آنکھوں کی ٹھنڈک مجھکو اور تجھ کو اس کو نہ مارو اسکو ہم بیٹا بنا ئینگے۔ اور صبح کو موسیٰ کی ماں کے دل میں قرار نہ رہا قریب تھاکہ ظاہر کر دے بے قراری کو اگر ہم نے نہ گرہ کر دی ہوتی اُسکے منُہ پر اور کہدیا اُسکی بہن کو اُسکے پیچھے چلی جا وہ دیکھتی رہی پیچھے ہو کر اور اُن کو خبر نہ ہوئی۔ اُس نے فرعون کی عورت سے کہا کہ تو کہے تو اُس کے واسطے دائی لاؤں۔ چنانچہ وہ موسیٰ کی ماں کو لائی اور فرعون کی عورت نے موسیٰ اُسکو دیا۔ اُسی سورہ ۲ رکوع ۱۳ آیت۔ جب پہنچا اپنے زور پر تو ہم نے اُسکو حکم دیا اور سمجھ اورآیا شہر میں جسوقت بے خبر ہوئے وہاں کے لوگ پھر لڑتے دیکھے اُسنے دو مرد ایک اُس کے دوستوںمیں سے اور دوُسرا اُسکا دشمن ۔ اُسکے دوست نے فریاد کی اُس کے دشمن کی پھر مکُہ مارا موسیٰ نے دُشمن کے کہ وہ مر گیا۔ پھر موسیٰ نے کہا میں نئ برا کیا۔ پھر میں کبھی گنہگار کا مددگار نہ ہونگا۔ پھر جب صبح ہوئی تو موسیٰ شہر میں ڈرتا ہوا گیا تو پھر اُس شخص دیروزہ نے موسیٰ سے فریاد کی تو موسیٰ چاہتا تھا کہ دشمن کو مارے مگر اُسنے فریاد کی کل تو نے ایک مصری کو مار ڈالا ہے کیا مجھکو بھی ماریگا۔ تو موسیٰ بھاگ گیا اور مدیان میں پہنچ کر اپنی بیوی کے واسطے ٹھ دس برس نوکری کی اور جب وہ مدت پوری کر چُکا تو اپنی بیوی کو لیکرچلا اور راستہ میں ایک آگ دیکھی تو اپنے گھر کے لوگوں سے کہا کہ تم یہاں ٹھہرو میں تمہارے تانپے کے واسطے آگ لاؤں۔ جب اُس آگ کے پاس پہنچا تو اُس میدان کی دہنی طرف برکت والے تخت میں آواز آئی۔ اور سورہ طہ رکوع ۳۔ ۳۹ آیت۔ ہم نے حکم بھیجا موسیٰ کی ماں کو کہ ڈالدے اس کو صندوق میں پھر اُسکو ڈالدے پانی میں پھر اُسکو ڈالے کنارے پر۔

حدیث

قصص الانبیاء میں لکھا ہے کہ موسیٰ قاموس یا ولید بادشاہ مصر کے عہد میں پیدا ہوا۔ یہ فرعون یا تو یوسف والا فرعون تھا جو اِس قدر مدت تک جیا یا اُسکا بیٹا تھا آخر کو کافر ہو گیا تھا اور اپنے کو خدا کہتا تھا اور خدا سے فرعون نےدُعا کی تھی کہ مجھ کو سب دُنیا دے مجھ کو آخرت کی کوئی چیز نہیں چاہئے۔ چنانچہ خُدا نے اُسکی دعُا قبول کر کے دریاء نیل اُس کے قابو میں کر دیا تھا ۔ جب وہ کہتا چل تو چلتا اور جب کہتا کہ ٹھہر جا تو ٹھہر جاتا اُسکے پاس ہزار نجومی اور ہزار جادو گر تھے۔ ایک روز نجومیوں نے فرعون سے کہا کہ ایک شخص پیدا ہو گا وہ تجھکو غارت کر دیگا۔ یا فرعون نے اسکا خواب دیکھا اپنے بتوں سے دریافت کرتے تھے کہ وہ لڑکا کب پیدا ہوگا۔ جسوقت خدا نے عرش پر فرشتوں سے کہا کہ میں فلاں تاریخ جمعرات کے دن تین گہری رات گئے اُس کی ماں کے پیٹ میں آنے دوُنگا یہ خبر نجومیوں کے دیوتا آسمان پر سے چُرا لائے اور موسیٰ کے رحم میں آنے کا وقت نجومیوں کو بتا دیا ۔ فرعون نے حکم کہ کوئی بنی اسرائیل اپنی عورت کے پاس اُس جمعرات کو نہ جائے اور عمران موسیٰ کے باپ سے کہاکہ تو میرے دروازے پر پہرہ دے عمران کی عورت بوجاؔ بن اُسکے پاس ۤئی اور عمران سے ہمبستر ہوئی اور حاملہ ہو کر چلی گئی۔ اُسوقت نجومیوں نے غُل کیا کہ دُشمن رحم میں آگیا۔ پھر یہ بندوبست ہوا کہ جو لڑکا بنی اسرائیل میں پیدا ہو مار ڈالا جائے اور لرکی کو جیتی رہے۔ چنانچہ نوہزار لڑکے مارے گئے۔ اور جب موسیٰ پیدا ہوا تو دائیوں نے رحم کر کےچھوڑ دیا۔ اور معالم کہتا ہے کہ موسیٰ کی ماں نے موسیٰ کو صندوق میں رکھ کر دریامیں ڈالدیا وہ بہتا ہوا فرعون کے باغ میں پہنچا وہاں فرعون اور اُسکی بیوی اور لڑکی موجود تھی اُنہوں نے موسیٰ کو پایا اور بیٹا کر کے پالا اور موسیٰ نام رکھا ایک روز موسیٰ فرعون کی گود میں تھا۔ موسیٰ نے فرعون کی داڑھی نوچ لی۔ فرعون نے موسیٰ کےمارنیکاحکم دیا تو فرعون کی عورت نے سفارش کی اور کہا یہ نادان بچہ ہے آگ میں بھی ہاتھ ڈالدیتا ہے۔ پھر فرعون نے آزمائش کی جو اہرات اور آگ موسیٰ کے سامنے رکھی موسیٰ جواہرات اُٹھانے لگا تو جبرائیل نے موسیٰ کا ہاتھ آگ میں دیدیا۔ اور موسیٰ نے آگ منُہ میں رکھ لی تو زبان جل گئی۔ اِسی وجہ سے موسیٰ کی زبان میں لکنت تھی اور ہاتھ میں ید بیضا۔ حیات القلوب میں لکھا ہے کہ موسیٰ کی ماں نے فرعون کے ڈر سے موسیٰ کو تنور میں ڈالدیا تھا اور امام محمد باقر لکھتا ہے کہ اس موسیٰ سے پیشتر چالیس موسیٰ ہو چکے تھے اور حضرت صادق سے منقول ہے کہ موسیٰ کی آلہ تناسل یعنے پیشاب کی جگہ نہیں تھی۔ دوسرا کہتا ہے کہ موسیٰ کیواسطے صندوق آسمان سے جبرائیل لایا تھا۔ کہیں عورتوں کی امذام نہانی کا زکر ہے۔ غرضکہ صدہا قصِٔہ دِل بہلانے کے واسطے لکھے ہیں۔

اے ناظرین سب سے پیشتر میں اُن راویوں کی تعریف کرتا ہوں کہ خوب ہی تحقیقات کی ہے ہندوؤں کے مذہبی مبالغے کو بھی بالائے طاق رکھدیا ہے۔ پھر محمد ی بھائیوں جو آفرین کہتا ہوں کہ نہایت کوش اعتقاد اور بھولے ہیں۔ جو ان کتابوں کو دین ایمان سمجھتے ہیں۔اب خلاصہ کلام بیان کرتا ہوں۔دیکھو قرآن توریت کے بالکل خلاف ہے۔ اسکا تو جواب محمدی یہ دینگے کہ توریت تحریف ہو گئی ہے۔ لیکن واضح ہو کہ آیات قرآنی متزکرہ صدر میں تین چار مقام پر محمدی نے غلطی کی ہے۔ اؤل آیت میں لکھا ہے کہ موسیٰ کی ماں کو حکم دیا کہ موسیٰ کو دوُدھ پلا۔ اور جب ڈر ہو تو موسیٰ کو پانی میں ڈالدے۔ اور پھر سورہ طہ میں لکھا ہے کہ موسیٰ کی ماں کو ہم نے حکم دیا کہ صندوق میں موسیٰ کو رکھ کے دریا میں دریا میں ڈالدے دُوسرے مقام پر اَؤل یہ لکھا ہے کہ موسیٰ مصری کو مارکے پچھتاتااور کہا کہ مھر کبھی کسی گنہگار کی مدد نہ کرونگا دوُسرے ہی دن دوسرے مصری کو مارنا چاہتا تھا۔ تو ایک آیت ضرور غلط ہے۔ دوم حیات القلوب سے واضح ہے کہ جسوقت موسیٰ کی ماموسی کو فرعون کی عورت آسیہ کے ملاحظہ کے واسطے فرعون کے گھر میں لیجاتی تھی تو اُسیوقت ہزار ہا بنی اِسرائیل فرعون کے محل تک بازاروں میں موسیٰ کے واسطے تحفہ اور ہدیہ لاتے تھے۔ تیسرے۔ یہ کہ جب موسیٰ نے ایک بنی اِسرائیل کی مدد کی اور پھر پچھتاتا اور توبہ کی کہ آئندہ پھر کسی گنہگار کی امداد نہ کرونگا۔ تو موسیٰ پر یہ الزام وارد ہوتا ہے۔ کہ اَؤل اُسنے ایک بنی اِسرائیل سے نفرت کی اور خلاف شیتِ ایزدی یہ کلمہ کہا کیونکہ موسیٰ کا پیدا ہونا بنی اِسرائیل کی رہائی کیواسطے مخصوص تھا۔ چوتھے۔ قرآن میں لکھا ہے کہ موسیٰ نے بیوی کیواسطے آٹھ یا دس برس نوکری کی یہ بالکل غلط ہے دیکھو توریت یہ زکر یعقوب کاہے یعنی یعقوب نے اپنی عورت کے واسطے اپنےخُسر کی آٹھ برس نوکری کی یہ بالکل غلط ہے دیکھو توریت یہ زکر یعقوب کا ہے یعنی یعقوب نے اپنی عورت کے واسطے اپنےخُسر کی آٹھ برس نوکری کی تھی۔ علاوہ ازیں ناظرین انساف فرمائیں کہ توریت اور قرآن میں جو تضادت ہے اُسکی نسبت محمدی کہتے ہیں کہ توریت تحریف کر دیگئی۔ تو روایات و حدیث قرآن کے کیوں خلاف ہیں۔ ایک لکھتا ہے کہ اللہ نے عرش پر فرشتوں سے کہا کہ فلُاں جمعرات کو تین گھڑی رات گزرے موسیٰ کو شکم مادرمیں آنے دونُگا اور قرآن سے واضح ہے کہ فرعون کو موسیٰ کے آنے کی خبر نہیں تھی۔ تو پھر قرآن صحیح ہے یا یہ مضمون ۔ اور پھر لکھتا ہے کہ فرعون کے نجومیوں کے دیوتا عرش پر سے موسیٰ کے شکم مادر میں آنے کی خبر چُرالائے تھے۔ اور قرآن سورہ حج رکوع ۲۔ ۱۸ سے واضح ہے کہ شیطان بہشت کی خبر چوری سے لایا کرتا تھا لیکن روای صاحب کی تحقیق قرآن سے بھی مستند ہے جو فرماتے ہیں کہ جادو گروں کے دیوتا عرش پر سے خبر چرُاتے ہیں حالانکہ بوقت معراج محمد بھی وہاں تک نہیں پہنچتے تھے چنانچہ سعدی کا مقولہ ہے۔

اگر یک سرے موئے برتر پرم
فروغ تجلی بسوزد پرم

پھر راوی صاحب کو یہ صحت کیونکر ہوئی کہ دیوتا عرش سے خبریں چرُاتے ہیں۔ تو طاہر ہے کہ محمد سے دیوتا بہت بڑے ہیں جو عرش تک پہنچتے ہیں۔ اور خدا کے عرش پر بڑی غفلت ہے۔ جو اُسکے راز کی مخفی خبریں چوری جاتی ہیں۔ تو پھر ہم کو بموجب عقیدہ محمدی یہ کہتے ہیں کیوں تکلیف ہے کہ محمد کے پاس جو وحی آتی تھی وہ بھی دیوتا لاتے تھے اﷲکو وحی کی خبر بھی نہیں ہوتی تھی اور یہ ہی وجہ ہے کہ قرآن توریت کے خلاف ہے۔ اگر کلام اﷲ ہوتا تو ضرور ہے کہ توریت کے موافق ہوتا قرآن سے ظاہر ہے کہ موسیٰ کو فرعون کی عورت نے پرورش کیا معالم کہتا ہے کہ خود فرعون نے موسیٰ کو پالا۔ اور صندوق جبرائیل آسمان سے لایا تھا۔ اور دیکھو کیسے شرم کی بات ہے جو تمہارے راوی کہتے ہیں کہ موسیٰ کی فرعون کے دروازے پر آکے اپنے شوہر سے ہمبستر ہوئی۔ دوسرا کہتا ہے کہ موسیٰ کی ماں نے فرعون کے ڈر سے موسیٰ کو تنور میں ڈالدیا تھا۔ اور حضرت صادق فرماتے ہیں کہ موسیٰ کے پیشاب کی جگہ نہیں تھی۔دُوسرا کہتا ہے کہ بنی اسرائیل کی عورتوں کےفبرصیں اﷲ نے بند کر دیئے تھے۔ غرضکہ صدہا قصہ قرآن خلاف لکھے ہیں اب محمدی صاحب فرمائیں کہ یہ قصٔے جواد پر لکھے ہیں یہ صحیح ہیں یا قرآن۔ اور منجملہ اُن کے کون کونسے امور یہودیوں نے توریت سے خارج کر دئیے یہ تو اظہر من الشمس ہے کہ قرآن توریت کو غلط قرار دیتا ہے اور پھر وہی قرآن توریت کو تصدیق کرتا ہے۔ دیکھو سورہ بقر ۱۱ رکوع۔ ۸۶ آیت کا یہ مضمون ہے کہ ہم نے دی ہے موسیٰ کو کتاب اور پائدار پائی سچی بعد اُسکے رسول اور عیسیٰ مریم کے بیٹے کو معجزے دئیے اور قوت دی اُسکو روح پاک سے۔ اور پھر اسی سورة رکوع ۳۶ میں لوگو ں کا دین ایک ہے بھیجی اﷲ نے اُنکے ساتح کتاب سچی اور پحر اُسی سورہ رکوع ۳۳ میں یہ سب رسول ہیں برُائی دی ہم نے اُن میں ایک کو ایک سے کوئی ہے کہ کلام کیا اﷲ نے اُس سے اور بلند کیا یعقوب کے فرجے کو اور دی ہم نے عیسیٰ کو نشانیاں اور زور دیا اُسکو روُح پاک سےفقط۔

اب ناظرین اِنصاف فرمائیں کہ قرآن ایک مقام پر توریت کو غلط لکھتا ہے اور دوُسری جگہ اُسکو تصدیق کرتا ہے تو کیونکر کلام اﷲ ہو سکتا ہے اور لطف یہ ہے کہ قرآن کو خود اپنی ہی صحت نہیں ہے ۔ چنانچہ سورہ عمران ۱۔ رکوع ۷ آیت کا یہ مضمون ہے کہ وہی ہے جس نے اتاری ہے تجھ پر کتاب اُس میں بعض آیت پکے ہیں جو جڑ ہیں کتاب کے اور دوُسرے میں کسی طرف ملتی۔ پس واضح ہے کہ سب قرآن ٹھیک نہیں بعض آیات میں جوجڑ ہیں کتاب کے۔ اس کی محمدی صاحب نے صحت نہیں کی وہ آیات کون سی ہیں جو جڑ ہیں کتاب کے۔ اے پیارےمحمدیو محمد ساحب اگرچہ اُمی تھے مگرنہایت ہی ہوشیار تھے۔ دیکھو اِس آیت میں اُنہوں نے صاف لکھدیا ہے کہ اِس کتاب معنی قرآن میں بعض آیات پکی ہیں۔ معنی وہ باتیں جو قرآن میں لکھی ہیں اور توریت و انجیل کے مطابق ہیں صرف وہی ٹھیک ہیں۔ باقی قرآن سب غلط ہے اور اگر محمدی صاحب اسکو خلاف سمجھیں تو بتلائیں کہ وہپکی آیات جو کتاب کی جڑ ہیں کون کونسی ہیں۔

پھر دیکھو کہ تمہارے روای فرعون کو کافر کہتے ہیں مگر اُسکے ساتھ یہ بھی کہتے ہیں کہ فرعون نے خدا سے دعُا مانگی تھی کہ مجھکو تمام دُنیاوی چیزیں دے۔ بہشت کی کوئی میں نہیں چاہتا۔ چنانچہ یہ دعا فرعون کی اﷲ نے قبول کی تھی اور دریائے نیل اُسکے تابع کر دیا تھا جیسا کہ اوپر زکر ہوُا فقط۔

اے محبان دین محمدی تمہارے عقیدہ کے بموجب منکر خُدا کو کافر کہتے ہیں اور جبکہ فرعون نے خدا سے دُعا مانگی اور وہ قبول بھی ہو گئی۔ تو پھر فرعون کافر کیونکر قرار دیا گیا بلکہ مستجابُ الدعوات تھا۔

فصل ششم در زکر داؤد

توریت۔۔ ظاہر ہے کہ داؤدبنی اسرائیل کے بادشاہ اور نبی تھے۔

قرآن

سورہ ص رکوع ۲۔ آیت ۷۔ اور ہم نے تابع کئے پہاڑ اُس کے ساتھ پاکی بولتے شام کو اور صبح کو۔ اُسی رکوع میں اور اُڑتے جانور جمع ہو کر سب تھے اُس کے آگے رجوع رہتے۔

حدیث

حیات القلوب میں بحوالہ حدیث سادق سے روایت ہے کہ دا‍‍ؤد یکشنبہ کے روز بعارضہ بخار فوت ہوئے تو تمام پرند جانوروں نے اُن کے جنازہ پر اپنے پر‍‍ٔوں کا سایہ کر لیا تھا۔ اور بعض کہتے ہیں کہ پہاڑ اور جانور دا‍ؤد کے ساتھ پھرتے تھے۔ اور بعض کہتے ہیں کہ پہاڑو جانور داؤد کے ساتھ نماز پڑھتے تھے اور گاتے تھےاور اکثر کہتے ہیں کہ پہاڑ و جانور تو داؤد کے ساتھ نہیں بولتے تھے مگر جسوقت داؤد زکر الہی کرتے تھے تو بہاڑ اور جانوروں میں اللہ آواز پیدا کر دیتا تھا اور بعض کہتے ہیں کہ پہاڑ اور جانور وں کو اللہ زبان اور شعور دیتا تھا اُسوقت داؤد سے باتیں کرتے تھے اور او قدزریعہ سے دا‍‍ؤد کوئے اور خزانہ زمین معلوم کر لیتا تھا اور بعض کہتے ہیں کہ داؤد کے ہاتھ میں فولاد مثل موم کے ہو جاتا تھا اور زرہ خود بنا لیتا تھا اور حضرت صادق سے روایت ہے کہ ایک روز داؤد نے بہت خوش الحالی سے زبور کو پرہا تو ایک مینڈ ک نے داؤد سے کہا کہ تو سمجھتا ہے کہ میں بہت اچھی آواز سے زبور پڑھتا ہوں داؤد نے کہا کہ بے شک تو مینڈک نے کہا پھرتجھکو خدا کے یہاں سے کیا ملتا ہے دیکھ میں پانی کے اندر ہر روز ایک ہزاار تسبیح پڑہتا ہوں اور فی تسبیح اللہ کے یہاں سے مجھکو تین ہزار شکریہ آتے ہیں۔ اور قصص الانبیا ء میں لکھا ہے کہ داؤد کے وقت میں یہود کو حکم تھا کہ جمعہ کے دن مچھلی کا شکار نہ کرو مگر یہود نے نہیں مانا تو اللہ نے اُن کو بندر بنا دیا تھا اور بندروں کی نسل اُنہیں سے ہے اور صدہا مضمون لکھے ہیں۔

اس مقام پر ہم محمدی صاحبان سے یہ دریافت کرنا چاہتے ہیں کہ منجملہ ان مضامین کے کون کون سے مضمون یہود نے توریت سے نکال ڈالے ہیں اور اُن کو کیا فائدہ تھا۔ اور پھر تمہارے امام وغیرہ کیوں قرآن کے خلاف کہتے ہیں اور جس وقت اللہ نے جملہ مخلوقات کو پید ا کیا اُس وقت بندر پیدا نہیں کئے تھے اور یہ بندر جو اس وقت موجود ہیں یہ وہی یہودی ہیں جو اللہ نے داؤد کے وقت میں بندر بنائے تھے اور یہ سزا کب تک یہ لوگ پائیں گے کیونکہ ہنود کے عقیدہ کے بموجب جو کوئی جانور ہا انسان مر جاتا ہے تو فوراً دوسرے قالب میں جاتا ہے اور ان بیچارے یہودیوں کو اللہ نے صرف داؤد کی نافرمانی کرنے سے ایسی سخت سزا دی ہے کہ جس کی پاداش میں اس وقت تک مبتلا ہیں اور جو محمدی صاحب شراب خواری و رنڈی بازی وغیرہ کرتے ہیں اور پھر قرآن کو کلام اللہ سمجھتے ہیں اور اُس میں ایسا کرنے کا حکم نہیں ہے تو اُن کو اگر کدا بندر نہیں بنا سکتا ہے یعنے اس وجہ سے کہ پیشتر ایک قوم کو یہ سزادے چکا ہے۔ تو اُن کو اونٹ ہاتھی کیوں نہ بنایا یہود نے تو صرف داؤد کی نافرمانی کی تھی یہ تو حسب عقیدہ دین محمدی خدا کی نافرمانی کرتے ہیں۔

فصل ہفتم در زکر سلیمان

توریت

توریت میں سلیمان کا زکر صرف یہ لکھا ہے کہ بنی اسرائیل بادشاہ نہایت فہیم و دانشمند تھا اور بیت المقدس کو تعمیر کیا۔

قران

سورہ ص کے رکوع ۳ ہمنے تابع ہوا چلتی اُس کے حکم سے نرم نرم جہاں پہنچا چاہتا اور تابع کیا شیطان سارے عمارت کرنے والا اور غوطے لگانے والا۔ سورہ نمل رکوع ۲ ۔ سلیمان اُوڑتے جانوروں کی بولی جانتا تھا ۔ اُسی سورہ کے رکوع ۲۔۱۷ ۔ آیت میں اور جمع کیا سلیمان کے پاس اُس کے لشکر جن و انسان اور اُوڑتے جانور یہاں تک کہ جب پہنچے چینٹیوں کے میدان میں کہا ایک چیونٹے نے۔ اے چیونٹیو گھس جا‍‍ؤ اپنے گھروں میں نہ پیس ڈالے۔ تمکو سلیمان اور اُس کا لشکر اور اُن کو خبر نہ ہو یہ بات سنکر سلیمان ہنسا پھر خبر لی اُڑتے جانورونکی تو کہا کہ کیس سبب ہے جو ہدہد نہیں آیا اُس کو مار ڈالوں گا یا وجہ غیر حاضر ی کی پیش کرے اتنے میں ہُد ہدُ حاضر ہوا اور کہا کہ میں ایک چیز کی خبر لایا ہوں جس کی تجھکو خبر نہیں تھی میں ملک سبا سے آیا ہوں وہاں ایک عورت ہے اُس کا بڑا تخت ہے اور سورج کو پوجتی ہے سلیمان نے کہا کہ ہم دریافت کریں گے کہ تو سچ ہے یا نہیں یہ ہمارا خط لیجا اور وہاں ڈالدے چنانچہ وہ کط ہُد ہُد نے ملکو کے پاس ڈال دیا تو سبا نے اپنے درباریوں سے کہا کہ یہ خط سلیمان کا ہے وہ مجھکو بلاتا ہے تمہاری اس میں کیا رائے ہے سرداروں نے کہا کہ ہم لڑنیوالے ہیں جو تو حکم دے سبا نے کہا کہ میں سلیمان کو تحفہ بھیجتی ہوں دیکھو سلیمان کیا جواب دے سلیمان نے وہ تحفہ نہیں لئے اور کہا میں چیونٹیوں کا لشکر بھیجتا ہوں جو تمکو بے عزت کر کے نکال دیگا پھر سلیمان نے اپنے درباریوں سے کہا کہ تم میں کوئی ایسا ہے جو سبا کا تخت لے آوے تو ایک راکس نے کہا میں لا سکتا ہوں پھر ایک شخص بولا جس کے پاس کتاب کا علم تھا کہا میں ایک لمحہ لا سکتا ہوں چنانچہ وہ تخت حاضر ہو گیا اور پھر سبا نے اُس کو دیکھا تو کیا کہ وہ بہت گہرا پانی ہے۔ اُس نے اپنی پیڈلیاں کھولیں اور کہا کہ یہ ایک محل ہے وغیرہ۔

حدیث

مؤلف کتاب حیات القلوب لکھتا ہے کہ یہ غلط ہے کہ سلیمان کے قابو میں جن وغیرہ تھے امام محمد باقر منقول ہے کہ سلیمان کے پاس ایک قلعہ شیاطین کا بنایا ہوا تھا اُس میں ہزار حجرے تھے ہر حجرے میں سلیمان کی ایک جورو رہتی تھی اور سلیمان تمام روئے زمین کا بادشاہ تھا اور سات سو برس بادشاہی کی اور مولف کتاب حیات القلوب لکھتا ہے کہ یہ بات غلط ہے کہ سلیمان روئے زمین کا بادشاہ تھا اور سات سو برس بادشاہ ہی کی اور علی بن ابراہیم سے روایت ہے کہ سبا کے پیروں پر بال بہت تھے سلیمان نے شیطان سے کہا کہ ایسی شے بناؤ جس سے سبا کی پنڈلیوں کے با ل جاتے رہیں چنانچہ شیطان نے نورہ بنایا مولف کتاب حیات القلوب لکھتا ہے کہ یہ غلطی ہے کہ جنہوں نے بلقیس کے واسطے شیشہ کا تخت بنایا تھا بعض نے کہا ہے کہ فرشتہ یہ تخت لائے تھے اور بعض کہتے ہیں کہ ہوا لائی تھی اور بعض یہ کہتے ہیں کہ اللہ نے اُس تخت کو یہ معجزہ دیا تھا کہ وہ خود آگیا تھایہ سب سے اچھے رہے۔ اور بعض کہتے ہیں کہ اللہ نے اُس تخت کو اپنے مکان میں غایب کر لیا تھا اور پھر اپنی قدرت سے موجود کر دیا تھا ۔ غرضکہ ایسے بازیگروں کے کھیل بہت سے لکھے ہیں جس کو کو شبہ ہو کتاب حیات القلوب جلد اول میں دیکھ لے۔

اب قصص الانبیاء کا حال لکھا جاتا ہے جبکہ داؤ د ضعیف ہو گیا تو جبرائیل ایک صندوق داؤد کے پاس لایا اور کہا کہ تیرے بیٹوں میں جو کوئی بتلاوے کہ اس صندوق میں کیا ہے وہی بادشاہ ہو گا سلیمان نے کہا کہ اس میں انگشتر ی اور ایک کوٹرا ہے اور ایک چھٹی ہے جو کوئی اس انگشتری کو لے گا اُس میں سب قدرت ہو گی اور اُس تازیانہ سے حکومت کرے گا جبکہ صندوق کھولا گیا تو موافق بیان سلیمان کے نکلا اور سلیمان نے چھٹی کے پانچ سوالوں کا جواب بھی دیا مگر نہیں معلوم کیا سوال تھے جبکہ داؤد مرگیا تو سلیمان وہ انگشتری پہن کے بادشاہ ہوا تو تمام مخلوق خدا اُس کے تابع ہو گئی اور سب شان و شوکت اٗس کے پاس تھی اور دریائی گھوڑے بھی تھے اب نہیں معلوم وہ قوم گھوڑوں کی کہاں چلی گئی ایک روز سلیمان گھوڑ دوڑ میں تھا سورج غروب ہو گیا اور نماز نہ پڑھ سکا تو سلیمان نے اُن فرشتوں کو جو سورج پر حاکم ہیں کہا کہ سورج کو اُلٹا کھینچ لاؤ۔ فرشتے سورج کو کھینچ لائے اور سلیمان نے نماز پڑھی اور سلیمان ے بلقیس کو بُلا کر اپنے نکاح میں لیا اور اُس کا ملک اُسی کو دیدیا ہر مہیںہ میں ایک مرتبہ اُس کے ملک میں جاتااور تین روز اُس کے ساتھ رہتا اور ایک لڑکا بھی پیدا ہوا تھا اور بعض کہتے ہیں سلیمان نے بلقیس سے خود نکاح نہیں کیا تھا شاہ ہمدان کے ساتھ اُسکا نکاح کر دیا تھا ور سلیمان نے ایک کافر عورت کے ساتھ نکاح کیا تھا وہ اپنے باپ کی تصویر کی پرستش کیا کرتی وزیر نے اس کی اطلاع کی سلیمان اپنی بیوی کو لاتیں مار کے جنگل میں چلا گیا جس وقت سلیمان طہارت کو جاتا تو وہ انگشتری کو اپنے بیٹے کے سپرد کرتا تھا ایک روز ضخرام جن سلیمان کی شکل بن کے لڑکے سے انگشتری مانگ لے گیا اور بادشاہ ہو گیا اور سلیمان فقیر ہو گیا اور جب لوگوں سے کہتا کہ مین سلیمان ہوں تو لوگ اُس کو گالیاں دیتے تھے آخر کار سلیمان ایک ماہی گیر کا ملازم ہو گیا وہ تنخواہ میں سلیمان کو ایک مچھلی روز دیا کرتا تھا ایک روز وہ جن انگشتری کو دریا میں پھینک کر اُڑ گیا وہ انگوٹھی مچھلی کھا گئی اور وہی مچھلی ،اہی گیر نے پکڑی اور سلیمان کو دی اُس میں وہ انگشتری بر آمد ہو ئی اور سلیمان پھر بادشاہ ہو گیا یہ مصیبت سلیمان پر اس وجہ سے پڑی تھی کہ اُس کی جورو نے چالیس دن اپنے باپ کی تصویر کو پاجا تھا۔

اے ناظرین سلیمان کی عورت نے ۴۰ دن اپنے باپ کی تصویر کی پاجا کی تو یہ آفت آئی اور محمد صاحب نے جو ایک عرصہ تک بتوں کو پاجا تھا ان کی کیا حالت ہوئی ہوگی۔

اس موقعہ پر یہ طاہر کرنا ضروری نہیں ہے کہ توریت اور قران میں کس قدر اختلاف ہے کیونکہ یہ مضمون جو قران میں ہے محمد صاحب کے دل کے اند رکا ہے اور یہودیوں کی حدیث سے لیا ہؤا ہے۔ جو کچھ چاہا قرآن میں کہدیا مگر ناظرین کی خدمت میں اس قدر عرض کیا جاتا ہے کہ قرآن میں جو سلیمان کا زکر ہے اُس کو محمدی کہتے ہیں کہ کلام خدا ہے اور اس میں بھی کوئی شبہ نہیں کہ خدا قادر مطلق ہے مگر ایک بات سخت تعجب کی معلوم ہوتی ہے کہ توریت جو کلام اللہ ہے اور جملہ انبیائے بنی اسرائیل کی مصدقہ اور نیز قران بھی اُس کو تصدیق کرتا ہے تو پھر کیا وجہ ہے کہ توریت میں یا سلیمان نے کود اپنی کتاب میں یہ نہیں لکھا کہ سلیمان کے تابع ہوا و شیاطین و جن وغیرہ تھے کیا اگر ہم کہیں کہ قرآن میں یہ مضمون غلط ہے تو پیارے محمدی صاحب عداوت و حسد کا اطلاق کریں گے مگر اُن کے راوی و امام و محدث قرآن کو غلط کہتے ہیں۔ اس کی بھی تفصیل کرنے کی ضرورت نہیں ہے کیونکہ روایت و حدیث قرآن کے محاز مین اوپر لکھ چکے ہیں اُس کو ملاحظہ کرنا چاہئے اے مسلمان بھائیو قرآن و حدیث و روایات کو مقابلہ کر کے صحت کرو کہ قرآن صحیح ہے یا روایت و حدیث اگر قر آن کو صحیح سمجھو تو ان کتابوں کو جو تمہارے قرآن کےخلاف ہیں رد‍ّ‍ و منسوخ کرو اور ایک اشتہار ۔

فصل ہشتم در زکر یوحنا

توریت ( یوحنا کا زکر جو انجیل مقدس میں ہے اس طرح سے لکھا ہے)

انبیاء کے فرقہ میں زکریا تھا اور اُس کی بیوی الیسبات ہارون کی بیٹیوں میں سے تھی اور بانجہ تھی ۔ زکریا نے اللہ سے دعا مانگی کہ مجھکو بیٹا دے چنانچہ اللہ نے زکریا کی دعا قبول کی اور بچے کے پیدا ہونے کی کوشخبری دی اور کہا اُس کا نام یوحنا رکھنا زکریاہ نے کہا کہ مجھکو کیونکر یقین ہو کہ لڑکا ہوگا کہا کہ جب تک یوحنا پیدا نہ ہوگا تب تک گنہگار رہیگا چنانچہ ایسا ہی ہوا کہ جب تک یوحنا پیدا نہ ہوا زکریاہ گنہگار رہا اور جب یوحنا پیدا ہوا اور اُس کے نام رکھنے کا وقت آیا تو زکریا بولنے لگا اور مولود کا نام یوحنا رکھا۔

قرآن

دیکھو سورہ عمران کے رکوع ۴ میں لکھا ہے کہ جس وقت اللہ نے زکریا کو یوحنا کی خوشخبری دی تو زکریا نے کہا کہ اُس کی نشانی کیو ہو گی فرمایا کہ نشانی یہ ہوگی کہ تو بات نہ کرے گا لوگوں سے تین ۳ تک اور پھر سورہ مریم کے رکوع ۱ میں یہ لکھا ہے کہ نشانی یہ ہو گی کہ تو بات نہ کرے گا لوگون سے تین ۳ رات تک اور پھر سورہ عمران کے رکوع ۴ کی آیت ۳۸ میں لکھا ہے کہ جب زکریا مریم کے حجرہ جاتا تو اُس کے پاس کچھ کھانا پاتا تھا زکریا نے مریم سے دریافت کیا کہ اے مریم یہ کھانا کہاں سے آیا جواب دیا کہ خدا دیتا ہے اور اُسی رکوع ۳۸ آیت میں لکھا ہے کہ وہاں دعا کی زکریا نے کہ مجھکو بیتا عطا کر اور اُسی رکوع کی ۳۹ أیت سے واضح ہے کہ زکریاہ حجرہ میں نماز پڑھ رہا تھا اُس وقت زکریا کو بیٹے کی خوشخبری دیگئی تو کہا یہ وہی حجرہ ہے جس میں مریم کے واسطے آسمان سے کھانا آتا تھا یا اس حجرہ سے مراد یہود کا عبادت کانہ ہے یا یہ کہ جس حجرہ میں مریم کو کھانا آتا تھا وہی عبادت خانہ تھا۔

حدیث

قصص الانبیاء میں لکھا ہے کہ جس وقت یوحنا پیدا ہوا تو اُس وقت زکریا کی عمر ۶۰ یا ۷۰ یا ۷۵ یا ۸۵ یا ۱۲۰ یا ۹۹ یا ۹ برس کی تھی حیات القلوب میں بروئے چند حدیث معتبر حضرت صادق سے منقول ہے کہ جب زکریا کو یوحنا کی بشارت ہوئی تو زکریا کو شک ہوا کہ یہ آواز شیطان کی تھی اور پھر حضرت صادق سے منقول ہے کہ یحییٰ کو حضرت عیسیٰ نے مُردوں میں سے جلایا تھا اور حدیث حضرت رسول سے واضح ہے کہ جب حضرت عیسیٰ آسمان پر گئے اور شمعون کو اپنا جانشین کیا اور جب شمعون نبی مر گیا تو حضرت یحییٰ بن زکریا پیغمبر ہوئے اور مولف کتاب حیات القلوب لکھتا ہے کہ احادیث درباب یحییٰ بہت مختلف ہیں اور امام محمد باقر سے منقول ہے کہ جب یحییٰ پیدا ہوا تو اُس کو آسمان پر لے گئے اور بہشت کے تحفہ تحفہ غذا اُس کو کھلائی جاتی تھیں تو بہشت کیا ہے ہوٹل ہے۔

اے محبان دین محمدی دیکھو انجیل سے واضح ہے کہ زکریا تا تولد یوحنا گونگا رہا اور قرآن کی سورہ عمران میں لکھا ہے کہ زکریا صرف تین دن گونگا رہا اور سورہ مریم سے ظاہر ہے کہ زکریا تین رات گونگا رہا روایت و حدیث سے معلوم ہوتا ہے کہ زکریا کو جس وقت یوحنا کی خوشخبری دی گئی تو زکریا نے خیال کیا کہ یہ شیطان کی آواز ہے دوسرا کہتا ہے کہ یوحنا کوعیسیٰ نے مرُدوں میں سے جلایا تھا تیسرا لکھتا ہے کہ جس وقت حضرت مسیح آسمان پر گئے تو شمعون کو اپنا جانشین مقرر کیا اور جبکہ شمعون بھی مر گیا تو یوحنا پیدا ہو اور ایک راوی صاحب کی روایت سے واضح ہے کہ ان کو زکریا کی عمر کی بھی صحت نہیں ہوئی اور ایک لکھتا ہے کہ یوحنا کو بہشت میں تحفہ تحفہ غذائیں کھانے کو ملا کرتی تھیں اس موقعہ پر یہ شعر صادق آتا ہے کہ تو کارزمیں رانیکو ساختی کہ بر آسمان نیز پرواختی۔

اے پیارے بھائیو قرآن کی آیات میں تو صرف رات و دن ہی کا فرق ہے لیکن حدیث و روایت میں تو آسمان و زمین کے قلابہ ملائے گئے ہیں اب آپ لوگوں سے یہ امر دریافت کیا جاتا ہے کہ یہ روایت سب صحیح ہیں یا کوئی غلط ہے اور منجملہ ان کےکیا مضمون کتب مقدسہ سے تحریف کئے گئے اور اس تحریف میں کیا فائدہ ہو سکتا ہے اور اس کا کیا ثبوت ہے کہ حضرت عیسیٰ نے یوحنا کو مرُدوں میں سے جلایا تھا اے بھائیو یہ امر تمہارے ہی غور کے لایق ہے کہ مسیح کے چھ سو برس کے بعد تو محمد ہوئے اور قریب قریب سو ڈیڑہ سو برس کے بعد یہ تمہارے راوی پیدا ہوئے اور یہ امہ مسلمہ ہے کہ زمانہ محمدی سے قبل عام عرب بت پرست تھے تو پھر راویوں کو جو لکھتے ہیں بسند معتبر وہ سند کہاں سے حاصل ہوئی تمام مضمون سے واضح ہوتا ہے کہ جیسا مبالغہ بت پرست کرتے ہیں وہی طریقہ تمہاارے راوئیوں کا پایا جاتا ہے اس وجہ سے نہ قرآن منجانب اللہ ثابت ہوتا ہے اور نہ حدیث و روایت قابل اعتبار ہیں کیونکہ قرآن روایت و حدیث کے خلاف بیان کرتا ہے اور حدیث و راوی قرآن کے خلاف کہتے ہیں اور انجیل مقدس سے واضح ہے کہ حضرت مسیح اور یوحنا کاایک زمانہ تھا بلکہ مسیح نے یوحنا کے ہاتھ سے اصطباغ پایا اور مسیح کے عہد میں قتل کیا گیا۔

فصل نھمؔ دربیاَن عیسیٰ

توریت

مسیح کا زکر بموجب انجیل مقدس اس طرح طرھ سے ہے کہ زکریا کی بیوی الیزبست کے حاملہ ہونے کے چھٹے مہیںے جبرائیل فرشتہ مریم کے پاس ایا اور کہا اے پرُفضل تو ھاملہ ہو گی اور بیٹا جنے گی اُس کا نام عیسیٰ رکھنا اور وہ خدا کا بیٹا کہلائے گا ۔ مریم نے فرشتہ سے کہا کہ یہ کیونکر ہو گا کیونکہ میں مرد سے واقف نہیں ہوں۔ فرشتے نے کہا کہ روح القدس تجھ پر اوتریگی اور خدا تعالیٰ کی قدرت کاملہ کا تجھپر سایہ ہو گا اس سبب سے وہ قدوس جو پیدا ہوگا خدا کا بیٹا کہلائیگا۔ پھر فرشتہ چلا گیا۔ اور مریم پہاڑوں پر بہوداکے شہر میں گئی اور زکریا کے گھر میں داخل ہو کر الیزبت زکریا کی بیوی کو سلام کیا تو الزبیت کے شکم میں یوحنا اُچھلا اور الیزبیت روح القدس سے بھر گئی اور کہا کہ یہ کیونکر ہوا کہ میرے خداوند کی ماں میرے گھر میں آئی پھر مریم تین مہیںہ تک وہاں رہی اور بعد اپنے مکان کو واپس آئی اور اپنے شوہر یوسف کے ساتھ نام لکھا نیکو یہودا کے بیت اللحم میں گئی اور وہاں خداوند مسیح کا تولد ہوا۔ پھریہودا اسکر یوتی گیارہویں شاگرد مسیح نے بہ طمع زر مسیح کو یہود کے ہاتھ میں گرفتار کروا دیا پھر پلا طوس حاکمنے مسیح کے صلیب کا ھکم دیا چنانچہ کلوری کے پہاڑ پر مسیح مصلوب ہوا اور یہود نے اُس کا ٹھٹھا کیا اور اُس کے پیراہن مبارک پر قرعہ ڈال کے آپس میں تقسیم کیا اور تیسرے روز مسیح پھر زندہ ہوا اور آسمان پر گیا اور پھر حسب وعدہ حواریوں پر روح القدس نازل ہوئی۔

قرآن

سورہ عمران کے ۴۵ آیت ۔ اللہ نے مریم کو اپنے حکم کی بشارت دی جس کا نام مسیح مریم کا بیتا ہے۔ سورہ مریم کے ۲ رکوع میں مریم نے کھجور کی جڑ میں عیسیٰ کو جنا اور عیسیٰ کی گود میں باتیں کرے گا اور پھر لکھا ہے کہ مریم کے بیٹے عیسیٰ نےاپنی ماں کی گود میں باتیں کر کے مریم کی صفائی کی اور سورہ عمران کے ۵ رکوع کی ۴۸ أیت میں مسیح نے مٹی کے جانور بنا کے زندہ کئے اور اُسی رکوع میں کہ فریب کیا اُن کافروں نے اور غریب کیا اللہ پر اور سورہ نسا کے ۲۲۔ رکوع میں مسیح کو صلیب نہیں دیا گیا اللہ نے دوسرا آدمی عیسیٰ کے بدلے میں صلیب پر بٹھایا تھا اُس کو صلیب دیا گیا۔ اور سورہ مائدہ کے ۱۰۔ رکوع میں بے شک کافر ہوئے جنہوں نے کہا مسیح وہی ہے خدا مریم کا بیٹا فقط۔

حدیث

حیات القلوب جلد اول علی بن ابراھیم سے روایت ہے کہ جبرائیل فرشتہ نے مریم کے گریبان میں پھونکا اُسی رات کو مریم حاملہ ہو گئی اور صبح حضرت عیسیٰ پیدا ہو گئے اور مولف کتاب حیات القلوب لکھتا ہے کہ شاید یحییٰ پیدا ہوا ہوا اور راویوں نے عیسیٰ کا شبہ کیا ہو یا یہ کہ مادہ حمل چھ۶ مہینہ پیشتر سے مریم کے شکم میں موجود ہو فرشتہ کے پھونکنے سے حمل ظاہر ہوا ہوا اور امام محمد باقر لکھتا ہے کہ جبرائیل فرشتہ نے مریم کے پیراہن میں پھونکا اور حضرت عیسیٰ امام حسین کی قبر کے پاس پیدا ہوئے تھے اور امام جعفر لکھتا ہے کہ ناصرت کے پاس ایک موضع ہے وہاں حضرت عیسیٰ پیدا ہوئے تھے اور امام موسیٰ رضا سے روایت ہے کہ جبرائیل فرشتہ مریم کے واسطے بہشت سے فرما لایا تھا وہ مریم نے کھایا تھا جب حاملہ ہوتی تھی اور قطب راوندی بسند حضرت صادق روایت کرتا ہے کہ مریم کی عمر ۵۰۰ برس کی تھی جب حضرت عیسیٰ پیدا ہوئے تھے مولف کتاب حیات القلوب لکھتا ہے کہ یہ بات غلط ہے کہ مریم کی عمر ۵۰۰ برس کی تھی اور حدیث سے واضحہے کہ عیسیٰ چھ مہیںہ میں پیدا ہوا تھا اور حیات القلوب جلد اول کے ۶۹۱ صفحہ میں بہ حدیث موثق امام رضا سے منقول ہے کہ کسی پیغمبر کا مرنا مشتبہ نہیں ہے سوائے حضرت عیسیٰ کے کس واسطے کہ اُس کو زمین پر سے تو زندہ آسمان پر لے گئے مگر اُس کی روح کو زمین اور آسمان کے درمیان میں قبض کیا اور جو آسمان پر پہنچا تو حق تعالیٰ نے اُس کی روح کو پھر اُس کے بدن میں بھیجدیا چنانچہ حق تعالیٰ فرماتا ہے یہ آیت قرآن کی ہے۔

قصص الانبیاء کے بیان سنو۔ مریم ۔ ۱ یا ۱۳ بر کی تھی اُس وقت حاملہ ہوئی تھی اور اُس کی خبر جو زکریا نے سنی تو تعجب کیا پھر مریم جنگل میں نکل گئی اور شہر اٹلیا کہ جو چھ کوس بیت اللحم سے ہے وہاں جا کے عیسیٰ کو جنا اور وہاں چشمہ جاری ہو گیا اور عیسیٰ کی عمر یا تو ایک دن کی یا چالیس دن کی تھی جب اُسنے اپنی ماں کی گود میں باتیں کی تھیں اور عیسیٰ نے چار مرُدے جلائے تھے منجملہ اُن کے سام نوح کا بیٹا تھا جو چار ہزار برس کا مرُدہ تھا وہ زندہ ہو کر اُسی وقت مر گیا اور عیسیٰ آسمان سے کھا نا منگواتا تھا۔ اور ایک بھنی ہوئی مچھلی اور نمک و ترکاری وغیرہ آسمان سے آتے تھے اور عیسیٰ کی بددعا سے ۳۳ یا ۳۳۳ آدمی سئور بن گئے اور گندگی کھا کے تین روز بعد مر گئے اور عیسیٰ نے کہا کہ توریت منسوخ ہو گئی تو یہود نے عیسیٰ اور مریم کو گالیاں دیں اس قصور میں اللہ نے جو ان یہودیوں کو بند ر اور اُن کے بچوں کو بد جانور بنا دیا اس وجہ سے یہودی بہت ہی دشمن ہو گئے تو پھر حیلہ سازی سے عیسیٰ کو پکڑا اور تمام رات ایک گھر میں قید رکھا صبح کو سب دروازے پر جمع ہوئے اور اُنکا سردار اندر گیا تو وہاں عیسیٰ کو نہیں پایا وہ خود عیسیٰ کی صورت بنگیا جبکہ وہ باہر نکلا تو کہا کہ عیسیٰ گھر میں نہیں ہے تب سب نے اُس کو پکڑ ا اور کہا کہ توہی تو ہے اُس نے کہا کہ میں نہیں ہوں مگر یہود نے نہیں مانا اُس کو صلیب دیدیا پھر اپنے سردار کی تلاش میں مصروف ہوئے مگر کہیں نہیں پایا تو کہا کہ سردار مارا گیا اور عیسیٰ اوڑ گیا یا تو عیسیٰ کی جان خدا نے قبض کی اور سات گھنٹے کے بعد اُسے آسمان پر لے گیا یا عیسیٰ سو گیا تھا نیند میں خدا نے اُسے اُٹھا لیا یا بادل آیا اور اُسے لیگیا مگر جاتے وقت مریم عیسیٰ سے لپٹ گئی تھی پس وہ قیامت کی ملاقات کا وعدہ کر کے مریم کو چھوڑ گیا اور مسیح کی صورت آسمانی ہو گئی جسمانی نہیں رہی۔

اب محمدی صاحب خود فرمائیں کہ انجیل مقدس میں یہ کہیں نہیں لکھا ہے کہ حضرت عیسیٰ نےماں کی گود میں باتیں کیں یا آکے مسیح نے مٹی کے جانور بنائے اور اپنی قدرت سے اُن کو زندہ کیا پس ظاہر ہے کہ محمد صاحب نے قرآن میں یہ دونوں باتیں غلط لکھی ہیں اور اگر یہ کہا جائے کہ نصاریٰ نے انجیل سے یہ باتیں علیحدہ کر دیں تو کیوں اس میں نصاریٰ کا کیا فائدہ ہے کہ ایسے اعلیٰ درجہ کے معجزے انجیل مقدس سے علیحدہ کر دیتے اور اس میں محمد کی بطلان نبوت کیونکر ہوتی اور پحر دوسرے موقعہ پر قران بتلاتا ہے کہ مسیح کو صلیب نہیں دیا گیا بلکہ دوسرے آدمی کی شکل اللہ نےمسیھ کی سی بنا دی تھی اے محمد ی بھائیو اس قول سے اللہ پر یہ الزام وارد ہوتا ہے کہ اللہ نے یہودیوں سے دغابازی کی دوسرے یہ کہ غیر شخص اللہ نے مسیح کے عیوض صلیب دلوا دیا یہ بات اُس کے انصاف سے خلاف ہے اور کیا ضرورت تھی کہ اللہ غیر شخص کو مسیح کے عیوض صلیب دلوا دے۔ اور پھر وہی قرآن کہتا ہے کے منجانب اللہ ہو سکتے ہیں اور اب روایت و حدیث کے اختلاف کو تم خود ملاحظہ کرو کہ سب کے سب مختلف البیان ا اور قرآن کو غلط قرار ہیں دیکھو حیات القلوب جلد اول صفحہ ۶۹۱ میں بحدیث موثق امام رضا منقول ہے کہ عیسیٰ کی روح زمین و آسمان کے درمیان قبض کی گئی اور اُسی موقع پر آیات قرآنی لکھی ہیں جو اس قول اس قول کو تصدیق کرتی ہیں پس فرماؤ کہ کیوں قرآن غلط نہیں ہے اور ایک لکھتا ہے کہ مسیح نے بددعا کر کے یہودیونکو سٔور اور بندر بنوا دیا تھا دوسرا لکھتا ہے کہ عیسیٰ تو گھنٹہ کے اندر پیدا ہو گیا حدیث سے واضح ہے کہ عیسیٰ چھ مہیںہ شکم اور میں رہا غرض کہ صدہا قصۂ طبعی لکھے ہیں افسوس ہے کہ تم قرآن اور حدیث کو نہیں دیکھتے اور یہود اور نصاریٰ پر محض جھوٹھا الزام تحریف کا لگاتے ہوا اے پیارو اس خیال کو چھوڑو دو کہ تمکو بہشت میں حوریں اور شیرو شہد کی ندیاں ملیں گی ذرا کتب سماوی کو دیکھو کہ کس طرح نجات مل سکتی ہے ۔

دیکھو اور دریافت کرو کہ مسیحکے مصلوب ہونے کے اُول یہودی خود مقر ہیں دوسرے یہ کہ حضرت دا‍ؤد نے صدہا سال پیشتر مسیح کے مصلوب ہونے اور تکلیف اُٹھانے کی خبر دی۔ دیکھو ۲ زبور میں لکھا ہے کہ مسیح کے برخلاف مشورہ کرتے ہیںکہ اُسے پکڑ کے مار ڈالیں اور پھر ۲۲ زبور میں لکھا ہے کہ مسیح مصلوب ہو گا اور اُس کے ہاتھ ع پیروں میں سوراخ کئے جائینگے اور اُس کے پیراہن مبارک کو آپس میں تقسیم کریں گے اور پھر ۴۵ زبور میں لکھا ہے کہ صلیب پر یہود حضرت مسیح کو سر کہ پلائینگے اور پھر انجیل میں مفصل حال لکھا ہے ۔ اِن نوشتوں کے موافق مسیح مصلوب ہوا ہے یہ تمہاری روایت و حدیث و قرآن نہیں ہے کہ جس میں اختلاف ہو۔ اور یسعیاہ نبی کے ۵۳ باب کو دیکھو مسیح کا تکلیف پانا اور مسلوب ہونا کیسا مفصل اور مشرح لکھا ہے۔

فصل دھم در ثبوت تثلیث

توریت

اس میں کچھ بھی شبہ نہیں ہے کہ مسیحی تثلیث فی التوحید و تو حید فی التثلیث مانتے ہیں۔

قرآن

قران کی سورہ توبہ کے ۵ رکوع میں یہ لکھا ہے کہ یہودی آزر بُت پرست کو اللہ کا بیٹا ٹھہراتے ہیں اور نصاریٰ نے کہا مسیح اللہ کا بیٹا ہے اور سورہ مائدہ کے رکوع ۱۰ کی ۷۷ آیت کا یہ مضمون ہے کہ بے شک کا فر ہوئے جنہوں نے کہا اللہ ہے تین میں کا ایک اور کچھ نہیں مسیح مریم کا بیٹا مگر ایک رسول ہے۔

اس موقعہ پر پھر قرآن ؔ توریت ؔ اور انجیل ؔ کے کلاف ہے اوع غلط قرار دیتا ہے مگر خود غلط توریت و انجیل میں کسی موقعہ پر یہ زکر نہیں ہوا کہ آزر بُت پرست خدا ہے اور پھر وہی قران انجیل کو تصدیق کرتا ہے۔ چنانچہ سورہ مائدہ کے رکوع ۱۱ میں لکھا ہے کہ تو پاوے گا سب سے زیادہ نزدیک محبت والوں میں۔ مسلمانوں کے وے لوگ جو نصاریِ ہیں کیونکہ اُس میں عالم اور درویش ہیں۔ اور اوپر لینے سورہ مائدہ کے ۱۰ رکوع میں لکھا ہے کہ تثلیث کے پا نے والے کافر ہیں اور وہی قران تثلیث کو تسلیم کرتا ہے چنانچہ سورہ عمران کے رکوع۴ میں لکھا ہے کہ فرشتوں نے زکریا سے کہا کہ اﷲ مجحکو خوشخبری دیتا ہے۔ یحییٰ ؔ کی جو گواہی دیگا اللہ کے ایک حکم کی اورمُی سورہ کے رکوع ۵ میں لکھا ہے کہ اے مریم تجھکواللہ بشارت دیتا ہے ایک اپنے حکم کی جس کا نام مسیح عیسیٰ مریم کا بیٹا۔ اور پھر سورہ بقر کے ۱۱ رکوع میں۔ وہی ہمنے موسیٰ کو کتاب اور پے درپے بھیجے اُس کے پیچھے رسول اور دیا عیسیٰ مریم کے بیٹے کو معجزہ صریح اور قوت دی اُس کو روح پاک سے پھر سورہ نسا کے رکوع ۳۳ میں لکھا ہے کہ مسیح جو ہے عیسیٰ مریم کا بیٹا رسول ہے اللہ کا اور اُس کا کلام جو ڈال دیا مریم کی طرف اور روح ہے اُس کی یہاں کی اور سورہ مائدہ کے رکوع ۱۵ میں اور جب کہیگا اللہ اے مریم کے بیٹے یاد کر میرا احسان اپنے اور اپنی ماں پر جب مدد دی تجھکو روح پاک سے تو کلام کرتا تھا لوگوں سے ماں کی گود میں۔ اے ناظرین ایات صدر اخز کر میں اگرچہ محمد نے مسیح کو ہر مقام پر مریم کا بیٹا کہا ہے لیکن معنے کلام کو مطلق نہیں سمجھا اور تثلیث کو تسلیم کر لیا چناچہ سورہ عمران رکوع ۴،۵ میں مسیح کو اللہ کا حکم لکھا ہے اور سورہ نساء کے ۳۳ رکوع اور سورہ مائدہ کے ۱۵ رکوع میں روح پاک سے زور دنیا لکھا ہے۔ پس قرآن سے یہ ثابت ہو گیا کہ مسیح کیا ہے یعنے کلام اورخدا اور روح پاک بھی اُس کو دیا گیا تو پھر کیوں خؔدا و کلامؔ و پا ک روحؔ نہیں ہے۔ اور اگر محمدی صاحب یہ کہیں کہ اللہ ایک ہے اور پاک اور وہ کسی سے پیدا نہیں ہے یہ اُسکی صفات ہیں اور چوتھا فقرہ جو یہ کہتے ہیں کہ اُس سے کوئی پیدا نہیں ہے یہ غلط ہے۔ اگر خداوند اپنے میں سے کچھ پیدا نہیں کر سکتا تو وہ قادر نہیں ہو سکتا اور جبکہ مسیح کو اپنا کلام کہتا ہے تو واضح ہے کہ کلام بغیر متکلم کے نہیں ہو سکتا تو ظاہر ہے کہ کلام اللہ میں سے پیدا ہوا تو پھر صفت لم ؔ یولد کی معدوم ہو گئی پس ظاہر ہے۔ ( کہ قُل ھوُ اللہ احداللہالصمد ولم یلدولم یولد) خدا کاکلام نہیں ہے بلکہ محمد کا قول ہے کہ اللہ کو مجسم قرار دیتا ہے اور لم یولد کے معنے یہ بناتا ہے کہ اگر اللہ سے کوئی پیدا ہو تو توبہ توبہ اللہ جورو والا ٹھہریگا اور محمدی اگر قرآن کے اس مقولہ کو صحیح کہتے ہیں تو بتلائیں کہ خدا کیا وکلام کیا اور روح پاک کیا ہے اور ایسا تو ہند و بھی کہتے ہیں ( نرنجن نراکار جوتی سروپ ہے) اگر وہ نہیں دیکھتا اور نہ اُس کا نسان تو پھر جوتی سروپ کیونکہ ہو سکتا ہے۔

اللہ احداللہالصمد ولم یلدولم یولد) خدا کاکلام نہیں ہے بلکہ محمد کا قول ہے کہ اللہ کو مجسم قرار دیتا ہے اور لم یولد کے معنے یہ بناتا ہے کہ اگر اللہ سے کوئی پیدا ہو تو توبہ توبہ اللہ جورو والا ٹھہریگا اور محمدی اگر قرآن کے اس مقولہ کو صحیح کہتے ہیں تو بتلائیں کہ خدا کیا وکلام کیا اور روح پاک کیا ہے اور ایسا تو ہند و بھی کہتے ہیں ( نرنجن نراکار جوتی سروپ ہے) اگر وہ نہیں دیکھتا اور نہ اُس کا نسان تو پھر جوتی سروپ کیونکہ ہو سکتا ہے۔

کیونکہ جوتی سروپ کے معنے ہیں پاکیزہ روشنی ہے تو روشنی میں دونوں صفات ہیں یعنے نظر بھی آتی ہے اور اور فشاں بھی معلوم ہوتا ہے پس اگر نرنجن تراکار ہے تو جاتی سروپ نہیں ہو سکتا اور جو جوتی سروپ ہے تو نرنجن نرا کار نہیں اور یہ بھی صفات ہیں کہ نہیں دیکھتا اور نہ اُس کا نشان ہے اور پاکیزہ روشنی ہے۔ اور پھر قرآن کے سورہ عمران کے رکوع ۶- ۵۸ آیت کا یہ مضمون ہے کہ عیسیٰ کی مثال اللہ کے نزدیک ایسے جیسے مثال آدم کی بنایا اُسکو مٹی سے اور پھر اُسکو ہو جادہ ہو گیا۔

اے ناظرین حسب آیات قرآنی یہ بات ثابت ہو گئی کہ مسیح کلام اللہ ہے اور روح پاک بھی اُس کو دیا گیا تو تین بات قرار پائیں یعنے ( خدا) (کلمہ) ( روح پاک) اور یہ تینوں ایک ہیں کیونکر کلام تکلم سے جدا نہین ہو سکتا اور روح قوت کلام ہے تو تثلیث فی التوحید ق توحید فی التوحید فی التثلیث قرآن سے بھی ثابت ہے۔ علاوہ ازیں خدا کو آفرینش آدم سے اس وقت تک کسی نے نہیں دیکھا اور وہ آپ ہی آیا اورکلام سے ظاہر ہوا اوراپنے آپ کو خدا کہا پس یہ امر اظہر من الشمس ہے کہ خدا کلام ہے جو شروع میں آدم اور بعد اُس کے انبیاء اورہم کو پہنچا ہے اور یہی عقیدہ نصاریٰ ونیز دیگر اہل کتاب کا ہے چنانچہ آدم کو پیدا کرکے خدا نے کہا کہ درخت ممنوعہ سے نہ کھانا اور پھر پیدائش کے ایک باب کی ۲۹ آیت میں خدا نے آدم سے کہا کہ کیا تونے اُس درخت سے جس کو میں نے منع کیا تھا کھایا اس سے اُس کی وحدانیت ثابت ہے۔

اورپھر پیدائش کے باب کی ۲۶آیت میں جو خدا کہتاہے کہ ہم آدم کو اپنی صورت اورمانند بنائیں اورپھر پیدائش کے ۳باب کی ۲۲آیت میں خدا کہتاہے کہ دیکھو آدم نیکی او ر بدی کی شناخت میں ہم میں سے ایک کی مانند ہوگیا اس سے واضح ہے کہ اللہ میں تین اقنوم ہیں توپھر مسیحی اگر تثلیث فی التوحید وتوحید فی تثلیث مانتے ہیں توکیا گناہ کرتے ہیں مسیحی کا یہ عقیدہ بروئے کتب سماوی ہے کہ مسیح میں خدائیت اور آدمیت دونوں یعنی جسم مثل آدمیوں کے تھا مگر وہ کلام خدا جو اُس میں تھا وہ خدا تھا چنانچہ اس کا ذکر واضح طورپر کیا گیا ہے اور مسیحیوں کا بموجب کتب سماوی یہ عقیدہ سچا ہے کہ اللہ جل شانہ نے اولاد آدم کی نجات کے واسطے اپنی قدرت کا ملہ سے وہ کلام جو خدا کے ساتھ ہے قالب انسان میں ظاہر کیا اُس کی مثال یہ ہے کہ جب آفتاب کی طرف دیکھا جاتاہے تواُس کی کرنیں ہم تک برابر پہنچتی ہیں اورہم کو بھی بخوبی نظر آتی ہیں مگر ہم اُن کی گرفت نہیں کرسکتے اورنہ آفتاب سے علیحدہٰ ہیں پس یہی صورت اللہ کی مسیح کے ساتھ ہے اوردیکھو انجیل میں جس وقت اللہ نے مریم کو مسیح کی بشارت دی توفرشتہ نے مریم سے کہا کہ یہ مبارک جوتجھ سے پیدا ہوگا خدا کا بیٹا کہلائے گا۔ اوراُس کی تصدیق حضرت داؤد مسیح کے صدہا سال پیشتر فرماتے ہیں دیکھو دوسرے زبور میں یہ لکھا ہے کہ خداوند نے مجھ سے کہا کہ تو میرا بیٹا ہے میں نے تجھ کو مولود کیا اور زمین کے بادشاہ سامنا کرتے ہیں اور سردار متفق ہوکر خداوند اوراُس کے مسیح کے خلاف مشورہ کرتے ہیں اپناحکم ظاہر کرونگا اور ۱۱۰ زبور میں حضرت داؤد مسیح کی نسبت لکھتا ہے کہ خداوند نے میرے خداوند سے کہا کہ تومیرے داہنے ہاتھ بیٹھ۔

میرے پیارے مسلمان بھائیوں یہ منقول ہے جس کی تصدیق انبیائے بنی اسرائیل کرتے ہیں مسیحی توبہ توبہ ہرگز یہ نہیں کہتے کہ مسیح بطور جسمانی خدا کا بیٹا ہے۔ یا نعوذ باللہ بی بی مریم خدا کی جورو تھی یہ تمہارے راویوں کی مختلف روایات وعقیدہ ہیں جو اللہ کو ایسا خیال کرتے ہیں ہم نے بہت سے مسلمانوں سے تحقیق سنا ہے۔ وہ یہ کہتے ہیں کہ محمد کا سایہ نہیں تھا ا س وجہ سے کہ محمد پر سایہ خدا کا تھا اورسایہ کے سایہ نہیں ہوتا توظاہر ہے کہ تم خدا کو مجسم مانتے ہو اور اُس کا ثبوت یہ دیتے ہو کہ محمد کے سایہ نہیں تھا توظاہر ہے کہ خدا کے سایہ ہے اور وہ سایہ محمد تھا ضرور اللہ مجسم ہے اورکچھ روایات پر ہی منحصر نہیں ہے خاص قرآن میں ہے اللہ کی نسبت اکثر مقامات پر وہ کلمات وارد ہوئے ہیں جو کسی کتب سماوی میں نہیں دیکھے جاتے ۔ چنانچہ برائے نمونہ اس موقعہ پر بھی بیان کیا جاتاہے۔ دیکھو سورہ آل عمران کے ۵ رکوع کی ۵۳آیت میں قرآن اللہ کو فریبی کہتاہے اور وہ فریب کس کے مقابلہ میں انسان کے اس صفات کے خدا کو اہل کتاب خدا نہیں کہہ سکتے ہیں جو دغا باز اور فریبی ہو۔ اے ناظرین قرآن اللہ کو فریبی کہتاہے۔ مگر حیات القلوب میں امام رضا اللہ کو جھوٹا بتاتا ہے اس کا یہ مضمون ہے کہ امام رضا سے پوچھا کہ ایسا ممکن ہے کہ خدا کسی پیغمبر کو کچھ خبر دے اورپھر وہ نہ ہو۔ جواب دیا کہ ممکن ہے۔ اور واضح رہے کہ قرآن میں اگرچہ روح القدس برائے نام لکھی مگر کسی مسلمان راوی سے اُس کی صحت نہیں ہوئی ہے چونکہ روح القدس تثلیث کا تیسرا کلمہ ہے لہذا اس مقام پر اُس کا ذکر کرنا امر لازمی ہے دیکھو حیات القلوب فارسی جلد دوم ۶۱۹ صفحہ میں یہ لکھا ہے کہ روح القدس ایک روح ہے جو خدا نے پیدا کرکے اور عیسیٰ میں پھونکی تھی اور بعض کہتے ہیں کہ روح القدس جبرائیل سے مراد ہے اور بعض کا قول ہے کہ روح القدس اسم اعظم ہے اور حدیث سے واضح ہے کہ روح القدس ایک خلقت ہے بزرگتر از جبرائیل ومیکائیل اور تمام فرشتوں سے آئی۔ برداران اسلام اب آپ فرمائیں کہ کس کا قول صحیح ہے اور دوسری حدیث یہ ہے کہ محمد نے جبرائیل فرشتہ سے دریافت کیاکہ تو وحی کہاں سے لاتاہے (سوال تواچھا ہے) جواب دیا کہ اسرافیل سے پھر دریافت کیاکہ اسرافیل کہاں سے لاتاہے جواب دیا کہ عالم ارواح سے پھر دریافت کیاکہ عالم ارواح کہا ہے جواب دیاکہ وہ سب سے بالاتر ہے۔

معزز قارئین قصہ تمام ہوگیایعنی محمد کے پاس جبرائیل وحی لایا کرتا تھا اورجو جبرائیل کہتا تھا وہی محمد کو معلوم ہوتا تھا اور عالم ارواح کا حال جبرائیل کوخود بھی معلوم نہیں تھا تومحمد کو کیا بتلاتا اورمحمد صاحب ہماری روح القدس کوکیا بتاتے علی ہذا لقیاس بیچارے امام او رراوی روح القدس کو کیا سمجھتے۔ مگر غنیمت ہے کہ اُنہوں نے اپنے قیاسات سے کچھ لکھ تو دیاہے۔


۱. نوٹ: محمدی کہتے ہیں کہ نور محمد سے ایک گوہر بنایا اُس سے زمین و آسمان بنائے۔ ہندو کہتے ہیں انڈے میں برہما نے پرمیشر کا جپ کیا اور انڈا دو ٹکڑے ہوا۔ نصف سے آسمان اور نصف سے زمین بنائی گئی۔ اب ناظرین غور فرماویں کہ محمد اور ہنود میں کیا فرق ہے چونکہ تمام عرب بت پرست تھے اس وجہ سے ہنود کے مسئلہ کو محمد پر سادق کرلیا ہے

۲. نوٹ۔ اے ناظرین جس وقت تمام مخلوقات کو اﷲ نے پیدا کیا تھا تو یہ دو جانور یعنے خوک اور گرُبہ پیدا نہیں ہوئے تھے حسب ضرورت اﷲ نے اُنکوکشتی میں پیدا کیا اور چونکہ محمدی مذہب میں فیل حرام ہے اور سور اُس سے پیدا کیا گیا لہذا وہ بھی حرام کر دیا گیا اور اعلیٰ ہذا القیاس شیر بھی حرام ہے تو بلیّ بھی حرام ہوئی مگر حنفی مذہب بلی کو حلال کہتے ہیں یہ بھی ایک مثلہ ہے۔

۳. نوٹ۔ اے ناظرین تفصیل توراوی صاحب نے خوب لکھی مگر دو بات راوی صاحب بھول گئے اوّل یہ کہ عوج کی تاریخ تولید نہیں لکھی گئی دوسرے یہ کہ تعداد قد ک قدیم کر دی فقط۔اے برادران دین محمدی تمہارے لوی تو ہنود سے بھی بڑھ گئے مگر ہاںایسا ہونا چاہئے کیونکہ محمد کے آباو اجداد بھی تو وہی بت پرست تھے تو خلقی بات کیونکر جا سکتی ہے اگر کوئی محمدایضا ہمارا بیان غلط یا مبالغہ تصور کریں تو اپنی کتابیں جنکا ذکر ہم کرچکے ہیں مطالعہ کریں۔

۴. نوٹ ہم نے یوسف کے زکر کے متعلق اس آخری حصہ کو درج کرنا چھوڑ دیا تھا اس خیال سے کہ شاید راقم مضمون نے حیات القلوب کی اس روایت کے حوالے میں غلطی نہ کھائی ہو۔ اب ہم نے اس روایت کی نسبت تحقیق کر لی ہے جو کتاب حیات القلوب حصہ اول جلد دوم کے صفحہ ۵۴۱ میں پائی جاتی ہے اور معہ اُن نتایج کے جو کہ صاحب مضمون نے نکالے درج کرتے ہیں۔ ایڈیٹر

Göreme

 

روحانی سردار ی نبوت در نبی اسرائیل یا نبی اسمٰعیل

Spiritual Leader: Ishmael or Isaac?

Published in Nur-i-Afshan July 23, 1897

مسلمان علماء میں یہ امر مسلم مانا ہوا ہے کہ روحانی سرداری نبوت کی بنی اسرائیل کے خاندان سے منتقل ہو کر ہمیشہ کے لئے بنی اسمعیٰل کے گھرانے میں آگئی ہے۔ اِسکے ثبوت ہی دعویٰ پیش کیا جاتا ہے۔ مگر عادت چلی کے مطابق دعویٰ بلا شہادت پیش کیا جاتا ہے اور اگر کتب مقدسہ کی کوئی آیت پیش کیجاتی ہے تو اُسکے آگے پیچھے کے تعلقات کو نہ دیکھ کر اِس جہالت کا اظہار کرتے ہیں وہ کتب مقدسہ کے مطالعہ سے بالکل بے بہرہ ہیں مگر سوال لازم آتا ہے کہ اہل اسلام کتب مقدسہ کے حوالے محمد صاحب کے مصداق رسالت بننےّ کے لیے کیوں دیتے اِسکی وجہ یہی معلوم ہوتی ہے کہ کتب مقدسہ کا تسلیم کرنا قرآن کے مطابق ضروری انر ہے مگر اشائے بحث جب محمدی رسالت محمد کو ازروئے کتب مقدسہ پایہ ثبوت کو نہ پہنُچا سکتے تھے تو فی الفور اُنکا منسوخ یا محرف ہونا بتا دتے تھے اور کبھی یہ خیال نہ کرتے تھے کہ اگر محمد صاحب کی رسالت واقعی مبنی بر دعویٰ بلا دلیل نہ ہو تو پھر اُس دعوے کو قدم رکھنے جگہ کی بھی نہیں اسلئے محمدی علماء نے اس امر کو دیکھ بھال کر شروع ہی سے توریت و انجیل کا چند حوالہ دیتے آتے ہیں جو اُنکے گمان کے موافق محمد صاحب کی طرف اشارہ کرتی ہے اِس لئے ایک امر کا تصفیہ تو بخوبی ہو سکتا ہے کہ محمدیوں میں علماء کا توریت و انجیل کی آیات میں رسالت محمد کا حوالہ ڈھونڈھتے چلا آنا یہ امر ثابت کرتا ہے کہ اُنکی نظر میں یہ کتابیں ہر گز منسوخ یا محرف نہوئیں اور اگر تغیر و تبدیل یا تصاحف کی گئیں تو بھی اِس جہت سے اُنہیں محمد صاحب کی رسالت کی کوئی خبر نہ پائی گئی اور اگر برقرار بدستور رہین تو اظہر من الشمس ہے کہ محمد صاحب کی رسالت کی خبر اُنکے خیال کے بموجب اُن کتابوں سے نکلنی چاہئے کیونکہ اُنکی نظر میں محمد صاحب آخر الزمان نبی ہیں۔ اب اگر موجودہ تعلیم یافتہ مسلمان تعصب کو دور رکھ کر اور انصاف کی نظر سے محمد صاحب کی رسالت کو کتب مقدسہ میں ڈھونڈیں اور اُس کی خبر نہ پاویں تو مناسب ہے کہ وہ دائرہ محمدیت سے نگل کر دائرہ عیسویت میں آویں کیونکہ کتب مقدسہ کا خاتمہ اور اُن کی تکمیل مسیح ناصری ہے نہ محمد عربی ڈاکڑ فنڈر صاحب نے اپنی کتاب میزان الحق میں اُن حوالوں پر بحث کی ہے جو اہل اسلام محمد صاحب کی رسالت کے بارہ میں پیش کرتے آئے ہیں۔ اور اُنہی کتابوں کے زریعہ سے صاف صاف طاہر کیا ہے کہ وہ آیات مذکور متنازعہ کیسطرح محمد صاحب کی طرف اشارہ نہیں کرتیں۔ جو چاہے اِس کتاب کو لیکر متنازعہ آیات کا مطالعہ کر کے اپنی تسکین کر لے۔ ہم صرف اُس دعویکی نسبت گفتگو کرینگے جوموعودہ نبی کا زکر موسیٰ کی پانچویں کتاب کے ۱۸ باب کی ۱۵، ۱۸ آیات میں ہے کہ آیا وہ نبی اسرائیل سے ہو گا یا بنی اسمعٰیل سے۔ مناسب ہے کہ ہم وہ کل کیفیات جو اسمعٰیل کے متعلق عہد عتیق میں پائی جاتی ہیں ناظرین کے سامنے پیش کریں تاکہ بخوبی اشکارا ہو جا‍‍ؤے کہ اُس معمودہ وعدہ کے متعلق جو جل شاثہ نے ابراہیم اور اُس کے خاندان کی نسبت ارشاد فرمایا اُس میں اسمعٰیل کا کیا حصہ ہے۔ 

واضح رہے کہ موسیٰ کی پہلی کتااب یعنی پیدایش جسکا سر نامہ اصل زبان میں پڑے مشیت ہے اُس کی غرض یہ ہے کہ وہ علاوہ ابتدائے دنیا و بنی آدم کا زکر کر نیکے اُن آلہی مجوزہ انتظاموں کا بھی زکر کرتی ہے جن کی طفیل بار تیعالی نے اپنی بادشاہت کی بنیاد کو انسان اور دنیا کے درمیان قائیم کیا۔ اِس کتاب کا بیان دنیا کے خلق ہونیسے شروع ہوتا ہےکیونکہ واقعی خدا نے اپنی سلطنت کو مکان و زبان ہی میں قایم کیا اِسلئے خلقت کا زکر موزوں طور پر اول آیا جس میں اُس احکم الحاکمین نے نہ صرف اپنی نادیدنی زات ہی کا انکشاف فرمایا بلکہ اپنی محمبت کا بھی اظہار کیا۔ اوّل دنیا کو خلق کیا تاکہ وہ زیر حکومت خدا کے آجاوے اُس میں ایک مکان خاص اِنسان کی بودو باش کے لئے تیار کیا اور اِنسان کو اپنی صورت پر بنایا دنیا کا تواریخی حال اور خدا کی سلطنت آیندہ اُسی کے کارنامہ سے شروع ہوتی ہے اُس کی عہد شکنی سے تمام معصیت و لعنت میں گرفتار ہوتی ہے اُس کی مخلصی سے فصل کے عہد میں آنیکی جہت سے نہ صرف اسمان و زمین بحال کئے جاوینگے بلکہ جلال پا جاوینگے ( مکاشفات ۲۱: ۱) گناہ کے آنے سے انسان خدا سے جدا اور مورد سزا ہوا مگر کدا نے اپنی بے بہار حمت سے اپنا تعلق انسان سے مطلق نظر انداز نہ کیا نہ صرف اُس نے فتوئے سزا کے بعد بوجہہ احسن انسان کی مخلصی کی بشارت دی بلکہ عملاً اُسوقت وہ متواتر اپنا الہام دیتا چلا آیا تاکہ بنی نوع اِنسان کو اپنی جانب رجوع کرے اور گمراہی و ضلالت سے راہ ہدایت و نجات پر لاوے اور اُس کے کُل طریقہ افعال کا اظہار اصل میں واقعات نجات کے تعلق بنی اِنسان کی تواریخی بڑھاؤ و ترقی کا بیان ہے۔ پیدایش کی کتاب اِسکا بیان شروع سے لیکر زمانہ اسلاف تک جنکو کل دنیا کے لئے خدا نے نجات کا پیغام شاکر چُن لیا چندے بالتوضیح مرتب کرتی ہے۔ یہ بیان تین حصوں میں منقسم ہو اول ابتدائی زمانہ جو آدم سے نوح تک کا وقت ہے ثانی تیاری کا زمانہ یا زمانہ تمحید جو نوح سے ابراہیم کے والد تارہ تک زمانہ ہے جس میں اُس عہد کا زکر ہے جو نوع وے باندھا گیا اور نیز برکتوں و لعنتوں کا زکر بھی پایا جاتا ہے ۔ تیرا زمانہ زمانۂ اِسلاف کہلاتاا ہے جسمیں ابراہیم و اسحاق ع یعقوب کا مفضل بیان ہے۔ یہ وہ خاندان تھا جسکو خدا نے اپنی شیت ایزوی کیا اپنی اُمت منتخب کیا۔ ابراہیم کی آلہی دعوت سے لیکر یوسف کی وفات تک اُسکا بیان ہے (دیکھو ۱۱: ۱ ۔ ۲۷) کُل انسانی تواریخ کا لب لباب اسی تواریخی و انتخابی خاندان میں پایا جاتا ہے اسی کے تعلق عہد قول و قرار ہایا جو بتدریج بوجہہ احسن زمانہ کے دور میں وسعت پاتا گیا یعنی کہ خدا اِس قوم کو اپنے ایفائے وعدہ میں ایک بڑی اُمت بناویگا حتی کہ دیگر اقوام بھی اُس میں برکت پاوینگے اور کہ ملک کنعان ہمیشہ کے لئے اُسے ملُک وراثت عطا ہو گا۔ الغرض کہ پیدایش کی کتاب کی خاص مدعایہ ہئ کہ وہ خدا کی اولی مقرر شدہ بادشاہت کا زکر کرے۔ اسی اثناء میں ہم یہ بھی دیکھتے ہیں کہ بمقتضائے قانون انسانی بڑھاؤایک متعدد خاندان سے کئی ایک قبیلے بلکہ رفتہ رفتہ ایک مجموعہ قومونکا کیونکر بنگیا۔ مگر یہ کتاب اس میں یہ بھی دکھلاتی ہے کہ خدا نے اپنے انتظام حکومت میں قانون تفریق کو بھی جاری رکھا ہے ناپاکوں اور گمراہوں کو اُنسے جو راہ حق پر اور خدا ترس تھے جدا طبقہ میں رکھا ہے تاکہ ایک پاکیزہ نسلکُل بنی انسان میں سے نجات کے کام کے لئے محفوظ رکھے۔ اسی وجہ سے نسب ناموں پر زور دیا ہوا ہے تاکہ قانون بڑھاؤ اور نظم و ضبط کے ساتھ خاندانوں کی تفریق بندی بھی ہوتی جاوے۔ چنانچہ اس تفریق بندی کے لحاظ سے یہ کتاب مختلف نسب ناموں کے بیان کرنے میں یوں شروع کرتی ہے کہ یہ تو لد نامے یا پشتیں الخ۔ اِس کتاب میں اِس قسم کےنسب ناموں کے مجموعے دس پائے جاتے ہیں جس میں سم کے نسب نامہ کی تفریق بالخصوص دکھائی گئی ہے کیونکہ اُسی کے خاندان کو خدا نے چُن لیا۔ تاکہ وہ اُس کے اعلان دوحی کے محافظ ہوں۔ سم کے خاندان کی تعلیم اور تیاری کے لئے اُسکا ابتدائی بندوبست ابراہیم کی الہی دعوت سے شروع ہوتا ہے جس میں ابراہیم کے خاندان اسحٰق و یعقوب و اُسکی اولاد کی احتیاطاً جز گیری کی جاتی ہے اور اُنکو فضل کے وعدے عنایت ہوتے ہیں اِس خاندان کی تفریق بندی بھی خوب طاہر کیجاتی ہے اور طرفہ تریہ ہے جن باقی خاندانوں سے وہ جُدا کیا گیا اُنکا پہلے زکر کیا جاتا ہے اور بعد کو اُس مخصوص خاندان کا چنانچہ پہلے قائن کا نسب نامہ ظاہر کیا گیا ہے اور بعد کو سیتھ کا اور اسی طرح نوح کے بعد پہلے ھام و یافت کا اور بعد کو سم کا بیان ہے اِسی طرح ابراہیم بعد پہلے اسمعٰیل و عیسو کا اور بعد کو یعقوب و اسحاٰق کا زکر پایا جاتا ہے۔ اِس سے اول یہ ثابت ہوتا ہے کہ اس کتاب کا لکھنے والا ایک ہی شخص ہے جو واقعات کا پابند ہو کر اُنکا باتدبیر زکر کرتا ہے اور یہ بھی کہ لکھتے وقت اُسکی ہدایت کرنیوالاخدا ئے عزوجل ہے تاکہ اُس کو غلطی و مسہوسے محفوظ رکھے ۔ اب ہم اپنے خاص مضمون کی طرف مخاطب ہوتے ہیں جو کچھ یہاں تک بیان ہوا وہ اِس امر کے ظاہر کرنیکے لئے ہوا ہے کہ کتب مقدسہ کے طریقہ مطالعہ سے کس طرح اُنکے مقاصد و نمایات دریافت ہوں۔ ہم نے یہ دکھلایا کہ خدا نے اپنی برگزیدہ قوم کی بنیاد ابراہیم کی آلہی دعوت پر رکھی ہے اور کہ کس طرح خدا نے اپنے اعلان و وحی کے زریعہ سے اُسی خاندان میں مخصوص رکھا ہے اور باقی خاندانوں کو اُنکی اپنی نفسانی خواہشوں پر چھوڑ دیا ہے ہے تاکہ وہ بھی اِس امر کے شاہد ہوں کہ بدوں خدا کی زندہ شراکت حاصل کرنے اور اُس کے فضل کے تحت میں آنیکے سلامتی اور برکت عظمٰی حاصل نہیں ہو سکتی۔ اور حضرت ابراہیم کو بھی آلہی دعوت اسلئے ہوئی کہ اُس میں آیندہ تمام قومیں برکت پاویں ۔ ( ۱۲: ۱ ۔ ۳) ابراہیمی سلسلہ دور مانی اُسی کے گھرانے سے شروع ہوتا ہے اُسی میں تین مراتب ہیں جو تین بزرگوں کے نام سے منسوب ہیں یعنے ابراہیم و اسحٰق و یعقوب اور پھر یعقوب کے بارہ بیٹے منتخب قوم کے باپ قرار دیئے جاتے ہیں اِس خاندان میں نبوّت مرتبہ وعدہ اقدس اور برکت عظمیٰ رکھتی ہے چنانچہ جو وعدے اِس خاندان سے ہوئے اُنکا یفا بھی ہوتا چلا آیا ہے جس کے دو جملے تھے ایک تو اُنکی اپنی تواریخ سے تعلق رکھتا تھا جو ظاہر وحی تھا اور دوسرا آیندہ پر اشارہ کرتا ہے جو باطنی یار وحانی ہے۔ چنانچہ اُنکے اپنے مذہب کی بنیاد اُنکا ایمان تھا نہ اعمال ابراہیم کے ایمان نے عمل میں ظہور پکڑا۔ اسحٰق کے ایمان نے دُکھ جھیلے اور مصائب کا سامنا کیا۔ یعقوب کے ایمان نے دکُھوں اور مزاحمتوں کا مقابلہ کیااورغالب ہوا۔ الغرض کیا بزرگان دین فضل کی حکومت میں پائے گئے تاکہ باقی اقوام کا فضل کے تحت میں آنیکا نمونہ بنیں۔ مگر غور طلب یہ بات ہے کہ جب خدا نے ابراہیم کو سم کے خاندان میں سے چُن لیا تو اُسی کی زات و نفس پر انتخاب کو مخصوص نہیں کیا بلکہ آیندہ بھی اُس کی نسل کو انتخاب کیا جو برکت عظمیٰ اور وعدہ سے مستفیض ہو چنانچہ اِسمعیل کو جو اُس کی لونڈی سے ستول ہوا خارج کیا اور سرہ و ابراہیم کو ایک معمورہ بیٹا بخشنے کے زریعہ سے اُسنے اِس بات کو بھی ظاہر کیا کہ وہ کونسی نسل ہو گی جس کے زریعہ تمام قومیں بر کت پاوینگی ۔ یہ سلسلہ انتخاب ایک طرح سے شروع ہی سے چلا آیا اور آیندہ بھی جاری رہا ہے چنانچہ جیسے اسمعیٰل کا رد کرنا اور اسحٰق کا منظور کرنا پایا جاتا ہے اُسی طرح عیسو کا رد کرنا اور یعقوب کا چُن لینا بھی۔ 

اِسمعیٰل کی پیدایش کا زکر پندر باب میں پایا جاتا ہے۔ اسِ باب کو پڑھنے سے معلوم ہوتا ہے کہ ابراہیم و سرہ کو فرزند بخشنے کے وعدہ آلہی کے دس برس بعد جب وہ کنعان میں وارد ہو چُکے تھے اور اُنکو تکمیل وعدہ کی صورت تاحال نہیں نظر آتی تھی تو سرہ نے حسب رضامندی خود ایک مصری لونڈی ہاجرہ نامی اپنے شوہر کے سپرد کی تاکہ اُسکے زریعہ ابراہیمی خانوادہ جاری رہے( ۳۰: ۳) ابراہیم نے سرہ کی تجویز کو منظور کر لیا اس فام خیال پر کہ موعودہ نسل قایم کرے ( دیکھو ملاکی ۱۲: ۱۵) مگر خدا نے اُس کی نفسانی خواہش کو اپنے عہد عظمیٰ کے تعلق پورا نہہونے دیا باب ۱۶۔ سرہ اور ہاجرہ کے درمیان نفاق پڑ گا۔ہاجرہ اسور یعنے عرب کے مغربی شمالی ریگستانی کی طرف چلی گئے وہاں خدا کا فرشتہ ایک کنوئے کے پاساُسے ملا اور صلاح خیر دی کہ وہ اپنی مالکہ کے پاس واپس جاوے اور اُس کی اطاعت قبول کرے اور چونکہ وہ حاملہ تھی اُس آیندہ فرزند کا بھی زکر کیا فرمایا کہ اُس کی اولاد شمار میں بہت ہو اور تو اُس کا نام اسمعیٰل رکھنا اور وہ ایک وحشی آدمی ہو گا اُس کا ہاتھ سب کے اور سب کے ہاتھ اُس کے برخلاف ہوںگے۔ یہ عزت ہاجرہ کی ابراہیم کی وجہ سے کی گئی کیونکر ابراہیم سے نہ صرف خصوصاً روحانی نسل عطا کرنیکا وعدہ فرمایا گیا بلکہ عموماً جسمانی نسل کا بھی چنانچہ اسمعیٰل کی نسلوں کا جو بیدوا کہلاتا ہیں ( یعنے بّدو) حال ہی اور وہ اپنے سب بھائیوں کے سامنے بودو باش کرے گا اُس کی تشریح کے لئے دیکھو ۲۵: ۱۸۔۱ ابراہیم کی چھیاسی برس کی عمر میں ہاجرہ کے لڑکا پیدا ہوا ابتک ابراہیم کو یہی خیال تھا موعودہ لرکا یہی ہے۔ ننانوے برس کی عمر میں خدا پھر ابراہیم پر ظاہر ہوا یعنے اُسوقت جب اسمعٰیل تیرہبرس کا ہو گیا۔ اور یوں خطاب کیا کہ میں الشؔدائی یعنے خدائے قادر ہوں تو میرے حضور میں چل اور کامل ہو اور میں اپنے اور تیرے درمیان عہد کرتا ہوں وغیرہ ( باب ۱۷) جس میں پہلے قومونکا زکر کر کے جنکا وہ باپ ہوگا وہ مخصوص عہد کرتا ہے جو ہمیشہ کا عہد اُس کی نسل کے درمیان پشت در پشت ہوگا۔ علامات عہد بھی مقرر ہوئے اور موعودہ نسلکا عہد سرہ کے تعلق کیا گیا اور اُس کا نام بھی سری سے سرہ رکھا گیا کیونکہ وہ قوموں کی ماں ہو گی تقاضائے بشریت کے بموجب ابراہیم کی یہ درخواست بھی ہوئی کہ اسمعٰیل بھی خدا کے سامنے ہمیشہ رہے مگر چونکہ عہد عظیم کا تعلق اسحٰق سے تھانہ کہ اسمعٰیل سے لہذا اِس عہد میں اُسکا کچھ بھی حصہ نہوا مگر اُس کو بھی خدا نے ابراہیم کی خاطر برومدن کیا حتی کہ وہ بارہ بادشاہوں کا سردار بنا۔ ۱۶ آیت سے صاف طاہر ہے کہ قوموں کی ماں میں اور ملکوں کے بادشاہوں میں اسمعٰیلی قبیلے شامل نہیں ہین اور نہ وہ مدیانی قبیلے جو قتورہ کے بیٹوں سے ہوئے باب ۲۵ میں محض اسحٰق کی نسل عہد فضل میں شامل ہے جیسا آیندہ بھی مصہودہ وعدہ میں اسحٰق کے دونوں توام بیٹے یعنے عیسو اور یعقوب شامل نہیں تھے مگر صرف یعقوب اور جسکے بارہ بیٹے سے اِسرائیلی قوم قائیم ہوئی ( دیکھو خروج ۶ باب اور ۲۰ سے ۲۴ باب تک) ( رومیوں ۴: ۱۱، ۱۲، ۱۶، ۱۷ آیات) علاوہ بریں علامات کے تعلق ختنے کا نشان صرف اُسی کی نسل میں محداد نہ تھا بلکہ اُس کو حکم ہپوا کہ اُسکے گھر کے تمام لوگ خویش و غیر محنتون کئے جاویں جس سے ثابت ہوتا ہے کہ شروع ہی سے خدائے برحق کے ارادے میں یہ تھا کہ غیر قومیں بھی اکر میں اُسکی برکات فضل میں شامل ہوں گی اِسی لحاظ سے خدا کے وعدو نمیں بھی دو جملے پائے جاتے ہیں۔ ابراہیم نہ صرف اپنی ہی خاص نسل کا باپ اور کنعان کا وارث ہوگا بلکہ اُسکی نسل کُل دُنیا کی وارث ہو گی (رومیوں ۶: ۱۳) اِسی طرح جو کچھ ابراہیم کی نسل نسبت اور ملک کنعان کی نسبت مراد ہے وہی عہد و عہد کی علامات کی نسبت ہے۔ ایک محدودی بلحاظ مکان و زمان+

جب اسحٰق وعدہ کے مطابق ( ۱۷: ۶) پیدا ہو ا اُسوقت اسمعٰیل نے ٹھٹھے مارنا شروع کیا ( ۲۱: ۹ ) یہ ننہا لاچار بچہ قوموں کا باپ ہو گا۔ یہ سب کچھ بغض و کینی و حسد کی وجہ سے اسمعٰیل سے ظاہر ہوا۔ اسمعٰیل کی یہ نفسانی کاروائی اُن اکثر نفسانی کاموں کا نمونہ ہے جو شروع سے نفسانی لوگ جنمیں محمدی لوگ بھی ہیں، خدا کی بادشاہت اور اُس کے برگزیدہ اسحٰق پر تصدیعہ آنے لگے۔ اِسی طرح کلیسیا کا آغاز ایک ادنیٰ تخم سے شروع ہوا۔ اِسی طرح مسیح کی پہلی امد خاکساری و عاجزی کے ساتھ ہوئی ۔ اِسی طرح نفسانی اسمعٰیل نے بر گزیدہ اسحٰق کا ٹھٹھا کیا مگر ابراہیم خدا سے ہدایت پاکر کہ اُس کی سہودی نسل اسحٰق سے ہو گی ( ۲۱: ۱۲) اُس نے ہاجرہ اور اُسکے بیٹے اسمعٰیل کو رخصت کر دیا اور وہ خدا کی پناہ سے جو سب کا مالک و حاکم ہے خاران کے جنگل میں جا بسا اور ایک وحشی آدمی و تیر انداز ہو گیا۔ اور ایک مصری عورت سے نکاح کر لیا اِسی طرح عیسو بھی جو خارج کیا گیا حالانکہ الوہیم کی پروردگاری ہیں تھا کنعانیوں سے ناطہ باندھ لیا۔ جو کچھ اسحٰق کے تعلق گزار دیکھو باب ۲۲۔ جس سے صاف عیاں کہ خدا کا عہد اُسی سے تھا ( دیکھو ۱۲: ۱۔ ۱۵، ۲۱) اور ۱۷ باب ۴،۶، ۱۶۔ آیات کہ ابراہیم اور اُس کی مہودی نسل کا تعلق ایمان کیا تھا اور انہیں کارناموں کے تعلق دیکھو متی ۱۰: ۳۷ؔ و لوقا ۱۴: ۲۶ؔ+

پھر کوہ ماریا پر اسحٰق کی قربانی کا واقعہ باقی شرعی قربانیوں کی طرف اشارہ کرتی ہے بلکہ اُن کی تشریح ہے کیونکہ وہ قربانی کی مرُاد کو ظاہر کرتی ہے۔ یوحنّا اصطباغی نے اِس قربانیکو مسیح پر صادق بتایا دیکھو خدا کے برّے کو جو جہان کے گناہ کو اُٹھا کر لیجاتا ہے۔ اُس میں کُل علامات قربای اصلی و حقیقی ظہور پکڑتی ہیں وغیرہ وغیرہ۔ اِن کُل بیانات سے بکوبی مترشح ہے کہ روحانی سرداری نبّوت بنی اسرائیل کے خاندان سے ہر گز منتقل نہوئی بلکہ بدستور قائیم ہے اور اُس میں بنی اسمعٰیل کا کچھ حصّہ نہیں ہے۔ کیونکہ بار تیعالی نے معہودہ قوم کو ابراہیم اور اُس کے بیٹے اسحٰق سے چُن لیا۔ نبوّت اُسی کی اولاد مین جاری رہی حتیٰ کے مسیح میں اُسکا کاتمہ ہوا۔ چنانچہ قرآن بھی سورہ عنکبوت آیت ۲۶ میں اُسکی تصدیق کرتا ہے وَوَهَبْنَا لَهُ إِسْحَاقَ وَيَعْقُوبَ وَجَعَلْنَا فِي ذُرِّيَّتِهِ النُّبُوَّةَ وَالْكِتَابَ وَآتَيْنَاهُ أَجْرَهُ فِي الدُّنْيَا وَإِنَّهُ فِي الْآخِرَةِ لَمِنَ الصَّالِحِينَ۔ یعنی اور ہم نے اُن کو اسحٰق اور یعقوب بخشے اور اُن کی اولاد میں پیغمبری اور کتاب (مقرر) کر دی اور ان کو دنیا میں بھی اُن کا صلہ عنایت کیا اور وہ آخرت میں بھی نیک لوگوں میں ہوں گے ۔ اور پھر دیکھو تصدیق کے لئے سورہ جاثیہ ع ۱۶ دْ آتَيْنَا بَنِي إِسْرَائِيلَ الْكِتَابَ وَالْحُكْمَ وَالنُّبُوَّةَ وَرَزَقْنَاهُم مِّنَ الطَّيِّبَاتِ وَفَضَّلْنَاهُمْ عَلَى الْعَالَمِينَ ۔ یعنی اور ہم نے بنی اسرائیل کو کتاب اور حکم اور پیغمبری دی ہے ۔

Jerusalem

 

تالمود اور قرآن

اِبرَاھیمِ کے متعلق


Talmud and Qur'an

The Story of Abraham

Published in Nur-i-Afshan May 29, 1896


محمد نے ابراہیم کو نبیوں میں سے سب سے افضل سمجھا۔ اور قرآن میں طول طویل حال لکھا۔ جیسا کہ سب جانتے ہیں چند باتیں جو بائبل میں ملتی ہیں قُرآن میں بیان کیگئی ہیں مثلاً فرشتوں کا ابراہیم کے پاس اِنسان کی شکل میں آنا بیٹے کی قربانی اور سدوم کے نیست ہونے کا حکم دینا مگر یہاں ہمکو خصوصاً اُن باتوں سے مطلب ہے جو تالمود سے لیگئی ہیں۔ باستثنا اِس بیان کے جو سورة البقر ۱۱۸۔ ۱۲۶ تک درج ہے۔ جہاں کہ دعویٰ کیا گیا ہے کہ ابراہیم اور اسمعیٰل نے کعبہ کو بنایا اور یہ ایک ایسا بیان ہے کہ جس کی تاریخی بنیاد بالکل نہیں ہے اور نیز اس بیان کے جو سورہ عمران میں ۵۸ سے ۶۰ْ تک لکھا ہے کہ ابراہیم نہ یہودی تھا نہ مسیحی قریب قریب ہر ایک بات یہودی حدیثوں سے نقل کی ہے ۱ ۔ مثلاً (۱) وہ طریقہ جس سے واحد خدا کا علم حاصل کیا سورہ انعام ۷۴۔ ۸۲ (۲) اپنے باپ اور اپنے اہل وطن کو اپنے دین پر لانے کی کوشش سورہ مریم ۴۲۔ ۵۱ اور سورہ انبیا ۵۲۔ ۵۸ ( ۳) اِس کا بتوں کو توڑ ڈالنا۔ سورہ انبیا ۳۹۔ ۶۶ ( ۴) لوگوں کا غصّہ ہونا اور اُس کو جلانے کی کوشش کرنا سورہ انبیا ۶۷۔ ۶۸ (۵) اُس کا معجزہ کے طور پر رہائی پانا سورہ انبیا ۶۹۔ ۷۰۔

اِن تمام مسبوق الزکر باتوں کی اصل تفسیر کتاب پیدائش ،موسوم، مڈراش راباّہ پارہ ۱۷ میں ملِتی ہے ۲ ۔ ہم نے اِن باتونکا انگریزی ترجمہ دیکھا ہے اور حقیقتاً قرآن بالکل یہودیوں کے بیانات کو نقل کرنا ہے۔ ابراہیم کے متعلق محمد نے تاریخ کو بہت غلط لکھا اِس کی کئی مثالیں ہیں ( ۱ ) سورہ ہود ۷۱ میں ہے کہ سرہ پیشتر اس کے کہ فرشتوں نے اصحاق کے پیدا ہونے کی خبر دی ہنسی۔ کیونکہ اُس کا ہنسنا اِسی خبر پانے کا نتیجہ تھا کیونکہ لفظ اصحاق کے معنے ہنسنا ہے۔ ( ۲ ) سورہ صفات ۱۰۱ میں لکھا ہے کہ اصحاق کے پیدا ہونے سے پہلے ابراہیم کو ایک بیٹے کی قربانی کا حکم ہوا تھا۔ مگر یہ تواریخ کے بر خلاف ہے کیونکہ فقط اصحاق کے بارہ میں حکم ہوا۔ اِس کادوسرا بیان بیشک ہو سکتا ہے۔ لیکن دونوں طرح سے قرُآن کا بیان درست نہیں رہتا۔ ہم نے اوپر تسلیم کیا ہے کہ بیٹے کی مراد اسمعیٰل سے ہے اور اگر اسمعیٰل سے نہیں ہے تو قرآن کا بیان الٹا ہے کیونکہ اِس کے مطابق جب یہ حکم ہوا تھا تو اُسوقت اصحاق پیدا بھی نہیں ہوا تھا لیکن وہاں کا لفظ یا بنیاہ ہے جس میں تصغیر پائی جاتی ہے اور جس کے معنے چھوٹا بیتا ہیں اور چھوٹا بیٹا اصحاق تھا اور اس طرحسے ثابت ہوتا ہے کہ اسمعیٰل کو قربان کرنے کا حکم بھی نہیں ہوا۔

چنانچہ ہم دیکھتے ہیں کہ بعض محمدی علما کہتے ہیں کہاسمعیٰل کے حق میں یہ حکم ہوا اور بعض کہتے ہیں کہ نہیں ہوا مگر اصحاق کے حق میں خیراتنا معلوم ہے کہ یہاں جھوٹی تاریخ یا اُلٹا بیان ہے۔  


۱. غالباً یہ بات ہے کہ فقرے توریت سے مطابق معلوم ہوتے ہیں حقیقت براہ راست توریت سے نہیں لئے گئے ہیں بلکہ بزریعہ تالمود کے اُس سے اخز کئے ہیں۔ بائبل کے بہت تھوڑے فقرے ہیں جو ٹھیک ٹھیک قرآن میں اقتباس کئے گئے ہیں۔ اِس سے ثابت ہوتا ہے کہ محمد توریت نہیں جانتا تھا لیکن توریت کے بیانات یہودیوں کی حدیث یعنے تالمود کے ذریعے سے معلوم کئے۔

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